Science and Technology: Recent Aspects of Missile Technique

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रक्षा प्रौद्योगिकी (Defence Technology)

प्रक्षेपास्त्र तकनीक के नये आयाम (Recent Aspects of Missile Technique)

  • समन्वित निर्देशित विकास कार्यक्रम में मिसाइल अथवा प्रक्षेपास्त्र तकनीक के विकास के अंतर्गत जून 2001 में PJ-10 नामक प्रक्षेपास्त्र का सफल परीक्षण किया गया था। 280 किलोमीटर की मारक क्षमता वाले इस प्रक्षेपास्त्र को पनडुब्बियों से प्रक्षेपित किया जा सकता है तथा यह 300 सेकेंडों में अपने लक्ष्य तक पहुंचने की क्षमता रखता है। इस प्रक्षेपास्त्र को पृथ्वी की सतह या समुद्र में स्थापित किसी प्लेटफार्म से भी प्रक्षेपित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, यह अधिकांश यान आधारित प्रक्षेपास्त्रों तथा प्रक्षेपास्त्र रोधी हथियारों के विरुद्ध कार्य कर सकता है। भारत तथा रूस के मध्य हुए एक सामरिक समझौते के तहत उन्नत तकनीकी यान परियोजना (Advanced Technology Vehicle Project) का क्रियान्वयन किया गया हैं इस क्रम में एक क्रूज प्रक्षेपास्त्र ब्रह्नाॉस (BRAHMOS) का विकास किया गया हैं इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मॉस्को नदी के नाम पर रख गया है।
  • भारत रूस की संयुक्त परियोजना ब्रह्योस एक सुपर सोनिक क्रूज मिसाइल है और इसका प्रयोग जहाजों एवं जमीनी लक्ष्यों के खिलाफ किया जा सकता है। इसकी मारक क्षमता 300 किमी. है। जहाजों, पनडुब्बियों और हवाई जहाज एवं जमीनी वाहनों में तैनाती के लिए इस मिसाइल की बनावट बेजोड़ है।

प्रक्षेपास्त्र तकनीक नियंत्रण प्रणाली (Missile Technique Control Regime, MTCR)

राष्ट्रों का एक गैर-संधि संघ जो प्रक्षेपास्त्रों तथा ऐसी तकनीक को सीमित करने के उद्देश्य से बनाया गया है। इस संघ के प्रावधानों के अनुसार, सदस्य राष्ट्र को यह निर्देश दिया गया है कि वे प्रक्षेपास्त्रों का व्यक्तिगत स्तर पर आयात अथवा निर्यात नहीं करेंगे। लेकिन इन प्रावधानों में शांतिपूर्ण और अंतरिक्ष से संबंधित कार्यों के लिए प्रक्षेपास्त्रों के उपयोग को उचित ठहराया गया है। तकनीकीरूप्ज्ञ से इस प्रणाली ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक केन्द्रीकृत संस्थागत ढांचे का निर्माण किया है। इसके अतिरिक्त, इसके माध्यम से परमाणु हथियारों के वैश्विक प्रसार को भी रोकने की व्यवस्था की गई है।

आयुध कारखाना बोर्ड (Ordnance Factories Board)

राज्याध्यक्ष समिति की सिफारिशों के आधार पर बोर्ड का गठन वर्ष 1979 में रक्षा उत्पादन और आपूर्ति विभाग के अधीन किया गया है जिसका मुख्य उद्देश्य रक्षा संबंधी उपकरणों (हार्डवेयर) का निर्माण है। वर्तमान में भारत में बोर्ड के अधीन कुल 39 आयुध कारखाने कार्यरत है। बिहार के नालंदा जिले मे एक नये आयुध कारखाने का निर्माण किया जा रहा है। इन कारखानों में महाराष्ट्र तथा उत्तर प्रदेश में दस-दस, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में 6 - 6 पश्चिम बंगाल में 4 तथा आंध्र प्रदेश, उड़ीस और चंडीगढ़ में 1 - 1 कारखाने अवस्थित हैं। हाल ही में बोर्ड के अधीन अम्बाझारी (नागपुर) स्थित आयुध कारखाना स्टाफ कॉलेज तथा नागपुर और कानपुर में अवस्थित एक-एक अस्पतालों को ISO 9000 प्रमाणन प्रदान किया गया है जो उनकी गुणवत्ता का परिचायक है।

रक्षा उपक्रम (Defence Undertaking)

हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एच. ए. एल.) (Hindustan Aeronautics Limited (HAL) )

यह रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र का एक नवरत्न उपक्रम है। एयरोस्पेस क्षेत्र में रणनीतिक आत्मनिर्भरता प्राप्त करने तथा रक्षा सेवाओं को पूरा सहयोग प्रदान करने के लिए कंपनी प्रतिबद्ध है। इसके कोर व्यवसाय में शामिल हैं-डिज़ाइन, फिक्स विंग एयरक्राफ्ट तथा हेलीकाप्टर (लड़ाकू, प्रशिक्षण तथा परिवहन) का विकास और उत्पादन, उनकी सहायक सामग्रियांँ, लाइफसाइकल ग्राहक सेवा, एयरोस्पेस उत्पादों की मरम्मत तथा ढांचे का निर्माण तथा स्पेस लांच व्हीकल और सेटेलाइट के लिए एकीकृत प्रणाली का उत्पादन।

भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (बीईएल) (India Electronics Limited (BEL) )

बेल रडार तथा सोनार, संचार उपकरण, ऑप्टो इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर, टेंक इलेक्ट्रॉनिक्स तथा रणनीतिक भागों के क्षेत्र में मजबूत उपस्थिति के साथ बहु-प्रौद्योगिक, बहु -उत्पादन कंपनी है। यह कंपनी सुरक्षा बलों सहित इंडिया रेडियों, दूरदर्शन, बी. एस. एन. एल. , एम. टी. एन. एल. वी. एस. एन. एल. एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया जैसे सरकारी संस्थानों को इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की आपूर्ति करती है।

भारत अर्थ मवर्स लिमिटेड (बी. ई. एम. एल. लि.) (India Earth Movers Limited (BEMLL) )

यह कंपनी खनन और निर्माण उपकरणों, रक्षा उत्पादों, रेलवे तथा मेट्रों उत्पादों की डिज़ाइन, निर्माण विपणन तथा बिक्री वाद सहयोग के क्षेत्र में सक्रिय है। कंपनी अपने व्यापार विभाग के जरिए तथा अंतरराष्ट्रीय बाजारों के लिए अपनी प्रौद्योगिकी तथा गैर कंपनी उत्पादों हिस्सो, एकत्रीकरण तथा कमोडिटियों के माध्यम ई-इंजीनियरिंग समाधान मुहैया कराती है।

मझगांव डॉक लिमिटेड (Mazgaon Dock Limited)

मझगांव डॉक लिमिटेड (एस. डी. एल.) ने चरणब्रद्ध विस्तार/विकास कार्यक्रमों को करके आज देश का एक प्रमुख जलायान निर्माता के रूप में उभरा है जो युद्धपोतों वाणिज्यिक जलयानों एवं पनडुब्बियों को बनाने में सक्षम है। यहाँ स्टिल्थ फ्रिग्रेटों, प्रक्षेपास्त्र विध्वंसक एवं स्कॉर्पिन श्रेणी की पनडुब्बियांँ बनाई जा रही हैं।

गोवा शिपयॉर्ड (जी. एस. एल) (Goa Shipyard (GSL) )

गोवा शिपयॉर्ड लिमिटेड जो एक मिनी रत्न श्रेणी एक कंपनी है भारतीय नौसेना, भारतीय तट रक्षक बल और अन्य के लिए मध्य आकार के अत्याधुनिक यानों का निर्माण करने वाले प्रमुख शिपयार्डों में से एक है। कंपनी ने क्षति नियंत्रण सिमुलेटर (डीसीएस) के निर्माण, समुद्र प्रशिक्षण सुविधा में उत्तरजीविता, स्अर्न गियर प्रणाली का विपणन एवं ग्लास प्रवलित प्लास्टिक नौका का निर्माण एवं तट आधारित परीक्षण सुविधा के निर्माण क्षेत्र में अपने कार्यों का विस्तार किया है।

मार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड (जी. आर. एस. ई.) (Modern Reach Shipbuilders and Engineers Limited (GRSE) )

मार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड, जिसे मिनी रत्न श्रेणीखप्प का दर्जा प्राप्त है, को अग्रणी पोत निर्माता यार्ड एवं उच्च मूल्य, उच्च प्रौद्योगिकी, जटिल इंजीनियरी सामान के उत्पादनकर्ता के रूप में जाना जाता है। कंपनी अग्रणी अंतरराष्ट्रीय पोत निर्माता, पोत मरम्मतकर्ता एवं जलयान में लगाए जाने वाले मशीनरी एवं प्रणालियों की विनिर्माता है। समग्र पोत निर्माण, कुल उत्पादन मूल्य का 85 प्रतिशत है जबकि इंजीनियरिंग एवं ईंजन डिवीजन शेष 15 प्रतिशत का योगदान देता है।

रडार तकनीक (Radar Technique)

  • रडार का अर्थ रेडियो डिटेक्शन एंड रेन्जिंग है। माइक्रोवेव ऊर्जा का संप्रेषण स्पंदों के रूप में एक संश्लेषित रंध्रीय रडार (Synthetic Aperture Radar) दव्ारा किया जाता है जिसकी सहयता से एन्टिना तक वापस आने वाली ऊर्जा की शक्ति तथा समय अवरोध की जानकारी प्राप्त की जाती है। इस प्रकार एक रडार प्रणाली से वायुमंडलीय वस्तु अथवा पिंड की विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सकती है। एक दूरबीन की तुलना में रडार प्रणाली अधिक सटीक है। वस्तुत: रडार और दूरबीन में कई गुण एक समान होते हैं। इन दोनों की दृश्य क्षमता सीमित होती है तथा उन्हें संदर्भ समन्वय प्रणाली (Reference Coordination System) की आवश्यकता होती है। इसी के माध्यम से दोनों वस्तुओं अथवा पिंडो की जानकारी प्राप्त करते हैं।
  • हांलाकि रडार प्रणाली से संबंधित सिद्धांतों की जानकारी पहले भी उपलब्ध थी लेकिन इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में हुये क्रांतिकारी परिवर्तनों ने इस प्रणाली के अवयवों तथा संकल्पनाओं में भी व्यापक सुधार किये हैं। वस्तुत: दव्तीय विश्व युद्ध ने रडार प्रणाली के विकास को नया आयाम दिया था। वर्तमान रडार प्रणालियों का उपयोग सतही या वायुमंडलीय वस्तुओं अथवा पिंडों की पहचान तथा उनकी दूरी, दिशा, ऊँचाई तथा गति से संबंधित सटीक सूचना प्राप्त करने मेें किया जाता है। इसके अतिरिक्त, निर्देशित प्रक्षेपास्त्रों तथा बंदूक प्रणालियों के मार्गदर्शन में भी रडार का उपयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है। साथ ही, लंबी दूरी वाले स्थानों पर चौकसी विमान या जलयान संचालन सूचना तथा मौसम पूर्वानुमान के क्षेत्र में भी रडार का उपयोग किया जा रहा हैं भारत में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन के अलावा बंगलौर स्थिति इलेक्ट्रॉनिक तथा रडार विकास संस्थापन (Electronic and Radar Development Establishment, ERDE) तथा हैदराबाद स्थित इलेक्ट्रॉनिक अनुसंधान विकास प्रयोगशाला (Electronic Research Development Laboratory, ERDL) दव्ारा विभिन्न प्रकार की रडार प्रणालियों का विकास किया जाता है। उदाहरण के लिए राजेन्द्र नामक रडार का प्रयोग आकाश नामक प्रक्षेपास्त्र में किया गया है। इसी प्रकार रानी, रश्मि, अपर्णा आदि रडार प्रणालियां संचालन संबंधी कार्यों के लिए प्रयुक्त होती हैं। साथ ही, भारत ने कम ऊँचाई पर पड़ने वाले विमानों की जानकारी प्राप्त करने के लिए अत्याधुनिक इन्द्र नामक रडार प्रणाली का विकास भी किया है।
  • रडार प्रणाली इलेक्ट्रॉनिक्स के सिद्धांत पर कार्य करती है जो ध्वनि तरंगो के परावर्तन के सिद्धांत के समान है। रेडियो आवृत्ति के रूप में ऊर्जा का संपेषण किया जाता है। इसका परावर्तन परावर्तक वस्तु अथवा पिंड से रडार सेट तक होता है। इस परावर्तित ऊर्जा को प्रतिध्वनि कहते हैं। रडार प्रणाली दव्ारा ऐसी प्रतिध्वनि के आधार पर वस्तु अथवा पिंड की अवस्थति का ज्ञान प्राप्त किया जाता है।

उपयोगिता के आधार पर रडार प्रणालियांँ कई प्रकार होती हैं:

  • विमान वाहित प्रणाली (Airborne Radar)
  • डॉप्लर ऊँचाई मापक (Doppler Altimeters)
  • मौसम पूर्वनुमान और चेतावनी (Weather Forecast & Warning)
  • भूपृष्ठ मानचित्रीकरण (Terrain Mapping)
  • मित्र तथा दुश्मन की पहचान (Indentification of Friend or foe)
  • सतह आधारित (Ground Based)
  • चौकसी (Surveillance)
  • ऊँचाई मापक (Height Finding)
  • प्रक्षेपास्त्र निर्देशन (Missile Guidance)

उल्लेखनीय है कि पहले अंतरराष्ट्रीय रडार सम्मेलन का आयोजन भारत में अक्टूबर 1983 में किया गया था। इस सम्मेलन में रडार प्रणाली की उपयोगिता के विस्तार के विषय पर गहन चर्चा की गई। इसके बाद दिसंबर 1999 में पुन: ऐसे ही एक सम्मेलन में अनुसंधान और विकास कार्यक्रमों पर विशेष बल दिया गया था। साथ ही रडार की नई तकनीकों के विकास को भी प्रोत्साहित करने के विषय पर चर्चा की गई।