Science and Technology: National Forest Commission and Health

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M-STIPS (Monitoring System for Tigers-Intensive Protection and Ecological Status)

राष्ट्रीय वन आयोग (National Forest Commission)

सघन और खुले वनों तथा गरान वनस्पति (मैंग्रोव) सहित भारत में लगभग 63.73 मिलिय हेक्टेयर भू-भाग वनाच्छादित है। केन्द्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय दव्ारा 7 फरवरी 2003 को राष्ट्रीय वन आयोग के गठन की अधिसूचना जारी की गई थी। न्यायमूर्ति एन. किरपाल की अध्यक्षता वाले इस आयोग के गठन का मूल उद्देश्य वन और वन्य जीवन के क्षेत्रकों के सभी पक्षों का पुनरीक्षण वन और पर्यावरण मंत्रालय के अधीन नई दिल्ली में अवस्थित आयोग का कार्यकाल दो वर्षों का होगा। आयोग के कार्यों में निम्नांकित प्रमुख हैं:

  • प्रचलित विधियों और नीतियों के वैज्ञानिक, पारिस्थितिकीय, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक प्रभावों का अध्ययन और मूल्यांकन।
  • वन प्रशासन का परीक्षण और मूल्यांकन।
  • निरंतर बढ़ रही सामाजिक आवश्यकताओं के संदर्भ में राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर वनीय संस्थानों की प्रस्थिति का परीक्षण।
  • वन और वन्य जीवन के सतत्‌ प्रबंधन का सुनिश्चितीकरण। इस संबंध में नीतिगत परिवर्तनों की आवश्यकताओं के अनुरूप अनुशंसा करने का कार्य।
  • जैव विविधता के सरंक्षण और पारिस्थितिकीय सुरक्षा का सुनिश्चितीकरण।
  • वनीय प्रबंधन और जनजातीय समुदायों सहित स्थानीय जन समुदाय के मध्य समन्वय।

स्वास्थ्य (Health)

नए रोगों की पहचान के लिए जीन हस्ताक्षर (Genetic Signature)

  • डी. एन. ए. वस्तुत: चार क्षारों की एक अनुक्रम श्रृंंखला है जिसमें एडनीन (A) , ग्वानीन (G) , थाइमीन (T) एवं साइटोसीन (C) नामक क्षर विद्यमान होते हैं। इनमें से कई अनुक्रम प्रोटीन के निर्माण हेतु आनुवांशिक कोड बनाते हैं, इन्हें जीन कहा जाता है। डी. एन. ए. के अणु में उपस्थित कई क्षार अनुक्रम प्रोटीन के निर्माण में भाग नहीं लेते। ऐसे अनुक्रम व्यक्ति विशिष्ट होते हैं जिन्हें सामूहिक रूप से जीन हस्ताक्षर अथवा आनुवांशिक फिंगर प्रिंटिंग कहा जाता है।
  • किसी व्यक्ति के माता-पिता के आनुवांशिक फिंगर प्रिंट में उपस्थित क्षारों के अनुक्रम की पुर्नव्यवस्था से उस व्यक्ति के आनुवांशिक फिंगर प्रिंटिंग का निर्माण होता है। शत-प्रतिशत समान जुडवां बच्चों को छोड़कर किन्ही दो व्यक्तियों में समान आनुवांशिक फिंगर प्रिंट की संभाविता लगभग शून्य होती है। विभिन्न नमूनों जैसे बाल, त्वचा, लार, पसीना अथवा वीर्य से प्राप्त डी. एन. ए. के नमूनों में विद्यमान जीन हस्ताक्षर किसी बच्चे के पितृत्व की पहचान अथवा उसकी वंशावली की जांच अथवा विश्वसनीयता के साथ अपराधियों की पहचान में सहायक होती है। इसके बावजूद यह महत्वपूर्ण है कि प्रभावित होने वाले व्यक्ति की स्वतंत्रता एवं गरिमा को बनाए रखते हुए आनुवांशिक विश्लेषण को गोपनीय रखा जाय।
  • यह सर्वविदित है कि कई आनुवांशिक विविधताएं, इस संभाव्यता को जन्म देती हैं कि कोई व्यक्ति कैंसर अथवा किसी अन्य रोग से प्रभावित है अथवा उपचार हेतु किसी विशिष्ट दवा का प्रयोग संभव है। आनुवांशिक परीक्षण का चिकित्सकीय मूल्य, संभावनाओं पर आधारित होता है क्योंकि ऐसे परिक्षणों में आनुवांशिक चिन्हकों का प्रयोग किया जाता है। इस कारण इन परिक्षणों की उपयोगिता केवल किसी रोग के जोखिम के आकलन तथा उपचार की प्रभावशीलता तक सीमित हैं। हाल के समय में जीनोमिक्स के क्षेत्र में हुई प्रगति के अतिरिक्त लाभ इस रूप में प्राप्त किए जा सकते हैं कि इनसे शरीर में पहले से विद्यमान किसी रोग की पहचान की जा सकती है। यह पहचान निश्चित रूप से विशिष्ट आनुवांशिक चिन्हकों पर निर्भर करती है। ऐसे चिन्हकों का प्रयोग प्रत्यारोपण के दौरान अंगदाता के विशिष्ट उतकों की पहचान में भी किया जा सकता है। इसी आधार पर अंगदाता एवं प्राप्तकर्ता की कोशिकाओं अथवा ऊतकों के मध्य अंतर किया जा सकता है।

जैव उपचार (Bio Remediation)

जैव उपचार एक प्रक्रिया हैं जिसमें सूक्ष्म जीवों अथवा उनके एंजाइमों का प्रयोग कर प्रदूषित पर्यावरण को पुन: उसकी मूल अवस्था में लाया जाता है। किसी विशिष्ट प्रदूषक जैसे-क्लोरीनीकृत कीटनाशक के विरूद्ध यह प्रक्रिया प्रयोग में लाई जा सकती है क्योंकि जीवाणु ऐसे कीटनाशकों को विखंडित कर देते हैं। इसके अतिरिक्त तेल रिसाव के विरुद्ध भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। इसमें कच्चे तेल के विखंडन के लिए विशिष्ट जीवाणुओं का प्रयोग उर्वरकों के साथ किया जाता है, लेकिन भारी धातुओं जैसे कैडमियम तथा सीसा सूक्ष्म जीवों दव्ारा अवशोषित नहीं हो पाते। इन धातुओं का एकीकरण पारे के साथ होने पर खाद्य श्रृंखला अत्यधिक दुष्प्रभावित होती है। यह स्थिति तब और बिगड़ जाती है जब जीवों दव्ारा इन धातुओं का जैव संचय किया जाता है। तेल के खतरों से बचाने में जैव उपचार अत्यंत महत्वपूर्ण है। सूक्ष्म जीवों को पृथ्वी की सतह के नीचे अंत: क्षेपित करके भी तेल के हानिकारक प्रभावों को कम किया जा सकता है। जैव उपचार इस रूप में भी महत्वपूर्ण है कि अन्य विधियों की तुलना में लचीला है।

संश्लेषित जीव विज्ञान की शाखा में नई संभावनाएंँ (Prospects of Synthetic Biology)

  • संश्लेषित जैविकी जोखिम अनुसंधान का एक नया क्षेत्र है जिसमें विज्ञान एवं अनियांत्रिकी दोनों शामिल होते हैं तथा इसमें विभिन्न दृष्टिकोण एव पद्धतियों का प्रयोग होता है। सैन्थेटिक बायोलोजी का प्रयोग 1974 में वाक्लो जाइवलस्की दव्ारा किया गया जैविक प्रणालियाँ ऐसी भौतिक प्रणालियाँ है, जो रसायनों से निर्मित होती हैं। कई मामलों में संश्लेषित जैविकी को इस रूप में रखा जाता है कि यह जीव विज्ञान के क्षेत्र में संश्लेषित रसायन शास्त्र के अनुप्रयोग का विस्तार है, जिसमें नए एवं उपयोगी जैव विविधता तक का अध्ययन किया जाता है।
  • अभियांत्रिकी जैविकी एक प्रौद्योगिकी है। संश्लेषित जैविकी में जैव-प्रौद्योगिकी का विस्तार शामिल होता है, जिसका उद्देश्य जैविक प्रणालियों का निर्माण करना है जो सूचनाओं का प्रसंस्करण, रसायनों की व्यवस्था कुशलता, पदार्थों की संरचनाओं का, ऊर्जा उत्पादन, खाद्य पदार्थों की उपलब्धता और मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण का रखरखाव एवं उसमें सुधार कर सकते है। सालमोना टाइफी न्यूरियम की टाइप-3 स्रावक प्रणाली के डिजाइन का निर्माण जिससे सिल्क प्रोटीन बनाया जा सके उनके दव्ारा स्रावित प्राकृतिक संवाहक प्रोटीन की तुलना में अधिक वन्य जैव पदार्थ है। संश्लेषित जैविकी परंपरागत जीन अभियंत्रिकी रूप में भिन्न है कि यह उन आधारिक तकनीकों के विकास पर अधिक बल देती है जो जीव विज्ञान की अभियांत्रिकी को सरल एवं विश्वसनीय बनाती है।
  • वैज्ञानिक एवं तकनीकी चुनौतियों के अतिरिक्त संश्लेषित जैविकी में जैव नैतिकता, जैव सुरक्षा, इस क्षेत्र में कार्यरत एजेंसियों की बौदव्क संपदा संबंधित प्रश्न भी उठाते हैं। अंतरराष्ट्रीय संश्लेषित जैविकी संघ दव्ारा स्वविनियम की एक पहल का प्रस्ताव किया ताकि संश्लेषित जैविकी उद्योग विशेषकर डी. एन. ए. संश्लेषण से संबंधित कंपनियों दव्ारा विशिष्ट प्रयास किये जा सकें। कई वैज्ञानिकों ने यह तर्क दिया है कि सुरक्षा संबंधी विषयों के लिए बेहतर अग्रगामी दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। ऐसे वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि भौतिक अंकुश के साथ-साथ पोषणीय एवं जैविक अंकुश भी लगाया जाना चाहिए। इनके तहत स्वपोषण विशिष्ट अभिलक्षण वाले जीवों का विकास किया जाना चाहिए।

जीवित जैविकी के विकास हेतु कई समर्थकारी तकनीकें उपलब्ध हैं जिनका योगदान महत्वपूर्ण हो सकता है। ऐसी महत्वपूर्ण सूचनाओं में जैविक भागों का मानकीकरण और जटिल संश्लेषित प्रणालियों में उनका प्रयोग शामिल है। ऐसे लक्ष्य की प्राप्ति डी. एन. ए. के लिखने तथा पढ़ने (Sequence and Fabrication) जैसी पद्धति से किया जा सकता है। लेकिन सटीक मॉडल के निर्माण कम्प्यूटर समर्थित डिजाइन बनाने हेतु कई कारकों की आवश्यकता है। डी. एन. ए. को पढ़ने का अर्थ किसी डी. एन. ए. के अणु में अति न्यूक्लियोटाइड की व्यवस्था का निर्धारण है। संश्लेषित जीव वैज्ञानिकों दव्ारा ऐसी व्यवस्था का उपयोग कई रूपों में किया है:

  • प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले जीवों से संबंधित विस्तृत सूचनाएंँ उनके जीनोम की व्यवस्था के अध्ययनों से प्राप्त होती हैं। इससे जैविकी आधार बनाए जाते हैं जो संश्लेषित जैविकी के तहत विभिन्न भागों तथा युक्तियों का निर्माण करने में सहायक होते हैं।
  • व्यवस्था क्रम का उपयोग नई डिजाइन की हुई प्रणालियों के अध्ययन में किया जाता है।
  • सस्ती लेकिन विश्वसनीय व्यवस्थाएँं किसी संश्लेषित प्रणाली तथा जीवों की पहचान तथा खोज को प्रोत्साहित कर सकती है।

सुपरबग का विकल्प (Superbug Option)

  • सुपरबग के खिलाफ वैज्ञानिकों ने एक नयी तकनीक विकसित की है। वैज्ञानिकों ने मेंढक की त्वचा में मौजूद कुछ ऐसे रसायन लिए हैं, जो मानव शरीर के लिए हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करने में सक्षम होंगे।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार मेंढक जिस माहौल में रहते हैं, वहाँं कीटाणुओं का हमला होना आम बात हैं। लिहाजा प्राकृतिक रूप से उनकी त्वचा में सैकड़ों ऐसे कीटाणु नाशक तत्व पाए जाते हैं, जो सुपरबग का हमला बोलकर उनका सफाया कर दे। ये तत्व कई मायने में मानव शरीर के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं, लेकिन संयुक्त अरब अमीरात (यू. ए. ई.) विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इसका हल भी खोजने में कामयाब रहे हैं। उन्होंने कीटाणु नाशक तत्वों में से मनुष्यों के लिए हानिकारक रसायनों की खोज प्रारंभ कर दी है। इसके चलते आने वाले दिनों में चिकित्सा जगत के पास बिल्कुल सुरक्षित सुपरबग रोधी एंटीबायोटिक्स उपलब्ध हो सकेंगी। रिसर्च टीम में मेंढक की त्वचा से निकलने वाले 100 नए एंटीबायोटिक्स की पहचान की है। इसमें एक एंटीबायोटिक ऐसा भी है, जो हॉस्पिटल सुपरबग मेथिलीन रेसिस्टेंस स्टाफायलोकोक्कस एयरस (एम. आर. एस. ए.) नामक बैक्टीरिया को नष्ट कर देगा। रिसर्च टीम ने बताया मेंढक की त्वचा में मौजूद रसायनों से तैयार एंटीबॉयोटिक्स के जरिए सुपरबग से उच्च स्तर पर लड़ा जा सकेगा। इस दृष्टिकोण से इस खोज को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।