Important of Modern Indian History (Adunik Bharat) for Hindi Notes Exam Part 2
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इनकी गतिविधियाँ दो थी-
- अत्याचारी अफसरों, मुखबिरो और देशद्रोहियों की हत्या।
- डाका डाल पैसे इकट्ठे करना-हथियार खरीदने के लिए।
- रास बिहारी बोस और सचिव सान्याल के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने वाइसराय लार्ड हार्डिंग की हत्या का असफल प्रयास किया।
- ल्दांन में मदनलाल धींगरा ने कर्जन वाइली की हत्या की।
- ल्दांन में श्यामजी कृष्ण वर्मा, वी. डी. सावरकर और हरदयाल व यूरोप में मैडम कामा और अजीत सिंह ने क्रांतिकारी आतंकवादियों के केन्द्र स्थापित किए।
- क्रांतिकारी आतंकवादी अवधारणा को सबसे अधिक प्रोत्साहन अरविंद घोष ने दिया।
- क्रांतिकारी आतंकवादी धीरे-धीरे समाप्त हो गया।
- 1914 में जब प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ा उस समय यह धारणा थी कि ब्रिटेन पर संकट भारत के हित में है।
- उत्तरी अमरीका में गदर क्रांतिकारियों और भारत में तिलक तथा एनी बेसेंट ने इस मौके का लाभ उठाया।
- गदर क्रांतकारियों ने सशस्त्र संघर्ष व स्वदेशी संगठनों ने आंदोलन छेड़ा।
- उ. अमरीका का प. सागर तट पर 1914 के बाद में पंजाबी अप्रवासी बसने लगे।
- गाँव से आए लोगों में से ज्यादातर को कनाडा व अमरीका में घुसने नहीं दिया गया। जिन्हें बसने की इजाजत मिली उनके साथ अत्याचार हुआ और राजनीतिक नेताओं ने भी इनका साथ नहीं दिया।
- भारतीय गृह सचिव ने भारतीयों के विदेश में बसने पर प्रतिबंध लगाने की माँग की ताकी भारतीय समाजवादी विचारधारा से प्रभावित न हो सके।
- 1908 में कनाडा में भारतीयों के घुसने पर प्रतिबंध लगा।
- रामनाथ पुरो ने ‘सकुलर-ए-आजादी’ बाँट स्वदेशी आंदोलन का समर्थन किया।
- तारकनाथ दास ने बैंकोवर में ‘स्वदेश सेवकगृह’ की स्थापना की और गुरूमुखी में ‘स्वेदश सेवक’ अखबार निकाला।
- सामाजिक सुधार की आवाज उठाई गई और 1910 में सेना को विद्रोह करने को कहा।
- तारकनाथ दास और जी. डी. कुमार ने अमरीका के ‘सिएटल’ में ‘यूनाइटेड इंडिया हाउस’ की स्थापना की जिसका संपर्क खालसा दीवान सोसायटी से हुआ।
- 1913 में दोनों संगठनों ने लंदन में ब्रिटेन के सचिव तथा भारत में वाइसराय से बात करने के लिए प्रतिनिधिमंडल भेजा।
- आम जनता तथा प्रेस का भारी समर्थन मिला।
- प्रतिनिधि मंडल ने-भारतीयों के खिलाफ विदेश के कड़े कानूनों को बदलवाने के लिए भारतीय व ब्रिटिश सरकार से मदद लेनी चाही पर सफल नहीं हुए।
- सिख ग्रंथी भगवान सिंह ने 1913 में बैंकोवर में अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ हथियार उठाने का आह्वान किया एवं ‘वंदेमातरम’ को क्रांतिकारी सलाम मानने की बात कही।
- अमरीका राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र बना।
- 1 नवंबर 1913 को ‘गदर’ (9 दिसंबर से गुरूमुखी में भी) का पहला अंक उर्दू में प्रकाशित हुआ।
- गदर-अखबार के साथ एक पंक्ति ‘अंग्रेजी राज का दुश्मन’ लिखा रहता। अंक के पहले पृष्ठ पर छपता- “अंग्रेजी राज का कच्चा चिट्ठा” (14 सूत्रीय कच्चा चिटठा, जो अंग्रेजी कुशासन का उदाहरण देता था)
- आखिरी दो सूत्र इन समस्याओं का समाधान बताते थे-पहला भारतीयों की आबादी अंग्रेजों से कहीं ज्यादा है और दूसरा, 1857 के विद्रोह को 56 वर्ष बीत चुके हैं, अब दूसरे विद्रोह का वक्त आ गया है।
- ‘अनुशीलन समिति’ , ‘युगांतर’ और रूस के गुप्त संगठनों से प्रशंसनीय व साहसिक कार्यो की जानकारी दी जाती थी।
- जनता पर ‘गदर’ में छपी कविताओं का अधिक प्रभाव पड़ा।
- ‘गदर की गूँज’ नाम से इन कविताओं का संकलन प्रकाशित हुआ।
- प्जाांबी अप्रवासियों को गदर आंदोलन ने कम समय में अपना समर्थक बनाया।
- ये अंग्रेजी हुकुमत के वफ़ादार सैनिक नहीं रहे इनका लक्ष्य हिन्दुस्तान से अंग्रेजी हुकुमत को उखाड़ फेंकना हो गया।
- गदर आंदोलन की भावी रणनीति को तीन घटनाओं ने बहुत प्रभावित किया-हरदयाल की गिरफ्तारी, कामागाटामारू कांड व प्रथम विश्वयुद्ध हरदयाल पर अराजकता का अरोप लगा।
- 1914 में कामागाटामारू प्रकरण हुआ।
- कनाडा सरकार ने भारतीयों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया केवल भारत से सीधे कनाडा जाने वालो को अनुमति थी।
- नवंबर, 1913 में कनाडा सुप्रीम कोर्ट ने 35 भारतीयों को जो सीधे नहीं आये थे कनाडा में प्रवेश की अनुमति दी।
- उत्साहित होकर सिंगापुर के ठेकेदार गुरदीत सिंह ने कामागाटामारू जहाज किराए पर लेकर दक्षिण व पूर्ण एशिया के 376 भारतीयों को लेकर बैंकोंवर को चले।
- याकोहामा (जापान) में गदर क्रांतिकारी इनसे मिले।
- इसी बीच कनाडा के कानून में संशोधन किया गया जिस कारण एस. सी. ने आदेश दिए थे।
- बैंकोवर से दूर जहाज को रोक दिया गया, तो हुसैन रहीम, सोहनलाल पाठक और बलवंत सिंह के नेतृत्व में ‘शोर कमेटी’ गठित की गई, विरोध में बैठकें हुई।
- पंजाब प्रेस ने चेतावनी दी थी- कनाडा सरकार पर असर नहीं हुआ कामागाटामारू को कनाडा की जल-सीमा से बाहर कर दिया गया, याकोहामा पहुँचने के पहले प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया। भारत सरकार ने जहाज को सीधे कलकता लाने का आदेश दिया। कलकता के पास बजग्ज पहुंचने पर यात्रियों ने पुलिस से संघर्ष किया। 18 यात्री मर गए, 202 जेल गए और कुछ भागने में सफल रहे। तीसरी घटना जिसने गदर आंदोलन को हवा दी प्रथम विश्व युद्ध थी। आंदोलनकारी इसे हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे।
- बैठक बुलाई गई और गदर पार्टी में ‘ऐलान-ए जंग’ युद्ध की घोषणा की हिन्दुस्तान आकर सैनिको की मदद लेने का फैसला किया गया-हथियार के लिए
- प्रवासी भारतीय को भारत भेजने की कोशिश की।
- गदर षडयंत्र में फांसी दी गई-करतार सिंह सराया व रघुवीर दयाल गुप्त पहले ही भारत आ गए। भारत आने पर पूरी जाँच पड़ताल की जाती कुछ को गिरफ्तार भी किया गया। 8000 प्रवासी भारत लौटे। श्रीलंका द. भारत से आने वाले पंजाब पहुँच गए। पर पंजाबी गदर क्रांतिकारी का साथ देने को तैयार नहीं थे। खालसा दीवान ने क्रांतिकारियों को पुतिन व अपराधी सिख घोषित किया। शचींद्रनाश सान्याल और विष्णु पिंगले ने रासबिहारी बोस को आंदोलन का नेतृत्व करने को मनाया।
- जनवरी 1915 में रासबिहारी बोस पंजाब पहुँचें।
- पोस ने एक संगठन का प्रारूप तैयार कर लोगों को सैनिक छावनियों से संपर्क करने भेजा और 11 फरवरी को रिपोर्ट देने को कहा, विद्रोह की 21 फरवरी (बाद में 19 फरवरी की गई) निश्चित की गई।
- सी. आई. डी को जानकारी मिल गई और सारे नेता गिरफ्तार कर लिए गए।
- बोस बच कर निकल गए।
- पंजाब और मंडालय में चले षड़यंत्र के मुकदमों में 42 क्रांतिकारियों को फांसी।
- गदर क्रांतिकारी रामचन्द्र थे संपर्क था-बर्लिन के भारतीय, जर्मनी की मदद से विदेश में भारतीय सैनिक को विद्रोह के लिए तैयार करने की कोशिश की।
- राजा महेन्द्र प्रताप और बरकतुल्ला ने अफगानिस्तान के अमीर की मदद लेने की कोशिश की व अफगानिस्तान में एक अंतरिम सरकार गठित कर ली, परन्तु वे असफल रहें।
- गदर आंदोलन का चरित्र मूलत: धर्मनिरपेक्ष था।
- पंजाब में ‘तुर्कशाही’ शब्द का प्रचलन था, इसके इस्तेमाल को मना किया गया।
- पंजाब में ‘वंदे मातरम्’ को आजादी का सलाम माना गया।
- 1915 में सर्वसम्मपति से रासबिहारी बोस को नेता बनाया गया।
- गदर आंदोलन की दूसरी विशेषता उसका लोकतांत्रिक व समतावादी चरित्र था। लाला हरदयाल अराजकतावादी, श्रमिक संघवादी और समाजवादी थे। हरदयाल ने गदर क्रांतिकारियों को अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण अपनाने को प्रेरित किया।
इस आंदोलन की कुछ खामियाँ भी थीं-
- जैसे ही प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ा गदर आंदोलनकारी अपनी ताकत व संगठन का आंकलन किए बगैर मैदान में उतर गए।
- लाला हरदयाल में कुशल नेतृत्व व संगठन की क्षमता नहीं थी, वह मूलत: एक प्रचारक व विचारक थे।
- हरदयाल को उस समय अमरीका छोड़ना पड़ा जब उनकी जरूरत थी।
40 क्रांतिकारियों को फांसी दी गई, 200 को लंबी सजाएँ।