व्यक्तित्व एवं विचार (Personality and Thought) Part 12 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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समकालीन राजनीतिक परिवेश ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: व्यक्तित्व एवं विचार (Personality and Thought) Part 12

1898 में तिलक पर लगे राजद्रोह को टैगोर ने ब्रिटिश सरकार का अन्यायपूर्ण व्यवहार कहा था और 1905 में सक्रिय राजनीतिक में कूद पड़े थे। 1908 में बंगाल प्रांतीय सम्मेलन में उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्ष में विचार अभिव्यक्त किए और 1919 की जलियांवाला बाग हत्याकांड की तीव्र भर्त्सना करते हुए इसे डायर का शरारतपूर्ण एवं बेहूदा कदम बताया था। उन्होंने ब्रिटिश वायसराय को पत्र लिखा कि, “मैं अपनी ओर से ऐसे समस्त भेद-भावों की भर्त्सना करता हँूं जिनकी वजह से मेरे देशवासियों को ऐसे अपमान को सहन करने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है जो कि मानव जाति के संबंध में उपयुक्त नहीं हैं।”

टैगोर गांधी जी से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने लिखा कि, “यह भारत एकता तथा सामाजिक एकता की सुरक्षा के लिए मूल्यवान बलिदानी जीवन था।” टैगोर मानवतावादी आत्मचिंतन में विश्वास करते थे। उनका तर्क था कि आत्मविश्वास को खो देना मानसिक दुर्बलता का चिन्ह है। उनका कहना था, “अपनी गलतियों से उन्नति की प्रेरणा प्राप्त करो, परीक्षणों से खोज करो तथा अपने प्रयत्न से सत्य को प्राप्त करो” ।

टैगोर का मानवतावाद ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: व्यक्तित्व एवं विचार (Personality and Thought) Part 12

रवीन्द्र नाथ ठाकूर विश्व कवि थे। उनका मानवतावाद व्यापक था। अपनी कृतियों में पीड़ित मानवता के प्रति उन्होंने संवेदना व्यक्त की है। उन्होंने संकीर्णता का विरोध किया। जगन्नाथ प्रसाद मिश्र के शब्दों में “उनके साहित्य में सर्व मानवीय भावनाओं की प्रधानता है। मनुष्य को जाति, देश, संप्रदाय से परे विशुद्ध मानव मात्र के रूप में देखने की सहजात शक्ति को लेकर मानो वे जन्में थे। ′ उनकी रचनाओं में, उनके कर्म प्रधान जीवन की साधना में हमें मनुष्य के प्रति और विश्व मानव के प्रति जो प्रेम देखने को मिलता है। वह अन्य किसी लेखक या साहित्यिक रचना में नहीं मिलता है।”

रवीन्द्र नाथ टैगोर मनुष्य को परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ कृति-मानते थे। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय में एक व्याख्यान माला के अंतर्गत कहा था- “मनुष्य का दायित्व महामानव का दायित्व है। जिसकी कोई सीमा नहीं है। जन्तुओं का वास भूमंडल पर है। मनुष्य का वास वहाँ है जिसे वह देश कहता है। और यह देश केवल भौमिक नहीं है अपितु मानसिक है। मनुष्य-मनुष्य के मिलन से यह देश बनता है। यह मिलन ज्ञान एवं कर्म में है।”

टैगोर मानव सम्मान और मानव अंत: करण की पवित्रता की उपेक्षा नहीं देख सकते थे। उनका कहना था कि जो व्यक्ति समाज के प्रति अपने कर्तव्य तथा दायित्व की अवहेलना करके शुद्ध जीवन का पूर्णत्व प्राप्त करना चाहता है वह सामाजिक साहचर्य व एकता के आदर्शों के साथ विश्वासघात करता है। उनकी महान आत्मा पड़ोसियों के कष्टों से कराह उठती थी। उन्हें इस बात का बहुत दु: ख था कि मनुष्य अपने स्वार्थ के लिये औरों का शोषण करता है।