Indian Geography MCQs in Hindi Part 2 with Answers

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1 निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ ब्रह्यपुत्र नदी घाटी का मैदान बालू-रोधिकाओं तथा नदी दव्ीप की उपस्थिति के लिये जाना जाता है।

  • पश्चिमी घाट की तुलना में पूर्वी घाट ऊँचा तथा अविरत है।
  • प्रायदव्ीपीय पठार की सबसे ऊँची चोटी अनाईमुदी, अनामलाई पहाड़ियों पर स्थित है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा⟋से सही है⟋हैं?

अ) केवल 1

ब) केवल 1 और 2

स) केवल 3

द) केवल 1 और 3

उत्तर: (द)

व्याख्या:

  • ब्रह्यपुत्र घाटी का मैदान बालू-रोधिकाओं तथा नदी दव्ीपों की उपस्थिति के लिये जाना जाता है। अत: कथन 1 सही है।
  • पूर्वी घाट की तुलना में पश्चिमी घाट ऊँचा तथा अविरत है। इनकी औसत ऊँचाई लगभग 1500 मीटर है, जो उत्तर से दक्षिण की तरफ जाने पर बढ़ती है। अत: कथन 2 गलत है।
  • प्रायदव्ीपीय पठार की सबसे ऊँची चोटी अनाईमुदी है जो अनामलाई पहाड़ियों पर अवस्थित है। अत: कथन 3 भी सही है। पश्चिम घाट की दूसरी सबसे ऊँची चोटी डोडावेटा है और यह नीलगिरी पहाड़ियों पर स्थित है। पूर्वी तथा पश्चिमी घाट नीलगिरी की पहाड़ियों पर ही आपस में मिलते हैं।

2 निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही नहीं है?

अ) यमुना की सहायक अधिकतर नदियाँ विंध्याचल तथा कैमुर से निकलती हैं।

ब) बनास, चंबल की सहायक नदी है, जो अरावली से निकलती है।

स) रीची दव्ीप तथा लबरीन्थ दव्ीप अरब सागर में स्थित हैं।

द) बैरन दव्ीप भारत का एक मात्र सक्रिय ज्वालामुखी है जो निकोबार में स्थित है।

उत्तर: (स)

व्याख्या: रीची दव्ीप तथा लबरीन्थ दव्ीप बांगल की खाड़ी में स्थित है। अत: कथन (स) गलत है जबकि अन्य सभी कथन सही हैं।

3 सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिये तथा नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

सूची-I

दव्ीप

अ) उत्तरी अंडमान

ब) मध्य अंडमान

स) दक्षिण अंडमान

द) ग्रेट (महान) -निकोबार

कूट:

सूची-II

पर्वत चोटी

1. माउंट डियोवोली

2. सैडल पीक

3. माउंट (पर्वत) कोयोब

4. माउंट (पर्वत) थुईल्लर

अ ब स द

अ) 1 2 3 4

ब) 2 1 3 4

स) 4 3 2 1

द) 3 4 1 2

उत्तर: (ब)

व्याख्या-उपर्युक्त सूची का सही सुमेलन इस प्रकार है-

Table of Island and Moutain Peak

Table Supporting: Indian Geography MCQs in Hindi Part 2 with Answers
दव्ीपपर्वत चोटी
मध्य अंडमानसैडल पीक
मध्य अंडमानमाउंट डियोवोली
दक्षिणी अंडमानमाउंट कोयोब
ग्रेट निकोबारमाउंट थुईल्लर

4 ‘कयाल’ स्थालाकृति निम्नलिखित में से किस तट पर पाई जाती है?

अ) मालाबार

ब) कोरोमंडल

स) उत्तरी सरकार

द) कोंकण

उत्तर: (अ)

व्याख्या: ‘कयाल’ (काला पानी) स्थालाकृति मालाबार तट की विशेष स्थलाकृति है। इसे अंत: स्थलीय नौकायन तथा मछली पकड़ने के लिये प्रयोग में लाया जाता है। केरल में प्रतिवर्ष ‘वलामकाली’ (नौका दौड़) का आयोजन ‘पुन्नामदा कयाल’ में किया जाता है।

5 निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ पश्चिमी तटीय मैदान की तुलना में पूर्वी मैदान अधिक चौड़े हैं।

  • उभरा होने के कारण पूर्वी तट पर पत्तन तथा पोताश्रय कम हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा⟋से सही है⟋हैं?

अ) केवल 1

ब) केवल 2

स) 1 और 2 दोनों

द) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (स)

व्याख्या: उपर्युक्त दोनों कथन सही हैं पश्चिमी तटीय मैदान की तुलना में पूर्वी मैदान अधिक चौड़ा तथा उभरा हुआ है जिसके कारण यहाँ पत्तन तथा पोताश्रय का विकास मुश्किल है।

6 निम्नलिखित में से कौन-सा दव्ीप समूह प्रवाल निक्षेप से निर्मित हैं?

अ) उत्तरी अंडमान

ब) ग्रेट (महान) निकोबार

स) न्यू (नया) मूर

द) लक्षदव्ीप

उत्तर: (द)

व्याख्या: अरब सागर में स्थित लक्षदव्ीप तथा मिनिकॉय दव्ीप समूह प्रवाल निक्षेप से निर्मित हैं। यहाँ 36 दव्ीप है जहाँ 11 पर मानव आवास है।

7 सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिये तथा नीचे दिए गए कूट का प्रयापेे कर सही उत्तर चुनिये:

सूची- I

मुख्य अपवाह प्रतिरूप

अ) वृक्षाकार

ब) अरीय

स) जालीनुमा

द) अभिकेन्द्रीय

सूची- II

विशेषता

1. ऐसा प्रवाह प्रतिरूप पेड़ों की शाखाओं के अनुरूप होता है।

2. ऐसा प्रवाह प्रतिरूप में सभी दिशाओं से नदियाँ बहकर किसी झील या गर्त में विसर्जित होती हैं।

3. ऐसे प्रवाह प्रतिरूप में मुख्य नदियाँ एक-दूसरे के सामानांतर बहती हैं और सहायक नदियाँ उनसे अपवाह समकोण पर मिलती है।

4 ऐसे प्रवाह प्रतिरूप में नदियां किसी पर्वत से निकलकर सभी दिशाओं में बहती हैं।

कूट:

अ ब स द

अ) 1 4 3 2

ब) 2 3 4 1

स) 2 1 4 3

द) 1 2 3 4

उत्तर: (अ)

व्याख्या: नदियों के प्रवाह प्रतिरूप के संदर्भ में सही सुमेलित सूची इस प्रकार है-

मुख्य अपवाह प्रतिरूप

  • वृक्षाकार
  • अरीय
  • जालीनुमा
  • अभिकेन्द्रीय

विशेषता

  • ऐसा प्रवाह प्रतिरूप पेड़ों की शाखाओं के अनुरूप होता है, उदाहरण-उत्तरी मैदान की नदियाँ
  • ऐसे प्रवाह प्रतिरूप में नदियाँ किसी पर्वत से निकलकर सभी दिशाओं में बहती हैं। अमरकंटक पर्वत श्रृंखला से निकलने वाली नदियाँ इसी अपवाह प्रतिरूप की उदाहरण हैं।
  • अपवाह के ऐसे प्रवाह प्रतिरूप में मुख्य नदियाँ एक-दूसरे के सामानांतर बहती हैं और सहायक नदियाँ उनसे समकोण पर मिलती है।
  • ऐसे प्रवाह प्रतिरूप में सभी दिशाओं से नदियाँं बहकर किसी झील या गर्त मे विसर्जित होती हैं।

8 निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ जल-विभाजक एक अपवाह द्रोणी को दूसरी से अलग करता है।

  • नदी द्रोणी बड़ी नदियों का जलग्रहण क्षेत्र है जबकि जल-संभर छोटी नदियों और नालों दव्ारा अपवाहित क्षेत्र है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा⟋से सही है⟋हैं?

अ) केवल 1

ब) केवल 2

स) 1 और 2 दोनों

द) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (स)

व्याख्या: उपर्युक्त दोनों कथन सही हैं।

  • जल-विभाजक एक अपवाह द्रोणी को दूसरी से अलग करने वाली एक सीमा है। इसे जल- संभर भी कहते हैं। जल विसर्जन के आधार पर इसे दो समूहों अरब सागर का अपवाह तंत्र (कुल अपवाह का 23 प्रतिशत भाग) और बंगाल की खाड़ी का अपवाह तंत्र (कुल अपवाह का 77 प्रतिशत भाग) , में बाँटा जाता है। ये अपवाह तंत्र दिल्ली कटक, अरावली और सह्याद्रि दव्ारा अलग किये गए हैं।
  • छोटी नदियों और नालों दव्ारा अपवाहित क्षेत्र को भी जल-संभर ही कहते हैं जबकि नदी द्रोणी बड़ी नदियों के जलग्रहण क्षेत्र को कहा जाता है। अपवाह द्रोणियों को जल-संभर क्षेत्र के आकार के आधार पर तीन भागों में बाँटा गया है-
  • प्रमुख नदी द्रोणी: इसमें 20000 वर्ग किलोमीटर से अधिक अपवाह क्षेत्र वाली नदी द्रोणियाँ आती हैं। इसमें 14 नदी द्रोणियाँ सम्मिलित हैं, उदाहरण-गंगा, कृष्णा, तापी, नर्मदा, ब्रह्यपुत्र, माही, पेन्नार, साबरमती, बराक आदि।
  • मध्यम नदी द्रोणी: इसमें 2000 से 20000 वर्ग किलोमीटर अपवाह क्षेत्र वाली नदी द्रोणियाँ आती हैं। इसमें 44 नदी द्रोणियाँ सम्मिलित हैं, उदाहरण- कालिंदी, पेरियार, मेघना आदि।
  • लघु नदी द्रोणी: इसमें 2000 वर्ग किलोमीटर से कम अपवाह क्षेत्र वाली नदी द्रोणियाँ आती हैं। इसमें न्यून वर्षा क्षेत्रों में प्रवाहित होने वाली नदी द्रोणियाँ सम्मिलित हैं।

9 हिमालयी अपवाह के संदर्भ में निम्नलिखि कथनों में से कौन-सा-सही नहीं है?

अ) इस अपवाह तंत्र में नदियाँ पूरी तरह से बरसाती होती हैं।

ब) यहाँ की अधिकांश नदियाँ गहरे महाखड्डों से होकर गुजरती हैैं

स) इस अपवाह तंत्र की नदियाँ अपने पर्वतीय मार्ग में जलप्रपात, वी-आकार की घाटियों तथा क्षिप्रिकाओं का निर्माण करती हैं।

द) इस अपवाह तंत्र की नदियाँ मैदानी भागों में पहुँचकर निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियों का निर्माण करती हैं।

उत्तर: (स)

व्याख्या:

  • भारतीय अपवाह तंत्र को नदियों की प्रकृति, उनके उद्रम के प्रकार और उनकी विशेषताओं के आधार पर दो मुख्य भागों में विभाजित किया जाता है-हिमालयी अपवाह तंत्र और प्रायदव्ीपीय अपवाह तंत्र।
  • हिमालयी अपवाह के संदर्भ में दिये गए उपर्युक्त कथनों में से कथन (अ) गलत है क्योंकि इस अपवाह तंत्र में नदियाँ बारहमासी होती हैं। ये पर्वतीय बर्फ के पिघलने और वर्षा दोनों से जल प्राप्त करती हैं। इस संदर्भ में दिये गए अन्य सभी कथन सही हैं।
  • यहाँ की अधिकांश नदियाँ गहरे महाखड्डों से होकर गुजरती हैं जिनका निर्माण हिमालय के उत्थान के साथ ही अपरदन की क्रिया के कारण हुआ है।
  • गहरे महाखड्डों के अतिरिक्त इस अपवाह तंत्र की नदिया अपने पर्वतीय मार्गों में जलप्रपात वी आकार की घाटियों तथा क्षिप्रिकाओं का निमार्ण भी करती हैं।
  • इस अपवाह तंत्र की नदियाँ मैदानी भागों में पहुँचकर निक्षेपणातमक स्थलाकृतियों गोखुर झीलें, बाढ़कृत मैदान, समतल घाटिया, गुंफित वाहिकाएं और डेल्टा नदीमुख-भूमि का निर्माण करती हैं।
  • हिमालयी क्षेत्रों में यहां की नदियाँ टेढ़े मेढ़े मार्ग का जबकि मैदानी भागों ये सर्पाकार मार्गों का अनुसरण करती हैं।

10 हिमालय के अपवाह तंत्र के वर्तमान पैटर्न (नक्शा) के पूर्व मायोसीन कल्प में केवल एक ही विशाल नदी थी जो शिवालिक या इंडो ब्रह्य कहलाती हैं। इस विशाल नदी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ यह हिमालय के संपूर्ण अनुदैर्ध्य विस्तार के साथ पंचाब से असम तक बहती थी।

  • कालांतर में यह नदी तीन मुख्य अपवाह तंत्रों सिंध और उसकी सहायक नदिया गंगा और हिमालय से निकलने वाली गंगा की सहायक नदियां तथा ब्रह्यपुत्र और हिमालय से निकलने वाली ब्रह्यपुत्र की सहायक नदियां में विभाजित हो गई।

उपर्युक्त कथनों में से कौनसा⟋से सही है⟋हैं।

अ) केवल 1

ब) केवल 2

स) 1 और 2 दोनों

द) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (ब)

व्याख्या:

  • हिमालय के अपवाह तंत्र के वर्तमान पैटर्न (नक्शा) के पूर्व मायोसीन कल्प में केवल एक ही विशाल नदी थी जो शिवालिक या इंडो ब्रह्य कहलाती हैं। यह हिमालय के संपूर्ण अनुदैर्ध्य विस्तार के साथ-साथ असम से पंजाब की ओर बहती थी जो अंत में निचले पंजाब के पास सिंध की खाड़ी में गिरती थी।
  • ऐसा माना जाता है कि कालांतर में यह नदी तीन मुख्य अपवाह तंत्रों में विभाजित हो गई-
  • सिंध और उसकी सहायक नदियाँ
  • गंगा और हिमालय से निकलने वाली उसकी सहायक नदियाँ
  • ब्रह्यपुत्र और हिमालय से निकलने वाली उसकी सहायक नदियाँ
  • संभत: प्लीस्टोसीन काल में हिमालय के पश्चिमी भाग में उथल-पुथल और पोटवार पठार (दिल्ली रिज) के उत्थान के कारण इस नदी का इस प्रकार का विभाजन हुआ, जिस कारण यह क्षेत्र सिंधु और गंगा नदी के अपवाह तंत्रों के बीच जल विभाजक का कार्य करने लगा।
  • उल्लेखनीय है कि इसी प्रकार राजमहल पहाड़ियों और मेघालय पठार के मध्य स्थित माल्दा गैप (अंतर) की ऊँचाई में मध्य प्लीस्टोसीन काल में कमी हुई और ये नदियाँ बंगाल की खाड़ी की ओर प्रवाहित होने लगी।