इंडियन (भारतीय) वेर्स्टन (पश्चिमी) फिलोसोपी (दर्शन) (Indian Western Philosophy) Part 18 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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मूर्तिपूजा, आडम्बर का विरोध आदि।

″ मनुष्यों के पापों की सजा स्वयं भोग कर उनकी मुक्ति को संभव बनाना।

बौद्धिसत्व की धारणा महायान की सबसे क्रांतिकारी धारणा है, महायान के ही हीनयान से अधिक लोकप्रिय होने में इसका विशिष्ट योगदान है

बौद्ध नीति मीमांसा

  • बौद्ध दर्शन का मूल उद्देश्य प्राणी मात्र के दुखों को दूर करने का प्रयास करना।
  • ईश्वर आत्मा, स्वर्ग, नरक आदि का निषेध करके इहलोकवादी नीति का विकास करना हालांकि पुनर्जन्म और निर्वाण का विचार कुछ मात्रा में परलोकवाद से जुड़ता है।
  • आत्म दीपों मनु की भावना-प्रत्येक व्यक्ति की योग्यता में विश्वास करती है और उसे स्वयं अपने कष्टो से बाहर निकलने की सीख देती है।
  • बौद्धिसत्व की धारणा-व्यक्ति को सीख देती है कि समाज के कष्टों को दूर करने में ही अपनी प्रासंगिकता समझे।

कुछ अन्य विचार-

  • करुणा बौद्ध दर्शन के केन्द्र में है जो सामाजिक जीवन को अच्छा बनाने की मूल शर्त है
  • अहिंसा पर बल लेकिन जैन की तुलना में यह आदर्श व्यक्तिपरक है जैसे भोजन के लिए जीव हत्या गलत है लेकिन स्वाभाविक रूप से मृत पशु का भोजन खाना अनैतिक नहीं है, खेती करते हुये हिंसा-सभ्य है।
  • अस्तेय तथा ब्रह्यचर्य जैसे मूल्यों पर भी बल।

वर्ण व्यवस्था का विरोध करके समता मूलक समाज की स्थापना में योगदान करता है।

बुद्ध नहीं चाहते थे संघ में महिला आये-सीमित रूप में ऐसा एक अर्थ में यह विचार प्रगतिशील नहीं दिखता किन्तु तत्कालीन नहीं है।

nirvan

Nirvan
निर्वाण
हीनयानीमहायानीसामान्य बात
अभावात्मकभावात्मकजीवन का द्देश्य
दुखों का अभावविद्धवान परम सुखंअष्टांगिक मार्ग का प्रयोग किया जाना चाहिए
कुछ दुखमय है तो आयेगा कहां से, हम दुखों को सहन कर सकते है हम आर्य सत्यों का प्रतीत होता है
अवस्थाएं
निर्वाणपरिनिर्वाण
जीवन मुक्तिविदेहमुक्ति

moksh

Moksh
मौक्ष की ईच्छा रखने वाला
हीनयानमहायानबौद्धिसत्वविश्व मुक्ति
हेतुमुुमक्षु

मूल सवाभाव है महा करुणा से युक्त होना

अधिके चरण में प्राप्ति

में दव्ीपों भव

अपने मोक्ष की स्वयं पूर्ण करता है किसी मदद में, विमुक्ति चाहता है।

बोद्धिसत्व चाहता है कि मोक्ष की अर्हता प्राप्त के बावजूद वह तब तक मोक्ष प्राप्त न करे जब तक विश्व के प्रत्येक प्राणी को मोक्ष न मिल जाए।

बौद्धिसत्व की धारणा में एक अन्य धारणा महत्वपूर्ण है जिसे परिवर्तन कहते है, इसका अर्थ है कि बौद्धिसत्य अन्य व्यक्तियों के कर्म फल का अपने कर्म से आदान-प्रदान कर सकता है वह दूसरों के बुरे कर्म अपने ऊपर लेकर तथा अपने अच्छे कर्म दूसरों को छोड़कर सभी की मुक्ति प्रक्रिया में सहयोगी बनता है, यह आदर्श सीमित रूप में गीता के अवसरवाद, ईसायत के ईसामसीह से मिलता है अवसर अधर्म का नाश करने के लिए आते हैं जो एक अर्थ में मानव के कर्मफल में संतुलन का प्रयास है।

कुछ लोग पहले आर्यसत्य के कारण बुद्ध को निराशावादी कहते है जो गलत है।

चार्वाक को छोड़कर सबसे संसार का दुखमय यह है कि बुद्ध ने स्पष्ट घोषणा की (जैसे सांख्य ने कहा हैं) उसी प्रकार के दखों से परिपूर्ण है (आध्यात्मिक अधिवैविक, अधिभांति)

जगत को दुखमय: मानना 1 आर्य सत्य है बल्कि आर्य सत्य में दुख के निदान की प्रक्रिया है अंतिम रूप से बुद्ध आशावादी है क्योंकि विचारो का अंत सुख के बिन्दु पर करते है।

budhhism

Budhhism
बौद्ध
हीनयानबौद्धमहायान
चारो आर्य सत्यों का क्रम वैज्ञानिक है लक्षण से शुभ करके कारणों की पहचान तथा निदान तक की प्रक्रिया है और निदान सभी के दुखों का होना है, सो बुद्ध को महाबलि कहा जाता है।
चार आर्य सत्य
दुख

कुछ दुखमय है

कुछ भी दुखमय

सुख की प्राप्ति के लिए

सुख को बनाये रखने में दुख

सुख हाथ से निकला होगा फिर दुख में दुखियों ने जीतने के लिये आंसू बहाये है उनका जल महासागरों के जल से भी अधिक है।

दुख समुदाय

दुख का उदय

दुख के मूल कारण की खोज की गयी है (प्रतीत्य समुत्याद)

सिद्धांत

12 कारण (चरण) में दुख के कारण की खोज की हैं।

दव्ादव्शांग चक्र

अविधा मूल कारण

दुख निरोध

दुख रोका जा सकता हैं।

इसमें भी है

अविधा को नियंत्रण करके दुख निरोध

निर्वाण दुख निरोध

अग्नि की तपन का समाप्त हो जाना

दुख निरोध मार्ग

(निर्वाण के लिए रास्ता)

अष्टांगिक मार्ग स्वयं बुद्ध ने इसी मार्ग पर चलकर निर्वाण प्राप्त किया था।

व्याकतानि/ अत्याकृत-बुद्ध ने तत्व मीमांसा के बहुत से प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया और उन्हें व्याकरण कहा अर्थात व्याकरण की भाषा में इनका उत्तर नहीं दिया जा सकता इसके पीछे दूसरा कारण यह भी था कि बुद्ध के अनुसार व्यक्ति का मूल उद्देश्य जगत में समान दुखों को दूर करना है न कि व्यर्थ के प्रश्नों में उलझना उनका कथन है सो घायल व्यक्ति के प्रति हमारा कर्तव्य यह है कि हम उसका तीर निकालें और न कि उस घटना के बारे में सोचे कि तीन किसने मारा, कब मारा और क्यों मारा?

डॉ. राधाकृष्णन- भारतीय दर्शन केवल प्रारंभ में निराशावादी है में नहीं।

अष्टांगिक मार्ग-

  • सम्यक दृष्टि- 4 आर्य सत्यों का ज्ञान-सुख और दुख को समझने की ताकत।
  • सम्यक संकल्प- 4 आर्य सत्यों का पालन करने का ।
  • सम्यक वाणी- सत्य, प्रिय वचनो का प्रयोग।
  • सम्यक कर्म- बुरे कर्म तथा हिंसा, स्तेय, इन्द्रिय भोग का परित्याग करना।
  • सम्यक आजीविका-ईमानदारी से जीविकोपार्जन
  • सम्यक व्यायाम-बुरे भावों को मन से निकाल देना और शुभ भावों को स्थापित करना।
  • सम्यक स्मृति-वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप को समझ अर्थात शरीर को शरीर, चेतना को चेतना समझ इनमें से किसी को मैं न समझना।
  • सम्यक समाधि- ऊपर के 7 चरणों के बाद व्यक्ति सम्यक समाधि के योग्य हो जाता है इसके अंतर्गत अवस्था है, चौथी अवस्था में ही निर्वाण की प्राप्ति हो।