Economics and Banking Concepts Most Important to Know for RBI, RRB, NRA, SSC and Competitive Exams

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बैंकिंग कॉन्सेप्ट्‌स

इसकी स्थापना 1 अप्रेल सन्‌ 1935 को रिजर्व बैंक ऑफ्‌ इण्डिया ऐक्ट, 1934 के अनुसार हुई। आरंभ में इसका केंद्रीय कार्यालय कोलकाता में था, जो सन्‌ 1937 में मुंबई आ गया। पहले यह एक निजी बैंक था, किन्तु 14 सन्‌ से यह भारत सरकार का उपक्रम बन गया है।

मुख्य कार्य

मौद्रिकमौद्रिक प्राधिकरण

  • मौद्रिक नीति तैयार करता है, उसका कार्यान्वयन करता है और उसकी निगरानी करता है।
  • उद्देश्य: मूल्य स्थिरता बनाए रखना और उत्पादक क्षेत्रों को र्प्याप्त ऋण उपलब्धता को सुनिश्चित करना।
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वित्तीय प्रणाली का विनियामक और पर्यक्षेवक

  • बैंकिंग परिचालत के लिए विस्तृत मानदंड निर्धारित करता है जिसके अंतर्गत देश की बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली काम करती है।
  • उद्देश्य: प्रणाली में लोगों का विश्वास बनाए रखना, जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करना और आम जनता को किफायती बैंकिंग सेवाएंँ उपलध कराना।

विदेशी मुद्रा प्रबंधक

  • विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 का प्रबंध करता है।
  • उद्देश्य: विदेश व्यापार और भुगतान को सुविधाजनक बनाना और भारत में विदेशी मुद्रा बाज़ार का क्रमिक विकास करना और उसे बनाए रखना।

मुद्रा जारीकर्ता

  • करेंसी जारी करता है और उसका विनिमय करता है अथवा परिचालित के योग्य नही रहने पर करेंसी और सिक्कों को नष्ट करता है।
  • उद्देश्य: आम जनता को अच्छी गुणवत्ता वाले करेंसी नोटो और सिक्कों की र्प्याप्त मात्रा उपलब्ध कराना।

विकासात्मक भूमिका

राष्ट्रीय उद्देश्यों की सहायता के लिए व्यापक स्तर पर प्रोत्साहनात्मक कार्य कराना।

संबंधित कार्य

  • सरकार का बैंकर: केंद्र और राज्य सरकारों के लिए व्यापारी बैंक की भूमिका अदा करता है: उनके बैंकर का कार्य भी करता है।
  • बैंकों के लिए बैंकर: सभी अनुसूचित बैंकों के बैंक खाते रखता है।

मौद्रिक नीति क्या है?

  • मौद्रिक नीति एक किस्म का अस्त्र है, जिसके आधार पर बाज़ार में मुद्रा की आपूर्ति को नियंत्रित किया जाता है। मौद्रिक नीति ही यह तय करती है कि रिज़र्व बैंक किस दर पर बैंकों को कर्ज़ देगा और किस दर पर बैंकों से वापस पैसे लेगा।
  • भारतीय मौद्रिक नीति के दो स्पष्ट उद्देश्य निम्नलिखित हैं
    • आर्थिक विकास को तेज करना: और
    • मुद्रास्फीतिकारी दबावों का नियंत्रित करना
  • भारतीय रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति को लागू करने की मुख्य एजेंसी है। भारतीय रिजर्व बैंक दव्ारा स्थिर मौद्रिक नीति प्राप्त करने के लिए प्रयुक्त किए उपायों में निम्नलिखित शामिल हैं।

प्रत्यक्ष उपाय

  • बैंक दर: यह एक तरह का ब्याज दर होता है जिसके तहत्‌ आरबीआई वाणिज्यिक बैंकों को दिये गए ऋण को एक चार्ज के रूप में वसूल करता है। यह आमतौर पर एक त्रैमासिक आधार पर मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और देश की विनिमय दर को स्थिर करने के लिए जारी किया जाता है। अगर आरबीआई चाहता है कि बाज़ार में पैसे की आपूर्ति और तरलता कम हो तो वह्‌ बैंक रेट को बढ़ाएगा।
  • रेपो दर:- अब कभी बैंक यह समझे कि उनके पास धन की उपलब्धता कम है या फिर दैनिक कामकाज के लिए रकम की जरूरत है तो आरबीआई से कम अवधि के लिए कर्ज ले सकता है, इस कर्ज पर रिजर्व बैंक को उन्हें जो ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रेपो दर कहते हैं। रेपो दर में कमी से बैंकों को सस्ती दर पैसे पाने के लिए मदद मिलेगी, वहीं जब रेपो दर बढ़ती हैं तो इसका सीधा मतलब है कि रिजर्व बैंक से कर्ज लेना महंगा हो जाएगा जिसका असर बैंकों लोन वाले उपभोक्ताओं पर भी पड़ता हैं।
  • रिवर्स रेपो दर:- रिवर्स रेपो दर, रेपो दर का उल्टा है। इसके तहत बैंक अपना बकाया रकम अपने पास रखने की बजाए रिजर्व बैंक के पास रखते हैं। इसके लिए रिजर्व बैंक की तरफ से उन्हें ब्याज भी मिलता है। जिस दर पर बैंक को ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रेपो दर कहते है। यदि रिजर्व बैंक को लगता है कि बाजार में बहुत ज्यादा नकदी का प्रवाह है, तो वह रिवर्स रेपो दर में बढ़ोत्तरी कर देता है, जिससे बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपना धन रिजर्व बैंक के पास रखने को प्रोत्साहित होते हैं और इस तरह उनके पास बाजार में छोड़ने के लिए कम धन बचता है।
  • नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) :- सभी वाणिज्यिक बैंको के लिए जरूरी होता है कि वह अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखें। आरबीआई को आवश्यकता महसूस हो वह अर्थव्यवस्था के संतुलन के लिए समय-समय पर कैश रिजर्व रेश्यो को घटा बढ़ा सकता है। अगर आरबीआई को लगता है बाजार में पैसे की सप्लाई को कम किया जाए तो वह सीआरआर बढ़ा देता है। इसके विपरीत अगर उसको लगता है तो सीआरआर के रेट को घटाकर बाजार में मनी अप्लाई बढ़ा सकता है। सीआरआर और रेपो रेट में अतर इतना ही है कि सीआरआर में बदलाव बाजार को लंबे समय बाद प्रभावित करता है जबकि रेपो और रिवर्स रेपो दरों में बदलाव बाजार को तुरन्त प्रभावित करता है।
  • सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) :-कैश रिजर्व की तरह वाणिज्यि बैंकों को अपना एक निर्धारित डिपॉर्जेट सोने, नकदी या सरकारी प्रतिभूतियों में रखना होता है। एसएलआर निवेश नकदी या सरकारी प्रतिभूतियों के तौर पर होता है, इसलिए इसे एक संरक्षण हासिल होता है। इस पर रिजर्व बैंक नज़र रखता है ताकि बैंकों के उधार देने पर नियंत्रण रखा जा सकता है।

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वर्तमान नातिगत दरें (30 अक्टूबर 2013 के अनुसार)
1. नकदी आरक्षी अनुपात (C. R. R)4%
2. सांविधिक चलनिधि अनुपात (S. L. R.)23%
3. बैंक दर (B. R.)8.75%
4. रेपो (पुनर्क्रय दर) (R. R.)7.75%
5. रिवर्स रेपो दर (R. R. R.)6.75%
6. सीमांत स्थाई सुविधा (M. S. F.)8.75%

अप्रत्यक्ष उपाय

चलनिधि समायोजन सुविधा (LAF)

  • अनुसूचित वाण्ज्यि बैंक अपनी निबल मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के 1.0 प्रतिशत तक चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत चलनिधि सहायता प्राप्त कर सकते हैं।
  • बैंक इस सुविधा का उपयोग करने के कारण सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) बनाए रखने में होने वाली किसी कमी के लिए पूर्णतया तदर्थ एवं अस्थायी उपाय के रूप में दांडिक ब्याज से छूट प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकते हैं।

बाजार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस)

  • बाजार स्थिरीकरण योजना के तहत रिजर्व बैंक सरकार की तरफ से बाजार से अतिरिक्त नकदी को सोखता है और इसके एवज में ट्रेजरी बिल दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करता है। सरकार ने रिजर्व बैंक के साथ विचार विमर्श कर एमएसएस योजना को वर्ष 2004 में शुरू किया था।
  • इसका मकसद बाजार में विदेशी मुद्रा प्रवाह के जरिए उपलब्ध अतिरिक्त नकदी को खोजना था। इसके एवज में केन्द्रीय बैंक ट्रेजरी बिल और दिनांकित प्रतिभूतियां जारी करता है। यह सरकार की सामान्य उधारी जरूरतों के अतिरिक्त होता है।

कासा क्या है?

  • करेन्ट एकांउट (सीए) यानी चालू खाते और सेविंग एकाउंट (एसए) यानी बचत खाते को मिला दें तो बनता है सीएएसए यानी कासा। बैंक की कुल जमाराशि में कासा जमा का हिस्सा कितना है, इससे उसकी लागत पर बहुत फर्क पड़ता है। चालू खाते मुख्यतया कंपनियों, फर्में व व्यापारी व उद्यमी रखते हैं जो हर दिन खाते से काफी लेन-देन करते हैं। जब बचत खाते में हमारे-आप जैसे आम लोग अपना धन जमा रखते हैं और इसका इस्तेमाल अमूमन गैर-व्यावसायिक कामों के लिए करते हैं। बैंक जहाँ चालू खाते में जमा रकम पर कोई ब्याज नहीं देते, वहीं बचत खाते की रकम वे 3.5 फीसदी सालाना की दर से ब्याज देते हैं। इस तरह सावधि जमा फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) जैसे अन्य माध्यमों की तुलना में बैंकों के लिए कासा डिपॉर्जिट धन हासिल करने का सबसे सस्ता साधन है। नतीजन, जिस बैंक की कुल जमाराशि में कासा जमा का हिस्सा जितना अधिक होता है, उस बैंक की जमा या फंड लागत उतनी ही कम होती है।
  • अपने यहां बैंकों की कुल जमाराशि में कासा जमा का हिस्सा एक तिहाई से ज्यादा है। दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में देश में कार्यरत विदेशी बैंक सबसे बेहतर स्थिति में हैं। उसके बाद क्रम से स्टेट बैंक व उसके सहयोगी बैंक, राष्ट्रीयकृत बैंक और निजी क्षेत्र के बैंक आते हैं। हालांकि समग्र तौर पर अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की कुल जमा में कासा का हिस्सा मार्च 2006 से मार्च 2009 के बीच घटता रहा है। वैसे, इस दौरान भी निजी क्षेत्र के बैंकों की जमा में कासा का हिस्सा बढ़ा है।
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