1947 − 1964 की प्रगति (Progress of 1947 − 1964) for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc. Part 7 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

Get unlimited access to the best preparation resource for CTET-Hindi/Paper-1 : get questions, notes, tests, video lectures and more- for all subjects of CTET-Hindi/Paper-1.

गुट निरपेक्षता की नीति ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: 1947 - 1964 की प्रगति (Progress of 1947 - 1964) for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc. Part 7

दव्तीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व की राजनीतिक स्पष्टत: दो गुटों में बंट गई। एक गुट का नेतृत्व पूंजीवादी प्रभाव वाला राष्ट्र अमेरीका कर रहा था तो दूसरे गुट का नेतृत्व साम्यवादी विचारवाला राष्ट्र सोवियत संघ। दोनों गुटों के बीच अपने प्रभाव क्षेत्र के विस्तार को लेकर तनाव इतना बढ़ गया कि युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो गई। टकराव की इस पृष्ठभूमि में ही गुटनिरपेक्ष आंदोलन का जन्म हुआ। गुटनिरपेक्षता इन दोनों प्रभावी गुटों से अलग एक तटस्थ नीति थी, जो एशिया और अफ्रीका के नव स्वाधीन राष्ट्रों में लोकतंत्र की स्थापना, परस्पर सहयोग एवं विश्व शांति के प्रति प्रतिबद्ध था। गुटनिरपेक्षता का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रों के बीच तनाव को कम कर विश्व शांति की स्थापना करना था।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन की पृष्ठभूमि 1955 के वान्डुग सम्मेलन से ही बनने लगी थी। भारत के प्रधानमंत्री नेहरू, मिस्र के अब्दुल नासिर एवं युगोस्लाविया के मार्शल टीटो के प्रयासों से 1961 में इस आंदोलन की नींव पड़ी। इसका पहला सम्मेलन सितंबर, 1961 में बेलग्रेड में हुआ। इस सम्मेलन में 25 अफ्रीकी एवं एशियाई देशों तथा एक यूरोपीय देश ने भाग लिया। इस सम्मेलन में 27 सूत्री घोषणा पत्र को स्वीकार किया गया। सम्मेलन में विश्व के सभी भागों में हर प्रकार की उपनिवेशवादी, साम्राज्यवादी, नव उपनिवेशवादी तथा नस्लवादी प्रवृत्तियों की कड़ी निन्दा की गई। इसमें अल्जीरिया, अंगोला, कांगो, टवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू यनिशिया आदि देशों में चल रहे स्वतंत्रता संघर्षो का पुरजोर समर्थन किया गया। सम्मेलन में विकासशील देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिए उचित प्रयासों पर बल दिया गया। सम्मेलन दव्ारा संपूर्ण निरस्त्रीकरण की अपील भी की गई। इन राष्ट्रों ने सभी विकसित एवं विकासशील देशों के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास का आहवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू वान किया।

कुछ लोग मानते हैं कि गुटनिरपेक्ष विश्व मामलों में तटस्थता या अलगाव की नीति है, पर ऐसा मानना उचित प्रतीत नहीं होता। सच तो यह है कि गुट निरपेक्षता गुटीय भावना से ऊपर उठकर अंतरराष्ट्रीय संबंधों को बढ़ावा देने वाली नीति है। यह विदेश नीति का अधिक सक्रिय एवं प्रभावी दृष्टिकोण है। यह विश्व स्तर पर किसी भी तरह के सैनिक गुट के निर्माण एवं टकराव के विरुद्ध है।

भारत की गुटनिरपेक्ष नीति की कई विदव्ानों ने आलोचना की है। उनका मानना है कि भारत ने सक्रिय रूप से तटस्थता की नीति का पालन नहीं किया। आरंभिक वर्षों (1947 - 50) में भारत का झुकाव पश्चिमी गुट की तरफ था। पश्चिमी शिक्षा प्रणाली का प्रभाव, ब्रिटिश बाजार की अर्थव्यवस्था को कायम रखने का निर्णय, देश की सेनाओं पर ब्रिटिश निरीक्षण तथा तकनीकी एवं आर्थिक सहायता की जरूरतों इत्यादि ने भारत की पश्चिमी देशों पर निर्भरता को बढ़ावा दिया था। लेकिन 1953 के बाद भारत का झुकाव सोवियत संघ की ओर बढ़ने लगा। 1954 की पाकिस्तान-अमरीका संधि के अंतर्गत अमरीका दव्ारा पाकिस्तान को बड़े पैमाने पर हथियार उपलब्ध कराने तथा गोआ के प्रश्न पर पुर्तगाल के समर्थन के कारण भारत-अमरीका संबंधों में कटुता पैदा हो गई। सोवियत संघ दव्ारा अब भारत की हर नीतिगत एवं विवादपूर्ण मामलों में समर्थन किया जाने लगा। भारत के प्रधानमंत्री ने रूस की सदवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू भावना यात्रा भी की।

पर यहाँ ध्यातव्य है कि गुट निरपेक्षता सैन्य गुटों के निर्माण एवं तनाव के विरूद्ध था न कि राजनीतिक आर्थिक संबंधों के खिलाफ। यही कारण है कि सैन्य मुद्दों तटस्थ रहते हुए भी भारत ने सोवियत संघ एवं अमरीका के साथ आर्थिक एवं राजनीतिक संबंध कायम रखे।

कुछ आलोचकों का यह भी मानना है कि भारत की गुटनिरपेक्ष नीति राष्ट्रीय हितों की रक्षा नहीं कर सकी। अंतरराष्ट्रीय संघर्ष का विरोध करने वाले भारत को पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध करना पड़ा। लेकिन इसे गुटनिरपेक्ष नीति की विफलता के रूप में नहीं देखा जा सकता। चीन के साथ भारत का युद्ध चीन की अविश्वसनीयता का परिणाम था। जहाँ तक पाकिस्तान के साथ भारत के युद्ध का प्रश्न है, यह पाकिस्तान की ईर्ष्या एवं उसकी महत्वाकांक्षा का परिणाम था। चीन के साथ युद्ध में व्यापक अंतरराष्ट्रीय समर्थन एवं पाकिस्तान के साथ युद्ध में भारत की विजय यह सिद्ध करता है कि राष्ट्रीय हितों की रक्षा एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग के विषय पर गुट निरपेक्षता की नीति सफल रही थी।

भारत की गुटनिरपेक्ष नीति की समर्थन इस बात में है कि इस नीति के अनुपालन के दव्ारा ही भारत को तृतीय विश्व के नेतृत्व कर्ता का प्रभावपूर्ण दर्जा हासिल हुआ, जो आर्थिक एवं सैन्य रूप से कमजोर एक नव स्वतंत्र राष्ट्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बात थी।