व्यक्तित्व एवं विचार (Personality and Thought) Part 13 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.
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टैगोर का राजनीतिक दर्शन ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: व्यक्तित्व एवं विचार (Personality and Thought) Part 13
गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर न तो राजनीतिज्ञ थे और न ही राजनीतिक दार्शनिक। वे एक देशभक्त और मानवता के प्रेमी थे। उन्हें पराधीनता से कष्ट था। चूँकि वे व्यक्ति के गौरव को विशेष महत्व देते थे, अत: आत्मनिर्भरता एवं स्वालंबन का संदेश उन्होंने दिया।
टैगोर का राष्ट्रवाद एवं देशभक्ति ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: व्यक्तित्व एवं विचार (Personality and Thought) Part 13
एक कवि के रूप उन्होंने समाज के सुख-दु: ख, आशा-आकांक्षा को अपनी अनुभूति दव्ारा समझा और उन पर चिंतन किया। इस चिंतन के फलसवरूप उनमें देशत्वबोध तथा राष्ट्र चेतना का उन्मेष हुआ। इसलिए तत्कालीन राजनीतिक नेताओं की राजनीति उन्हें सारशून्य लगी क्योंकि उस राजनीति का समाज-जीवन के साथ वास्तविक रूप से कोई संबंध नहीं था।
रवीन्द्र नाथ टैगोर शुद्धत: राष्ट्रवादी थे किन्तु उनका राष्ट्रवाद संकीर्ण नहीं था और न राष्ट्र का उग्रवाद ही उन्हें स्वीकृत था। उन्हें इस बात से बेहद दु: ख होता था कि यूरोप के विभिन्न राष्ट्रों दव्ारा एशिया और अफ्रीका के लोगों को गुलाम बना दिया गया है। राष्ट्र एवं राष्ट्रीयता पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने लिखा है कि-राष्ट्र शब्द हमारी भाषा में कही नहीं है और न ही इसका अस्तित्व हमारे देश में है। काफी समय से यूरोपियन शिक्षा के प्रभाव से हम लोग राष्ट्रीय उच्चता को महत्व देने लगे हैं; लेकिन उसके आदर्श दिलों और दिमाग में नहीं हैं। हमारे इतिहास, हमारे धर्म, हमारे सामाजिक जीवन, हमारे परिवार, किसी ने भी राष्ट्र के महत्व को मान्यता नहीं दी। जहाँ यूरोप राजनीतिक स्वतंत्रता को महत्व देता है वहाँ हमलोग आत्मिक स्वतंत्रता के पुजारी हैं। ऐसी सभ्यता की, जैसा की राष्ट्र के संप्रदाय में स्पष्ट किया गया है, परख की जानी अभिशेष है, किन्तु स्पष्ट है कि उसके आदर्श प्रतिष्ठा के पात्र नहीं हैं। क्योंकि उनमें अन्याय और असत्य के दोष भरे पड़े हैं। तथा उनमें एक प्रकार की क्रूरता का आभास होता है। हिन्दू सभ्यता का आधार समाज है जबकि यूरोपीय सभ्यता का आधार राज्य है। मनुष्य उच्चता के शिखर पर या तो समाज या राज्य के माध्यम से पहुँच सकता है, पर यदि हम सोचते हैं कि देश के निर्माण के लिये केवल यूरोपीय ढर्रे का ही रास्ता उचित है तो हमारी यह विचारधारा ठीक नहीं है।
टैगोर ने स्वदेशी आंदोलन के दौरान अपने गीतों के माध्यम से देश प्रेम का आहवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू वान किया। जलियावाला बाग हत्याकांड से उन्हें मर्मान्तक पीड़ा हुई और उन्होंने विदेशी सम्मान के पद ‘सर’ का परित्याग कर दिया। उनका देश प्रेम, उनकी राष्ट्रवादिता उच्च कोटि की थी, जिसमें गांभीर्य था, छिछलापन नहीं। किन्तु उग्र राष्ट्रवाद को वे कतई पसंद नहीं करते थे। उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया था कि राष्ट्रवाद एक बहुत बड़ा उत्पात है।
टैगोर की मान्यता थी कि उग्र राष्ट्रीयता साम्राज्यवाद का पोषण करती है। ‘राष्ट्र’ की जगह ‘लोग’ शब्दों का उन्होंने इस्तेमाल किया। लोगों में आत्मशक्ति के उत्थान पर वे बल देते थे। रवीन्द्र नाथ टैगोर अखंड भारत के समर्थक थे और राष्ट्रीयता को सांप्रदायिकता के कलंक से बचाना चाहते थे। हिन्दू-मुस्लिम एकता के वे समर्थक थे।
उन्होंने देश भक्ति को राष्ट्रवाद की सर्वोच्च अभिव्यक्ति माना है। टैगोर को अपनी मातृभूमि से प्यार था। उन्होंने कहा ईश्वर, हमें शक्ति देना जिससे हम निर्बलों एवं दलितों का अपमान न कर सकें। हमारा प्यार उस समय, जब हमारे आसपास की वस्तुएं धूल में गिरी हुई हों, आसमान की ऊँचाइयों तक पहुँच सके।
देशभक्ति के जातीय संघर्ष से उन्हें घृणा थी और इसे वे अशिष्टता मानते थे। आशय यह है कि उनकी देशभक्ति भौगोलिक सीमाओं में जकड़ी हुई नहीं थी, अपितु संपूर्ण मानवता के साथ इसका तादात्म्य था।