राष्ट्रपति शासन (President՚s Rule-Act Arrangement of the Governance)

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सुख़ियों में क्यों?

• अरुणाचल प्रदेश में हाल ही में लगाये गए राष्ट्रपति शासन के कारण संविधान का अनुच्छेद 356 एक बार पुन: चर्चा के केंद्र में है।

राष्ट्रपति शासन

• किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन ऐसी परिस्थितियों में आरोपित किया जाता है, जब राज्य सरकार के दव्ारा संविधान के प्रावधानों के अनुरूप शासन कार्य नहीं चलाया जा रहा हो।

• एक बार राष्ट्रपति शासन आरोपित किये जाने के बाद राज्य का विधानमंडल कार्य करना बंद कर देता है तथा राज्य का संपूर्ण प्रशासन सीधे केंद्र सरकार के अंतर्गत आ जाता है। इस दौरान राज्य की विधानसभा सामन्यत: निलंबित अवस्था में रहती है।

राज्यपाल की भूमिका (संवैधानिक प्रावधान)

यदि मुख्यमंत्री के पास विधानसभा में बहुमत नहीं है तो राज्यपाल के समक्ष तीन विकल्प होते हैं:

• सरकार को संविधान के अनुच्छेद 164 (1) के प्रावधानों के अंतर्गत बर्खास्त कर देना।

• अनुच्छेद 356 लगाये जाने के लिए राष्ट्रपति को रिपोर्ट (विवरण) भेजना।

• अनुच्छेद 174 (1) के अनुसार विधानसभा का सत्र बुलाना

अनुच्छेद 174 (1) इस संदर्भ में यह स्पष्ट नहीं करता कि विधानसभा सत्र बुलायें जाने की तिथियों की घोषणा से पूर्व राज्य के मंत्रिमंडल से परामर्श आवश्यक है या नहीं। अत: सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ दव्ारा कुछ प्रश्नों का समाधान किया जाना शेष है।

महत्वपूर्ण निर्णय

एस. आर. बोम्मई बाद 1994

• न्यायालय केन्द्रीय मंत्रिमंडल दव्ारा राष्ट्रपति को दी गयी सिफारिश की जांच नहीं कर सकता, किन्तु राष्ट्रपति अनुच्छेद 356 के आरोपण के संदर्भ में प्रस्तुत जिन आधारभूत तथ्यों से संतुष्ट हैं न्यायालय इन आधारभूत तथ्यों की जांच कर सकता है।

• अनुच्छेद 356 के आरोपण को तभी न्यायसंगत ठहराया जा सकता है जबकि राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो गया हो। प्रशासनित तंत्र की विफलता को अनुच्छेद 356 के आरोपण का आधार नहीं बनाया जा सकता।

बूटा सिंह तथा बिहार विधान सभा विघटन बाद-2006

• बिहार विधान सभा के विघटन को अमान्य एवं शून्य घोषित किया गया।

• राज्यपाल की रिपोर्ट (विवरण) को अंतिम आधार नहीं माना जाना चाहिए। इसे राष्ट्रपति शासन लगाये जाने का मुख्य आधार माननें से पूर्व मंत्रिपरिषद के दव्ारा इसे अवश्य प्रमाणित किया जाना चाहिए।