Science and Technology: Defense Research and Development Organization-D. R. D. O

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रोबोटिक्स (Robotics)

भारत में रोबोटिक्स (Robotics in India)

  • सार्वजनिक लोक उपक्रम ‘भारत इलेक्ट्रोनिक लिमिटेड’ (BEL) प्रथम भारतीय उद्योग है जिसने उत्पादन स्तर पर स्वदेशी रोबोट का विकास किया। इसने ‘पिंक एंड प्लेस’ (Pick and Place) प्रकार के रोबोट का विकास किया।
  • उल्लेखनीय है कि भारत में रोबोटिक्स क्षेत्र में हिन्दुस्तान मशीन टूल्स के अनुसंधान और विकास विभाग, केंद्रीय मशीन टूल्स संस्थान (MIT) , आईआईटी मद्रास, भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलोर और हैदराबाद विज्ञान सोसायटी कार्य कर रहे हैं।
  • हैदराबाद विज्ञान सोसायटी ने पराश्रव्य तरंगों से प्राप्त संवेदन से चलने वाले रोबोट का विकास किया है। स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह माने जाने वाले उद्योगों में इन रोबोट्‌स का उपयोग किया जा सकता है।
  • भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलोर ने भी माइक्रोप्रोसेसर आधारित रोबोट का विकास किया है।
  • डीआरडीओ और बंगलुरू में एक रोबोटिक्स कंपनी ने मिलकर ‘चतुरोबोट (Chat robot) ’ का विकास किया है। यह रोबोट बुद्धिमान प्रवृति वाला है। इसमें दृश्य संवेदक (Visual Sensors) लगे होते हें।
  • भारत ने रोबोटिक्स क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए कुछ नवाचार किए है। भविष्य में युद्ध की स्थिति को ध्यान में रखकर भारत रोबोटिक सैनिक के विकास पर कार्य कर रहा है। इससे भारत भी मानवरहित सैनिक क्षमता वाले देशों के समूह में सम्मिलित हो सकेगा।
  • रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन को इस कार्य का दायित्व सौंपा गया है। प्रारंभ में रोबोटिक सैनिक मानव सैनिक के निर्देश के अनुसार कार्य करेंगे। बाद में ये स्वयं मोर्चा संभालने की क्षमता प्राप्त कर सकेंगे।

कुछ महत्वपूर्ण रोबोट (Some Specific Robots)

  • माबेल रोबोट (Mabel Robot) : यह दो पैरों वाला रोबोट है। यह मानव की तरह दौड़ सकता है और प्रति घंटे 6.8 मीटर की गति से दौड़ सकता है। यह विश्व का सबसे तेज रोबोट है। इस रोबोट का निर्माण मिशिगन विश्वविद्यालय में किया गया है।
  • माइटी ईगल (Mighty Eagle) : यह नासा दव्ारा तैयार किया गया एक रोबोटिक प्रोटोटाइप लैंडर (Robotic Prototype Lander) है। इसमें तीन पहिये लगे होते हैं। यह एक हरित यान है क्योंकि इसमें ईधन के रूप में 90 प्रतिशत शुद्ध हाइड्रोजन परऑक्साइड का उपयोग होता है। इसमें लगे कम्प्यूटर से यह निर्देश प्राप्त करता है। इस रोबोट का उपयोग ग्रहीय पिंडों की सतह पर वैज्ञानिक और अनुसंधान कार्यों में किया जा सकता है।

प्रतिरक्षा प्रौद्योगिकी (Defense Technology)

अपनी आंतरिक व बाहृा संप्रभुमा को अक्षुण्ण बनाए रखना प्रत्येक राष्ट्र का सर्वोच्च व प्राथमिक उद्देश्य होता है। इसी परिप्रेक्ष्य में प्रत्येक राष्ट्र सामरिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना चाहता है, जिसमें प्रतिरक्षा प्रौद्योगिकी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। वर्तमान समय में प्रतिरक्षा प्रौद्योगिकी के अंतर्गत मुख्य रूप से परमाणु हथियारों तथा प्रक्षेपास्त्रों के विकास के लिए अनुसंधान किये जाते हैं। जहाँ तक भारत का प्रश्न है, जो हमने भी उपरोक्त प्राथमिकताओं को ध्यान में रखकर भारतीय प्रतिरक्षा नीति तैयार की है जिसका मूल उद्देश्य भारतीय उपमहादव्ीप में शांति को बढ़ावा देना और उसे स्थायित्व प्रदान करना है। भारतीय रक्षा नीति के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • संवैधानिक प्रावधानों के अधीन रहते हुए भारत की सीमा सुरक्षा को सुदृढ़ता प्रदान करना।
  • आतंकवाद व अलगाववाद से नागरिकों की सुरक्षा एवं बचाव।
  • युद्ध मशीनरी को पूर्णरूपेण तैयार रखना जिससे वह सूचना मिलने पर अत्यल्प समय में युद्ध छेड़ सके।
  • जनसंहारक हथियारों (WMD-Weapons of Mass Destruction) से बचने के लिए एक प्रभावशाली निवारण क्षमता तैयार करना।
  • एक विस्तृत आधारभूत संरचना विकसित करना, जो दीर्घकालीन आतंकवाद और युद्ध से निपटने में सहायक हो सके।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डी. आर. डी. ओ) तथा अन्य संगठनों के माध्यम से भारत ने प्रतिरक्षा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ अर्जित की हैं।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defense Research and Development Organization-D. R. D. O)

  • भारतीय प्रतिरक्षा नीति के लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु प्रतिरक्षा क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास के लिए 1958 में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (D. R. D. O) का गठन किया गया। कालांतर में डी. आर. डी. ओ तथा उसकी प्रयोगशालाओं के प्रबंधन के लिए 1980 में ‘रक्षा अनुसंधान तथा विकास विभाग’ की स्थापना की गई। रक्षा मंत्री का वैज्ञानिक सलाहकार इस विभाग का सचिव होता है तथा सचिव के अधीन ही यह विभाग कार्य करता है।
  • डी. आर. डी. ओ के अनुसंधान और विकास कार्यक्रमों में प्रक्षेपास्त्र एयरोनॉटिक्स, लड़ाकू वाहन, कम्प्यूटर प्रणाली, इलेक्ट्रॉनिक्स व मशीनरी कल -पुर्जे, इंजीनियरिंग, न्यूक्लियर मेडिसिन आदि सम्मिलित हैं। डी. आर. डी. ओ ने रक्षा प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए एक दस वर्षीय राष्ट्रीय अभियान प्रारंभ किया है। इस अभियान का उद्देश्य रक्षा प्रौद्योगिकी से संबंधित स्वदेशी उपकरणों में प्रतिवर्ष वृद्धि करना है। डी. आर. डी. ओ का यह लक्ष्य है कि रक्षा प्रौद्योगिकी के उन क्षेत्रों का विकास किया जाए, जिन क्षेत्रों में हमारी निर्भरता विकसित देशों पर है।
  • आज डी. आर. डी. ओ प्रतिरक्षा क्षेत्र में आने वाली विभिन्न तकनीकों, जैसे-पायलट रहित विमान, लेजर तकनीकी, गुप्त तकनीकी, अंतरिक्ष तकनीकी, प्रक्षेपास्त्र तकनीकी, उपग्रह संचार तकनीकी, रासायनिक तकनीकी, रात्रि दृश्य तकनीकी, जैविक हथियार तकनीकी, परमाणु तकनीकी आदि के विकास में सफलतापूर्वक अग्रसर है। निस्संदेह कहा जा सकता है कि डी. आर. डी. ओ ने प्रतिरक्षा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पदव्ार् प्राप्त कर ली है।