गाँधी युग (Gandhi Era) Part 8 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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मोपला विद्रोह ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: गाँधी युग (Gandhi Era) Part 8

मद्रास प्रेसीडेंसी (राष्ट्रपति) के मालाबार में मोपला विद्रोह हुआ। मालाबार मुस्लिम बहुसंख्यक इलाका था। ये मुसलमान मोपला के नाम से जाने जाते थे। मोपला ज्यादातर कृषक मजदूर अथवा चाय या काफी बगानों में काम करने वाले थे। अशिक्षित होने के कारण उनमें धार्मिक उन्माद अधिक था। मोपला विदेशी शासन, हिन्दू जमींदारों और साहूकारों से त्रस्त थे। अपनी दुखद स्थिति से बाध्य होकर 19 - 20वीं शताब्दी में मोपलाओं ने बार-बार विरोध और आक्रोश प्रकट किया। 1857 के पूर्व मोपलाओं के करीब 22 आंदोलन हुए। 1882 - 85,1896 और बाद में 1921 में भी मोपला विद्रोह हुआ। 1870 में सरकार ने मालाबार में बार-बार होने वाले विद्रोहों के कारणों का पता लगाने के लिए एक जांच समिति नियुक्त की थी। उसने इनका कारण जेमनियों अथवा जमींदारों दव्ारा किसानों को जमीन से बेदखल किया जाना एवं लगान में मनमाना वृद्धि बतलाया था। एक अनुमान के अनुसार 1862 - 1880 के मध्य मालाबार में लगान और बेदखली संबंधी मुकदमें में क्रमश: 244 और 241 प्रतिशत वृद्धि हुई। इससे किसानों और मजदूरों के आर्थिक शोषण का अंदाज आसानी से लगाया जा सकता है।

1921 में मोपला के किसानों आंदोलन पबना के किसान आंदोलन जैसा शांतिपूर्ण नहीं था बल्कि यह हिंसात्मक था। इसमें धार्मिक उन्माद का भी प्रदर्शन हुआ। यद्यपि उनके पीछे आर्थिक असंतोष छिपा हुआ था। मोपलों ने जमींदारों की संपत्ति भी लूटी एवं जमींदारों की जाने भी ली। मंदिरों की संपत्ति भी लूट ली गई। साहूकारों को भी नहीं बख्शा गया। छोटे-छोटे झुंडो में मोपलाओं में मालाबार में अशांति फैला दी। सरकार ने मोपलाओं पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए बल का प्रदर्शन भी किया। मोपला पुलिस की गोली से भी नहीं डरते थे और हँसते-हँसते मौत को सीने से लगाते थे। उनके मन में यह भावना बैठ गई थी कि इस आंदोलन में शहादत प्राप्त कर वे स्वर्ग प्राप्त कर सकेंगे। परन्तु सरकार ने बलपूर्वक उनका विद्रोह दबा दिया। संगठनात्मक कमजोरियों के कारण भी वे लंबे समय तक संघर्ष नहीं कर सके। मोपलाओं को अपने आंदोलन में कुछ बड़े किसानों का सहयोग मिला। मोपलाओं का सबसे बड़ा आंदोलन 1921 में हुआ जिसे दबाने के लिए सरकार को सेना की सहायता लेनी पड़ी। यह आंदोलन हिंसात्मक एवं सांप्रदायिक रूख अख्तियार कर लिया था क्योंकि इस क्षेत्र के ज्यादातर कृषक मुस्लिम थे जबकि जमींदार हिन्दू थे।