Science and Technology: Malmo Declaration and Infoterra-2000

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पर्यावरण (Environment)

माल्मो घोषणापत्र (Malmo Declaration)

वैश्विक मंत्रीस्तरीय पर्यावरण फोरम सम्मेलन का आयोजन मई 2000 में स्वीडेन के माल्मों मेंं आयोजित किया गया था। सम्मेलन घोषणापत्र में स्पष्ट किया गया है कि यद्यपि पर्यावरण की सुरक्षा के संबंध में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई प्रयास किये गये हैं, तथापि पर्यावरण तथा प्राकृतिक संसाधनों का निम्नीकरण चिंतनीय दर से हो रहा है। घोषणापत्र में व्यापार एवं पर्यावरण के संतुलन तथा समन्वय के लिए प्रयास करने पर विशेष बल दिया गया है। वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था में उदारीकरण के संदर्भ में यह अत्यंत आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, सम्मेलन में पर्यावरण के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की वृहत भूमिका, सामाजिक व्यवस्था के सुदृढ़ीकरण तथा भागाीदारी के लिए भी विशेष प्रयास करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। साथ ही मीडिया की पर्यावरण संरक्षण में मिको के संदर्भ में घोषणा पत्र में जागरूकता में वृद्धि तथा समाज में पर्यावरणीय मूल्यों के संरक्षण के लिए मीडिया को उत्तरदायी अपनाने पर भी ध्यान दिया गया है।

इन्फोटेरा (Infoterra-2000)

पर्यावरण सूचना के समुचित अभिगमन के लिए सिंतबर 2000 में डबलिन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तत्वाधान में एक वैश्विक सम्मेलन आयोजित किया गया था। इसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण तथा सतत्‌ विकास सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक पर्यावरणीय सूचनाओं के अभिगमन में वृद्धि करने के लिए प्रयास करना था। इसके अतिरिक्त, सम्मेलन में निम्नांकित तथ्यों पर भी प्रकाश डाला गया:

  • पर्यावरणीय सूचना की परिभाषा।
  • उपभोक्ता समूह तथा सूचना की उपलब्धता करने वालों की पहचान।
  • पूर्ति पक्ष की ओर से संस्था संबंधी पदाधारियों के मध्य नेटवर्क की स्थापना।
  • सूचना सेवा हेतु आवश्यक आधारभूत संरचना का विकास।
  • सेवा को प्रोत्साहन तथा उसका मूल्यांकन।

पृथ्वी सम्मेलन, 2002 (Earth Summit, 2002)

दक्षिण अफ्रीका में जोहानसबर्ग में 26 अगस्त से 4 सितंबर, 2002 तक आयोजित विश्व सतत्‌ विकास सम्मेलन ने विकासशील देशों को न केवल भूमंडलीकरण के कुप्रभावों पर चर्चा बल्कि पारिस्थतिकी, पर्यावरण तथा सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक आयामों के अंतरसंबंधों की व्याख्या का अवसर भी प्रदान किया। चूँकि सतत्‌ विकास की अवधारणा में ऐसे सभी आयाम अंतर्निंहित है, अत: सभी राष्ट्रों को एकजुट होकर सतत्‌ विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है। जोहानसबर्ग पृथ्वी सम्मेलन के विभिन्न पक्षों पर चर्चा करने के पूर्व यहां वर्ष 1992 के रियो डी जेनेरो, ब्राजील में आयोजित प्रथम पृथ्वी सम्मेलन के कुछ महत्वपूर्ण पक्षों को समझना अनिवार्य है। रियो सम्मेलन में वस्तुत: विकसित देशों ने पर्यावरण की वैश्विक समस्याओं के निराकरण के लिए संकल्प लिया था। सतत्‌ विकास सुनिश्चित करने के लिए सम्मेलन में गरीबी उपशमन, लैंगिक समानता, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण आदि कार्यक्रमों के क्रियान्वयन पर विशिष्ट बल दिया था। साथ ही, ऐसे कार्यक्रमों के लिए कोष की उपलब्धता के संबंध में भी सम्मेलन में गहन चर्चा की गई थी और यह भी स्पष्ट किया था कि सतत्‌ विकास के लक्ष्य की प्राप्ति विकास के बहुपक्षीय आयामों का उल्लेख ऊपर किया गया है, से ही संभव है। इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme, UNFP) ने वर्ष 2000 की वैश्विक आर्थिक रिपोर्ट (Global Economic Outlook, GEO) में स्पष्ट उल्लेख किया है कि गरीबी विश्व की समस्याओं में सर्वोपरि है। लेकिन अब तक इस दिशा में विशेष सफलता प्राप्त नहीं की जा सकी है। इस कार्य के लिए विश्व स्तर पर बड़ी संख्या में विधान बनाए गए हैं लेकिन अपेक्षाकृत प्रगति नहीं की जा सकती। इसके परिणामस्वरूप र्प्यावरण संरक्षण के अधिकांश कार्यक्रमों का सफल क्रियान्वयन नहीं हो सका। वर्तमान में विकासशील देशों दव्ारा लिया जाने वाला सर्वाधिक महत्वपूर्ण कदम सतत्‌ विकास के विभिन्न कार्यक्रमों में निवेश करना है। इस प्रकार का निवेश वस्तुत: निदानात्मक सिद्ध हो रहा है। रियो सम्मेलन के दस वर्षों के बाद यह विचार व्यक्त किये गये हैं कि सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए बेहतर प्रशासन की आवश्यकता है। ऐसे कई महत्वपूर्ण लक्ष्यों का उल्लेख नीचे किया गया है:

  • 1990 - 2015 के बीच गरीबी स्तर में 50 प्रतिशत की कमी।
  • प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में नामांकन में लैंगिक विभेद की समाप्ति कर वर्ष 2005 तक लैंगिक समानता लाने का प्रयास।
  • 1990 - 2015 के बीच मातृ मृत्यु दर में तीन चौथाई कमी का लक्ष्य।
  • 1990 - 2015 के बीच शिशु मृत्यु दर और बाल मृत्यु दर में दो तिहाई कमी का लक्ष्य।
  • वर्ष 2015 तक प्रत्येक स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता।
  • वर्ष 2015 तक अब तक हुए पर्यावरण निम्नीकरण की भरपाई करने के उद्देश्य से वर्ष 2005 तक सतत्‌ विकास की राष्ट्रीय रणनीतियों का प्रभावकारी क्रियान्वयन।

उपरोक्त लक्ष्यों के विभिन्न पक्षों पर जोहानसबर्ग सम्मेलन में गहन चर्चा की गई थी। लेकिन पूर्व की भांति इस सम्मेलन में भी विकसित और विकासशील देशों के बीच विवाद उत्पन्न हो गये। अंतत: सतत्‌ विकास के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कई प्रमुख सिद्धांतों पर लगभग 200 देशों ने सहमति व्यक्त की। इस समझौते के तहत निम्नांकित तथ्यों को प्राथमिकता दी गई है:

  • वर्ष 2015 तक प्रति दिन 1 डालर से कम की आय वाली जनसंख्या के संबंध में विशिष्ट अध्ययन।
  • सतत्‌ विकास के लिए बेहतर प्रशासन की संकल्पना को मान्यता।
  • वर्ष 2015 तक आगामी पीढ़ी के लिए वशिष्ट रणनीतियों के माध्यम से संसाधनों का संरक्षण।
  • गरीबी उपशमन के उद्देश्य से एक एकता कोष की स्थापना।
  • जन्तुओं तथा पौधों की प्रजातियों के विलुप्त होने की दर में 2010 तक कमी।
  • मानवाधिकारों तथा धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं की उपलब्धता।
  • हानिकारक अपशिष्टों के बेहतर प्रबंधन पर बल।
  • वर्ष 2025 तक मत्स्य संसाधनों के संरक्षण का प्रयास।
  • पारितंत्र की रक्षा के लिए महासागरों तथा समुद्रों के महत्व की पहचान।
  • व्यापार और पर्यावरण संबंधी विषयों का प्रभावकारी प्रबंधन।

कोपेनहेगन सम्मेलन (Copenhagen Conference)

  • यह सम्मेलन 7 से 18 दिसंबर, 2009 बेलासेन्टर कोपेनहेगन में संपन्न हुआ। इसने 193 देशों के प्रतिनिधियों, 138 देशों के राष्ट्रध्यक्ष्यों, ने भाग लिया। यह सम्मेलन यू. एन के दव्ारा बुलाया गया था।
  • कोपेनहेगन सम्मेलन में विकसत एवं विकासशील राष्ट्रों का संघर्ष ज्यादा उभर कर सामने आया। विकसित राष्ट्रों ने क्योटों में किये गए अपने वायदे को तोड़ने की भी घोषणा कर दी परन्तु भारत, चीन, दक्षिण अफ्रिका एवं ब्राजील जैसे विकासशील राष्ट्रों के दबाव के पश्चात्‌ संयुक्त राज्य अमेरिका ने विकासशील राष्ट्रों को मदद देने की घोषणा की। इस मदद के अनुसार अगले 3 वर्षों में अमेरिका 30 बिलियन डॉलर विकासशील राष्ट्रों को जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर उपलब्ध कराएगा। यह राशि धीरे-धीरे बढ़ते हुए 2020 में 100 बिलियन डॉलर तक होगी। भारत सहित अन्य विकासशील राष्ट्रों ने भी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की मात्रा को घटाए जाने पर सहमति जतायी, जिसके अनुसार भारत वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2020 तक में 20 से 25 प्रतिशत उत्सर्जन कम कर सकेगा। चीन इन्हीं वर्षो के दौरान 40 से 45 प्रतिशत की कमी लाएगा तो ब्राजील 38 से 42 प्रतिशत तथा दक्षिण अफ्रीका 34 प्रतिशत की कमी लाएगी। परन्तु कमी लाने की घोषणा की बाध्यता नहीं होगी। अमेरिका ने जो मदद की घोषणा की है वह भी कानूनी बाध्यता में नहीं आती है, परन्तु अमेरिका, जापान एवं यूरोपीयन यूनियन के देशों ने यह सहमति जतायी है कि ग्रीन तकनीक (हरित तकनीक) को हस्तांतरित करने की आवश्यकता है। कनाडा ने पहल कर अपने मदद की घोषणा की है। परन्तु निश्चित रूप से ऐसी घोषणाएं तब तक सफल होती हैं जब तक क्रियान्यवन के स्तर पर न आ जाएं।

डरबन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन 2011 (Durban Climate Change Conference 2011)

हाल ही में 28 नवंबर से 10 दिसंबर 2011 (कान्फ्रेंस ऑफ पार्टीज 17) को आयोजित डरबन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, जलवायु वार्ताओं में एक महत्वपूर्ण अग्रगामी कदम है। डरबन के निष्कर्षों ने ‘बाली’ कार्य योजना की उद्देश्य की पूर्ति हेतु महत्वपूर्ण दान दिया है क्योंकि उन्होंने क्योटो प्रोटोकॉल के दव्तीय प्रतिबद्धता अवधि को सुस्थापित किया और उनसे हरित जलवायु निधि (सीएफ) प्रौद्योगिकी तंत्र (टीएम) और अनुकूलन फ्रेमवर्क संबंधी कुछेक प्रमुख कानकुन करार अमल में आए है। डरबन निष्कर्षों वैश्विक जलवायु परिवर्तन व्यवस्था हेतु 2020 के उपरांत की व्यवस्थाओं पर की गई परिचर्चाओं के लिए एक अवसर भी उपलब्ध है जिसके लिए डरबन फ्रेंमवर्क की शुरूआत की गई है। तथापि भारत और अन्य विकासशील देश डरबन में भारी दबाव में थे तो भी भारत ने यह सुनिश्चित करने में अग्रणी भूमिका निभाई कि नई व्यवस्थाओं को कन्वेंशन में सुदृढ़ता से शामिल किया और ये ‘सर्वमान्य परन्तु विभेदक उत्तरदायित्व’ और ‘समदृष्टि’ के सिद्धांतों पर आधारित हों। कानकुन में सभी पक्षों ने जलवायु परिवर्तन पर विचार विमर्श के लिए जिस सर्वसम्मति आधारित बहुपक्षीय व्यवस्था के प्रति आस्था पुन: व्यक्त की थी, डरबन में उसकी पुष्टि हुई। कानकून व्यवस्थाओं के विपरीत, जिन्हें बोलिविया दव्ारा स्पष्ट रूप से अस्वीकृत किए जाने के बावजूद अंगीकार किया था, डरबन के निष्कर्षों को सर्वसम्मति से अंगीकार किया गया। डरबन ने जलवायु परिवर्तन से संबंधित विषयों पर निर्णय करने बहुपक्षीय मंच के रूप में यूएनएफसीसीसी वार्ताओं की सर्वोच्चता को पुन: स्थापित किया है।