Parliament, Representation in Lok Sabha and Rajya Sabha, Parliamentary Committee

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संसद (Parliament)

  • अनुच्छेद 79 के अनुसार सदन राष्ट्रपति, राज्यसभा एवं लोकसभा से मिलकर बनता है।
  • संसद के उच्च सदन को राज्यसभा एवं निम्न सदन को लोकसभा कहते हैं।
  • राज्यसभा-इसका गठन 3 अप्रैल 1952 को किया गया एवं इसकी प्रथम बैठक 13 मई, 1952 को हुई। राज्यसभा मंत्रिपरिषद के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है।
  • अनुच्छेद 80 के अनुसार राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 है, जिसमें 233 का चुनाव राज्यों से और 12 राष्ट्रपति दव्ारा मनोनीत किये जाते हैं।
  • इन सदस्यों का चुनाव एकल संक्रमणीय मत तथा आनुपातिक प्रतिनिधित्व की पद्धति के अनुसार संघ के विभिन्न राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों दव्ारा किया जाता है।
  • राज्यसभा के सदस्य के लिए जरूरी है कि उसका नाम उस राज्य के किसी निर्वाचन क्षेत्र की सूची से हो, जिस राज्य से वह राज्यसभा का चुनाव लड़ना चाहता है, किन्तु नवीनतम संशोधन के दव्ारा यह अनिवार्यता समाप्त कर दी गयी है।
  • राज्यसभा एक स्थायी सदन है, जो कभी भंग नहीं होता। इनके सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष है, किन्तु इसके एक तिहाई सदस्य प्रति दो वर्ष बाद सेवानिवृत्ति हो जाते हैं।
  • राज्यसभा की सदस्यता के लिए न्यूनतम उम्र सीमा 30 वर्ष है।
  • भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है।
  • राष्ट्रपति वर्ष में कम से कम दो बार राज्यसभा का अधिवेशन आहुत करता है। राज्यसभा की अंतिम बैठक और अगले सत्र की प्रथम बैठक में छ: माह से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए।
  • राज्यसभा धन एवं वित्त विधेयक को अस्वीकार नहीं कर सकती है और न ही संशोधन कर सकती है। सिर्फ सुझाव दे सकती है। सुझाव मानना या न मानना लोकसभा पर निर्भर करता है। धन विधेयक को राज्यसभा में भेजने के बाद 14 दिन के अंदर न लौटाने की स्थिति में भी पारित माना जाता है।
  • अनुच्छेद 249 के अनुसार केवल राज्यसभा सदन में उपस्थित एवं मतदान करने वाले कुल सदस्य के दो तिहाई मत दव्ारा राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रीय हित का विषय घोषित कर सकता है। राज्यसभा अब तक इस अधिकार का प्रयोग 1952 एवं 1986 में दो बार किया है।
  • अनुच्छेद 312 के अनुसार राज्यसभा उपस्थित या मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत दव्ारा अखिल भारतीय सेवा सृजन कर सकता है।

Representation in Lok Sabha and Rajya Sabha

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लोकसभा एवं राज्यसभा में प्रतिनिधित्व
राज्यलोकसभाराज्यसभाराज्यलोकसभाराज्यसभा
आंध्र प्रदेश2511हरियाणा105
असम147नागालैंड11
बिहार4016मेघालय21
गुजरात2611मणिपुर21
जम्मू-कश्मीर64त्रिपुरा21
केरल209सिक्किम11
मध्य प्रदेश2911अरुणाचल प्रदेश21
महाराष्ट्र4819गेवा21
कर्नाटक2812मिजोरम11
ओडिसा2110छत्तीसगढ़115
प्जाांब137उत्तराखंड53
राजस्थान2510झारखंड146
तमिलनाडु3918तेलंगाना177
उत्तर प्रदेश8031स्घींय क्षेत्र--
हिमाचल43दिल्ली73
पश्चिम बंगाल4216पांडिचेरी11
कुल543233
  • ऐसे राज्य जिनका राज्यसभा में प्रतिनिधित्व नहीं है- चंडीगढ़ अंडमान-निकोबार, दमन व दीव, दादरा-नगर हवेली एवं लक्षदव्ीप है।
  • लोकसभा-प्रथम लोकसभा का गठन 17 अप्रैल 1952 को हुआ था और इसकी पहली बैठक 13 मई 1952 को हुई थी।
  • मूल संविधान में लोकसभा की सदस्य संख्या 500 निर्धारित की गयी थी, परन्तु 31वें संशोधन (1974) दव्ारा इसकी संख्या बढ़कर 547 और गोवा -दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम 1987 दव्ारा इसकी संख्या बढ़ाकर 552 कर दी गयी। इनमें 530 का निर्वाचन राज्य क्षेत्र से, 20 का निर्वाचन संघ राज्य क्षेत्र से और दो का राष्ट्रपति दव्ारा मनोनयन होता था। वर्तमान में लोकसभा की सदस्य संख्या 545 है। इनमें 530 सदस्यों का निर्वाचन राज्य क्षेत्रों से, 13 सदस्यों का निर्वाचन संघ राज्य क्षेत्र से और 2 सदस्यों का मनोनयन राष्ट्रपति दव्ारा होता है।
  • 84वां संविधान संशोधन अधिनियम 2001 के अनुसार 2026 तक लोकसभा एवं विधान सभाओं की सीटों की संख्या यथावत रहेगी।
  • लोकसभा सदस्यों का चुनाव वयस्क (18 वर्ष, 61वें संविधान संशोधन) मतदाता दव्ारा गुप्त विधि से होता है।
  • लोकसभा एवं विधान सभाओं में सीटों के आबंटन एवं क्षेत्रों की सीमा के निर्धारण के लिए परिसीमन आयोग का गठन किया जा चुका है। पहला 1952, दूसरा 1962, तीसरा 1973 एवं चौथा 2002 (अध्यक्ष न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह) ।
  • लोकसभा में सामान्य⟋आम निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या 410 अनुसूचित जाति हेतु आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या 85 और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित क्षेत्रों की संख्या 48 है।
  • चौथा परिसीमन 2001 की जनगणना के आधार पर किया गया है। जिसकी मंजूरी केन्द्रीय मंत्रिमंडल दव्ारा 10 जनवरी 2008 को मिली।
  • संविधान में परिसीमन आयोग के संबंध में कोई स्पष्ट निर्देश नहीं दिया गया है। अनुच्छेद 82 में प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर लोकसभा एवं राज्य के निर्वाचन क्षेत्रों के विभाजन एवं पुन: समायोजन का कार्य संसद दव्ारा विहित अधिकारी दव्ारा किये जाने का प्रावधान है। किन्तु तृतीय परिसीमन के बाद यह अनियिमत हो गया, कारण, 42वें संविधान संशोधन दव्ारा अनुच्छेद 82 में संशोधन कर वर्ष 2000 तक इस पर रोक लगा दिया गया।
  • परिसीमन आयोग में देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त सहित सभी राज्य व केन्द्रशासित प्रदेशों के निर्वाचन आयुक्त इस आयोग के सदस्य हैं।
  • ऐसे राज्य जिनका परिसीमन नहीं हो सका-असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड एवं झारखंड। पूर्वोत्तर के चारों राज्यों में स्थानीय विरोध एवं अदालतों के स्थगन आदेश के कारण परिसीमन नहीं हो सका, जबकि झारखंड के सरकारी नीति के विपरीत आरक्षित सीटें कम होने के कारण यह परिसीमन पूरा नहीं हो सकता।
  • लोकसभा का अधिकतम कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, किन्तु प्रधानमंत्री की सलाह से राष्ट्रपति कार्यकाल के मध्य में भी संसद भंग कर सकता है। ऐसी घटना अब तक आठ बार हो चुकी है- 1970, 1977, 1979, 1984, 1989,1991, 1997 तथा अप्रैल 1999।
  • आपातकाल की घोषणा लागू होने पर संसद विधि दव्ारा लोकसभा के कार्यकाल दो बार एक-एक वर्ष के लिए बढ़ा सकता है, किन्तु आपातकाल की समाप्ति के बाद लोकसभा का कार्यकाल 6 माह से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता।
  • कैबिनेट मंत्रियों में सबसे बड़ा कार्यकाल जगजीवन राम (32 वर्ष) का रहा है।
  • लोकसभा एवं राज्यसभा की गणपूर्ति (कोरम) कुल सदस्य संख्या का 10वां भाग होती है।

लोकसभा के सदस्यों के लिए अनिवार्य योग्यताएँ:-

  • वह भारत का नागरिक हो और 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  • वह पागल या दिवालिया घोषित न हो।
  • वह भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन कोई लाभ का पद न धारण करता हो।

लोकसभा के पदाधिकारी

  • अस्थायी (प्रोटेम) अध्यक्ष-आम चुनाव के पश्चात्‌ जब लोकसभा पहली बार बैठक के लिए आमंत्रित की जाती है तो राष्ट्रपति लोकसभा के किसी वरिष्ठतम सदस्य को अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त करता है, जिससे कि नये सदस्य शपथ आदि ले सकें और अपना अध्यक्ष चुन सकें।
  • अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा स्वयं ही अपने सदस्यों में से एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष का निर्वाचन करती है, जिसका कार्यकाल लोकसभा के जीवन पर्यन्त होता है। किन्तु इससे पूर्व भी वे निम्न विधि दव्ारा पद से हट सकते हैं-
    • अध्यक्ष, उपाध्यक्ष को और उपाध्यक्ष, अध्यक्ष को त्याग-पत्र देकर।
    • लोकसभा के तत्कालीन उपस्थित सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प दव्ारा लोकसभा के अध्यक्ष को हटाया जा सकता है। ऐसे संकल्प प्रस्तावित करने के आशय की सूचना कम से कम उन्हें 14 दिन पूर्व देनी होगी। यह प्रस्ताव पहली बार 18 दिसंबर 1954 को लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलंकर के विरुद्ध लाया गया था, किन्तु वह पारित नहीं हो सकता था।
  • लोकसभा का अध्यक्ष, अध्यक्ष के रूप में शपथ नहीं लेता, बल्कि सामानय सदस्य के रूप में शपथ लेता है।
  • लोकसभा के भंग होने की स्थिति में अध्यक्ष अपना पद अगली लोकसभा की पहली बैठक होने तक रिक्त नहीं करता।
  • लोकसभा की अध्यक्षता अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष और उपाध्यक्ष की अनुपस्थिति में राष्ट्रपति दव्ारा 6 वरिष्ठ सदस्यों के पैनल में से कोई एक व्यक्ति करता है।
  • मीरा कुमार पहली महिला लोकसभा अध्यक्ष हैं।

लोकसभा अध्यक्ष का कार्य एवं शक्तियाँ:-

  • लोकसभा के भीतर व्यवस्था बनाये रखने की प्रकिया के नियमों का निर्वहन करने की अंतिम शक्ति अध्यक्ष को है।
  • उसे विभिन्न विधेयक व प्रस्ताव पर मतदान करवाना व परिणाम घोषित करना तथा मतों की समानता की स्थिति में निर्णायक मत देने का अधिकार है।
  • लोकसभा की बैठक स्थगित या निलंबित करने का अधिकार अध्यक्ष को है।
  • दल-बदल विरोधी अधिनियम पालन करवाने का दायित्व भी उसी पर होता है।
  • वह सदन के सदस्यों के अधिकारों का संरक्षक होता है।
  • सदन के सदस्यों के प्रश्नों को स्वीकार करना, उसे नियमित करना व नियम के विरुद्ध घोषित करना अध्यक्ष का कार्य है।
  • कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, इस पर अध्यक्ष का विनिश्चय अंतिम होता है। इसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • लोकसभा एवं राष्ट्रपति के बीच संपर्क सूत्र के रूप में कार्य करता है।
  • वह विदेश जाने वाले संसदीय शिष्टमंडल के लिए सदस्यों का मनोनयन करता है।
  • लोकसभा अध्यक्ष का वेतन संचित निधि से मिलता है।
  • लोकसभा में विपक्ष के नेता को कैबिनेट स्तर के मंत्री के समान सभी सुविधाएँ प्राप्त होती हैं।
  • लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष गणेश वासुदेव माक्लंकर तथा प्रथम उपाध्यक्ष अनंत शयनम अयय्‌ंगर थे।
  • किसी संसद सदस्य की योग्यता अथवा अयोग्यता से संबंधित प्रश्न का अंतिम विनिश्चय चुनाव आयोग की सलाह से राष्ट्रपति करते हैं।
  • संसद की कार्यवाही अंग्रेजी या हिन्दी में होगी लेकिन लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति किसी सदस्य को मातृभाषा में बोलने की अनुमति दे सकते हैं।
  • यदि कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना 60 दिनों की अवधि से अधिक समय के लिए लगातार सदन से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसकी सदस्यता समाप्त कर सकता है।
  • स्सांद सदस्यों को संसद की बैठक के पूर्व या बाद 40 दिन की अवधि के दौरान गिरफ्तारी से मुक्ति प्रदान की गयी हैं। गिरफ्तारी से यह मुक्ति केवल सिविल मामलों में है। आपराधिक मामलों या निवारक निरोध विधि के अधीन गिरफ्तार से छूट नहीं है।
  • 25 नंवबर 2001 को सर्वदलीय राष्ट्रीय सम्मेलन में संसद एवं विधानसभाओं की मर्यादा बनाये रखने तथा इन सदनों में अनुशासनहीनता को रोकने के उद्देश्य से एक आचार सहिंता का निर्माण किया गया।
  • स्याुंक्त अधिवेशन-अनुच्छेद 108 में संसद के संयुक्त अधिवेशन की व्यवस्था है। इस अधिवेशन की अध्यक्षता लोकसभा के अध्यक्ष करते हैं। संयुक्त अधिवेशन राष्ट्रपति दव्ारा निम्न परिस्थितियों में बुलाया जा सकता है-
    • विधेयक एक सदन से पारित होने के बाद यदि दूसरा सदन अस्वीकार कर दे।
    • विधेयक पर किए जाने वाले संशोधन के बारे में दोनों सदन अंतिम रूप से असहमत हों।
    • एक सदन से पारित विधेयक को यदि दूसरा सदन 6 माह से अधिक दिनों तक रोक ले।
  • धन विधेयक और संविधान संशोधन विधेयक पर संयुक्त अधिवेशन नहीं बुलाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अन्य विधेयक पर गतिरोध उत्पन्न होने की स्थिति में संयुक्त अधिवेशन बुलाया जा सकता है।
  • अब तक तीन बार संयुक्त अधिवेश्यान बुलाया गया है ये हैं- दहेज प्रतिबंध विधेयक 1959, बैंकिंग सेवा आयोग 1977 तथा आतंकवाद निवारक अध्यादेश (पोटा) 2002।

स्सांदीय समितियाँ (Parliamentary committee)

  • संसद के कार्यों में विविधता तो हैं, साथ ही उसके पास काम की अधिकता भी रहती है। चूँकि उसके पास समय बहुत सीमित होता है, इसलिए उसके समक्ष प्रस्तुत सभी विधायी या अन्य मामलों पर गहन विचार नहीं हो सकता है। अत: इसका बहुत-सा कार्य समितियों दव्ारा किया जाता है। संसद के दोनों सदनों की समितियों की संरचना कुछ अपवादों को छोड़कर एक जैसी होती है। इन समितियों में नियुक्ति, कार्यकाल, कार्य एवं कार्य संचालन की प्रक्रिया कुल मिलाकर करीब एक जैसी ही है और यह संविधान के अनुच्छेद 118 (1) के अंतर्गत दोनों सदनों दव्ारा निर्मित नियमों के तहत अधिनियमित होती है। सामान्यत: ये समितियाँ दो प्रकार की होती है-स्थायी और तदर्थ समितियाँ। स्थायी समितियाँ प्रतिवर्ष या समय-समय पर निर्वाचित या नियुक्त की जाती है और इनका कार्य कमोबेश निरंतर चलता रहता है। तदर्थ समितियों की नियुक्ति जरूरत पड़ने पर की जाती है तथा अपना काम पूरा कर लेने और अपनी रिपोर्ट पेश कर देने के बाद वे समाप्त हो जाती है।
  • स्थायी समितियाँ-लोकसभा की स्थायी समितियों में तीन वित्तीय यानी लोक लेखा समिति, प्राक्कलन समिति तथा सरकारी उपक्रम समिति को विशिष्ट स्थान है और ये सरकारी खर्चे और निष्पादन पर लगातार नज़र रखती हैं। लोक लेखा समिति तथा सरकारी उपक्रम समिति में राज्यसभा के सदस्य भी होते हैं, लेकिन प्राक्कलन समिति के सभी सदस्य लोकसभा से होते हैं।
  • प्राक्कलन समिति-यह बताती है कि प्राक्कलनों में निहित नीति के अनुरूप क्या मितव्यता बरती जा सकती है तथा संगठन, कार्यकुशलता और प्रशासन में क्या-क्या सुधार किए जा सकते हैं। यह इस बात की भी जांच करती है कि धन प्राक्कलनों में निहित नीति के अनुरूप ही व्यय किया गया है या नहीं। समिति इस बारे में भी सुझाव देती है कि प्राक्कलन को संसद में किसी रूप में पेश किया जाए। लोकलेखा समिति भारत सरकार के विनियोग तथा वित्त लेखा और लेखा नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट की जांच करती है यह सुनिश्चित करती है कि सरकारी धन संसद के निर्णयों के अनुरूप ही खर्च हो। यह अपव्यय, हानि और निरर्थक व्यय के मामलों की ओर ध्यान दिलाती है। सरकारी उपक्रम समिति नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक की, यदि कोई रिपोर्ट हो, तो उसकी जांच करती है। वह इस बात की भी जांच करती है कि ये सरकारी उपक्रम कुशलतापूर्वक चलाए जा रहे हैं या नहीं तथा इनका प्रबंध ठोस व्यापारिक सिद्धांतों और विवेकपूर्ण वाणिज्यिक प्रक्रियाओं के अनुसार किया जा रहा है या नहीं।
  • इन तीन वित्तीय समितियों के अलावा, लोकसभा की नियमों के बारे में समिति ने विभागों से संबंधित 17 स्थायी समितियाँ गठित करने की सिफारिश की थी। इसके अनुसार 8 अप्रैल, 1993 को इन 17 समितियों को गठन किया गया। जुलाई 2004 में नियमों में संशोधन किया गया, ताकि ऐसी ही सात और समितियाँ गठित की जा सकें। इस प्रकार से इन समितियों की संख्या 24 हो गई हैं।

इन समितियों के निम्नलिखित कार्य हैं:-

  • भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों⟋विभागों के अनुदानों की मांग पर विचार करना और उसके बारे में सदन को सूचित करना।
  • लोकसभा के अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति दव्ारा समिति के पास भेजे गए ऐसे विधेयकों की जांच पड़ताल करना और जैसा भी मामला हो, उसके बारे में रिपोर्ट तैयार करना।
  • मंत्रालयों और विभागों की वार्षिक रिपोर्टों पर विचार करना तथा उसकी रिपोर्ट तैयार करना।
  • सदन में प्रस्तुत नीति संबंधी दस्तावेज, यदि लोकसभा के अध्यक्ष राज्यसभा दव्ारा समिति के पास भेजे गए हैं, उन पर विचार करना और जैसा भी हो, उसके बारे में रिपोर्ट तैयार करना।

प्रत्येक सदन में अन्य स्थायी समितियाँ, उनके कार्य के अनुसार इस प्रकार विभाजित हैं-

जांच समितियाँ-

  • याचिका समिति: विधेयकों और जनहित संबंधी मामलों पर प्रस्तुत याचिकाओं की जांच करती है और केन्द्रीय विषयों पर प्राप्त प्रतिवेदनों पर विचार करती है।
  • विशेषाधिकार समिति-सदन या अध्यक्ष⟋सभापति दव्ारा भेजे गए विशेषाधिकार के किसी मामले की जांच करती है।

समीक्षा समितियाँ-

  • सरकारी आश्वासनों से संबंधी समिति: मंत्रियों दव्ारा सदन में लिए गए आश्वासनों, वादों एंव संकल्पों पर उनके कार्यान्वित होने तक नजर रखती है;
  • अधीनस्थ विधि निर्माण समिति: इस बात की जांच करती है कि क्या संविधान दव्ारा प्रदत्त विनियमों, नियमों, उप-नियमों तथा प्रदत्त शक्तियों का प्राधिकारियों दव्ारा उचित उपयोग किया जा रहा है
  • पटल पर रखे गए पत्रों संबंधी: वैधानिक अधिसूचनाओं और आदेशों के अलावा, जो कि अधीनस्थ विधान संबंधी के कार्य क्षेत्र में आते हैं, मंत्रियों दव्ारा सदन के पटल पर रखे गए सभी कागजातों की जांच करती है और देखती है कि संविधान, अधिनियम, नियम या विनियम के अंतर्गत कागजात प्रस्तुत करते हुए उनकी व्यवस्थाओं का पालन हुआ है या नहीं।

सदन के दैनिक कार्य से संबंधित समितियाँ-

  • कार्य मंत्रणा समिति: सदन के पेश किए जाने वाले सरकारी एवं अन्य कार्य के लिए समय- निर्धारण की सिफारिश करती है
  • गैर सरकार सदस्यों के विधेयकों तथा प्रस्तावों संबंधित लोकसभा की समिति: निजी सदस्यों दव्ारा पेश गैर सरकारी विधेयकों का वर्गीकरण एवं उनके लिए समय का निर्धारण करती है, निजी सदस्यों दव्ारा पेश प्रस्तावों पर बहस करने के लिए समय का निर्धारण करती है और लोकसभा में निजी सदस्यों दव्ारा पेश किए जाने से पूर्व संविधान संशोधन विधेयकों की जांच करती है। राज्यसभा में इस तरह की समिति नही होती। राज्यसभा की कार्यमंत्रणा समिति की गैर सरकारी विधेयकों एवं प्रस्तावों के चरण या चरणों में बहस के लिए समय के निर्धारण की सिफारिश करती है।
  • नियम समिति: सदन में कार्यवधि और कार्यवाही के संचालन से संबंधित मामलों पर विचार करती है और नियमों में संशोधन या संयोजन की सिफाारिश करती है।

Committee of parliament

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स्सांद की समितियांँ
समितिकुल सदस्य संख्यालोकसभा सेराज्य सभा सेकार्य
लोक लेखा समिति22157विभिन्न मंत्रालयों के व्यय और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन पर विचार-विमर्श करना।
प्राक्कलन समिति3030-सरकार को वित्तीय नीतियों के संबंध में सुझाव देना है।
सार्वजनिक उपक्रम समिति15105सीएजी के प्रतिवेदनों एवं सार्वजनिक उपक्रमों के लेखाकार प्रतिवेदनों की समीक्षा और संवीक्षा करना है।
विशेषाधिकार समिति15105स्सांद के किसी सदन या अध्यक्ष दव्ारा विशेषाधिकार उल्लंघन से संबंधित प्रेषित मामलों का परीक्षण करना है।
प्रवर समिति-3030विधेयकों की समीक्षा करना।
संयुक्त प्रवर समिति453015सरकारी विधेयकों का समय निश्चित करने हेतु सिफारिश करना।
याचिका समिति-1510प्रत्येक याचिका की जांच करना।
नियम समिति-1516सभा के प्रक्रिया व कार्य-संचालन के मामलों पर विचार करना।
नोट:- दोनों सदनों के लिए पृथक-पृथक
  • सदन की बैठकों में अनुपस्थित सदस्यों संबंधी लोकसभा की समिति: सदन के सदस्यों के बैठकों से अनुपस्थित या छुट्‌टी के आवेदनों पर विचार करते हैं। राज्यसभा में इस प्रकार की कोई समिति नही है। सदस्यों की छुट्‌टी या अनुपस्थिति के आवेदनों पर सदन स्वयं अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के विचार करता है।
    • अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के कलयाण की समिति- इसमें दोनों सदनों के सदस्य होते है। यह केंद्र सरकार के कार्यक्षेत्र में आने वाली अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण संबंधी मामलों पर विचार करती है और इस बात पर नज़र रखती है कि उन्हें संवैधानिक संरक्षण दिए गए हैं, वे ठीक से कार्यान्वित हो रहे हैं या नहीं।
    • सदस्यों की सुविधाएँ प्रदान करने वाली समितियाँ-
  • सामान्य प्रयोजन संबंधी: समिति सदन से संबंधित ऐसे मामलों पर विचार करती है, जो किसी अन्य संसदीय समिति के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते तथा अध्यक्ष⟋सभापति को इस बारे में सलाह देती है।
  • आवास समिति: सदस्यों के लिए आवास तथा अन्य सुविधाओं की व्यवस्था करती है:
    • संसद सदस्यों के वेतन और भत्तों संबंधी संयुक्त समिति- यह संसद सदस्यों के वेतन, भत्ते एवं पेंशन अधिनियम, 1954 के अंतर्गत गठित की गई है। संसद सदस्यों के वेतन, भत्ते एवं पेंशन संबंधी नियम बनाने के अतिरिक्त, यह उनके चिकित्सा, आवास, टेलीफोन, डाक, निर्वाचन क्षेत्र एवं सचिवालय संबंधी सुविधाओं के संबंध में नियम बनाती है:
    • लाभ के पदों संबंधी संयुक्त समिति- यह केंद्र, राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों दव्ारा नियुक्त समितियों एवं अन्य निकायों की संरचना और स्वरूप की जांच करती है, और यह सिफारिश करती है कि कौन कौनसे पद ऐसे हों, जो संसद के किसी भी सदन की सभ्यता के लिए किसी व्यक्ति को योग्य अथवा अयोग्य बनाते है।
    • पुस्तकालय समिति- इसमें दोनों सदनों के सदस्य होते हैं: यह संसद के पुस्तकालय से संबंधित मामलों पर विचार करती है।

Rajya Sabha and Lok Sabha a comparison

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राज्यसभा एवं लोकसभा: एक तुलना
क्र.राज्यसभाक्र.लोकसभा
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझराज्यसभा संसद का उच्च सदन अथवा दव्तीय सदन है। इसे वरिष्ठ सदन भी कहा जाता है।ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझलोकसभा संसद का निम्न सदन और प्रथम सदन है इसे लोकप्रिय सदन भी कहा जाता है।
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझराज्यसभा के सदस्यों की संख्या 250 है। परन्तु वर्तमान में सदस्यों की संख्या 245 है।ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझलोकसभा में अधिकतम 552 सदस्य हो सकते हैं, परन्तु वर्तमान में सदस्यों की संख्या 545 है।
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझराज्यसभा में सभी राज्यों को समान प्रतिधित्व प्रदान नहीं किया गया है। यह राज्यों एवं संघीय क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती है।ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझयह समस्त जनता का प्रतिनिधित्व करती है।
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझराष्ट्रपति दव्ारा 12 सदस्यों को मनोनीत किया जाता है।ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझराष्ट्रति दव्ारा आंग्ल-भारतीय समुदाय के 2 सदस्यों को मनोनीत किया जाता है।
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझराज्यसभा एक स्थायी सदन है, जिसका विघटन नहीं किया जा सकता है। इसके सदस्यों का कार्यकाल 65 वर्षों का होता है। प्रत्येक दो वर्ष बाद एक-तिहाई सदस्य अवकाश ग्रहण कर लेते हैं तथा उतने ही नवनिर्वाचित भी हो जाते हैं।ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझलोकसभा स्थायी सदन नहीं है तथा इसका कार्यकाल पांच वर्षों का होता है। कार्यकाल पूर्ण होने के पहले भी राष्ट्रपति दव्ारा प्रधानमंत्री की सलाह पर इसे भंग किया जा सकता है।
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझराज्यसभा के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर खुली मतदान प्रक्रिया दव्ारा होता है।ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझलोकसभा के सदस्यों का चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष रूप से गुप्त मतदान प्रक्रिया दव्ारा होता है।
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझधन विधेयक राज्यसभा में प्रस्तुत नहीं किए जा सकते।ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझधन विधेयक केवल लोकसभा में प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझमत्रिपरिषद राज्यसभा के प्रति उत्तरदायी नहीं होती है।ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझम्ांत्रिपरिषद केवल लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझराज्यसभा दव्ारा राज्य सूची के किसी विषय को राज्यसभा में उपस्थिति एवं मतदान करने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो -तिहाई सदस्यों दव्ारा समर्थित संकल्प दव्ारा राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया जा सकता है।ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझलोकसभा को यह अधिकार प्राप्त नहीं है।
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझराज्यसभा को अखिल भारतीय सेवाओं का सृजन करने का अधिकार प्राप्त है।ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझलोकसभा को यह अधिकार प्राप्त नहीं है।
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझउपराष्ट्रपति को हटाने हेतु प्रस्ताव का आरंभ राज्यसभा में ही किया जाता है।ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझलोकसभा, राज्यसभा दव्ारा पाति प्रस्ताव का अनुमोदन करती है।
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझलोकसभा के भंग होने की स्थिति में आपातकाल की उद्घोषणा का अनुमोदन राज्यसभा दव्ारा किया जाता है।ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझलोकसभा को इस प्रकार के विशेषाधिकार की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि राज्यसभा विघटित नहीं होती है।
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझराज्यसभा का सभापति इसका सदस्य नहीं होता। भारत का उपराष्ट्रपति ही इसका पदेन सभापति होता है। उपसभापति राज्यसभा का सदस्य होता है, जिनका निर्वाचन सदस्यों दव्ारा किया जाता है।ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझलोकसभा के अध्यक्ष इसके सदस्य होते हैं तथा इनका निर्वाचन सदस्यों दव्ारा किया जाता है।
  • महिला अधिकारिता समिति- 29 अप्रेल, 1997 को महिलाओं के अधिकारों के बारे में दोनों सदनों के सदस्यों की एक समिति का गठन किया गया। इसका उद्देश्य, अन्य बातों के साथ, सभी क्षेत्रों में महिलाओं को गरिमा और समानता प्रदान करता है।
  • 4 मार्च, 1997 को राज्यसभा की आचार संहिता समिति गठित की गई। लोकसभा की आचार- संहिता संबंधी समिति 16 मई, 2000 को गठित की गईं।

तदर्थ समितियांँ: इस तरह की समितियों को मोटे रूप में दो शीर्षकों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है-

  • क संसद के दोनों सदनों दव्ारा अथवा-सभापति किसी विचाराधीन प्रस्ताव के स्वीकृति किए जाने या कोई विशिष्ट समय समय पर गठित समितियांँ उदाहरण के लिए संसदीय परिसर में खाद्य प्रबंधन पर समिति, संसदीय परिसर में राष्ट्रीय नेताओं और सांसदों के चित्रों- मूर्तियों की स्थापना पर समिति, एमपीलेड्‌स पर समिति और रेलवे कनवेंशन समिति, संसदीय परिसर की सुरक्षा संबंधी संयुक्त
  • (ख) विशेष विधेयकों पर विचार करने एवं रिपोर्ट देने के लिए नियुक्त प्रवर एवं संयुक्त समितियांँ। जहाँं तक विधेयकों से संबंधित सवाल है, ये समितियांँ अन्य तदर्थ समितियों से भिन्न है और इनके दव्ारा पालन की जाने वाली प्रक्रिया का उल्लेख अध्यक्ष- सभापति के निर्देश तथा प्रक्रिया संबंधी नियमों में किया जाता है।

स्सांद में विपक्ष के नेता

संसदीय लोकतंत्र के विपक्ष के नेता की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए राज्यसभा और लोकसभा में विपक्ष के नेताओं को वेधानिक मान्यता दी गई है। पहली नवंबर, 1977 से लागू एक पृथक कानून के अंतर्गत वेतन तथा कुछ अन्य उपुक्त सुविधाएँं दी जाती है।