Important Glossary, Public Representation Bill 2013, Women՚s Representation in Parliament
Glide to success with Doorsteptutor material for CTET-Hindi/Paper-1 : get questions, notes, tests, video lectures and more- for all subjects of CTET-Hindi/Paper-1.
42 महत्वपूर्ण शब्दावलियाँ (Important glossary)
- अध्यादेश-जब संसद का सत्रावसान हो गया हो और ऐसी स्थिति पैदा हो गई हो जिस पर शीघ्र कार्रवाई आवश्यक हो तो राज्य में राज्यपाल और संघ में राष्ट्रपति दव्ारा जारी किया गया आदेश अध्यादेश कहलाता हैं। अध्यादेश को नियमित करने के लिए आवश्यक है कि जब संसद अथवा विधान मंडल का अगला सत्र हो तो उसे अनुमोदित कर दिया जाए नहीं तो सत्र की शुरूआत के छ: सप्ताह के बाद प्रवर्तन योग्य नहीं रह जाता है।
- प्रत्यानुदान (Vote of Credit) -किसी राष्ट्रीय आपात के कारण सरकार को धन की अप्रत्याशित मांग को पूरा करने के लिए निधियों की आवश्यकता हो सकती है, जिसके लिए सदन बिना ब्यौरा दिए प्रत्यानुदान के माध्यम से एकमुश्त राशि दे सकता है। आलोचकों के अनुसार यह अनुदान कार्यपालिका के हाथों में एक कोरे चेक की भांति है।
- लेखानुदान (अनुच्छेद 116 (क) ) -जब तक संसद बजट मांगे स्वीकृत नहीं कर लेती तब तक के लिए यह आवश्यक है कि देश का प्रशासन चलाने के लिए सरकार के पास पर्याप्त धन उपलब्ध हो। इसलिए लेखानुदान के लिए विशेष उपबंध किया गया है, जिसके दव्ारा लोकसभा को शक्ति दी गयी है कि वह बजट की प्रक्रिया पूरी होने तक किसी वित्त वर्ष के एक भाग के लिए पेशगी अनुदान दे सकती है।
- अनुपूरक अनुदान-यदि विनियोग विधेयक दव्ारा किसी विशेष सेवा पर चालू वर्ष के लिए व्यय किये जाने के लिए प्राधिकृत कोई राशि अपर्याप्त पायी जाती है या वर्ष के बजट में उल्लिखित न की गई और किसी नयी सेवा पर खर्च की आवश्यकता उत्पन्न हो जाती है, तो राष्ट्रपति एक अनुपूरक अनुदान संसद के समक्ष पेश करवाएगा। अनुपूरक अनुदान और विनियोग विधेयक दोनों के लिए एक ही प्रक्रिया विहित की गई है।
- अतिरिक्त अनुदान (Excess Grants) -इन अनुदानों पर वित्त वर्ष की समाप्ति पर मतदान होता है। भारत में केन्द्रीकृत भुगतान की व्यवस्था नहीं है। अत: व्यय का एक मुश्त अनुमान लगाना तथा निर्धारित सीमा के अनुसार व्यय करना संभव नहीं है। इस स्थिति से निपटने के लिए अतिरिक्त अनुदान की व्यवस्था की गयी है। संसद के अतिरिक्त अनुदान स्वीकृत करके धन के व्यय को वैधानिक बनाती है। किन्तु अतिरिक्त अनुदानों की सभी मांगों को लोकसभा में प्रस्तुत करने से पहले ‘लोक लेखा समिति’ दव्ारा अनुमोदन किया जाना आवश्यक है।
- भूतलक्षी प्रभावी विधि (Ex-Post Facto Law) -अनुच्छेद 20 के खंड (1) के अनुसार, ‘किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए तब तक सिद्ध द्धोष नहीं ठहराया जाएगा जब तक कि उसने ऐसा कार्य करने के समय किसी प्रवृत्ति विधि का अतिक्रमण न किया हो।’ वह उससे अधिक शास्ति का भागी नहीं होगा, जो उस अपराध के लिए जाने के समय प्रवृत्त विधि के अधीन लगाई जा सकती थी।
- धन्यवाद प्रस्ताव-राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद संसद की कार्यमंत्रणा समिति की सिफारिश पर तीन-चार दिनों तक धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा होती है। चर्चा प्रस्तावक दव्ारा आरंभ होती है तथा उसके बाद प्रस्तावक का समर्थक बोलता है। इस चर्चा में राष्ट्रपति के नाम का उल्लेख नहीं किया जाता है, क्योंकि अभिभाषण की विषय-वस्तु के लिए सरकार उत्तरदायी होती है। अंत में धन्यवाद प्रस्ताव मतदान के लिए रखा जाता है तथा उसे स्वीकृत किया जाता है।
- संसद एवं कार्यपालिका के मध्य अंतर-संसद विधान बनाकर, अनुशंसा करके, आलोचना करके एवं जनहित के मामलों में सरकार की सहायता करती है, जबकि कार्यपालिका संसद के प्रतिनिधि के तौर पर शासन करती है।
- नीति संबंधी कटौती (Policy Cut) -इसका उद्देश्य सरकार दव्ारा किसी विशेष विषय के संबंध में अपनाई गयी नीति को बदल कर उसके स्थान पर अन्य नीति को अपनाने के लिए जोर देना है। इस प्रस्ताव में कहा जाता है कि मांग की राशि घटाकर एक रुपए कर दी जाए। इसका अभिप्राय यह हुआ कि अब उस नीति को छोड़ दिया जाए।
- मितव्यता संबंधी कटौती (Economy Cut) - इसका उद्देश्य सरकारी खर्च में कमी लाना है। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि मांग की राशि घटाकर कम कर दी जाए। इस तरह से किसी मांग पर व्यय की जाने वाली राशि में एक मुश्त (Lump-sump) कटौती की बात की जाती है अथवा उसमें व्यय किए जाने वाले किसी मद को ही समाप्त कर दिए जाने को कहा जाता है।
- प्रतीकात्मक कटौती (Token Cut) -इसका उद्देश्य सरकार के प्रति किसी मांग के संबंध में किसी विशेष शिकायत को व्यक्त करना होता है। प्रतीकात्मक कटौती के दव्ारा सदस्य बात करते हैं। इससे उस सदस्य को उस मांग पर चर्चा करने का बहाना मिल जाता है।
- गिलोटिन -किसी बजट सत्र में समयाभाव के कारण अध्यक्ष के दव्ारा ऐसी सभी मांगों जिन पर चर्चा हो पायी हो अथवा न हो पायी हो, को एक साथ सदन के पटल पर रखने की प्रक्रिया को गिलोटिन कहते हैं।
- विनियोग विधेयक (Appropriation Bill) - भारतीय संविधान के अनुच्छेद 114 (क) के अनुसार लोकसभा दव्ारा अनुदान स्वीकृत किए जाने के बाद भारत की संचित निधि से उस अनुदान का विनियोग करने के लिए सदन में एक विनियोग विधेयक प्रस्तुत किया जाएगा इसमें लोकसभा दव्ारा स्वीकृत अनुदानों की सभी मांगे तथा संचित निधि पर भारित व्यय सम्मिलित किया जाता है।
- भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) - संविधान के अनुच्छेद 266 में संचित निधि का प्रावधान है। राज्यों को करों एवं शुल्कों में से उनका अंश देने के बाद जो धन बचता है उसे संचित निधि में डाल दिया जाता है। संचित निधि से धन संसद में प्रस्तुत अनुदान मांगों के दव्ारा ही व्यय किया जाता है। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सी. ए. जी. आदि के वेतन तथा भत्ते इसी निधि पर भारित होते हैं।
- भारत की आकस्मिक निधि (Contingency Fund of India) - संविधान के अनुच्छेद 267 के अनुसार भारत सरकार एक आकस्मिक निधि की स्थापना करेगी। इसमें जमा धन राशि को व्यय राष्ट्रपति अविलंबनीय एवं अप्रत्याशित परिस्थितियों में कर सकता है। वह व्यय बाद में ससंद दव्ारा प्राधिकृत कराया जाता है।
- कार्यस्थगन प्रस्ताव- किसी अविलंबनीय लोक महत्व के विषय अथवा देश के अंदर कोई विशिष्ट स्थिति आ जाने या संसद सदस्य दव्ारा सदन की वर्तमान कार्यवाही बीच में ही रोक कर उस विशेष स्थिति या घटना पर विचार करने का प्रस्ताव ला सकता है जिसे कार्य स्थगन या काम रोको प्रस्ताव कहते हैं।
- निंदा प्रस्ताव- सरकार या किसी मंत्री के किन्हीं कार्यों अथवा नीतियों की निंदा करने के लिए लाए गए प्रस्ताव को निंदा प्रस्ताव कहते हैं। निदां प्रस्ताव के पास हो जाने के पश्चात् यह माना जाता है कि सरकार अल्पमत में आ गयी और सरकार को इस्तीफा देना पड़ता है।
- अविश्वास प्रस्ताव-अनुच्छेद 75 (3) के अनुसार मंत्रिपरिषद तभी तक पदासीन रहती है जब तक उसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त हो। विपक्ष को जब ऐसा लगता है कि सरकार ने सदन का विश्वास खो दिया है तो उसके दव्ारा अविश्वास प्रस्ताव सदन में लाया जाता है। बहस के पश्चात् लोकसभा में इस पर मत विभाजन होता है। यदि यह प्रस्ताव सदन दव्ारा पास कर दिया गया तो सरकार को त्याग-पत्र देना पड़ता है।
- विशेषाधिकार प्रस्ताव-यदि कोई मंत्री किन्हीं तथ्यों को सदन में छिपाता है अथवा किन्हीं अन्य विशेषाधिकारों हनन का प्रस्ताव ला सकता है।
- आधे घंटे की चर्चा- सदन का कोई सदस्य जब ऐसा महसूस करता है कि तारांकित या अतारांकित या अल्प सूचना प्रश्न पर प्राप्त उत्तर में अपेक्षित जानकारी नहीं है तो अध्यक्ष सदस्य को आधे घंटे के चर्चा की अनुमति दे सकता है।
- अल्पकालीन चर्चा- एक गैर-सरकारी सदस्य के लिए अविलंबनीय लोक महत्व के मामले को सदन के ध्यान में लाने हेतु अल्पकालीन चर्चा की व्यवस्था की गयी है।
- प्रश्नकाल-लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन संबंध नियमों के अंतर्गत नियम संख्या 32 के तहत दोनों सदनों में प्रत्येक कार्य दिवस का प्रथम घंटा प्रश्नकाल कहलाता है। इस अवधि में संसद सदस्यों दव्ारा लोक महत्व के किसी भी मामले की जानकारी प्राप्त करने के लिए मंत्रियों से उनके विभागों से संबंधित प्रश्न पूछ सकते हैं। प्रश्नकाल के अंतर्गत पूछे जाने वाले प्रश्न कई तरह के होते हैं। जैसे-
- तारांकित प्रश्न- जिन प्रश्नों का उत्तर सदस्य तुरंत सदन में चाहत है उसे तारांकित प्रश्न कहते हैं। उनका उत्तर मौखिक दिया जाता है। इन प्रश्नों के अनुपूरक प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं। इन प्रश्नों पर तारा लगाकर इन्हें अन्य प्रश्नों से अलग किया जाता है।
- अतारांकित प्रश्न- उन प्रश्नों को जिनका उत्तर सदस्य लिखित रूप में चाहते हैं। उन्हें अतारांकित प्रश्न कहते है। इन प्रश्नों के अनुपूरक प्रश्न नहीं पूछे जा सकते।
- अल्प-सूचना प्रश्न- ऐसे प्रश्न जो अविलंबनीय लोक महत्व के हों तथा जिन्हें साधारण प्रश्न के लिए निर्धारित कम से कम 1 दिन की अवधि सूचना देकर पूछा जा सकता है, उन्हें अल्प सूचना प्रश्न कहते हैं।
- अनुपूरक प्रश्न - सदन से तारांकित प्रश्न के जवाब पर किसी सदस्य दव्ारा सदन के अध्यक्ष की अनुमति से जो प्रश्न पूछे जाते हैं, उन्हें अनुपूरक प्रश्न कहते है।
- शून्यकाल -सदन के दोनों सदनों में प्रश्न काल के ठीक बाद का समय शून्यकाल के नाम से जाना जाता है, जो 12 बजे से प्रारंभ होता है और एक बजे तक चलता है। इसमें बिना पूर्व सूचना के प्रश्न पूछे जाते हैं।
- स्थापनापन्न प्रस्ताव-जो प्रस्ताव मूल प्रस्ताव के स्थान पर और उसके विकल्प के रूप में पेश किए जाएं उन्हें स्थानापन्न प्रस्ताव कहते हैं। स्थानापन्न प्रस्ताव के स्वीकृत हो जाने पर मूल प्रस्ताव समाप्त हो जाता है।
- नियम-377 के अधीन उल्लेख -लोकसभा में जो मामले व्यवस्था का प्रश्न नहीं होते या जो प्रश्न अल्प-सूचना प्रश्नों, ध्यानाकर्षण प्रस्तावों आदि से संबंधित नियमों के अधीन नहीं उठाए जाते वे मामले नियम 377 के अधीन उठाए जाते हैं।
- नियम-115 के अधीन उल्लेख -इस नियम के अंतर्गत संसद के दोनों सदनों के सदस्यों की किसी मंत्री या सदस्य के वक्तव्य के तथ्य की त्रुटियों पर आपत्ति उठाने का अधिकार है।
- नियम - 184-इस नियम के अंतर्गत लोकसभा सदस्य अत्यावश्यक एवं अविलंबनीय विषय पर तुरंत चर्चा की मांग कर सकते है। चर्चा के अंत में मत विभाजन होता है।
- नियम-193 -इस नियम के दव्ारा सार्वजनिक महत्व के अविलंबनीय विषय पर अल्पकालिक चर्चा की मांग की जाती है। यह चर्चा किसी प्रस्ताव के माध्यम से नहीं होती। इस कारण चर्चा के अंत में सदन में मत विभाजन नहीं होता। केवल सभी पक्ष के सदस्यों को संबंद्ध विषय पर अपने विचार प्रकट करने का अवसर मिलता है।
- औचित्य का प्रश्न -औचित्य का प्रश्न सदन की कार्यवाही के दौरान यह सुनिश्चित करने के लिए उठाया जाता है कि क्या कार्यवाही संसदीय नियमों और प्रकियाओं के अनुसार चलायी जा रही है।
- स्थगन (Adjournment) -स्थगन के दव्ारा सदन के कार्य को विनिर्दिष्ट समय के लिए निलंबित कर दिया जाता है। इसकी घोषणा पीठासीन अधिकारी करता है।
- अनिश्चित काल के लिए स्ागन (Sine Die) - जब सदन को पीठासीन अधिकारी सदन को स्थगित करते हुए आगामी बैठक की तारीख या घोषणा नहीं करते हैं तो कहा जाता है कि सदन अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया।
- सत्रावसान- सत्रावसान से सदन के सत्र का समापन हो जाता है। सत्रावसान मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति या राज्यपाल दव्ारा किया जाता है।
- विश्रांति काल - सदन को सत्रावसान और उसके पश्चात् नए सत्र के प्रारंभ होने के बीच की अवधि को विश्रांति काल कहा जाता है।
- फ्लोर क्रॉसिंग- जब एक राजनीतिक दल का सदस्य संसद या विधान सभा में अपना दल छोड़ देता है और अन्य किसी दल में सम्मिलित हो जाता है तो उसे फ्लोर क्रासिंग कहते है।
- कोरम या गणपूर्ति- कोरम से तात्पर्य उस न्यूनतम सदस्य संख्या से है जो सदन में कार्यवाही के लिए आवश्यक होती है। यह अध्यक्ष सहित सदन की कुल सदस्य संख्या का दसवां भाग होता है।
- कंगारू क्लोजर-संसदीय व्यवस्था के अंतर्गत जब संसद में किसी विधेयक पर वाद-विवाद चल रहा हो और सरकार उस पर शीघ्र निर्णय करना चाहती है तो अध्यक्ष/पीठासीन अधिकारी प्रस्तावित संशोधनों में से महत्वपूर्ण संशाधनों का चयन कर लेता है, ताकि आगे सिर्फ उन्हीं पर चर्चा हो।
- सहकारी संघवाद- एक सहयोगी संघवाद में यह आवश्यक है कि संघीय व्यवस्था में संघ की सरकार एवं राज्यों की सरकारों में वांक्षनीय विषयों, कार्यक्षेत्र एवं शक्तियों के वितरण में सहभागिता एवं सामूहिकता की भावना हो। संविधान विशेषज्ञ ग्रेनविल आस्टिक ने भारतीय संघीय व्यवस्था को सहकारी परिसंघ की संज्ञा दिया है।
- दबावकारी गुट (Pressure Group) - व्यक्तियों का ऐसा वर्ग या समूह जिसके समान हित हों। वह अपने समस्त साधनों के प्रयोग दव्ारा विशेषकर शासनतंत्र पर प्रभाव डालकर अपने अनुकूल निर्णय करने का प्रयत्न करता है।
- प्रत्यावर्तन (Recall) - वह पद्धति जिसके दव्ारा निर्वाचक किसी भी निर्वाचित पदाधिकारी अथवा सदस्य को चाहे वह कार्यपालिका का हो या विधानमंडल का, वापस बुला सकता है अथवा पद-च्यूत करा सकता है।
- तदर्थ समिति- यह समिति समय-समय पर किसी भी सदन में सभापति अथवा लोक सभाध्यक्ष दव्ारा प्रस्तावित हेतु बनायी जाती है, जो किसी विशेष पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करती है।
- परामर्शदायी समिति-इस समिति के गठन का मुख्य उद्देश्य शासकीय नीतियों और कार्यक्रमों को क्रियान्वित करने के लिए सरकार एवं संसद सदस्यों के मध्य अनौपचारिक विचार-विमर्श के लिए एक मंच प्रदान करना होता है।
- संसदीय सलाहकार समिति- इस समिति का गठन विधायिका की समय-सारणी को निर्धारित करने तथा अन्य संसदीय व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। यह समिति लोकसभा के उन मामलों (व्यवहारों) को देखती है, जो भावनाओं व नैतिकता से संबंधित होते है। यह सदन को व्यवहारनुरूप कार्रवाही करने हेतु अनुशंसा करती है।
- व्हिप/सचेतक (Whip) -व्हिप एक प्रकार का आवश्यक निर्देश है जो दलीय अनुशासन के लिए प्रयुक्त होता है। व्हिप जारी करने पर संबंधित दल का सदस्य इसका उल्लंघन नहीं कर पाता है। यदि कोई सदस्य इसका उल्लंघन करता है तो वह दल-बदल के तहत दल से निष्काषित किया जा सकता है।
- अनिर्धारित प्रस्ताव - ऐसा प्रस्ताव जो कि अध्यक्ष दव्ारा बहस के लिए स्वीकार कर लिया गया है, किन्तु बहस के लिए कोई तिथि या दिन निर्धारित नहीं किया गया है, अनिर्धारित प्रस्ताव कहा जाता है।
- ध्यानाकर्षण प्रस्ताव- लोकसभाध्यक्ष की अनुमति से जब कोई संसद सदस्य सार्वजनिक हित की दृष्टि से सार्वजनिक महत्व के किसी विषय पर किसी मंत्री का ध्यान आकर्षित करता है तो उसे ध्यानाकर्षण प्रस्ताव कहते हैं।
- प्रतिस्थापन प्रस्ताव - प्रतिस्थापन प्रस्ताव किसी अन्य प्रश्न पर वाद -विवाद के दौरान पेश किये जाते हैं और वे उस प्रश्न का स्थान लेने हेतु होते है। यद्यपि वे स्वतंत्र स्वरूप के होते है। कोई सदस्य किसी विधेयक पर विचार करने के प्रस्ताव के संबंध में प्रतिस्थापन प्रस्ताव पेश कर सकता है। जैसे -विधेयक फिर से किसी समिति को निर्दिष्ट किया जाय।
- अनुषंगी प्रस्ताव -इन प्रस्तावों को विभिन्न प्रकार के कार्यों की अग्रेतर कार्यवाही के लिए नियमित उपाय के रूप में सदन की प्रथा दव्ारा मान्यता दी जाती है। जैसे-विधेयक को एक प्रबर या संयुक्त समिति को निर्दिष्ट किया जाय।
- राष्ट्रपति का अभिभाषण- अनुच्छेद 87 के तहत नए सदस्यों के शपथ ग्रहण करने व अध्यक्ष के चुने जाने के बाद राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों को संयुक्त रूप से संबोधित करते है। वे वर्ष के प्रथम सत्र पर ऐसा करते हैं।
- आवश्यकता का सिद्धांत- इसके अनुसार यदि पक्षकार को तार्किक आधार पर यह संदेह हो, कि सार्वजनिक प्राधिकारी के मन में पक्षपात उत्पन्न हो गया है तो भी प्राधिकारी अपनी शक्ति का प्रयोग विवाद को सुलझाने के लिए कर सकता है।
- छद्म विधायन सिद्धांत - कभी-कभी व्यवस्थापिका में निर्मित कानून बाह्य रूप से उसकी अपनी शक्तियों की सीमा में होते हुए भी सार क्रम में संविधान या दूसरी व्यवस्थापिका की शक्ति पर आक्रमण करता है। इन मामलों में विधि का सार महत्वपूर्ण होता है। बाह्य आकृति पर नहीं। यह छद्म विधायन कहलाता है, जिसकी अनुमति संविधान नहीं देता है।
- समिति प्राक्कलन- इस समिति में लोकसभा के 30 सदस्य होते हैं। राज्यसभा के सदस्य इसके साथ सहयोजित नहीं किये जाते। यह समिति ‘स्थायी मिव्यता समिति’ के रूप में कार्य करती है। इसकी आलोचना और सुझाव सरकारी फिजूलखर्ची पर रोक लगाने का काम करते है। यह समिति वार्षिक अनुमानों की विस्तृत जांच करती है
- लोक-लेखा समिति- यह सबसे पुरानी वित्तीय समिति है। इसमें 22 सदस्य होते हैं (लोकसभा-15 एवं राज्यसभा-7) । वर्ष 1967 से चली आ रही प्रथा के अनुसार विपक्ष के किसी सदस्य को इसका सभापति नियुक्त किया जाता है। लोक-लेखा समिति को कभी-कभी प्राक्कलन समिति की ‘जुड़वा बहन’ कहा जाता है, क्योंकि इनके कार्य एक दूसरे के पूरक है। प्राक्कलन समिति सार्वजनिक व्यय के अनुमान संबंधी कार्य करती है और लोक-लेखा समिति मुख्यतया भारत सरकार के व्यय के लिए सदन दव्ारा प्रदान की गयी राशियों का विनियोग दर्शाने वाले लेखाओं की जांच करती है।
- सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति- इसमें 22 सदस्य हैं। (15 लोकसभा तथा 7 राज्यसभा दव्ारा) इसका सभापति अध्यक्ष दव्ारा समिति के लोकसभा से निर्वाचित हुए सदस्यों में से नियुक्त किया जाता हैं निगम और सरकारी कंपनियों जिन्हें आमतौर पर सार्वजनिक उपक्रम कहा जाता है। इन पर लगायी धनराशियाँ चूँकि भारत की संचित विधि से ली गयी है। अत: लोकसभा का यह दायित्व हो जाता है। कि वह उनके कार्यों पर पर्याप्त नियंत्रण रखे। इस प्रयोजन के लिए संसद दव्ारा सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति गठित की गयी है। समिति दव्ारा जांच सामान्य रूप से उपक्रम के मूल्यांकन के स्वरूप की जाती है।
- कार्यमंत्रणा समिति- यह सदन संबंधी समिति है। प्रत्येक सदन में एक कार्य मंत्रणा समिति सहित इस समिति के 15 सदस्य हैं। राज्य सभा में उपसभापति सहित इसके 11 सदस्य है। इसका कार्य यह सिफारिश करना है कि सरकार दव्ारा लाये जाने वाले विधायी तथा अन्य कार्य को निपटाने के लिए कितना समय नियत किया जाय। राज्यसभा में यह सिफारिश करती है कि गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयकों तथा संकल्प पर कितना समय नियत किया जाय।
- नियम समिति- प्रत्येक सदन की एक नियम समिति है। लोकसभा में इसके 15 तथा राज्य में 16 सदस्य हैं। इसके 15 तथा राज्य में 16 सदस्य हैं। इसके निम्न कार्य हैं:
- सदन में प्रक्रिया तथा कार्य संचालन के मामलों पर विचार करना।
- नियमों में ऐसे किन्हीं संशोधनों की या परिवर्द्धनों की सिफारिश करना जो आवश्यक समझें जाय।
- याचिका समिति- प्रत्येक सदन की एक याचिका समिति है। लोकसभा में इसके 15 सदस्य या राज्यसभा में 10 सदस्य हैं। संसदीय लोकतंत्र में, शिकायतें व्यस्त करने और उनकी याचिकाएँं पेश करना लोगों का अंतर्निहित अधिकार होता है। इस अधिकार का प्रयोग याचिका समिति के माध्यम से किया जाता है। यह समिति याचिका में की गयी विशिष्ट शिकायतों पर सदन में प्रतिवेदन पेश करती है। यह उपचारात्मक उपायों का सुझाव देती है। यह उन पीड़ित और दमन के शिकार नागरिकों के लिए वास्तविक राहत का साधन बन चुकी है जिन्हें अन्यंत्र कोई उपचार या राहत नहीं मिलता। इस प्रकार यह समिति “आम्बुडेसमैन” या “सार्वजनिक शिकायत समिति” का रूप लेने की क्षमता रखती है।
- विशेषाधिकार समिति- यह समिति आमतौर पर दोनों सदनों में उनके पीठासीन अधिकारियों दव्ारा प्रत्येक वर्ष गठित की जाती है। लोकसभा में इसके 15 सदस्य और राज्यसभा में 10 सदस्य है। यह समिति प्रत्येक सत्र में गठित की जाती है। जब किसी संसदीय विशेषाधिकार के भंग होने का प्रश्न उत्पन्न होता है तो सदन के उससे निपटने के लिए सक्षम होते हुए भी उसे सामान्यतया जांच एवं छानबीन के लिए और प्रतिवेदिन देने के लिए विशेषाधिकार समिति को निर्दिष्ट किया जाता हैं इस समिति के कृत्य अर्द्ध-न्यायिक स्वरूप के हैं और इसमें व्यापक शक्तियाँ निहित हैं।
- प्रत्यर्पण (Extradition) - जब कोई अपराधी या व्यक्ति जिस पर अपराध का आरोप लगाया गया हो, उस राज्य का क्षेत्रीय सीमा से, जहाँ उस पर अपराध का जुर्म लगाया गया हो या मुकदमा चलाया गया हो, भाग निकले और दूसरे राज्य की क्षेत्रीय सीमा में चला जाए तो ऐसे व्यक्ति को दूसरे राज्य की क्षेत्री सीमा में लाये जाने की प्रक्रिया प्रत्यर्पण कहलाती है।
- गेलप पोल (Gallop Poll) - लोकमत जानने की एक विशेष पद्धति। इस पद्धति के अंतर्गत समाज के कुछ प्रतिनिधि वर्गों में प्रश्न पूछे जाते हैं और उनके आधार पर निर्वाचन परिणामों की घोषणा की जाती है।
- न्यायिक पुनरीक्षण (Judicial Review) - एक सांविधानिक सिद्धांत जिसके अनुसार न्यायालयों को यह अधिकार प्राप्त होता है कि यदि विधानमंडल दव्ारा पास की गई विधियांँ अथवा कार्यपालिका दव्ारा दिए गए आदेश संविधान के उपबंधों के प्रतिकूल हो जो वे उन्हें रद्ध घोषित कर सकते हैं।
- पंगु सत्र (Lame Duck Session) - एक विधानसभा का कार्यालय समाप्त होने और उसे उत्तरधिकारी विधानमंडल का विविध उदघाटन होने के बीच की अवधि में होने वाला सत्र।
- वीटो- वीटो का अधिकार एक ऐसी शक्ति है, जो किसी देश या संस्था के दव्ारा उसके कुछ प्रमुख व्यक्ति सदस्यों को दिया जाता है। इस शक्ति का प्रयोग बहुमत से सदस्यों दव्ारा लिए गए निर्णय को रोकने के लिए किया जाता है।
- भारत में राष्ट्रपति की वीटो शक्ति- इसका वर्णन संविधान में स्पष्ट तौर पर नही किया गया है, किंतु भारतीय राष्ट्रपति अनुच्छेद- 74,200 और 201 के तहत आत्यंतिक, विलंबनकारी तथा जेबी वीटो के मिले जुले रूपों का प्रयोग करता है।
- आत्यांतिक वीटो- (Absolute Veto) भारतीय राष्ट्रपति को यह शक्ति अप्रत्यक्ष रूप से मिली हुई है। आत्यांतिक वीटो का अर्थ है, किसी पारित विधेयक को अनुमति नही देना। यह शक्ति मुख्यत: इंग्लैंड के राजतंत्र के पास होती थी, जिसमें संसद के अधिनियमों को अनुमति न देना शामिल था।
- निलंबनकारी वीटो- इसका प्रयोग विधेयक को कुछ समय तक अधिनिम बनने से रोकने के लिए किया जाता है। यह शक्ति जो भारतीय राष्ट्रपति को अप्रत्यक्ष रूप से मिली हुई है।
- जेवी वीटो- इसके तहत राष्ट्रपति संसद दव्ारा पारित विधेयक को न अनुमति देता है और न ही पुनर्विचार के लिए वापस करता है। इसके दव्ारा अमेरिकी राष्ट्रपति किसी विधेयक को कानून बनने से रोक सकता है। यही व्यवस्था भारतीय राष्ट्रपति के लिए भी है, जिसका प्रयोग उन्होने अब तक तीन बार किया है।
- आम चुनाव- नई लोकसभा अथवा विधान सभा गठित करने के लिए होने वाले चुनावों को आम चुनाव कहा जाता है।
- उपचुनाव- यदि किसी समय लोकसभा अथवा विधान सभा के कार्यालय के बीच किसी सदस्य की मृत्यु अथवा त्यागपत्र देने से स्थान रिक्त होता है तो उस स्थान/सीट के लिए होने वाले चुनाव को उपचुनाव कहते है।
- मध्यावधि चुनाव- यदि लोकसभा अथवा राज्य विधान सभा को पांच वर्ष की कायविधि से पूर्व भंग कर दिया जाता है और नई लोकसभा अथवा विधानसभा गठित करने के लिए होने वाले चुनावों का मध्यावधि चुनाव कहते है।
लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन एवं विधिमान्यकरण) विधेयक, 2013 (Public Representation Bill 2013)
लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन एवं विधिमान्यकरण) विधेयक, 2013 को संसद ने पारित कर दिया। राज्यसभा से यह पहले ही पारित हो चुका है। इसके तहत जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 के खंड 62 में संशोधन किया गया है।
- संशोधन कानून के अनुसार हिरासत या कैद में होने के बावजूद कोई व्यक्ति मतदाता बना रहेगा क्योंकि उसके मतदान के अधिकार को सिर्फ अस्थाई रूप से स्थगित किया गया है।
- इस विधेयक के तहत जेल में बंद होने के दौरान चुनाव लड़ने तथा अपील के लंबित होने के दौरान सांसदों एवं विधायकों की सदस्यता बरकरार रखने की अनुमति देने का प्रावधान है। हालांकि इस दौरान उन्हें मतदान और वेतन हासिल करने का अधिकार नही रहेगा।
लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक
- 46 वर्षों की लंबी प्रतीक्षा के पश्चात् देश में लोकपाल की स्थापना की दिशा में मार्ग दिसंबर, 2013 में उस समय प्रशस्त हो गया, जब इसके लिए लाए गए विधेयक (लोकपाल वं लोकायुक्त विधेयक 2011) को संसद के दोनो सदनों ने पारित किया। जिसके पश्चात् राष्ट्रपति का अनुमोदन भी वर्ष 2014 के पहले ही दिन प्राप्त हो गया।
- लोकसभा में लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक 2011 को पहले ही दिसंबर 2011 में पारित किया जा चुका था जबकि राज्य सभा में (21 मई 2012 को) इसे प्रवर समिति (Select Committee) को संदर्भित किया गया था। समिति दव्ारा सुझाय गए सभी संशोधनों के साथ राज्यसभा ने 17 दिसंबर, 2013 को इसे पारित किया। संशोधन के साथ पारित होने के कारण लोकसभा की इसके लिए पुन: मंजूरी आवश्यक हो गई थी।
- प्रस्तावित लोकपाल में अध्यक्ष के अतिरिक्त अधिकतम 8 सदस्य होंगे। सर्वोच्च न्यायालय का कोई पूर्व मुख्य न्यायाधीश या फिर कोई अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति इसका अध्यक्ष हो सकेगा।
- सदस्यों में आधे न्यायिक पृष्ठभूमि से होने चाहिए। इसके अतिरिक्त कम से कम आधे सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जाति, अल्पसंख्यकों और महिलाओं में से होने चाहिए।
- कोई संसद सदस्य या किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश की विधान सभा का सदस्य या कोई व्यक्ति जिसे किसी किस्म के नैतिक भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया हो या काई ऐसा व्यक्ति जिसकी उम्र अध्यक्ष या सदस्य का पद ग्रहण करने तक 45 वर्ष न हुई हो या किसी पंचायत या निगम का सदस्य ऐसा व्यक्ति जिसे राज्य या केंद्र सरकार की नौकरी से बर्खास्त या हटाया गया हो, इसका सदस्य नही हो सकता है।
- लोकपाल कार्यालय में नियुक्ति समाप्त होने के बाद अध्यक्ष और सदस्यों के लिए कुछ काम करने के लिए प्रतिबंध होगा। इनकी अध्यक्ष या सदस्य के रूप में पुनर्नियुक्ति नहीं हो सकती, इन्हें कोई कूटनीतिक जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती। इसके अतिरिक्त ऐसी कोई भी जिम्मेदारी या नियुक्ति इन्हें मिल सकती जिसके लिए राष्ट्रपति को अपने हस्ताक्षर और मुहर से वारंट जारी करना पड़े।
- पद छोड़ने के पांच वर्ष बाद तक ये राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद के किसी सदन, किसी राज्य विधान सभा या नियम या पंचायत के रूप में चुनाव नही लड़ सकते।
- लोकपाल के अध्यक्ष व सदस्यों के लिए चयन समिति में प्रधानमंत्री अध्यक्ष होंगे, जबकि लोकसभा के अध्यक्ष, लोकसभा के विपक्ष के नेता, मुख्य न्यायाधीश या उनकी अनुशंसा पर नामित सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश तथा राष्ट्रपति दव्ारा नामित कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति सदस्य होंगे।
- इसी प्रकार राज्यों में गठित किए जाने वाले लोकायुक्त का भी एक अध्यक्ष होगा, जो राज्य के उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश या फिर कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति हो सकता है।
- लोकायुक्त में भी अधिकतम आठ सदस्य हो सकते हैं, जिसमें से आधे न्यायिक पृष्ठभूमि से होने चाहिए। इसके अलावा कम से कम आधे सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जनजाति, अल्पसंख्यकों और महिलाओं में से होने चाहिए।
- केंद्रीय स्तर पर गठित लोकपाल की जांच के दायरे में प्रधानमंत्री, सांसद और केंद्र सरकार के समूह ए. बी. सी. डी. के अधिकारी ओर कर्मचारी आएंगे जबकि राज्यों में लोकायुक्त के दायरे में मुख्य मंत्री, राज्य के मंत्री, विधायक और राज्य सरकार के अधिकारी शामिल होंगे।
- कुछेक मामलों में लोकपाल की दीवानी अदालत के अधिकार भी प्राप्त होंगे। भ्रष्ट अधिकारी की संपत्ति को अस्थायी तौर पर अटैच करने का अधिकार लोकपाल के पास होगा तथा विशेष परिस्थितियों में भ्रष्ट तरीके से कमाई संपत्ति, आय, प्राप्तियों, या फायदों का ज़ब्त करने का अधिकार भी इसे प्राप्त होगा।
मतदाताओं का राइट टू रिजेक्ट का अधिकार
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश पी. सदाशिवम की अगुवाई वाली पीठ दव्ारा दिए गए फैसले के अनुसार, मतदाताओं के पास नकारात्मक वोट डालकर चुनाव लड़ रहे सभी प्रत्याशियों का अस्वीकार करने का अधिकार है।
- उच्चतम न्यायालय के अनुसार, नकारात्मक मतदान (निगेटिव वोटिंग) से चुनावों में शुचिता और जीवंतता को बढ़ावा मिलेगा तथा व्यापक भागीदारी भी सुनिश्चित होगी।
- पीठ के अनुसार, नकारात्मक मतदान की अवधारणा में निर्वाचन प्रक्रिया में सर्वागीण बदलाव होगा क्योंकि राजनीति दल स्वच्छ छवि वाले प्रत्याशियों को ही टिकट देने के लिए मजबूर होंगे।
- उच्चतम न्यायालय दव्ारा फैसला पिपुल्स युनियन फॉर सिविल लिवर्टी (PUCL) की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया गयज्ञं
- पी. यू. सी. एल. ले याचिका में कहा था कि चुनाव संलयन नियम ‘49 ओ’ के तहत लोगो को वोट न देने की अनुमति तो दी जाती है, लेकिन यह मतदान की गोपनीयता के सिद्धांत तथा अनुच्छेद 19 (1) (ए) तथा चुनाव कानून की धारा 128 का उल्लंघन है।
- उच्चतम न्यायालय के चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और मतपत्र में उम्मीदवारों की सूची में सबसे नीचे ‘उपरोक्त में से कोई नही’ का विकल्प दे।
- पीठ के फैसले के अनुसार, चुनावों में उम्मीदवार को खारिज करने का अधिकार मौलिक अधिकार है, जो संविधान के तहत भारतीय नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत मिला है।
- यह अवस्था देते हुए पीठ ने यह नहीं बताया कि अगर ‘कोई नहीं’ के तहत पढ़ने वाले मत उम्मीदवारों का मिलने वाले वोट से ज्यादा होते हैं, तो ऐसी स्थिति में क्या होगा।
- दुनिया में अलग अलग देशों में ‘राइट टू रिजेक्ट’ या (None of the above) जैसे विकल्प बैलेट पेपर या वोटिंग मशीन पर उप्लब्ध रहते हैं।
- अमेरिका के कई राज्यों बेल्जियम, फ्रांस, ब्राजील, यूनान, चिली, फिनलैंड, स्वीडन, यूक्रेन, स्पेन, पोलैंड और कंबोडिया में मतदाताओं के पास ‘राइट टू रिजेक्ट’ का विकल्प मौजूद है।
- रूस में भी मतदाताओं का ‘राइट टू रिजेक्ट’ दिया गया था, लेकिन 2006 में इसे समाप्त कर दिया गया।
- बांग्लादेश में 2008 में मतदाताओं को यह अधिकार प्रदान किया गया था।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के पश्चात् पहली बार नवंबर-दिसंबर 2013 में पांच राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, दिल्ली और मिजोरम) में हुए विधानसभा चुनावों में ‘नोटा’ (None of the Above-NOTA) का प्रयोग किया गया था।
भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद एवं सुरक्षा सलाहकार
- भारत की राष्ट्रीय परिषद् (The National Security Council of India-NSC) देश की राजनीतिक, आर्थिक, ऊर्जा और सामरिक सुरक्षा से संबंधित विषयों पर नज़र रखने वाली शीर्ष एजेंसी है। एनएससी का गठन पहली बार अटल विहारी वाजपेयी की सरकार दव्ारा 19 नवंबर, 1998 को किया गया था। ब्रजेश मिश्रा प्रथम राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किये गए थे। एनएससी के गठन से पूर्व इस गतिविधियों पर प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव दव्ारा नज़र रखी जाती है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के अलावा भारत सरकार के रक्षा, विदेश, गृह एवं वित्त मंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सदस्य होते है। अन्य विभागों से जुड़े सदस्यों को भी आवश्यकतानुसार इसकी मासिक बैठक में बुलाया जा सकता है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security Advisor) राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् के प्रमुख कार्यकारी अधिकार होते है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित सभी विषयों पर वे भारत के प्रधानमंत्री के प्रमुख सलाहकार होते है। रॉ (Research and analysis wing-Raw) और इंटेलीजेंस ब्यूरो जैसी देश की प्रमुख खुफिया एजेंसियां राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को ही रिपोर्ट करती है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर एम. के. नारायण और हाल ही में इस पर नियुक्त अजीत कुमार डोभाल को छोड़कर (दोनों भारतीय पुलीस सेवा से है) सभी भारतीय विदेश सेवा के वरिष्ठ अधिकारी ही नियुक्त हुए हैं।
- राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियमित रूप से देश के आंतरिक और बाहरी खतरों से संबंधित सभी प्रमुख विषयों पर प्रधानमंत्री को सलाह देते हैं। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार चीन के साथ सीमा विवाद के मुद्दे पर होने वाले वार्ता में भारत के प्रधानमंत्री के विशेष वार्ताकार भी रहे हैं। ये प्रधानमंत्री के विदेश दौरे पर उनके साथ होते हैं। देश के प्रमुख खुफिया विभाग के प्रमुख अपनी रिपोर्ट सीधे प्रधानमंत्री को सौंपने के बजाय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ही इन रिपोर्टों को प्रधानमंत्री के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को एक उप- राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दव्ारा सहायता प्रदान की जाती है।
संसद में महिला प्रतिनिधित्व (Women՚s Representation in Parliament)
- संसद में महिला प्रतिनिधियों के संख्या के आधार पर राष्ट्रों का रैंक तय करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संस्था अंतर संसदीय संघ (Inter Parliamentary Union, IPU) दव्ारा तैयार की गयी सूची में 189 देशों में भारत का 111वां स्थान है। निचले सदन (लोकसभा) में 62 महिलाओं की मौजूदगी के साथ भारत को 111वें नंबर पर रखा गया है, जो कुल 54 सांसदों का 11.4 फीसदी है। ऊपरी सदन में 245 सांसदों में 28 महिलाएँ हैं जो 11.4 फीसदी हैं। संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर काम करने वाले आईपीयू ने संसद में महिलाओं की संख्या के आधार पर देशों की रैंकिग की है। ये आंकड़े राष्ट्रीय सांसदों दव्ारा 1 जनवरी, 2014 तक उपलब्ध करायी गयी सूचना पर आधारित है। इस संबंध सर्वेक्षण के दायरे में आए 189 देशों की सूची में रवांडा शीर्ष पर हैं, जहाँ उसके निचले सदन में 60 फीसदी महिलाएँ हैं। अमेरिका और कनाडा की स्थिति इस सूची में क्रमश: 83वें और 54वें नंबर पर है। हालांकि चीन में दो फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है। दक्षिण एशिया में नेपाल में महिला सांसदों का प्रतिशत सर्वाधिक है लेकिन इसके बावजूद यह 30 फीसदी से नीचे है। इस सूची में स्थान हासिल करने वाले शीर्ष 10 देशों में 4 अफ्रीका महादव्ीप से है। करीब 20 साल पहले सांसदों में महिलाओं का प्रतिशत 10 से कम था, लेकिन आज यह आंकड़ा 22.5 प्रतिशत तक पहुँंच गया है।
- सांसदों के अंतरराष्ट्रीय संगठन अंतर संसदीय संघ ने अपने वार्षिक विश्लेषण में कहा है कि दुनियाभर में अधिक संख्या में महिलाओं को संसद के लिए चुना गया है और यदि मौजूदा चलन जारी रहता हैं तो एक पीढ़ी से भी कम के समय में लैंगिक समानता के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
- आईपीयू आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2013 में हुए चुनावों के परिणामस्वरूप वैश्विक स्तर पर संसदों में महिलाओं की भागीदारी में 1.5 फीसदी का इजाफा हुआ है। आईपीयू महासचिव एंडर्स जॉनसन ने कहा कि यह बहुत अधिक नहीं दिखता, लेकिन अभी संसदों में 22 फीसदी महिलाएँ है। यदि 1.5 फीसदी की इसी रफ्तार से आगे बढ़ते रहे तो 20 साल के भीतर ही विश्व स्तर पर संसदों में लैंगिक समानता हो जाएगी। रिपोर्ट ने बताया है कि संसद तक महिलाओं की पहुंँच कई कारणों से प्रभावित होती है, जिसमें संसदों तक महिलाओं को पहुंँचाने में आरक्षण एक मुख्य माध्यम है। आईपीयू ने कहा है कि आरक्षण महत्वाकांक्षी व व्यापक होना चाहिए और उसे प्रभावकारी बनाने के लिए उसका क्रियान्वयन होना चाहिए।
संसद में महिलाएँ
- अंतर संसदीय संघ (IPU) दव्ारा संसद में महिला प्रतिनिधित्व के आधार पर तैयार 189 देशों की सूची में भारत को 111वां स्था दिया गया है। भारत इस सूची में खराब राष्ट्रों की श्रेणी में शामिल है, जबकि सीरिया, नाइजर और सिबरा लियोन की स्थिति इससे अच्छी है।
- भारत में संसद के दोनों सदनों में कुल 86 महिला प्रतिनिधि हैं।
- लोकसभा में 544 सदस्य (60 महिलाएँ)
- राज्यसभा में 241 सदस्य (26 महिलाएँ)
- पाकिस्तान का रैंक 72वां है, जहांँ उच्च सदन में 21 प्रतिशत और निम्न सदन में 17 प्रतिशत महिला प्रतिनिधि हैं।
- केवल दक्षिण एशियाई पड़ोसी श्रीलंका की स्थिति भारत से खराब है, जिसका रैंक 133वां है। वहाँ 225 में से 13 महिला सांसद हैं।
पड़ोस राष्ट्र
- 30 प्रतिशत महिला प्रतिनिधि के साथ नेपाल का रैंक 33वां है।
- 20 प्रतिशत महिला प्रतिनिधि के साथ बांग्लादेश का रैंक 74वां है।
- चीन में 25 प्रतिशत महिला प्रतिनिधि हैं और चीन का रैंक 61वां है।
शीर्ष 10 राष्ट्र
Top 10 nations
1. | रवांडा |
2. | एंडोरा |
3. | क्यूबा |
4. | स्वीडन |
5. | द. अफ्रीका |
6. | सेसल्स |
7. | सेनेगल |
8. | फिनलैंड |
9. | इक्वेडोर |
10. | बेल्जिर |
Deputy Prime Minister of India
भारत के उप-प्रधानमंत्री | ||
क््र | नम | कार्यकाल |
1. | सरदार वल्लभाई पटेल | 1947 - 50 |
2. | मोरारजी देसाई | 1967 - 69 |
3. | चरण सिंह एवं जगजीवनराम | 1979 - 79 |
4. | वाई. बी. चहृाण | 1979 - 80 |
5. | छेवीलाल | 1990 - 91 |
6. | देवी लाल | 1990 - 91 |
7. | एल. के. आडवानी | 2002 - 04 |
Loksabha speaker
लोकसभा अध्यक्ष | |
नम | कार्यकाल |
गणेश वासुदेव मालवंकर | 1952 - 56 |
एम. ए. आयंकर | 1956 - 62 |
हुकुम सिंह | 1962 - 67 |
नीलम संजीव रेड्डी | 1967 - 69 |
डॉ. गुरदायल सिंह ढिल्लो | 1969 - 75 |
बलिराम भारत | 1976 - 77 |
नीलम संजीव रेड्डी | 1977 (मार्च-जुलाई) |
के. डी. हेगड़े | 1977 - 79 |
डॉ. बलराम जाखड़ | 1980 - 89 |
रवि राय | 1989 - 91 |
शिवराज वी. पाटिल | 1991 - 96 |
पी. ए. संगमा | 1996 - 98 |
जी. एम. सी बालयोगी | 1998 - 2002 |
पी. एम सईद (कार्यवाहक) | मार्च 2002-मई 2002 |
मनोहर गजानन जोशी | मई 2002-मई 2004 |
सोमनाथ चटर्जी | 2004 - 09 |
मीरा कुमार (प्रथम महिला स्पीकर) | 2009 - 14 |
सुमित्रा महाजन | 6 जुन 2014-अब तक |
Chief Election Commissioner
मुख्य निर्वाचन आयुक्त | |
सुकुमार सेन | 21 - 3-1950 से 19 - 12 - 1958 |
के. वी. के. सुंदरम | 20 - 12 - 1958 से 30 - 9-1997 |
एस. पी. सेन वर्मा | 1 - 10 - 1967 से 30 - 9-1972 |
डॉ. नगेंद्र सिंह | 1 - 10 - 1972 से 6 - 2-1973 |
टी. स्वामीनाथन | 7 - 3-1973 से 17 - 6-1977 |
एस. एस. शकधर | 18 - 6-1977 से 17 - 6-1982 |
आर. के. त्रिवेदी | 18 - 6-1982 से 31 - 12 - 1985 |
आर. वी. एस. पेरी शास्त्री | 11 - 1-1986 से 25 - 11 - 1990 |
वी. एस. रामादेवी | 26 - 11 - 1990 से 11 - 12 - 1990 |
टी. एन. शेषन | 12 - 12 - 1990 से 11 - 12 - 1996 |
एम. एस. गिल | 12 - 12 - 1996 से 11 - 12 - 1996 |
जे. एम. लिंगदोह | 14 - 6-2001 से 7 - 2-2004 |
टी. एस. कृष्णमूर्ति | 8 - 2-2004 से 15 - 5-2005 |
बी. बी. टंडन | 16 - 5-2005 से 29 - 6-2006 |
एन. गोपालस्वामी | 30 - 6-2006 से 20 - 4-2009 |
नवीन चावला | 21 - 4-2009 से 29 - 7-2010 |
एसवाई कुरैशी | 30 - 7-210 से 2012 |
बी. एस. समपथ | 2012 से अभी तक |
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की सूची (List of National Security Advisor)
List of National Security Advisor
क्र. | नाम | अवधि | प््रधाानमंत्री |
1. | ब्रजेश मिश्रा (I. F. S) | नवंबर 1998-मई 2004 | अटल बिहारी वाजपेयी |
2. | जे. एन. दीक्षित (I. F. S) | मई 2004-जनवरी 2005 | डॉ. मनमोहन सिंह |
3. | एम. के. नारायण (I. P. S) | जनवरी 2005-जनवरी 2010 | डॉ. मनमोहन सिंह |
4. | शिवशंकर मेनन (I. F. S) | जनवरी 2010-मई 2005 | डॉ. मनमोहन सिंह |
5. | अजित कुमार डोभाल (I. P. S) | मई 2014-अब तक | नरेंद्र मोदी |
Deputy Speaker of Lok Sabha
लोकसभा उपाध्यक्ष | |
नम | कार्यकाल |
अनंतशयनम आयंगर | मई 1952 मई 1956 |
सरदार हुकुम सिंह | मई 1956-मार्च 1962 |
कृष्णमूर्ति राव | अप्रैल 1962-मार्च 1967 |
आर. के खांडिलकर | मार्च 1967-नवंबर 1969 |
जी. जी. स्वेल | दिसंबर 1969-जनवरी 1977 |
गुडे मुरहारी | अप्रैल 1977-अगस्त, 1979 |
जी. लक्ष्मणन | फरवरी 1980-दिसंबर 1984 |
थांबी दुराई | ज्नूा 1985-मार्च 1991 |
एस. मल्लिकार्जुननयय्ा | अगस्त 1991-मार्च 1996 |
सूरजभान | जुलाई 1996-दिसंबर 1997 |
पी. एम. सईद | दिसंबर 1988-अप्रैल 1999 |
पी. एम. सईद | अक्टूबर 1999-फरवरी 2004 |
चरणजीत सिंह अटवाल | जून 2004-मई 2009 |
करिया मुंडा | जून 2009-अभी तक |
भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक | |
नम | कार्यकाल |
वी. नरहरि राव | 1984 - 54 |
ए. के. चंदा | 1954 - 60 |
ए. के. राय | 1960 - 66 |
एस. रंगनाथन | 1966 - 72 |
ए. बक्शी | 1972 - 78 |
ज्ञान प्रकाश | 1978 - 84 |
टी. एन. चतुर्वेदी | 1984 - 90 |
सी. जी. सौम्या | 1990 - 96 |
वी. के. शुंगलू | 1996 - 2002 |
वी. एन. कौल | 2002 - 08 |
विनोद राय | 2008 - 2013 |
शशिकांत शर्ता | 2013 से अभी तक |
Vice President of India
भारत के उपराष्ट्रपति | |
नम | कार्यकाल |
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन | 1952 - 62 |
डॉ. जाकिर हुसैन | 1962 - 67 |
वी. वी. गिरी | 1967 - 69 |
गोपाल स्वरूप पाठक | 1969 - 74 |
बी. डी. जत्ती | 1974 - 79 |
न्यायमूर्ति मुहम्मद हिदायतुल्ला | 1979 - 84 |
आर. वेंकटरमण | 1984 - 87 |
डॉ. शंकर दयाल शर्मा | 1987 - 92 |
के. आर. नारायणन | 1992 - 97 |
कृष्णकांत | 1997 - 2002 |
भैरो सिंह सिंह शेखावत | 2002 - 07 |
मोहम्मद हामिद अंसारी | 2007 से अब तक |
President of India
भारत के राष्ट्रपति | ||
क्रम. | नाम | कार्यकाल |
1. | डॉ. राजेन्द्र प्रसाद | 26 जनवरी 1950 - 13 मई 1962 |
2. | डॉ. एस. राधाकृष्णन | 13 मई 1962 - 13 मई 1967 |
3. | डॉ. जाकिर हुसैन | 13मई 1967 - 3मई 1969 |
4. | वी. वी. गिरी (कार्यवाहक) | 3 मई 1969 - 20 जुलाई 1969 |
5. | न्यायमूर्ति मुहम्मद हिदायततुल्ला कार्यवाहक | 20 जुलाई 1969 - 24 अगस्त 1969 |
6. | वी. वी गिरि | 24 अगस्त 1969 - 24 अगस्त 1974 |
7. | फखरूद्दीन अली अहमद | 24 अगस्त 1974 - 11 फरवरी 1977 |
8. | बी. डी. जत्ती (कार्यवाहक) | 11 फरवरी 1977 - 25 जुलाई 1977 |
9. | नीलम संजीव रेड्डी | 25 जुलाई 1977 - 25 जुलाई 1982 |
10. | ज्ञानी जैल सिंह | 22 जुलाई 1982 - 25 जुलाई 1987 |
11. | आर. वैंकटरमण | 25 जुलाई 1987 - 25 जुलाई 1992 |
12. | डॉ. शंकर दयाल शर्मा | 25 जुलाई 1992 - 25 जुलाई 1997 |
13. | के. आर. नारायणन | 25 जुलाई 1997 - 25 जुलाई 2002 |
14. | डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम | 25 जुलाई 2002 - 25 जुलाई 2007 |
15. | प्रतिभा देवी सिंह पाटिल | 25 जुलाई 2007 - 25 जुलाई 2012 |
16. | प्रणव मुखर्जी | 25 जुलाई 2012-आज तक |
भारत का प्रधानमंत्री (Prime Minister of India)
Prime Minister of India
क्र. | नाम | कार्यालय |
1. | जवाहर लाल नेहरू | 15 अगस्त 1947 - 27 मई 1964 |
2. | गुलजारी लाल नंदा (कार्यवाहक) | 27 मई 1964 - 9 जून 1964 |
3. | लालबहादुर शास्त्री | 9 जून 1964 - 11 जनवरी 1996 |
4. | गुलजारी लाल नंदा (कार्यवाहक) | 11 जनवरी 1996 - 24 जनवरी 1966 |
5. | इंदिरा गांधी | 24 जनवरी 1966 - 24 मार्च 1977 |
1. | मोरारजी देसाई | 24 मार्च 1977 - 28 जुलाई 1979 |
2. | चरण सिंह | 28 जुलाई 1979 - 14 जनवरी 1980 |
3. | इंदिरा गांधी | 14 जनवरी 1980 - 31 अक्टूबर 1984 |
4. | राजीव गांधी | 31 अक्टूबर 1984 - 1 दिसंबर 1989 |
5. | विश्वनाथ प्रताप सिंह | 2 दिसंबर 1989 - 10 नवंबर 1990 |
6. | च्द्रांशेखर | 10 नवंबर 1990 - 21 जून 1991 |
7. | पी. वी. नरसिंहा राव | 21 जून 1991 - 16 मई 1996 |
8. | अटल बिहारी वाजपेयी | 16 मई 1996 - 16 मई 1996 |
9. | एच. डी. देवगौड़ा | 1 जून 1996 - 21 अप्रैल 1997 |
10. | आई. के गुजराल | 21 अप्रैल 1997 - 18 मार्च 1998 |
11. | अटल बिहारी वाजपेयी | 19 मार्च 1998 - 21 मई 2004 |
12. | अटल बिहारी वाजपेयी | 13 अक्टूबर 1999 - 21 मई 2004 |
13. | मनमोहन सिंह | 22 मई 2004 - 21 मई 2009 |
14. | मनमोहन सिंह | 22 मई 2009-अब तक |
Chairman of National Human Rights Commission
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष | ||
1. | न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्र | 1993 - 96 |
2. | न्यायमूर्ति एम. एन. वेंकटलैया | 1996 - 99 |
3. | न्यायमूर्ति जे. एस. वर्मा | 1999 - 2003 |
4. | न्यायमूर्ति ए. एस. आनंद | 2003 - 06 |
5. | न्यायमूर्ति डॉ. शिवराज पाटिल (कार्यवाहक) | 2006 - 06 |
6. | न्यायमूर्ति मैथ्यु कोशी | 2007 - 10 |
7. | न्यायमूर्ति गोविंद प्रसाद माथुर (कार्यवाहक) | 2009 - 10 |
8. | न्यायमूर्ति के. जी. बालकृष्णन | 2010 से अब तक |
Attorney General of India
भारत के महान्यायवादी | ||
क्र. सं. | नाम | कार्यकाल |
1. | एम. सी. सीतलवाड़ | 1950 - 63 |
2. | सी. के दफ्तरी | 1963 - 68 |
3. | निरेन डे | 1968 - 77 |
4. | एस. वी. गुप्ता | 1979 - 83 |
5. | एल. एन. सिन्हा | 1979 - 83 |
6. | के. पराशरन | 1983 - 89 |
7. | सोली जे. सोराबजी | 1989 - 90 |
8. | जी. रामास्वामी | 1990 - 92 |
9. | मिलन के बनर्जी | 1992 - 96 |
10. | अशोक देसाई | 1996 - 98 |
11. | सोली जे. सोराबजी | 1998 - 2004 |
12. | मिलन के. बनर्जी | 2004 - 09 |
13. | गुलाम ई. वाहनती | 2009 से अभी तक |
अब तक के अल्पसंख्यक आयोग
गैर वैधानिक आयोग
- पहला 1978 - 81 अध्यक्ष: एम. आर. मसानी
- दूसरा 1981 - 84 अध्यक्ष: एम. एच. बेग
- तीसरा 1984 - 87 अध्यक्ष: एम. एच. बेग
- चौथा 1987 - 90 अध्यक्ष: एम. एच. बेग
- पाँचवां 1990 - 93 अध्यक्ष: एम. एम. एच. बर्नी
वैधानिक आयोग
- पहला 1993 - 96 अध्यक्ष: जिस्टस मो. सरदार अली खान
- दूसरा 1996 - 99 अध्यक्ष: प्रो ताहिर महमूद
- तीसरा 2000 - 03 अध्यक्ष: न्यायमूर्ति मो. शमिम
- चौथा 2003 - 06 अध्यक्ष: एस. तरलोचन सिंह
- पाँचवां 2006 - 09 अध्यक्ष हामिद अंसारी (2007 तक)
- छठा 2011 - 14 अध्यक्ष: वजाहत हबिबुल्लाह
National Women՚s Commission chaired
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षता | ||
1. | सुश्री जयंती पटनायक | 1992 - 95 |
2. | डॉ. बी मोहिनी गिरी | 1995 - 98 |
3. | सुश्री विभा पार्थसारथी | 1999 - 2002 |
4. | डॉ. पूर्णिमा आडवाणी | 2002 - 05 |
5. | डॉ. गिरिजा व्यास | 2005 - 11 |
6. | सुश्री ममता शर्मा | 2011 से अब तक |
Chairperson of National Scheduled Commission
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की अध्यक्ष | ||
1. | सूरज भान | 2004 - 07 |
2. | बूटा सिंह | 2007 - 10 |
3. | पी. एल पुनिया | 2010 से अब तक |
Chief Justice and his tenure
मुख्य न्यायाधीश एवं उनके कार्यकाल | |
न्यायाधीश | कार्यकाल |
न्यायाधीश हीरालाल जे. कानिया | 26 जनवरी 1950 - 6 नवंबर 1951 |
न्यायाधीश एम पतंजलि शास्त्री | 7 नवंबर 1951 - 3 जनवरी 1954 |
न्यायाधीश मेहर चंद महाजन | 4 जनवरी 1954 - 22 दिसंबर 1954 |
न्यायाधीश बी. के. मुखर्जी | 23 दिसंबर 1954 - 31 जनवरी 1956 |
न्यायाधीश एस. आर. दास | 1 फरवरी 1956 - 30 सितंबर 1959 |
न्यायाधीश भुवनेश्वर प्रसाद सिन्हा | 1 अक्टूबर 1959 - 31 जनवरी 1954 |
न्यायाधीश पी. के. गजेंद्र गडकर | 1 फरवरी 1964 - 15 मार्च 1966 |
न्यायाधीश ए. के. सरकार | 16 मार्च, 1966 - 29 जून 1966 |
न्यायाधीश के. सुब्बाराव | 30 जून 1966 - 24 फरवरी 1968 |
न्यायाधीश के. एन. वांचू | 12 अप्रैल 1967 - 24 दिसंबर 1970 |
न्यायाधीश एम. हिदायतुल्ला | 25 फरवरी 1968 - 16 दिसंबर 1970 |
न्यायाधीश जे. सी. शाह | 17 दिसंबर 1970 - 21 जनवरी 1971 |
न्यायाधीश एस. एम. सिकरी | 22 जनवरी 1971 - 25 अप्रैल 1973 |
न्यायाधीश अजती नाथ रे | 26 अप्रैल 1973 - 27 जनवरी 1977 |
न्यायाधीश एम. एच. बेग | 28 जनवरी 1977 - 21 फरवरी 1978 |
न्यायाधीश यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ | 22 फरवरी 1978 - 1 जुलाई 1985 |
न्यायाधीश पी. एन. भगवती | 12 जुलाई 1985 - 20 दिसंबर 1986 |
न्यायाधीश रघुनंदन स्वरूप पाठक | 21 दिसंबर 1986 - 16 जून 1989 |
न्यायाधीश ई. एस. वेंकटरामन | 17 जून 1989 - 17 दिसंबर 1989 |
न्यायाधीश सब्यसाची मुखर्जी | 18 दिसंबर 1989 - 25 सितंबर 1990 |
न्यायाधीश रंगनाथ मिश्रा | 26 दिसंबर 1990 - 24 नवंबर 1991 |
न्यायाधीश के. एन. सिंह | 25 नवंबर 1991 - 12 दिसंबर 1991 |
न्यायाधीश एम. एच. कानिया | 13 दिसंबर 1991 - 17 नवंबर 1992 |
न्यायाधीश ललित मोहन शर्मा | 18 नवंबर 1992 - 11 फरवरी 1993 |
न्यायाधीश एम. एन. वेंकटचलैया | 12 फरवरी 1993 - 24 अक्टूबर 1994 |
न्यायाधीश जे. एस. वर्मा | 25 मार्च 1997 - 17 जनवरी 1998 |
न्यायाधीश एम. एम. पुंछी | 18 जनवरी 1998 - 9 अक्टूबर 1998 |
न्यायाधीश डॉ. आदर्श सेन आनंद | 10 अक्टूबर 1998 - 31 अक्टूबर 2001 |
न्यायाधीश एस. पी. भरूचा | 1 नवंबर 2001 - 5 मई 2002 |
न्यायाधीश बी. एन. किरपाल | 6 मई 2002 - 7 नवंबर 2002 |
न्यायाधीश जी. बी. पटनायक | 8 नवंबर 2002 - 18 दिसंबर 2002 |
न्यायाधीश वी. एन. खरे | 19 दिसंबर, 2002 - 1 मई 2004 |
न्यायाधीश राजेंद्र बाबू | 2 मई 2004 - 31 मई 2004 |
न्यायाधीश रमेश चंद्र लोहाटी | 1 जून 2004 - 31 अक्टूबर 2005 |
न्यायाधीश योगेश कुमार सब्बरवाल | 1 नवंबर 2005 - 13 जनवरी 2007 |
न्यायाधीश के. जी. बालाकृष्णन | 14 जनवरी 2007 - 13 जनवरी 2007 |
न्यायाधीश एस. एच. कपाडिया | 12 मई 2010 से अब तक |
न्यायाधीश ए. कबीर | 29 सितंबर 2012 - 18 जुलाई 2013 |
न्यायाधीश पी. सथाशिवम | 19 जुलाई 2013 - 26 अप्रैल 2014 |
न्यायाधीश आर. एम. लोढ़ा | 27 अप्रैल 2014 से अब तक |
नोट:- मुख्य न्यायाधीश के इस पद पर अब तक सबसे छोटा कार्यकाल न्यायमूर्ति के. एन. सिंह का रहा, जो केवल मुख्य न्यायाधीश रहे। इस पद पर सर्वाधिक 7 वर्ष 140 दिन का कार्यकाल वाई. वी. चंद्रमूड़ का रहा है।
External Affairs Minister of India
भारतीय विदेश मंत्री | |||
क्र. सं. | विदेश मंत्री | कार्यकाल | अन्य पद |
1. | जवाहरलाल नेहरू | 2 सितंबर 1964 - 27 मार्च 1964 | प्रधानमंत्री |
2. | गुजारी लाल नंदा | 27 मई 1964 - 9 जून 1964 | प्रधानमंत्री |
3. | लालबहादुर शास्त्री | 9 जून 1964 - 17 जुलाई 1964 | प्रधानमंत्री |
4. | सरदार स्वर्ण सिंह | 18 जुलाई 1964 - 14 नवंबर 1966 | - |
5. | एस. सी. छागला | 14 नवंबर 1966 - 5 सितंबर 1967 | - |
6. | इंदिरा गांधी | 6 सितंबर 1967 - 13 फरवरी 1969 | प्रधानमंत्री |
7. | दिनेश सिंह | 14 फरवरी 1969 - 27 जून 1970 | - |
8. | सरदार स्वर्ण सिंह | 27 जून 1970 - 10 अक्टूबर 1974 | - |
9. | वाई. बी. चाव्हृाण | 10 अक्टूबर 1970 - 24 मार्च 1977 | - |
10. | अटल बिहारी वाजपेयी | 26 नवंबर 1977 - 28 जुलाई 1977 | प्रधानमंत्री |
11. | श्यामनंदन प्रसाद सिंह | 28 जुलाई 1979 - 13 जनवरी 1980 | - |
12. | पी. वी. नरसिन्हराव | 14 जनवरी 1980 - 19 जुलाई 1984 | प्रधानमंत्री |
13. | इंदिरा गांधी | 19 जुलाई 1984 - 31 अक्टूबर 1984 | प्रधानमंत्री |
14. | राजीव गांधी | 31 अक्टूबर 1984 - 24 सितंबर 1985 | प्रधानमंत्री |
15. | बालीराम भगत | 25 सितंबर 1985 - 12 मई 1986 | - |
16. | पी. शिवशंकर | 12 मई 1986 - 22 अक्टूबर 1986 | - |
17. | नारायण दत्त-तिवारी | 22 अक्टूबर 1986 - 25 जुलाई 1987 | - |
18. | राजीव गांधी | 25 जुलाई 1987 - 25 जून 1988 | प्रधानमंत्री |
19. | पी. वी. नरसिम्हाराव | 25 जून 1988 - 2 दिसंबर 1989 | प्रधानमंत्री |
20. | विश्वनाथ प्रताप सिंह | 2 दिसंबर 1989 - 5 दिसंबर 1989 | प्रधानमंत्री |
21. | आई. के. गुजराल | 5 अक्टूबर 1984 - 24 दिसंबर 1989 | प्रधानमंत्री |
22. | राजीव गांधी | 31 अक्टूबर 1989 - 24 सितंबर 1989 | प्रधानमंत्री |
23. | विद्या चरण शुक्ल | 21 नवंबर 1990 - 20 फरवरी 1991 | - |
24. | माधव सिंह सोलंकी | 21 जून 1991 - 31 मार्च 1992 | - |
25. | पी. वी. नरसिम्हराव | 31 मार्च 1992 - 18 जनवरी 1993 | प्रधानमंत्री |
26. | दिनेश सिंह | 18 जनवरी 1993 - 10 फरवरी 1995 | - |
27. | प्रणव मुखर्जी | 10 फरवरी 1995 - 16 मई 1996 | - |
28. | सिकंदर बख्त | 21 मई 1996 - 1 जून 1996 | - |
29. | आई. के गुजराल | 1 जून 1996 - 18 मार्च 1998 | प्रधानमंत्री |
30. | अटल बिहारी वाजपेयी | 19 मार्च 1985 - 5 दिसंबर 1998 | प्रधानमंत्री |
31. | जसवंत सिंह | 5 दिसंबर 1998 - 23 जून 2002 | - |
32. | यशवंत सिन्हा | 1 जुलाई 2002 - 22 मई 2004 | - |
33. | नटवर सिंह | 22 मई 2004 - 6 नवंबर 2005 | - |
34. | मनमोहन सिंह | 6 नवंबर 2005 - 24 अक्टूबर 2006 | प्रधानमंत्री |
35. | प्रणव मुखर्जी | 24 अक्टूबर 2006 - 22 मई 2009 | - |
36. | एस. एम कृष्णा | 22 मई 2009 - 26 अक्टूबर 2012 | - |
37. | सलमान खुर्शीद | 28 अक्टूबर 2012 - 26 मई 2014 | - |
38. | सुषमा स्वराज | 26 मई 2014- अब तक | - |
Legislative Council and Assembly: A Comparison
विधानपरिषद एवं विधानसभा: एक तुलना | |||
क्र. | विधानपरिषद् | क्र. | विधानसभा |
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ | विधान परिषद् राज्य विधानमंडल का उच्च सदन अथवा दव्तीय सदन होता है। | ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ | विधानसभा राज्य विधानमंडल का निम्न सदन अथवा प्रथम सदन होता है। |
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ | विधान परिषद् के सदस्यों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के आधार पर होता है। | ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ | विधानसभा के सदस्यो का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से पूर्ण वयस्क मताधिकार के आधार बहुमत की पद्धति दव्ारा होता है। |
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ | विधान परिषद् एक स्थायी निकाय है, जिसका विघटन नहीं किया जा सकता, परन्तु एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष की समाप्ति के बाद सेवानिवृत्त हो जाते हैं तथा इनके स्थान पर नए सदस्य निर्वाचित हो जाते हैं। इनके सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। | ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ | विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, परन्तु कार्यकाल पूर्ण होने के पूर्व मुख्यमंत्री के परामर्श पर राज्यपाल दव्ारा इसे भंग किया जा सकता है। |
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ | विधान परिषद् के सदस्यों की संख्या अधिक से-अधिक राज्य की विधानसभा के सदस्यों की संख्या की एक-तिहाई होती है, परन्तु वह 40 से कम किसी अवस्था में नहीं हो सकती। (अपवाद-जम्मू-कश्मीर (36 सीट) ) | ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ | विधानसभा के सदस्यों की संख्या अधिक-से-अधिक 500 तथा कम-से-कम 60 हो सकती है। (अपवाद-गोवा (40) , मिजोरम, (40) , सिक्किम (32) , पुदुचेरी (30) ) |
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ | विधान परिषद् राज्य के कुछ विशेष वर्गों का प्रतिनिधित्व करती है। | ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ | विधानसभा राज्य की समस्त जनता का प्रतिनिधित्व करती है। |
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ | राज्य की मंत्रिपरिषद् विधान परिषद् के प्रति उत्तरदायी नहीं होती है। | ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ | राज्य की मंत्रिपरिषद् विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है। |
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ | विधान परिषद् में मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित कर उसके पदच्युत नहीं किया जा सकता। वह मंत्रिपरिषद के कार्यों की जांच एवं आलोचना भी कर सकती है, जो प्रश्न एवं पूरक प्रश्न पूछकर तथा स्थगन प्रस्ताव दव्ारा किया जाता है। | ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ | विधानसभा मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित कर उसे पदच्युत कर सकता है। |
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ | धन विधेयक विधान परिषद् में प्रस्तावित नहीं किया जा सकता। | ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ | धन विधेयक केवल विधानसभा में प्रस्तावित किया जा सकता है। |
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ | विधान परिषद् के सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन हेतु गठित निर्वाचक मंडल के सदस्य नहीं होते हैं अर्थात विधान परिषद् राष्ट्रपति के चुनाव में भाग नहीं ले सकते। | ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ | विधानसभा के सभी निर्वाचित (मनोनीत नहीं) राष्ट्रपति के निर्वाचन हेतु गठित निर्वाचक मंडल के सदस्य होते हैं। अर्थात विधानसभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में भाग ले सकते हैं। |
मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल: परस्पर संबंध
- राज्य की कार्यपालिका की सर्वोच्च शक्ति राज्यपाल में निहित होती है, परन्तु राज्य कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान मुख्यमंत्री होता है।
- मुख्यमंत्री मंत्रिपरिषद् एवं राज्यपाल के बीच कड़ी का काम करता है। वह राज्य प्रशासन से संबंधित सभी निर्णयों की सूचना राज्यपाल को देता है। (अनुच्छेद 167) ।
- मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल दव्ारा की जाती है।
- मुख्यमंत्री सहित मंत्रिपरिषद् व्यक्तिगत रूप से राज्यपाल के प्रति उत्तरदायी होता है।
- कुछ विशेष परिस्थितियों के अलावा सामान्यतया मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद् दव्ारा लिए गए निर्णयों को स्वीकार करने हेतु राज्यपाल बाध्य होता है।
- मुख्यमंत्री एवं मंत्रिमंडल को राज्यपाल दव्ारा इस आधार पर पदव्युत किया जा सकता है कि उसने विधानसभा में अपना बहुमत खो दिया है।
सरकारी विधेयक एवं निजी सदस्य विधेयक
- वैसे विधेयक जो मंत्रीपरिषद् के किसी सदस्य दव्ारा प्रस्तावित किए जाते हैं वे सरकारी विधेयक तथा राज्य विधानमंडल के किसी अन्य सदस्य दव्ारा प्रस्तावित विधेयक निजी सदस्य विधेयक कहलाते हैं।
- सरकारी विधेयक हेतु किसी पूर्व सूचना की आवश्यकता नहीं होती है, परन्तु निजी सदस्य विधेयकों के लिए एक महीने की पूर्व सूचना देना आवश्यक है।
- सरकारी विधेयक सामान्यतया सरकारी गजट में प्रकाशित कर दिया जाता है तथा इस पर किसी भी समय आवश्यकतानुसार विचार किया जाता है। निजी सदस्य विधेयक को प्रस्तुत करने हेतु तारीख निश्चित कर दी जाती है।
The winner of the most votes
सर्वाधिक वोट पाने वाले को ‘जीत’ और ‘समानुपातिक प्रतिनिधित्व’ चुनाव व्यवस्था की तुलना | |
सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत | समानुपातिक प्रतिनिधित्व |
∙ पूरे देश को छोटी- छोटी भौगोलिक इकाइयों में बांट देते हैं जिसे निर्वाचन क्षेत्र या जिला कहते हैं। | ∙ किसी बड़े भैगोलिक क्षेत्र को एक निर्वाचन मान लिया जाता है। |
∙ हर निर्वाचन क्षेत्र से केवल एक प्रतिनिधि चुना जाता है। | ∙ एक निर्वाचन क्षेत्र से कई प्रतिनिधि चुने जा सकते है। |
∙ मतदाता प्रत्याशी को वोट देता है। | ∙ मतदाता पार्टी को वोट देता है। |
∙ पार्टी को प्राप्त वोटों के अनुपात से अधिक या कम सीटें विधायक में मिल सकती है। | ∙ हर पार्टी को प्राप्त मत के अनुपात में विधायिका में सीटें प्राप्त होती है। |
∙ विजयी उम्मीदवार को जरूरी नही कि वोटों का बहुमत (50 प्रतिशत + 1) मिले। उदाहरण- युनाइटिड किंगडम और भारत | ∙ विजयी उम्मीदवार को वोटों का बहुमत प्राप्त होता है। उदाहरण- इजराइल और नीदरलैंड |