Public Administration: Discrimination and Vulnerability of HIV/AIDS Patient in India

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भारत में अन्य असुरक्षित समूहों की बेहतरी एवं संरक्षण हेतु महत्वपूर्ण तंत्र, विधि, संस्थायें एवं निकाय (Important Mechanism, Laws, Institutions and Bodied for Betterment and Protection of Other Vulnerable Groups in India)

भारत में एचआईवी/एड्‌स रोगियों के साथ विभेद एवं असुरक्षा (Discrimination and Vulnerability of HIV/AIDS Patient in India)

परिचय (Introduction)

  • यह कहने की जरूरत नहीं कि एचआईवी/एड्‌स एक जीव वैज्ञानिक एवं चिकित्सकीय चिंता से अधिक एक सामाजिक संकल्पना है। एचआईवी/एड्‌स नामक एक वैश्विक महामारी से जहाँ एक ओर लोगों दव्ारा सहानुभूति, एकता, सहयोग आदि प्रतिक्रियायें देखने को मिलती हैं; वहीं दूसरी ओर यह रोग कलंक, बहिष्कार, दमन और विभेद के साथ भी जुड़ा है। चूँकि इससे प्रभावित लोग (या प्रभावित समझे जाने वाले लोग) अपने समुदाय, प्रियजनों और परिवारों दव्ारा परित्यक्त होते हैं। यह परित्याग पश्चिम के अमीर देशों के साथ-साथ पूर्व के गरीब एवं विकासशील देशों में भी देखने को मिलता है।
  • पूरे विश्व में उपेक्षा, ज्ञान की कमी, भय और अस्वीकृति के कारण गंभीर और कभी-कभी दु: खद परिणाम देखने को मिलते हैं। एचआईवी/एड्‌स से पीड़ित लोगों को उपचार, सेवायें, मदद पाने और बीमारी की रोकथाम में मुश्किलें आती हैं। इस रोग से पीड़ित लोगों को समाज में निकृष्ट माना जाता है।

भारत में एचआईवी/एड्‌स रोगी और राष्ट्रीय नियंत्रण संगठन (HIV/AIDS Patients in India and National AIDS Control Organization: NACO)

  • भारत विश्व में एड्‌स रोगियों की संख्या के मामले में तीसरे स्थान पर है। 2008 - 09 के आँकड़ों के अनुसार, भारत में वर्तमान समय में 23.9 लाख व्यक्ति एचआईवी/एड्‌स से पीड़ित हैं।
  • भारत में एचआईवी के प्रसार में विविधता देखने को मिलती है। यद्यपि भारत एचआईवी के प्रसार की दृष्टि से कम संवेदनशील देश है, लेकिन कुछ राज्यों और जिलों में एचआईवी के प्रसार का उच्च स्तर देखा जा सकता है। अधिकांश संक्रमण विषम लिंगी संचरण (Heterosexual Transmission) के दव्ारा होता है। बहरहाल, कुछ क्षेत्रों में सुई से ड्रग्स लेने वाले लोगों, पुरुषों के साथ संभोग करने वाले पुरुष, अकेला विस्थापित पुरुष आदि एचआईवी नामक इस महामारी को बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
  • भारत में एचआईवी का पहला मामला 1986 में सामने आया और तब से आज तक एचआईवी संक्रमण लगभग सभी राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों में देखने को मिला है। भारत ने शुरू से ही करारा जवाब देते हुए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council o Medical Research) के अधीन एड्‌स टास्क फोर्स का गठन किया है। साथ ही परिवार एवं स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में राष्ट्रीय एड्‌स समिति का गठन भी किया गया है।
  • 1990 में चार राज्यों तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, मणिपुर के साथ-साथ चार महानगरों-चेन्नई, कोलकाता, मुंबई, दिल्ली में एक मध्यावधि योजना (1990 - 92) प्रारंभ किया गया था। 1992 में भारत सरकार ने एचआईवी/एड्‌स की रोकथाम व नियंत्रण हेतु पहला राष्ट्रीय एड्‌स नियंत्रण कार्यक्रम (NACP-1) लागू किया जिससे सरकार की इस रोग से लड़ने के प्रति प्रतिबद्धता जाहिर होती है।
  • दूसरा राष्ट्रीय एड्‌स नियंत्रण कार्यक्रम (NACP-II) नवंबर, 1999 में विश्व बैंक की 191 मिलियन यूएस डॉलर की मदद से प्रारंभ किया गया। तमिलनाडु और अन्य राज्यों में हुए अनुभवों साथ ही एचआईवी/एड्‌स की उभरती प्रवृत्ति के कारण सरकार का फोकस जागरूकता बढ़ाने की जगह अब स्वभाव परिवर्तन पर गया। राज्य स्तर पर कार्यक्रम को लागू कराने की प्रक्रिया को विकेन्द्रीकृत किया गया और NGOsकी भूमिका में वृद्धि की गई।
  • राष्ट्रीय एड्‌स नियंत्रण कार्यक्रम तीसरा चरण (NACP-III) , जो 2007 - 12 के दौरान लागू हुआ, वैज्ञानिक रूप से एक बेहतरीन कार्यक्रम है जिसका आधार नीतियों, कार्यक्रमों, योजनाओं, क्रियात्मक दिशा-निर्देशों, नियमों आदि की मजबूत संरचना है। NACP-III का उद्देश्य भारत में इन पाँच वर्षो में एचआईवी महामारी को उच्च जोखिम समूहों और सामान्य जनसंख्या में रोकथाम के प्रयासों दव्ारा फैलने से रोकना तथा एचआईवी पीड़ितों को सहयोग, देखभाल और उपचार (Prevention and Care, Support and Treatment) सेवायें उपलबध कराना है। अत: रोकथाम और देखभाल तथा सहयोग और उपचार ये दोनों प्रतिरूप भारत में एड्‌स रोकथाम के दो महत्वपूर्ण स्तभ हैं। NACP-III के अधीन, लिंक वर्कर स्कीम (Link Worker Scheme) का प्रारंभ एचआईवी संबंधित सेवाओं को उच्च जोखिम समूहों और वंचित लोगों तक पहुँचाने के लिए किया गया है।

योजना के अधीन जनसंख्या (Population Covered under the Scheme)

उच्च जोखिम समूह (High Risk Groups)

  • महिला सेक्स वर्कर्स
  • पुरुषों के साथ संभोग करने वाले पुरुष (Men having sex with Men)
  • सुई के जरिये नशीली दवा इस्तमेमाल करने वाले (Injecting Drug Users)

असरुक्षित समूह (Vulnerable Group)

  • अनौपचारिक साथी वाली महिलाएँ
  • उच्च जोखिम समूहों और असुरक्षित समूहों के सहयोगी/पति-पत्नी
  • महिला मुखिया वाले परिवार की महिलाएँ
  • युवा

अस्थायी जनसंख्या (Bridge Population)

  • विस्थापित (महिला और पुरुष)
  • ट्रक चालक

एचआईवी से पीड़ित लोग (People Living with HIV-PLHIV)

राष्ट्रीय एड्‌स नियंत्रण संगठन (National AIDS Control Organization: NACO)

  • राष्ट्रीय एड्‌स नियंत्रण संगठन NACO की स्थापना 1992 में की गई थी। यह भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का एक विभाग है।
  • NACO भारत को एक ऐसे स्थान के रूप्ज्ञ में देखता है जहाँ एचआईवी पीड़ितों को गुणात्मक देखभाल और आत्मसम्मान/गरिमा के साथ रहने का मौका मिलता है। HIV/AIDS के लिए प्रभावी रोकथाम, देखभाल और सहयोग उस वातावरण में संभव है जहाँ मानवाधिकारों का आदर होता तो और HIV/AIDS से प्रभावित व्यक्ति निष्कलंक और बिना विभेद का जीवन जीते हों।

NACO की कल्पना/स्वप्न (NACO Envisions)

  • विविध जनसंख्या तक पहुँच कर एकीकृत प्रतिक्रिया का विकास करना।
  • राष्ट्रीय एड्‌स नियंत्रण कार्यक्रम जिसका आधार तथ्यों पर आधारित योजना हो।
  • विकास लक्ष्य की उपलब्धि।
  • HIV/AIDS के प्रसार और उपस्थिति का नियमित और पारदर्शी आकलन।
  • ऐसे भारत का निर्माण जहाँ हर व्यक्ति से सुरक्षित हो।
  • सहयोग निर्माण
  • ऐसा भारत जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को HIV/AIDS की जानकारी हो और जहाँ प्रत्येक व्यक्ति इससे जुड़े कलंक और विभेद को मिटाना चाहता हो।
  • ऐसा भारत जहाँ प्रत्येक HIV पीड़ित माता के पास एक HIV मुक्त बच्चे को जन्म देने का विकल्प हो।
  • ऐसा भारत जहाँ प्रत्येक व्यक्ति की एकीकृत परामर्श और जाँच केन्द्रों (Integrated Counselling and Testing Centre ICTCs) तक पहुँच हो।
  • ऐसा भारत जहाँ प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा का सम्मान होता हो और जहाँ प्रत्येक को गुणात्मक देखभाल मिलती हो।
  • ऐसा भारत जहाँ प्रत्येक व्यक्ति एक स्वस्थ और सुरक्षित जीवन जी सके, जिसमें तकनीक का सहयोग हो।
  • ऐसा भारत जहाँ प्रत्येक HIV पीड़ित की सुनवाई होती हो।

भारतीय समाज में अन्य असुरक्षित समूह (Others Vulnerable Groups in Indian Society)

भारत में वरिष्ठ नागरिक (Senior Citizens in India)

विगत वर्षों में स्वास्थ्य सेवाओं में हुए सुधार के परिणामस्वरूप वरिष्ठ नागरिकों की जीवन प्रत्याशा और जनसंख्या में इनका अनुपात बढ़ा है। 80 वर्ष व इससे अधिक उम्र के लोगों की संख्या बढ़ रही है। परिणामस्वरूप पिछले तीन दशकें से वरिष्ठ नागरिक निर्भरता अनुपात लगातार बढ़ रहा है। (1981 में 12.0,1991 में 12.2 और 2001 में 13.1) । वृद्धिजनों (80 +) की जरूरतें, 60 वर्ष व अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों से भिन्न होती हैं। वरिष्ठ नागरिकों के इस वर्ग पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007 (The Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007)

माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण एवं कल्याण अधिनियम 2007 को दिसंबर 2007 में लागू किया गया था ताकि अभिभावकों और वरिष्ठ नागरिकों को आवश्यकता आधारित रखरखाव एवं कल्याण प्रदान किया जा सके 25 राज्यों एवं सभी 7 संघ राज्य क्षेत्रों ने इस कानून को अधूिसचित कर लिया है। बाकी राज्य भी अधिनियम के तहत जरूरी कदम उठा रहे हैं जैसे नियमों की अधिसूचना, रखरखाव अधिकारी, रखरखाव प्राधिकरण और अपीलीय प्राधिकरण आदि।

इस अधिनियम की विशेषताएँ (Salient Features of this Act)

  • माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण एवं कल्याण अधिनियम 2007, संतान और उत्तराधिकारियों पर वरिष्ठ नागरिकों के रखरखाव का दायित्व सौंपता है। यह राज्य को प्रत्येक जिले में वृद्धाश्रम (Old age homes) स्थापित करने की अनुमति भी देता है।
  • वरिष्ठ नागरिक, जो अपनी देखभाल नहीं कर सकते, उन्हें अपनी संतान या उत्तराधिकारी से भत्ता पाने हेतु रखरखाव प्राधिकरण में अपील करने का अधिकार होगा।
  • राज्य सरकारें रखरखाव के स्तर के निर्धारण हेतु प्रत्येक सब-डिवीजन में रखरखाव प्राधिकरण बना सकती हैं। जिला स्तर पर अपीलीय प्राधिकरण स्थापित किये जा सकते हैं।
  • राज्य सरकारों को अधिकतम मासिक भत्ता निर्धारित करना होगा। विधेयक में 1000 प्रतिमाह भत्ता प्रदान करने का प्रावधान है।
  • निर्धारित मासिक भत्ता न देने की स्थिति में रूपये 5000 जुर्माना या 3 माह कारावास अथवा दोनों हो सकता है।
  • राज्य सरकार को प्रत्येक जिले में कम से कम एक वृद्धाश्रम स्थापित करना होगा जिसमें एक गृह में न्यूनतम 150 लोगों की क्षमता हो।
  • राज्य सरकार ऐसे गृहों के प्रबंधन हेतु एक योजना कर सकती है। योजना में प्रदान की जाने वाली सेवाओं और मानकों का विवरण होगा जिसमें वृद्धाश्रमों के निवासियों की चिकित्सकीय देखभाल और मनोरंजन भी शामिल होगा।
  • इस अधिनियम का उद्देश्य उन अभिभावकों को वित्तीय सुरक्षा देना है जो स्वयं की देखभाल नहीं कर सकते। संविधान ने राज्य के नीति निदेशक तत्वों के दव्ारा राज्य को (निजी नागरिकों को नहीं) ये निर्देश दिये हैं कि वह वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा हेतु उचित प्रावधान करे। वर्तमान में दो अधिनियम अपराध प्रक्रिया संहिता, 1973 और हिन्दू दत्तकग्रहण तथा भरण-भोषण अधिनियम, 1956 (Hindu Adoption and Maintenance Act, 1956) माता-पिता की संतानों दव्ारा देखभाल सुनिश्चित करते हैं यदि वे अपना ध्यान रखने में समर्थ न हों। इस अधिनियम में भी वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल का दायित्व संतान व रिश्तेदारों को दिया गया है।