महान सुधारक (Great Reformers – Part 19)

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के. पी. एस. गिल:-

1934 - 35 में पंजाब के लुधियाना में जन्में कुंवर पाल सिंह गिल भारती पुलिस सेवा में शामिल हुये। चयन के बाद वे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों असम और मेघालय में कई महत्वपूर्ण पदों पर 28 साल तक रहे। वह असम के पुलिस महानिदेश भी रहे।

जब पंजाब में आतंकवाद अपने चरम पर था तब उन्हें पंजाब बुलाया गया और 1988 में पंजाब पुलिस के महानिर्देशक के रूप में कानून-व्यवस्था की बागडोर श्री गिल को सौंप दी गई। वह किसी राज्य के दो बार डीजीपी बनने का सम्मान हासिल करने वाले दुर्लभ लोगों में शामिल है। वह पहली बार 1988 से 1990 और 1991 से 1996 तक इस पद पर सुशोभित रहे। उनकी रणनीतिक कुशलता और अभियानों से धीरे-धीरे पंजाब में आतंकवाद दम तोड़ने लगा। इन महत्वपूर्ण अभियानों में ‘ऑपरेशन (कार्यवाही) ब्लैंक थंडर’ (कोरी धमकी) का नाम लिया जा सकता है, जिसके चलते आतंकवादियों को स्वर्ण मंदिर में ही अपने हथियार डालने पड़े थे। ऑपरेशन (कार्यवाही) ब्लू स्टार के बाद स्वर्ण मंदिर से आतंकवादियों को बाहर निकालने की यह सबसे बड़ी कार्यवाई थी ओर इसे बहुत कम नुकसान के साथ सफल बनाया गया। उन्होंने आतंकवादियों को सूचना देने और उन्हें मुठभेड़ में मार गिराने पर मिलने वाली राशि को बढ़ा दिया। इसके कई आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिले।

कई मानवाधिकार संगठनों जैसे ह्यूमन राइट (मानवाधिकार) वाच (देख-भाल) और एमनेस्टी (आम माफ़ी) इंटरनेशनल (अंतरराष्ट्रीय) ने उनकी कार्यशैली पर आरोप लगाये और शिकायत करते हुये कहा कि जिन्होंने काम करते समय मानवाधिकारों का ध्यान नहीं रखा। न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार ने लिखा कि पंजाब के लोग आतंकवादियों से नहीं डरते लेकिन अब पुलिस वालों से खौफ खाते हैं।

सेवानिवृत्ति होने के बाद वे कॉकी फेडरेशन (महासंघ) ऑफ (का) इंडिया (भारत) के प्रमुख बने। वह ′ इस्टीट्‌यूट (संस्थान) फॉर (के लिये) कॉनफ्लिक्ट (संघर्ष) एंड (और) रिजोल्यूशन ′ (संकल्प) के अध्यक्ष होने के अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद में भी शामिल किये गये। सेवानिवृत्ति के बाद वह लेखन के क्षेत्र में उतरे। आतंकवाद पर प्रकाशित विभिन्न पुस्तकों में श्री गिल के लेख संकलित हैं। इसके अलावा समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं में भी उनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं। पंजाब में आतंकवाद पर 1997 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ″ द नाइटस ऑफ फाल्सहुड ′ काफी चर्चा में रही।

ज्योतिन्द्र नांथ दीक्षित:-

देश के चोओ के विदेश कूटनीतिज्ञों में शामिल ज्योतिन्द्र नाथ दीक्षित या जे एन दीक्षित का जन्म मद्रास में हुआ था। उनके पिता प्रसिद्ध मंलयालो लेखक मुंशी परमू पिल्लई और मां रत्नामई देवी थी। रत्नामाई देवी की बाद में स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार सीताराम दीक्षित से विवाह होने के बाद ‘दीक्षित’ उपनाम ग्रहण किया गया। सन्‌ 1952 में दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसेन महाविद्यालय से बीए और बाद में जेएनयू से एम ए की पढ़ाई की। वह 1958 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल किये गये।

जे एन दीक्षित को बांग्लादेश से पहले भारतीय उच्चायुक्त बनने का अवसर मिला। वह वियना, टोक्यो और वाशिंगटन के अलावा चिली, मेक्सिको, जापान, आस्ट्रेलिया, अफगानिस्तान, भूटान, श्रीलंका, पाकिस्तान में भी पदस्थापित रहे। वह 1991 से 1994 तक विदेश सचिव भी रहे। दीक्षित ने यूएन, यूनिडो, यूनेस्को, आईएलओ और नाम (NAM) के लिए काम भी किया और अपनी छाप इन संगठनों पर छोड़ी। वह पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (परिषद) के सदस्य भी रहे। उन्होंने कई किताबें भी लिखीं। वे मैंचेस्टर, ऑक्सफोर्ड, मेलबर्न, लंदन सहित कई अन्य पश्चिमी विश्वविद्यालयों में भी अक्सर व्याख्यान देने जाया करते थे। दीक्षित कांग्रेस पार्टी में विदेश मामलों की इकाई के उपाध्यक्ष रहे। 2004 के आमचुनाव से पहले विदेश, सुरक्षा और रक्षा मामलों पर उन्होंने कांग्रेस का एजेंडा (कार्यसूची) या घोषणा-पत्र तैयार करने से अहम भूमिका निभाई थी।

वह 2004 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बने। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में विदेश मामलों पर कई लेख लिखे। उन्हें 2005 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

एन. एन. वोहरा:-

पंजाब विश्वविद्यालय और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अध्ययन करने वाले नरिंदर नाथ वोहरा या एन एन वोहरा ने एम. ए अंग्रेजी में टॉप (शीर्ष) किया और फिर पंजाब विश्वविद्यालय में 1956 - 59 तक पढ़ाया। उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा में 1959 में प्रवेश किया और 1994 तक एक शानदारण प्रस्तुत किया। सिख आतंकवादियों के खिलाफ चले ऑपरेशन (कार्यवाही) ब्लू स्टार के बाद उन्हें केंद्र में लाया गया। 1985 में पंजाब में हुये शांतिपूर्ण कॅरियर (पेशा) का उदाहरार् विधानसभा चुनावों का एक श्रेय उन्हें भी जाता है। वह 1993 के मुंबई बम विस्फोट कांड के बाद केन्द्रीय गृहसचिव बने। वोहरा को वर्ष 1997 - 98 में प्रधानमंत्री इंद्र कुमान गुजराल का प्रमुख सचिव नियुक्त किया गया। श्री गुजराल के कार्यकाल में बनी ‘पूर्व की ओर देखो’ नीति के संबंध में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। श्री वोहरा की सर्वाधिक चर्चा राजनीतिज्ञों और अपराधियों के बीच बने गठजोड़ की जांच करने के लिए बनी रिपोर्ट (विवरण) के लिए होती है, 1993 में बतौर गृहसचिव उन्होंने इस समिति की अध्यक्षता की। इस रिपोर्ट को उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री पी जी नरसिम्हा राव को सौंपा। देश में अपराध और राजनीतिज्ञों के बीच बने गठजोड़ की जांच की यह सबसे महत्वपूर्ण रिपोर्ट मानी जाती है। वह वर्ष 1999 से लेकर 2001 के बीच प्रतिष्ठित इंस्टीट्‌यूट (संस्थान) ऑफ (की) डिफेंस (सुरक्षा) स्टडीज (अध्ययन) एंड (और) एनालिसिस (विश्लेषण) के अध्ययन सहित कई संस्थानों के प्रमुख रहे। वह 2001 - 2002 तक मिलिटरी हिस्ट्री रिव्यू कमेटी के चेयरमैन भी रहे। वोहरा को केन्द्रीय विश्वविद्यालय जम्मू का पांच वर्ष के लिए पहला चांसलर (कुलाधिपति) भी नियुक्त किया गया।

श्री वोहरा को उनकी सेवाओं के लिए पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है। श्री वोहरा जम्मू कश्मीर मामले के विशेषज्ञ रहे हैं। उनकी यह दक्षता को ध्यान में रखकर उन्हें जम्मू कश्मीर का राज्यपाल ऐसे समय में बनाया गया जब अमरनाथ खाइन का मामला बहुत ज्वंलत बना हुआ था। उनका पहला कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही उन्हें पुन: यह दायित्व सौंप दिया गया। यह सरकार की उनकी दक्षता पर विश्वास का प्रतीक है।