Science and Technology MCQs in Hindi Part 21 with Answers

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1 ‘दिव्य नयन’ दृष्टि बाधित व्यक्तियों के लिये विकसित एक रीडिंग (पढ़ना) मशीन (यंत्र) है। इसके संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही नहीं है?

अ) यह मशीन (यंत्र) प्रिंटेड (मुद्रित) अथवा इलेक्ट्रॉनिक (विद्युत) टेक्सचुअल (शाब्दिक) इन्फॉर्मेशन (सूचना) को पढ़ने में दृष्टि बाधितों की सहायता करती है।

ब) यह मशीन (यंत्र) नेशनल (राष्ट्रीय) इंस्टिटयूट (संस्थान) फॉर (के लिये) इंपावरमेंट (सशक्तिकरण) ऑफ (का) पर्सन्स (व्यक्तियों) विद (साथ में) विजुअल (दृश्य) डिसएबिलीटीज़ (विकलांग) (एन. आइ. ई. पी. वी. डी) , देहरादून के वैज्ञानिकों दव्ारा विकसित की गई है।

स) इस मशीन की सहायता से अभी केवल हिन्दी और अंग्रेज़ी भाषा के कंटेंट (सारांश) को ही पढ़ा जा सकता है।

द) इसमें वायरलेस (तारहित) संचार तकनीक के साथ 32 जीबी इंटर्नल (अंदर का) स्टोरेज (भंडारण) की क्षमता भी उपलब्ध है।

उत्तर: (ब)

व्याख्या:

  • ‘दिव्य नयन’ दृष्टि बाधित व्यक्तियों के लिये विकसित एक रीडिंग मशीन है। यह मशीन प्रिंटेड अथवा इलेक्ट्रॉनिक टेक्सचुअल इन्फॉर्मेशन को पढ़ने में दृष्टि बाधितों की सहायता करती है। अत: कथन (अ) सही है।
  • यह मशीन सीएसआईआर के अंतर्गत चंडीगढ़ स्थित साइंटिफिक (वैज्ञानिकी) इन्स्टूमेन्टस (उपकरणों) ऑर्गनाइजेशन (संगठन) (सीएसआईओ) के वैज्ञानिकों दव्ारा विकसित की गई है। अत: कथन (ब) गलत है।
  • यह प्रिंटेड अथवा इलेक्ट्रॉनिक (विद्युत) डॉक्यूमेंट (दस्तावेज) को बिना किसी अन्य की सहायता के पढ़ने में सक्षम है। अत: यह दृष्टि बाधितों की शिक्षा और उनके रोज़गार में सहायक सिद्ध होगी। यह मशीन किसी प्रिंटेड (मुद्रित) डॉक्यूमेंट (दस्तावेज) के कांटेक्ट (संपर्क करना) को स्कैनिंग (अवलोकन) करने और उसे स्पीच (भाषण) में बदलने के सिद्धांत पर कार्य करती है।
  • इस मशीन की सहायता से वर्तमान में केवल हिन्दी और अंग्रेजी भाषा के कंटेंट को ही पढ़ा जा सकता है, लेकिन इसे बाद में अन्य भारतीय और विदेशी भाषाओं के लिये भी कॉन्फिगर (समनुरूप बनाना) किया जा सकेगा। यह मशीन अनेक कॉलम (स्तंभ) के डॉक्यूमेंट्‌स (दस्तावेज) को एनालाइज़ करके उसे निर्बाध रूप से पढ़ने में सक्षम है। अत: कथन (स) सही है।
  • इसमें वायरलेस (ताररहित) संचार तकनीक जैसे ब्लुटूथ, वाई-फाई का प्रयोग किया गया है। वाई-फाई की सहायता से इसे इंटरनेट से भी जोड़ा जा सकता है। इसमें 32 जीबी इंटर्नल स्टोरेज की क्षमता भी उपलब्ध है, जिसमें स्कैन (बारीकी से जाँच) किये गए डाक्यूमेंट्‌स को बाद के प्रयोग के लिये स्टोर (संचय) किया जा सकता है। इसमें यू. एस. बी. कनेक्टिविटी (संयोजकता) की सुविधा भी उपलब्ध है। इसमें एक बैटरी (विद्युत कोष) का प्रयोग किया गया है जो रिचार्ज करने के बाद 3 घंटे तक चल सकती है। यह एक पोर्टेबल (उठाने योग्य) मशीन है। अत: कथन (द) भी सही है।
  • विश्व में अभी तक ऐसी पोर्टेबल मशीन कहीं भी उपलब्ध नहीं है, हालांकि कुछ बहुत भारी और महँगी मशीनें विदेशी भाषा के सर्पोट (समर्थन) के साथ उपलब्ध हैं।

2 बोरॉन नाइट्राइड नैनो टयूब्स के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ यह उच्च तापमान सहन करने में सक्षम है परंतु कार्बन नैनो टयूब की तुलना में यह अधिक तापमान सहन नही कर सकती।

  • बोरॉन नाइट्राइड बोरॉन और नाइट्रोजन का उष्मीय और रसायनिक प्रतिरोधी यौगिक है।
  • इसकी षटकोणीय संरचना ग्रेफाइट के समान है तथा यह बोरॉन नाइट्राइड अपरूपों में सर्वाधिक स्थिर और मुलायम है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा⟋से सही है⟋हैं?

अ) केवल 1 और 2

ब) केवल 2

स) केवल 2 और 3

द) 1,2 और 3

उत्तर: (स)

व्याख्या:

  • बोरॉन नाइट्राइड नैनो टयूब्स और कार्बन नैनो टयूब्स अब तक बनाए गए दो मजबूत तंतु हैं। आमतोर पर विमानों में मजबूती के लिए कार्बन नैनो टर्यूस का प्रयोग किया जाता है। वे स्टील (इस्पात) से अधिक मजबूत होती हैं और उनमें उष्मा को सहन करने की भी क्षमता होती है। कार्बन नैनो टयूब्स 4000 सेन्टीग्रेड से अधिक तापमान पर स्थिर अवस्था में नही रह पाती, जबकी बोरॉन नाइट्राइड नैनो टयूब्स 9000 सेन्टीग्रेड पर भी स्थिर अवस्था पर बनी रह सकती है। इसके अतिरिक्त यह कार्बन नैनो टयूब्स की तुलना में काफी हल्की भी है। अत: कथन 1 गलत है।
  • विदित हो कि हाल ही में नासा ने विश्व में मौजूद कुछ एसी सुविधाओं को खरीद लिया है जो गुणवत्ता युक्त बोरॉन नाइट्राइड नैनो टयूब का उत्पादन करने में सक्षम हैं। नासा और अमेरिका की बर्मिघम यूनिवर्सिटी (विश्वविद्यालय) के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में सूपर (शानदार) प्लेनों (विमानों) के निर्माण संबंधी बाधाओं का समाधान करने हेतु बोरॉन नाइट्राइड नैनो टयूब्स का प्रयोग किया था।
  • कुछ अन्य जानकारियाँ-
  • वास्तव में बोरॉन नाइट्राइड नैनो टयूब्स मे महीन तंतु है, जिन्हे अभी तक कार्बन नैनो टयूब में भी नही प्राप्त किया गया है।
  • ये उष्मा की सूचालक परंतु विद्युत का कुचालक होती हैंं।
  • इनका रंग सफेद होता है।
  • ये क्रीया शील होती है।
  • इसका कोई नकारात्मक प्रभाव नही पडता है। इन टयूब्स का निर्माण उच्च ताप और उच्च दाब पर किया जाता है जिसे दाबित वाष्प⟋कंडेंसर (संघनित्र) प्रक्रिया कहा जाता है
  • बोरॉन नाइट्राइड बोरॉन और नाइट्रोजन का उष्मीय और रसायनिक प्रतिरोधी यौगिक है। यह वकभिन्न क्रिस्टलीय अवस्थाओं में रहता है। इसकी षटकोणीय संरचना ग्रेफाईट के समान है तथा यह बोरॉन नाइट्राइड के अपररूपों में सर्वाधिक स्थिर और मुलायम है। यही कारण है कि इसका उपयोग स्नेहक तथा प्रसाधन सामग्री में एक अतिरिक्त उत्पादों के तौर पर किया जाता है। अत: कथन 2 और 3 सही है।
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3 जी. एम. काई के संदर्भ मे निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ इस काई को आनुवंशिक रूप से रूपांतरित करके तैयार किया गया है

  • इससे मलेरिया का इलाज किया जा सकता है।
  • इस काई से आर्टीमिसिनिन नामक औषधि को औद्यौगिक स्तर एवं कम लागत में तैयार किया जा सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा⟋से सही है⟋हैं?

अ) केवल 1 और 2

ब) केवल 2

स) केवल 2 और 3

द) 1,2 और 3

उत्तर: (द)

व्याख्या: उपर्युक्त सभी कथन सही हैं।

  • जी. एम. काई को आनुवंशिक रूप से रूपांतरित करके तैयार किया गया है।
  • इससे मलेरिया का इलाज किया जा सकता है। अब तक मलेरिया के उपचार के लिये आर्टिमिसिनिन नामक औषधि का प्रयोग किया जाता रहा है। आनुवंशिक रूप से रूपांतरित इस मॉस या काई का उपयोग करके बड़े पैमाने पर मलेरिया निवारक औषधि आर्टेमिसिनिन का उत्पादन किया जा सकता है।
  • नए शोधों से स्पष्ट हुआ है कि इसके माध्यम से आर्टेमिसिनिन नामक औषधि को औद्योगिक स्तर एवं कम लागत में तैयार किया जा सकता है।
  • उल्लेखनीय है कि कोई एक छोटा-सा पुष्प-रहित हरे रंग का पौधा होता है, जिसमें जड़ नहीं होती है। यह नमी वाले स्थानों में अधिक उगता है। इसकी सरल संरचना आनुवंशिक इंजीनियरिंग (अभियंता) दवाओं के लिये एक आदर्श स्थिति प्रदान करती है।
  • आर्टेमिसिनिन, आर्टेमिसिया एनआ नामक पौधे से प्राप्त किया जाने वाला पदार्थ है। आर्टेमिसिया एनआ का पौधा अल्प-अवधि के लिये गर्मी के मौसम में उगता हे। इसकी जटिल संरचना के कारण इससे औषधि तैयार करना कठिन है और इसका रासायनिक संश्लेषण आर्थिक दृष्टि से संभव नहीं है।

4 ‘बॉट’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ यह स्वचालित रूप से काम करने के लिये बनाया गया एक कंप्यूटर (परिकलक) प्रोग्राम (कार्यक्रम) है।

  • यह पीड़ितों के कंप्यूटर्स के साथ सामंजस्य स्थापित कर इनके महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील जानकारियों का अन्य दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों के लिये प्रयोग करता है।
  • भारत सरकार के ‘इलेक्ट्रॉनिक्स (विद्युतीय) एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ दव्ारा देश में साइबर सुरक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ‘साइबर सुरक्षा केन्द्र’ नामक ‘बॉटनेट सफाई एवं मैलवेयर विश्लेषण केन्द्र’ की स्थापना की गई है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा⟋से कथन सही है⟋हैं?

अ) केवल 1

ब) केवल 1 और 2

स) केवल 3

द) 1,2 और 3

उत्तर: (ब)

  • यह स्वचालित रूप से काम करने के लिये बनाया गया एक कंप्यूटर प्रोग्राम है। मुख्य रूप से इंटरनेट पर उपस्थित जानकारियों को इकट्‌ठा करने एवं दोहरी प्रकृति के कार्यों को करने के लिये उपयोग में लाया जाता है। अत: कथन 1 सही है।
  • यह एक सॉफ्टवेयर है, जो पीड़ितों के कंप्यूटर्स के साथ सामंजस्य स्थापित कर उनकी महत्वपूर्ण एवं संवदेनशील जानकारियों का अन्य दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों के लिये प्रयोग करता है। अत: कथन 2 सही है।
  • इस प्रकार की गतिविधियों को बॉट्‌स कमांड (आदेश) एंड (तथा) कंट्रोल (नियंत्रण) सरवर (सेवक) के दव्ारा निर्देशित किया जाता है तथा बॉटनेट botnet (परिकलक का विषाणु संक्रमण प्रणाली का एक हिस्सा बन जाना) या compromised (मध्यमार्ग) मशीनों (यंत्र) के एक नेटवर्क (जालतंत्र) के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है।
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  • उल्लेखनीय है कि भारत सरकार के ‘इलेक्ट्रॉनिक्स (विद्युतीय) एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ दव्ारा साइबर सुरक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ‘साइबर स्वच्छता केन्द्र’ नामक ‘बॉटनेट सफाई एवं मैलवेयर विश्लेषण केन्द्र’ की स्थापना की गई है, जो भारत सरकार की ‘डिजिटल (अंकीय) इंडिया (भारत) ’ पहल का एक अभिन्न हिस्सा है। अत: कथन 3 गलत है।
  • उल्लेखनीय है कि इसे ‘राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति’ के उद्देश्यों के अनुरूप स्थापित किया गया है, जिसमें देश में सुरक्षित साइबर इको (पारिस्थितिकी) सिस्टम (व्यवस्था) बनाने की परिकल्पना की गई है।
  • यह ‘साइबर स्वच्छता केन्द्र’ इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (आईएसपीएस) तथा उत्पाद⟋एंटीवायरस (विषाणुरोधी) कंपनियों (संघों) के निकट समन्वय एवं सहयोग से कार्य करता है। इसे ‘सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000’ की धारा 70-बी के अंतर्गत ‘भारतीय कंप्यूटर (परिकलक) इमरजेंसी (आपातकालीन) टीम (दल) ’ (सीईआरटी-इन) दव्ारा संचालित किया जा रहा है।

5 चंद्रयान-2 मिशन (दूतमंडल) ′ के संदर्भ में नीचे दिये गए कथनों पर विचार कीजिये:

ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ च्द्रांयान-2 मिशन ′ पूर्णरूप से एक स्वदेशी मिशन है।

  • इसे जी. एस. एल. वी. -एम. के. 11 दव्ारा पृथ्वी के पार्किंग ऑर्बिट (कक्ष) ईपीओ में लॉन्च (शुरू) करने की योजना बनाई गई है।
  • इसमें एक ऑर्बिटर (कृत्रिम उपग्रह) तथा लैंडर (भूमि) के साथ-साथ रोवर (घुमंतु) भी समाकृत किया गया है, जिसके माध्यम से चंद्रमा की सतह का मौलिक तथा खानिजीय अध्ययन किया जाएगा।

उपय्रुक्त कथनों में से कौन सा⟋से कथन सही है⟋हैं?

अ) केवल 1

ब) केवल 1 और 2

स) केवल 2 और 3

द) 1,2 और 3

उत्तर: (द)

व्याख्या:

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  • यह चंद्रमा पर भेजा जाने वाला भारत का दूसरा तथा पिछले चंद्रयान-1 मिशन का एक उन्नत संस्करण है।
  • इसमें एक ऑर्बिटर (कृत्रिम उपग्रह) , लैंडर (भूमि) और रोवर कॉन्फिगरेशन (विन्यास) शामिल है। ऑर्बिटर के साथ-साथ वैज्ञानिक पेलोड्‌स (अंतरिक्ष उपकरण) चंद्रमा के चारों ओर परिक्रमा करेंगे। लैंडर चंद्रमा के एक निर्दिष्ट साइट पर उतरेगा तथा रोवर को तैनात करेगा।
  • ऑर्बिटर के वैज्ञानिक पेलोड्‌स, लैंडर और रोवर चंद्रमा की सतह का मौलिक अध्ययन करेंगे। साथ-ही-साथ, वहाँ पाए जाने वाले खनिजों का भी अध्ययन किया जाएगा।
  • इस यान को जी. एस. एल. वी. एम. के. -11 दव्ारा पृथ्वी के पार्किंग ऑर्बिट में एक संयुक्त स्टैक (ढेर) के रूप में भेजे जाने की योजना है।
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010 के दौरान भारत और रूस के बीच यह सहमति बनी थी कि रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ‘Roscosmos’ चंद्र लैंडर के लिये ज़िम्मेदार होगी तथा इसरो ऑर्बिटर और रोवर के साथ-साथ जी. एस. एल. वी. दव्ारा इस यान की लॉन्चिंग (शुभारंभ) के लिये तैयार होगा, किन्तु बाद में इस मिशन के कार्यक्रम संरेखण में बदलाव के कारण यह निर्णय लिया गया कि चंद्र लैंडर विकास भी इसरो के दव्ारा ही किया जाएगा। इस प्रकार चंद्रयान-2 पूरी तरह से एक भारतीय मिशन बन गया।

6 ‘जेनेटिक (आनुवांशिक) इंजीनियरिंग (अभियंता) अप्रूवल (अनुमोदन) कमेटी (समिति) ’ (जी. ई. ए. सी.) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ इस समिति का गठन ‘वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972’ के अंतर्गत किया गया है।

  • इसका उद्देश्य जीन प्रौद्योगिकी तथा सूक्ष्मजीवों के उपयोग से संबंधित अनुप्रयोगों के माध्यम से पर्यावरण, प्रकृति एवं स्वास्थ्य की रक्षा करना है।
  • किसी भी जैव-सवंर्धित फसल के व्यावसायिक प्रयोग को अंतिम रूप से स्वीकृति इसी समिति दव्ारा प्रदान की जाती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा⟋से कथन सही है⟋हैं?

अ) केवल 1 ओर 2

ब) केवल 2

स) केवल 1 और 3

द) 1,2 और 3

उत्तर: (ब)

व्याख्या:

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  • यह ′ पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ′ के अंतर्गत कार्यरत एक शीर्ष निकाय है, जिसका गठन ′ पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 ′ में वर्णित ′ खतरनाक सूक्ष्मजीवों के निर्माण, प्रयापेे, आयात-निर्यात और भंडारण⟋आनुवंशिक रूप से इंजीनियर्ड (अभियंता) जीवों या कोशिकाओं के लिये नियम, 1989 ′ के तहत किया गया है।
  • 1989 के इस नियम के तहत नियमों के विभिन्न पहलुओं के संचालन हेतु ‘सक्षम अधिकारियों’ को परिभाषित किया गया है। वर्तमान में इस नियम के तहत निम्नलिखित छ: समितियाँ गठित की गई हैं, जिनमें से जी. ई. ए. सी. भी एक है।
  • इन समितियों के माध्यम से भारत में जैव-सुरक्षा किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है, इसे नीचे दिए गए चित्र के माध्यम से समझा जा सकता है-
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ध्यातव्य है कि किसी भी जैव-सवंर्धित फसल के व्यावसायिक प्रयोग हेतु अंतिम स्वीकृति ‘पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ दव्ारा प्रदान की जाती है। जी. ई. ए. सी. का कार्य इस संबंध में अपनी अनुशंसाओं को मंत्रालय के समक्ष प्रस्तुत करना है।

7 हाल ही में वैज्ञानिकों दव्ारा ढूंढे गए नए पदार्थ ‘बोरॉन नाइट्राइड नैनो-टयूब’ -बीएनएनटी के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा⟋से कथन सत्य है⟋हैं?

ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ बी. एन. एन. टी. अत्यंत मज़बूत तथा उच्च तापमान एवं तनाव को सहन करने में सक्षम है।

  • ‘सुपर-प्लेन (शानदार विमान) ’ के निर्माण में यह पदार्थ कार्बन नैनो-टयूब्स से भी बेहतर साबित हो सकता है।
  • यह ऊष्मा की सुचालक तथा विद्युत की कुचालक होती हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा⟋से सही है⟋हैं?

अ) केवल 1 और 2

ब) केवल 2

स) केवल 1 और 3

द) 1,2 और 3

उत्तर: (द)

व्याख्या:

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  • हाल ही में वैज्ञानिकों दव्ारा बी. एन. एन. टी. नामक पदार्थ की पहचान की गई है, जो अत्यंत ही हल्का, मज़बूत तथा उच्च तापमान एवं तनाव को सहन करने में सक्षम है।
  • यह ऊष्मा की सुचालक तथा विद्युत की कुचालक होता है। यह सफेद रंग की एक क्रियाशील पदार्थ है, जिसका कोई नकरात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है। इन टयूब्स का निर्माण ′ उच्च ताप और उच्च दाब ′ पर किया जाता है, जिसे ′ दाबित वाष्प कंडेंसर (संघनित्र) -पीवीसी प्रक्रिया कहा जाता है।

बोरॉन नाइट्राइड:

  • उत्कृष्ट उष्मीय और रासायनिक स्थिरता के कारण ही बोरॉन नाइट्राइड सिरेमिक्स का उपयोग उच्च तापीय उपकरण के निर्माण के साथ-साथ नैनो टेक्नोलॉजी (तकनीक) में किया जाता है। बोरॉन नाइट्राइड बोरॉन और नाइट्रोजन का ऊष्मीय और रासायनिक प्रतिरोधी यौगिक है, जो विभिन्न क्रिस्टलीय अवस्थाओं में रहता हैं।
  • इसकी षटकोणीय संरचना ग्रेफाइट के समान होती है तथा यह बोरॉन नाइट्राइड के अपरूपों में सर्वाधिक स्थिर और मुलायम होता है। यही वजह है कि इसका उपयोग स्नेहक तथा प्रसाधन सामग्री के निर्माण में एक अतिरिक्त उत्पाद के तौर पर किया जाता है।
  • वास्तव में ‘बोरॉन नाइट्राइड नैनो-टयूब्स’ ऐसे महीन तंतु हैं, जिन्हें अब तक कार्बन नैनोटयूब से भी प्राप्त नहीं किया जा सका था।
  • आमतौर पर विमानों में मज़बूती के लिये कार्बन नैनो-टयूब्स का प्रयोग किया जाता है, जो स्टील (इस्पात) से अधिक मज़बूत होती हैं तथा जिनमें ऊष्मा सहन करने की क्षमता भी स्टील से अधिक होती है।
  • ‘कार्बन नैनो-टयूब्स’ 4000 c से अधिक तापमान पर स्थिर अवस्था में नहीं रह पाती हैं, जबकि ‘बोरॉन नाइट्राइड नैनो-टयूब्स’ 9000 c पर भी स्थिर अवस्था में बनी रह सकती हैं।
  • इसके अलावा यह कार्बन नैनो-टयूब्स की तुलना में काफी हल्की भी होती है। इन सभी विशेषताओं की वजह से बी. एन. एन. टी. का प्रयोग सुपर (शानदार) -प्लेन (विमान) के निर्माण में किया जा सकता है।

8 हाल ही में CSIR-NIIST (national (राष्ट्रीय) institute (संस्थान) for (के लिये) interdisciplinary (अत: विषय⟋बहु विषयक) science (विज्ञान) and (और) technology (तकनीक) ) के वैज्ञानिकों दव्ारा एक कार्बन फ़िल्टर (निस्पादक) विकसित किया गया है, इसके संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ इसे रात में फोटोग्राफी (आलोक चित्र विद्या) करने के लिये उपयोग में आने वाले लेंसो (काचों) में लगाया जाता है।

  • इसके दव्ारा काले रंग के कपड़ों पर लगे खून के धब्बों को पहचाना जा सकता है।
  • इससे केवल नियर (पास में) इन्फ्रारेड (अवरक्त) (nir) प्रकाश की गुज़र सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा⟋से सही है⟋हैं?

अ) केवल 1 और 2

ब) केवल 2

स) केवल 3

द) 1,2 और 3

उत्तर: (द)

व्याख्या: उपर्युक्त सभी कथन सही हैं।

  • CSIR-NIIST (national institute for interdisciplinary science and technology) के वैज्ञानिकों दव्ारा एक कार्बन फ़िल्टर विकसित किया गया है।
  • इसे रात में फोटोग्राफी करने के लिये उपयोग में आने वाले लेंसो में लगाया जाता है।
  • इसके दव्ारा काले रंग के कपड़ों पर लगे खून के धब्बों को पहचाना जा सकता है।
  • इससे केवल नियर इन्फ्रारेड (nir) प्रकाश की गुज़र सकता है। उल्लेखनीय है कि इस फ़िल्टर का उपयोग दस्तावेजों में अंकित छिपे सिक्योरिटी (सुरक्षा) कोड्‌स (कूट) का पता लगाने के लिये भी किया जा सकता है।

9 ‘आई. ई. डी.’ का सही अर्थ क्या है?

अ) इम्प्रूव्ड (विकास योग्य) एक्सप्लोसिव (विस्फोटक) डिवाइस (उपकरण)

ब) इम्प्रोवाइज्ड़ (तात्कालिक) एक्सप्लोसिव (विस्फोटक) डिटरेंट (रक्षा का)

स) इम्प्रोवाइज्ड़ (तात्कालिक) एक्सप्लोसिव (विस्फोटक) डिवाइस (उपकरण)

द) इम्प्रूव्ड (बेहतर) एक्सप्लोसिव (विस्फोटक) डिटरेंट (निवारक)

उत्तर: (स)

व्याख्या: ‘इम्प्रोवाइज्ड़ एक्सप्लोसिव डिवाइस’

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आई. ई. डी का अर्थ है- ‘इम्प्रोवाइज्ड़ एक्सप्लोसिव डिवाइस’ । यह एक प्रकार का बम है, जिसका निर्माण एवं उपयोग पारंपरिक सैन्य कार्रवाईयों से भिन्न रूप में किया जाता है। सामान्य रूप में इसे ‘रोडसाइड (सड़क किनारे) बम’ के रूप में भी जाना जाता है।

10. गैर-प्रकाशरसायनिक शमन ′ क्या है?

अ) यह एक गैर-प्रकाशरसायनिक प्रक्रिया है, जो ओज़ोन के निर्माण को बाधित करती है।

ब) यह वह गैर-प्रकाशरसायनिक प्रक्रिया है, जो एक्स-किरणों का अवशोषण कर लेती है।

स) यह एक प्रकार का सुरक्षा तंत्र है, जिसका प्रयोग पौधों के दव्ारा अतिरिक्त प्रकाश ऊर्जा को नष्ट करने के लिये किया जाता है।

द) यह एक गैर-प्रकाशरसायनिक प्रक्रिया है, जिसका प्रयोग बायोरीमिडियेशन (जैव मध्यस्थता) तकनीक के रूप में किया जाता है।

उत्तर: (स)

व्याख्या: गैर-प्रकाशरसायनिक शमन

(Non-photochemical Quenching-NPQ)

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यह पौधों के दव्ारा अपनी सुरक्षा हेतु प्रयोग की जाने वाली एक प्रक्रिया है, जिसमें इनके दव्ारा अतिरिक्त प्रकाश ऊर्जा को नष्ट करने का कार्य किया जाता है। पौधे साधारणतया प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया में आवश्यकता से अधिक सौर ऊर्जा को अवशोषित कर लेते हैं, जिन्हें वे संसाधित नहीं कर पाते। ऐसे में गैर-प्रकाशरसायनिक शमन के दव्ारा यह अतिरिक्त ऊर्जा ऊष्मा के रूप में विमुक्त कर दी जाती है। वैज्ञानिकों दव्ारा हाल ही में विभिन्न पौधे की एन. पी. क्यू. दर की संगणना कर प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को नियंत्रित करने का सफल प्रयास किया गया। इससे भविष्य में बदलते पर्यावरणीय दशाओं के अनुरूप अनाजों के उत्पादन में आशातीत वृद्धि की जा सकेगी तथा खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सकेगा।