Science and Technology: Types of Laser and Applications of Laser

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लेजर एवं अतिचाकता (Laser and Superconductivity)

लेजर के प्रकार (Types of Laser)

गैस लेजर (Gas Laser)

  • हीलियम-नियोन लेजर के रूप में प्रथम गैस लेजर का निर्माण किया गया था। इस प्रकार के लेजर के निर्माण का उद्देश्य किरणपुंज के निरंतर उत्पादन के लिए किया गया था। कांच की डिस्चार्ज (Discharge) ट्‌यूब संक्रिया लेजिंग माध्यम से भरी रहती है। संक्रिया लेजिंग माध्यम में 10: 1 अनुपात में हीलियम तथा नियोन का मिश्रण रहता है। डिस्चार्ज ट्‌यूब का प्रत्येक सिरा एक दर्पण से सीलबंद रहता है, ताकि प्रकाशीय छिद्र बनाया जा सके। उद्दीप्त उत्सर्जन हेतु विद्युत प्रवाह दव्ारा पम्पिंग कराई जाती है, जो इलेक्ट्रोड के मध्य उत्पन्न होती है। इसके उपरांत उत्सर्जन को सुनिश्चित करने के लिए इलेक्ट्रोड के मध्य उपयोग होती है। इसके उपरांत उत्सर्जन को सुनिश्चित करने के लिए इलेक्ट्रोड के पार लगभग 10. KV का स्पंदन कराया जाता है। विधुत धारा के प्रवाह से हीलियम परमाणु उद्दीत हो जाते है, क्योंकि वे तुलनात्मक रूप से हल्क परमाणु होते हैं, और हीलियम परमाणु की इलेक्ट्रोन के साथ हुई टकराहट से उद्दीप्त होते हैं।
  • जब हीलियम परमाणु नियोजन परमाणुओं से टकराते हैं, तो उनकी ऊर्जा नियोजन परमाणुओं में स्थानांतरित हो जाती है, जिसके कारण वे उद्दीप्त होकर मितस्थायित्व की अवस्था में आ जाते हैं जहां उन्हें संख्या व्युत्क्रमण भी प्राप्त होता है। यादृच्छिक (Randomly) रूप से उत्सर्जित फोटोन मित्स्थायी स्तर से प्रेरक विउद्दीपन दव्ारा सतही स्थिति में आ जाते है तथा 33mm की तरंगदैर्ध्य के साथ लेजर प्रकाश उत्सर्जित होता है।
  • दूसरी ओर, आर्गन लेजर में उद्दीपन आयनों की प्लाविका (Plasma) का प्रयोग लेजिंग माध्यम के रूप में होता है। वैद्युत उत्सर्जन गैसीय आर्गन के संकुचित ट्‌यूब में होता है। इससे परमाणु का आयनीकरण होता है, एवं वे ऊपरी ऊर्जा स्थिति के इलेक्ट्रॉनों के साथ बहुटकरावों के कारण ही मुख्यत: उद्दीप्त हो जाते है। इससे प्रकाश के नीले हरे वर्णक्रम में उसी समय कई लेजर परिगमनों का मार्गदर्शन किया जाता है। ऊर्जा घनत्व को बनाए रखने के लिए लेजर ट्‌यूब में चुंबकीय क्षेत्र विकसित किया जाता है। देशांतरीय क्षेत्र में प्लाविका में इलेक्ट्रॉन घनत्व में वृद्धि कर दीवारों के इलेक्ट्रॉनों के क्षरण का रुकना सुनिश्चित करने की दृष्टि से इलेक्ट्रॉन प्लाविका के चारों ओर वलयदार (सर्पित) मार्ग अनुगमन करता है।
  • डिस्चार्ज ट्‌यूब सामान्यत: बेरेलियम आक्साईड (BeO) , ग्रेफाइट अथवा धातु मृतिका जैसे निम्न ऊष्मीय तापीय संचालक से बनी होती है। ताप परिवर्तक के रूप में धातु के डिस्क को ट्‌यूब के अंदर रखा जाता है। ये ताप परिवर्तक तापमान को कम बनाए रखने में सहायक होते हैं। इन लेजरों 514 mm से तरंगदैर्ध्य का लेजर प्रकाश प्राप्त हो सकता है। होलोग्राफी, नेत्र शल्य चिकित्सा, स्पेक्ट्रोरसायन, प्रकाशीय छाया संसाधन तथा अर्द्धचालक संसाधन में आर्गन लेजर का प्रयोग अधिक होता है।
  • एक अन्य गैस लेजर में कार्बनडायक्साइड का प्रयोग किया जाता है। इस लेजर की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इलेक्ट्रॉन के वितरण की अपेक्षा कार्बनडायक्साइड अणुओं के कंपन से स्वयं महत्वपूर्ण ऊर्जा स्तर का विकास होता है। मुख्य CO2 तरंग का तरंग दैर्ध्य वर्णक्रम में दूरस्थ अवरक्त क्षेत्र में 10.6 mm होता है।

अर्द्धचालक लेजर (Semiconductor Laser)

अर्द्धचालक लेजर व्यापक रूप से लेपित PN Junctions दव्ारा बनी होती है, जो संशोधित प्रकाश उत्सर्जन डायोड संरचना पर आधारित होती है। लेजर क्रिया के प्रारंभ तथा उसे बनाए रखने के लिए PN Junction के चारों ओर उच्च लेपन के सान्द्रन की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त, यह सुनिश्चित हो जाता है कि उद्दीप्त उत्सर्जन को बढ़ाने की दृष्टि से दीर्घ नैसर्गिंक जीवन काल वाले पदार्थों का प्रयोग होता हैं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सभी PN Junction आगे की ओर प्रवृत धारा के मार्ग पर प्रकाश उत्सर्जित करते हैं। विभिन्न पदार्थों की तुलना से यह स्पष्ट हो गया है कि सिलिकन तथा गैलियम, प्रकाश के निपुण उत्पादक नहीं है। इस प्रकार, सदैव गैलियम-आर्सेनिक तथा गैलियम-अल्युमिनियम-आर्सेनिक जैसे यौगिक अर्द्धचालक के प्रयोग को वरीयता प्रदान की जाती है।

लेजर के अनुप्रयोग (Applications of Laser)

हांलाकि कई क्षेत्रों में लेजर का प्रयोग होता है लेकिन उनका कुशलतम और निरंतर प्रयोग चिकित्सीय प्रयोजनों तथा औद्योगिक प्रयोजनों के आधारभूत वैज्ञानिक अनुसंधानों में किया जाता है।

सत्राभि सूक्ष्मदर्शिकी (Confocal Microscopy)

त्रिविमीय चित्रों की तरह उच्च प्रबोधन तथा उच्च विषमता वाले चित्रों की प्राप्ति हेतु प्रयुक्त होने वाली तकनीक सत्राभि सूक्ष्मदर्शिकी कहलाती है। इस प्रकार के सूक्ष्मदर्शी में अभिदृश्यक लेंस (Objective Lens) का प्रयोग प्रदीपन एवं बिम्बन दोनों के लिए किया जाता है। वास्तव में यह एक पर्यवलोकन प्रकाशीय सूक्ष्मदर्शी है, क्योंकि इसकी सहायता से प्रतिदर्श के केवल एक ही बिन्दु को देखा जा सकता है। ये बिम्ब चित्र तत्वों की सहायता से बनते हैं, जो तकनीकी रूप से चपगमसे कहलाते है। यह कार्य प्रतिदर्श का पर्यवलोकन पूर्ण होने के बाद ही संभव हो पाता है। इसमें प्रतिदर्श के मूल प्रकाशीय भागों का ही प्रयोग किया जाता है, क्योंकि अभिदृश्यक लेंस का किरण केन्द्र तल (Focal Plane) अत्यंत छोटा लगभग 0.5 माईक्रोन के बराबर होता है। केन्द्रीय तल से ऊपर एवं नीचे के सभी आंकड़ो को संसूचक तक पहुँचने से रोका जाता है। केन्द्रीय तल के उठने एवं नीचे आने के क्रम में प्रतिदर्श के स्तरों को एकत्र किया जाता है। बाद में इन स्तरों को एक त्रिविमीय संरचना में कम्प्यूटर की सहायता से विकसित किया जाता है। सत्राभि सूक्ष्मदर्शिकी के लाभों में उच्च प्रबोधन निम्न माईक्रोन सूक्ष्मदर्शिकी तथा सजीव प्रतिदर्शों का विनाशिता रहित परीक्षण भी शामिल है। इस प्रकार के सूक्ष्मदर्शियों का प्रयोग कोशिका विज्ञान एवं स्नायुविज्ञान के अनुसंधानों में बहुलता से होता है।

प्रवाह कोशिकामिति (Flow Cytometry)

यह जीव की असंक्राम्यता अथवा आनुवांशिक संरचना की जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से मुख्य रूप से प्रयोग की जाने वाली एक नवीन तकनीक है। इस तकनीक में निम्नलिखित चरण शामिल हैं:

  • जीव की कोशिकाओं को रंजक के साथ मिलाना। मिलाने की क्रिया तथा उसके अनुवर्ती कोशिका अवयव रंजन को संयुक्त रूप से टैगिंग कहते है।
  • लेजर प्रकाश दव्ारा प्रतिदर्श का प्रदीपन। यह पाया गया है कि 488mm लेजर प्रकाश रंजक को उद्दीप्त कर पाने में काफी शक्तिशाली होती है। फिर भी हाल ही में रंजक को उद्दीप्त करने के लिए 523mm लेजर प्रकाश का प्रयोग किया गया है।
  • स्कोंतों को पृथक करने के लिए उत्सर्जित किरणों की प्राप्ति।
  • मात्रात्म रूप से उपलब्ध कराये जाने वाले संकेतों का विश्लेषण तथा उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति।

रमन प्रकीर्णन (Raman Scattering)

  • प्रदीपन के प्रभाव में रखे प्रतिदर्श से रमन प्रकीर्णन का प्रभाव उत्पन्न होता है। रमन प्रकीर्णन, रमन प्रभाव पर आधारित एक कम्पनात्मक स्पेक्ट्रमी तकनीक है, जिसका प्रयोग पदार्थ की ठोस, द्रव एवं गैस सभी अवस्थाओं में किया जाता है। रमन प्रभाव के दौरान क्षीण संकेत दिए जाते हैं। वास्तव में संकेत आपतित प्रकाश की अपेक्षा क्षीण होते हैं। अत: इनकी माप दुष्कर है। फिर भी लेजर स्रोत प्रतिदर्श के इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण के अनुरूप होता है। इसके फलस्वरूप अनुनादी प्रभाव में वृद्धि होती है। दीप्ति की अन्य व्यवस्थाओं दव्ारा अन्तत: रमन प्रकीर्णन बढ़ता है। इसे अनुनादी रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी कहते हैं। इस तकनीक का प्रयोग सामान्यत: मात्रात्मक विश्लेषण तथा आणविक संरचना के ज्ञान हेतु किया जाता है। विद्युत चुंबकीय वर्णक्रम के दृश्य भाग के प्रभाव के कारण प्रतिदर्श इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण दर्शाता है, जिसके फलस्वरूप इससे संबंधित सभी आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है।
  • इस क्षेत्र में कार्य करने वाला सर्वाधिक सामान्य लेजर रंजक लेजर (Dye Laser) है। ऐसे लेजर प्रकाश की तरंगदैर्ध्य 375 से 1050 के मध्य होती है। पराबैंगनी अनुनादी रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी के अंतर्गत स्पंदित लेजर स्रोतों का विशेष महत्व है। यह आणविक संरचना, बलगतिकी एवं पृष्ठीक उद्दीपन तथा गतिकी की जानकारी प्राप्त करने हेतु प्रयुक्त होती है। उन्नत उच्च ऊर्जा स्पंदित ND: YAG लेजर अवरक्त, दृश्य तथा पराबैंगनी क्षेत्रों में तरंग दैर्ध्य उपलब्ध कराता है।

बहुफोटोन उद्दीपन सूक्ष्मदर्शिकी (Multi Photon Excitation Microscopy)

पर्यवलोकन सूक्ष्मदर्शिकी तथा बहुफोटोन प्रदीपन को संयुक्त रूप से बहुफोटोन उद्दीपन सूक्ष्मदर्शिकी कहते हैं। इस तकनीक का प्रयोग सूक्ष्मदर्शी वस्तुओं के उच्च विभेदन त्रिविमीय चित्र प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस तकनीक दव्ारा सूक्ष्म सजीव कोशिकाओं का गहन अध्ययन भी संभव है। इसमें प्रयुक्त लेजर टिटेनियम-नीलम लेजर (Ti-Sapphire Laser) होता है। इसके लिए आर्गन तथा क्रिप्टन लेजरों का प्रयोग भी हो सकता है। चिन्हक रंजकों की विरंजकता, संवृद्धि कोशिका जीवन क्षमता तथा उच्च विभेदन बिंबों के बढ़ने के साथ ही घट जाती है। अत: इस तकनीक को प्राथमिकता दी जाती है।

काल विभेदन प्रदीपन (Time Resolution Illumination)

प्रदीपन संकेतों के क्षरण काल स्थिरांक की माप करने की तकनीक को काल विभेदन प्रदीपन कहते हैं। यह तकनीक कुछ सूक्ष्म सेंकेंडों में होने वाले परासरण को भी माप सकती है। यह कार्य काल विभेदन अवशोषण तकनीक से नहीं किया जा सकता है। प्रतिदर्श को उद्दीप्त करने के लिए स्पंदित प्रकाश का प्रयोग किया जाता है। उत्सर्जित होने वाले प्रकाश का दव्ार वाली अन्वेषण प्रणाली दव्ारा अध्ययन किया जाता है। बहुचैनल तरंगदैर्ध्य का पता लगाने की प्रणाली में प्रतदीप्ति संकेत एक दूसरे से अलगाव दर्शाते है, जिस कारण उन संकेतों को खोज पाना आसान हो जाता है। यह तकनीक उद्दीप्त अवस्था संबंधी सूचना उपलब्ध कराने तथा जीवनपर्यन्त ऊर्जा हस्तांतरण प्रक्रिया का ज्ञान कराती है। चित्र तथा संरचना की पहचान हेतु भी इस तकनीक का प्रयोग होता है।