1857 का विद्रोह (Revolt of 1857) for NTSE Part 8 for NTSE
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विद्रोह के पश्चातवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू अंग्रेजी दृष्टिकोण में परिवर्तन
देशी शासकों के प्रति दृष्टिकोण
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विद्रोह में देशी शासक या तो तटस्थ रहे या उन्होंने अंग्रेजी को समर्थन दिया।
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अंग्रेजों दव्ारा प्रतिक्रियावादी शक्तियों के रूप में इनकी पहचान, प्रगतिशीलता विरोधी शक्ति के रूप में इनकी पहचान, राजनीतिक मित्र के रूप में इनकी पहचान स्थापित हुई।
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अंग्रेजों की ओर से तृष्टिकरण की नीति एवं समझौतावादी दृष्टिकोण।
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उनके राजनीतिक अस्तित्व को स्वीकार किया जाना, साम्राज्य विस्तार की नीति का परित्याग, डलहौजी के गोद निषेध नीति का परित्याग।
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सम्मानित किए जाने का दृष्टिकोण उन्हें मौद्रिक और प्रादेशिक पुरस्कार दिया जाना-1861 में ’स्टार (सम्मान चिन्ह) ऑफ (के) इंडिया (भारत) का सम्मान’ पटियाला, बडौदा, भोपाल, ग्वालियर आदि राज्यों को दिया गया।
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बाद के दिनों में उनके अधीनस्थ को स्थापित किया जाना-ब्रिटिश परम सत्ता के प्रति उनकी निष्ठा को स्थापित किया जाना।
मुसलमानों के प्रति दृष्टिकोण
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अंग्रेजों के दव्ारा विद्रोह के कारणों का विश्लेषण और मुस्लिम कारक का एक महत्वपूर्ण कारक माना जाना।
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मुस्लिम विरोधी दृष्टिकोण सैन्य व्यवस्था में दृष्टािगोचर होती है जो मुसलमानों की भूमि पर ब्रिटिश आधिपत्य स्थापित करने में दृष्टिगोचर होती है।
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ये मुस्लिम विरोधी रूख 1870 तक स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है।
जमींदारों के प्रति दृष्टिकोण
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जमींदारों के प्रति समझौतावादी दृष्टिकोण-जमींदारों को शक्तिशाली वर्ग के रूप में समझा गया जो कि उपनिवेशवाद विरोधी शक्ति के लिए अवरोध के समान थे।
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जमींदारों को भारतीय समाज के परंपरागत नेता के रूप में स्वीकार किया गया।
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उनके हितों, अधिकारों के सुरक्षा की बात कही गयी।
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सरकार दव्ारा जब्त किए गए भूमि क्षेत्र को उन्हें वापस किया गया।
बुद्धिजीवी वर्ग के प्रति दृष्टिकोण
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विद्रोह के दौरान बुद्धिजीवी की तटस्था और अंग्रेजी सरकार दव्ारा बुद्धिजीवी वर्ग के इस दृष्टिकोण की सराहना।
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बाद के दिनों में इसी वर्ग के दव्ारा औपनिवेशिक शासन के स्वरूप का विश्लेषण, इसी वर्ग के दव्ारा राजनीतिक आंदोलन में नेतृत्व और इसी वर्ग के दव्ारा राष्ट्रीय भावनाओं के विकास में महत्वपूर्ण योगदान और बुद्धिजीवी वर्ग की इस भूमिका की अंग्रेजों के दव्ारा आलोचना।
सुधारों के प्रति दृष्टिकोण
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अंग्रेजों का ऐसा मानना था कि उनकी सुधारवादी नीति से भारतीय प्रतिक्रियाएँ हुई, भारतीय प्रतिक्रिया को एक कारक के रूप में समझा गया।
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सुधार विरोधी रुख, प्रतिक्रियावादी शक्तियों का समर्थन।
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1857 के बाद अंग्रेज प्रगतिशील विचारों के विरोधी हो गए और सुधारों के प्रति पूर्ण तौर से उदासीनता दिखायी।
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समाज के रुढ़िवादी तत्वों को समर्थन दिया गया।
नस्लवाद का दृष्टिकोण
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अंग्रेजी शासन में नस्लवादी प्रवृत्ति का 1857 के बाद बहुत अधिक प्रबल हो जाना और खुले तौर पर नस्लवादी नीतियों को समर्थन दिया जाना।
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प्रबल नस्लवादी प्रवृत्ति रेलवे आरक्षण, प्रतीक्षालयों में आरक्षण, पार्को इत्यादि स्थानों पर भारतीयों के प्रवेश को निषेध करने में दृष्टिगत होती है।
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जातीय श्रेष्ठता के सिद्धांतों को स्थापित करने का प्रयास किया और प्रजातीय तौर पर इन्होंने स्वयं को श्रेष्ठ घोषित किया।
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स्वामी जाति के सिद्धांतों को प्रोत्साहन दिया गया।