Quasi-Judicial Institutions: Central Electricity Regulatory Commission

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केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग (Central Electricity Regulatory Commission)

केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग (सीईआरसी) एक वैधानिक (न के संवैधानिक) निकाय है जो विद्युत अधिनियम 2003 के तहत कार्य करता है। इसका आरंभिक गठन विद्युत नियामक आयोग अधिनियम, 1998 के अधीन किया गया था। इस आयोग का उद्देश्य विशाल बिजली बाजारों में प्रतिस्पर्धा, दक्षता एवं अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना, आपूर्ति की गुणवत्ता को सुधारना, निवेश को बढ़ाव देना, मांग एवं आपूर्ति के अंतर को भरने के लिए संस्थागत बाधाओं को हटाने के लिए सरकार को सलाह देना और इस प्रकार उपभोक्ताओं के हितों को बढ़ावा देना है।

आयोग के रूप में विद्युत अधिनियम, 2003 दव्ारा सौंपे गये निम्नलिखित कार्यों का निर्वहन करने की जिम्मेदारी है-

  • केन्द्र सरकार के स्वामित्व या नियंत्रण वाली कंपनियों दव्ारा पैदा किये जाने वाले टैरिफ को विनियमित करना।
  • विद्युत के अंतरराज्यीय ट्रांसमिशन के लिए टैरिफ का निर्धारण करना।
  • विद्युत के अंतरराज्यीय ट्रांसमिशन को विनियमित करना।
  • ट्रांसमिशन लाइसेंसधारक तथा विद्युत व्यापारी के रूप में कार्य करने वाले व्यक्तियों को उनके अन्तरराज्यीय कार्य संचालन के संबंध में लाइसेंस जारी करना।
  • केन्द्र सरकार के स्वामित्व और नियंत्रण से बाहर वाली कंपनियों दव्ारा जनित टैरिफ को विनियमित करना।
  • अधिनियम के प्रयोजनो के लिए शुल्क लगाना।
  • ग्रिड मानकों को ध्यान में रखते हुए ग्रिड कोड निर्दिष्ट करना।
  • निर्दिष्ट एवं लाइसेंस धारकों से सेवा की गुणवत्ता, निरंतरता और विश्वसनीयता के संबंध में मानकों को लागू करना।
  • अधिनियम के तहत आबंटित किये जाने वाले कृत्यों का निर्वहन करना।

आयोग के सलाहकारी कार्य निम्नलिखित हैं-

  • राष्ट्रीय विद्युत नीति और टैरिफ नीति के सूत्रीकरण।
  • विद्युत आयोग की गतिविधियों में प्रतिस्पर्द्धा, दक्षता और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना।
  • विद्युत उद्योग में निवेश को बढ़ावा देना।

अग्रवर्ती बाजार आयोग (Forward Markets Commission)

अग्रवर्ती बाजार आयोग (एफएमसी) एक वैधानिक (न कि संवैधानिक) निकाय है, जिसका गठन अग्रवर्ती संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1952 के तहत किया गया था। एफएमसी भारत में अग्रिम बाजार के मुख्य नियामक हैं। इसका मुख्यालय मुंबई में है। आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य केन्द्र सरकार दव्ारा नामित किये जाते हैं।

एफएमसी के कार्य निम्नलिखित हैं-

  • पांच वस्तुओं में अग्रवर्ती व्यापार को संगठित करने के लिए संघों को मान्यता देने या उनकी मान्यता वापस लेने के लिए सरकार को सलाह देना।
  • देश में अग्रवर्ती बाजार के कार्यचालन को सुधारने के लिए अपनी सिफारिशें देना है।
  • जब यह आवश्यक समझे तो किसी भी मान्यता प्राप्त संघ, पंजीकृत संस्था या खातों और अन्य दस्तावेजों का निरीक्षण करना।
  • अग्रवर्ती संधि अधिनियम, 1952 के प्रशासन से उत्पन्न मुद्दों के संबंध में केन्द्र सरकार को सलाह देना।
  • जिस प्रकार सेबी शेयर बाजार को नियंत्रित करता है उसी तरह अग्रवर्ती बाजार आयोग भारत में जिंस (कमोडिटी) बाजार को नियंत्रित करता है।
  • बाजार में निगरानी रखना तथा उनके संबंध में आवश्यकता पड़ने पर कार्यवाही करना।
  • केन्द्र सरकार को बाजारों की कार्यप्रणाली पर समय-समय पर रिपोर्ट प्रस्तुत करना।

परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (Atomic Energy Regulatory Board)

  • परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (एईआरबी) का गठन 1983 में परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 के तहत नियामक और सुरक्षा कार्यों को पूरा करने के लिए किया गया था। इसका मुख्यालय मुंबई में है। एईआरबी का उद्देश्य, भारत में आयनीकृत विकिरण और नाभिकीय ऊर्जा के प्रयोग के कारण स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए कोई अनुचित जोखिम न पैदा हो को सुनिश्चित करना है।
  • परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड ने कई परामर्श समितियों का गठन किया है, जो कि नाभिकीय सुरक्षा, रेडियोधर्मी सुरक्षा, औद्योगिक एवं अग्नि सुरक्षा तथा पेशेवर स्वास्थ्य से जुड़े मामलों को देखती है। इसके अतिरिक्त एईआरबी को उसको सुरक्षा दस्तावेज विकास कार्य में सहायता देने के लिए तथा विभिन्न परियोजनाओं की सुरक्षा संबंधी समीक्षा के लिए भी कई परामर्शी समितियाँ मौजूद है, जैसे नाभिकीय सुरक्षा पर परामर्शी समिति (एसीएनएस) का गठन किया गया था। यह स्थल चयन, डिजाइन, निर्माण, प्रचालन, परियोजन एवं नियोजन सहित नाभिकीय अवस्थापनाओं की सुरक्षा को प्रभावित करने वाले सामान्य मामलों पर एईआरबी को सलाह देती है।

केन्द्रीय रेशम बोर्ड (Central Silk Board)

केन्द्रीय रेशम बोर्ड (सीएसबी) संसद के एक अधिनियम दव्ारा, 1948 के दौरान स्थापित एक सांविधिक निकाय है। सीएसबी का गठन रेशम कीट पालन तथा रेशम उद्योग के समग्र विकास हेतु किया गया था। यह भारत के वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन काम करता है।

केन्द्रीय रेशम बोर्ड के निम्नलिखित कार्य हैं-

  • रेशम उद्योग को इस तरह के उपायों से जो यह उचित समझे विकास को बढ़ावा देना।
  • रेशम क्षेत्र में वैज्ञानिक, तकनीकी और आर्थिक शोध उपक्रम में सहायता एवं बढ़ावा देना।
  • कच्चे रेशम के उत्पादन तथा गुणवत्ता को सुधारना तथा रेशम का विपणन करना।
  • देश में बीमारी कें संचरण को रोकने के लिए रेशम कीट के आयात एवं निर्यात की विनियमित करना।
  • रेशम कीट, बीज उत्पादन, बहुगुणन एवं बिक्री को विनियमित करना ताकि गुणवत्तापूर्ण रेशम कीट बीज की आपूर्ति सुनिश्चित हो सके।
  • आँकड़ों का संग्रह करना।
  • रेशम उत्पादन के माध्यम से लाभकारी रोजगार के अधिक से अधिक अवसर और आय के बेहतर स्तर को बनाने के लिए वैज्ञानिक व्यवहार का प्रसार करना।
  • कच्चे रेशम के आयात और निर्यात सहित रेशम उद्योग के विकास से संबंधित सभी मामलों पर केन्द्र सरकार को सलाह देना।
  • रेशम उद्योग से संबंधित समय-समय पर इस तरह के अन्य रिपोर्टों को तैयार करना एवं प्रस्तुत करना जो केन्द्र सरकार दव्ारा आवश्यक हो सकता है।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Central Board)

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) एक वैधानिक निकाय है, जिसका गठन 1974 में जल (प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत किया गया था। बाद में इसे वायु (प्रदूषण नियंत्रण एवं निवारण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत आने वाली शक्तियाँ और कार्य भी सौंप दिये गये। सीपीसीबी पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ प्रदान करता है।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कार्य निम्नलिखित हैं-

  • जल प्रदूषण के रोकथाम एवं नियंत्रण से संबंधित मामलों में केन्द्रीय सरकार को सलाह देना।
  • जल प्रदूषण के निवारण, नियंत्रण और रोकथाम दव्ारा राज्यों के अलग-अलग क्षेत्रों में जल धाराओं और कुँओं की साफ-सफाई को प्रोत्साहित करना।
  • देश में वायु प्रदूषण का निवारण, नियंत्रण और रोकथाम करना तथा वायु की गुणवत्ता को सुधारना।
  • मास मीडिया के माध्यम से प्रदूषण से संबंधित मुद्दों पर व्यापक कार्यक्रमों का आयोजन करना।
  • प्रदूषण से संबंधित तकनीकी एकत्र करना और सांख्यिकीय आकड़ों को संकलित एवं प्रकाशित करना।
  • राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की गतिविधियों को समन्वित करना तथा उनके बीच पैदा होने वाले सभी विवादों का समाधान करना।
  • जल और वायु प्रदूषण एवं उनकी रोकथाम तथा नियंत्रण से संबंधित मामलों के संबंध में जानकारी का प्रसार करना।
  • राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गतिविधियों से संबंधित मामलों में उन्हें तकनीकी सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करना।
  • भारत सरकार दव्ारा निर्धारित किये गये अन्य कार्य करना।

समुद्रतटीय जलजीव संवर्द्धन प्राधिकरण (Coastal Aquaculture Authority)

समुद्रतटीय जलजीव संवर्द्धन प्राधिकरण (सीएए) का गठन तटीय एक्वाकल्चर प्राधिकरण अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत किया गया था। इसका उद्देश्य समुद्रतटीय क्षेत्रों में तटीय जलजीव संवर्द्धन से जुड़ी गतिविधियों को विनियमित करना है। यह समुद्रतटीय जलजीव संवर्द्धन के विनियमन के लिए उपाय करता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि तटीय जलजीव संवर्द्धन के दव्ारा तटीय पर्यावरण पर कोई हानिकाकर प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसके दव्ारा जारी दिशा-निर्देश में उत्तरदायी तटीय जलजीव संवदव्र्न की अवधारणा को शामिल किया गया है। इस दिशा-निर्देशों का अनुसरण करके तटीय जलजीव संवदव्र्न गतिविधियों को विनियमित किया जाता हैं। ताकि समुद्रतटीय इलाकों में रहने वाले लोगों के विभिन्न वर्गों की जीविका का संरक्षण किया जा सके।

सीएए की शक्तियाँ एवं कार्य निम्नलिखित हैं-

  • तटीय क्षेत्रों में खेतों के निर्माण और जल कृषि के संचालन के लिए नियम बनाना।
  • तटीय क्षेत्रों में खेतों एवं जल कृषि का निरीक्षण करना एवं उनकी वजह से पर्यावरणीय प्रभाव का पता लगाना।
  • केन्द्र सरकार दव्ारा निर्धारित अन्य कार्य करना।