Science and Technology: Polio, Mediums of Polio Spread and National Immunisation Day

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स्वास्थ्य (Health)

विभिन्न बीमारियाँ (Various Diseases)

पोलियो (Polio)

  • पोलियो एक विषाणु जनित रोग है। इस विषाणु का शरीर में प्रवेश मुख्यत: पाचन-तंत्र के जरिए होता है। इसका विषाणु कभी-कभी केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र को भी प्रभावित करता है। पोलियो विषाणु मुँह, फेफड़ा और आंत तक संचरण करता है। इस विषाणु के तीन प्रतिरूप पाए जाते हैं- टाईप 1 या ब्रूनहाइड, टाईप 2 या लान्सिंग और टाईप 3 या लियोन।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार बांग्लादेश कांगो, इथियोपिया, भारत, नाइजीरिया तथा पाकिस्तान में इस रोग का आधिक्य है।
पोलियो प्रसार के माध्यम (Mediums of Polio Spread)
  • मौखिक माध्यम से (Fecal- oral Route)
  • संक्रमित भोजन या जल के सेवन से

पूरे विश्व में पोलियों से लड़ने के लिए दो प्रकार के टीकों का उपयोग किया जा रहा है। पहले प्रकार के टीके का विकास साल्क ने किया था। इसके तहत सक्रिय पोलियो विषाणु का सेवन कराया जाता है। दूसरे प्रकार के टीके का विकास अल्बर्ट सैबिन ने किया था इसमें क्षीण प्रभाव वाले पोलियो विषाणु (Aggentuated Polio Virus) का उपयोग किया जाता है।

  • इन दोनों टीकों को क्रमश: इनएक्टीवेटेड (साल्क) पोलियो वैक्सीन (IPV) और ओरल (सैबिन) पोलियो वैक्सीन (OPV) की संज्ञा दी गी है।
  • इनएक्टीवेटेड पोलियो वैक्सीन रक्तधारा में इम्यूनोग्लोब्यूलीन जी (Ig-G) युक्त प्रतिरक्षा उत्पन्न करता है। यह पोलियो संक्रमण से रक्षा करता है और मोटर तंत्रिकाओं (Motor Neurons) को सुरक्षा प्रदान करता है। इससे बल्बर पोलियो (Bulbar Polio) और पोलियो पश्चात्‌ सिन्ड्रोम के खतरे को समाप्त किया जा सकता है।
  • दूसरी ओर ओरल पोलियो वैक्सीन एक सजीव क्षीण प्रभाव वाला पोलियो विषाणु होता है। इस विषाणु के जीनोम में उत्परिवर्तन (Mutation) करके टीका बनाया जाता है। परन्तु इस टीके के संबंध में एक चिंताजनक तथ्य है कि यह अपनी पूर्वस्थिति में लौट सकता है और तंत्रिका तंत्र को दुष्प्रभावित कर सकता है तथा लकवा का कारण बन सकता है। उल्लेखनीय है कि मनुष्य वाइल्ड पोलियो विषाणु का वाहक है। इसके तीन प्रकार होते हैं- 1,2 और 3 सबसे पहले टाईप 2 पोलियों विषाणु के उन्मूलन पर बल दिया गया है और तब क्रमश: टाईप 3 और टाईप 1 के उन्मूलन पर देश से टाईप 2 पोलियो विषाणु के उन्मूलन में सफलता मिली है।
  • राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो 1994 में जहाँ 35000 पोलियो मामले सामने आए थे वहीं 2011 में वह संख्या घटकर 1 तक रह गयी।
राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस (National Immunisation Day)

यह दिवस पोलियो उन्मूलन के प्रति समर्पित है। इसके अंतर्गत 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों को एक माह के अंतराल में पोलियों के टीके की दो खुराके पिलाई जाती हैं। एक निश्चित अवधि में पोलियो की खुराक पिलाने के कार्यक्रम को पल्स पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम कहा गया है।

भारत में पल्स पोलियो कार्यक्रम (Pulse Polio Programme in India)
  • वर्ष 1978 में भारत में इस कार्यक्रम का आरंभ हुआ। 1984 में इसका विस्तार हुआ। बाद में सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत पल्स पोलियो कार्यक्रम की शुरूआत 1995 - 96 में की गई थी। इसमें 3 वर्ष की आयु तक के बच्चों को पोलियों मौखिक टीका दिया जाना था। भारत सरकर ने पोलियों उन्मूलन कार्यक्रम के विस्तार के लिए आयु सीमा को 5 वर्ष कर दिया।
  • परन्तु भारत अभी भी पोलियो के संकट से पूर्णत: नहीं उभरा है। वर्ष 2012 में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वैक्सीन डिराइव्उड पोलियो विषाणु (VDPV) से संक्रमित मामला सामने आया।
  • ओरल पोलियो टीका क्षीण किस्म के पोलियो विषाणु का वहन करता है। इससे व्यक्ति में प्रतिरक्षी क्षमता विकसित होती हैं टीका लगाए गए व्यक्ति से क्षीण विषाणु का प्रसार दूसरे में होता है और वह भी पोलियो के प्रति एंटीबॉडी विकसित कर लेता है। विशेषज्ञों के अनुसार विरल मामलों में टीके में उपस्थित विषाणु उत्परिवर्तित (Mutated) होकर हानिकारक प्रभाव दे सकते हैं। इसे वैक्सीन डिराइव्ड पोलियो वायरस (VDPV) कहा जाता है।
  • WHO के अनुसार, 2000 से 2010 के बीच 2.5 करोड़ बच्चों को OPV के 10 करोड़ खुराक दिए गए। अत: 3.5 लाख से भी अधिक पोलियो मामलों की रोकथाम की गयी। इस दौरान 16 देशों में VDPV से ग्रसित 18 मामले दिखे जो बढ़कर 150 VDPV मामलों तक हो गया।
  • वर्तमान VDPV में की रोकथाम के लिए यही उपाय सामने दिख रहे हैं कि प्रत्येक बच्चे में प्रतिरक्षी तंत्र विकसित करने के लिए उसे कुछ समय तक ओरल वैक्सीन दिया जाए।
  • परन्तु यहाँ पर कुछ अन्य शोधों की चर्चा भी प्रासंगिक है। ऐसा पाया गया है कि ओरल पोलियो वैक्सीन की एक नकारात्मक प्रतिक्रिया वैक्सीन एसोसिएटेड पैरालीटिक पोलियो है। जब टीके में उपयोग किए गए विषाणु तंत्रिकातंत्र की नुकसान स्थिति में होते हैं तब पोलियो आघात करता है। समझा जाता है कि ओरल पोलियो वायरस में विद्यमान क्षीण विषाणु आनुवांशिक रूप से अस्थायी होते हैं। और इनमें वाइल्ड प्रकार के पोलियो विषाणु के रूप में उत्परिवर्तन की संभावना बनी रहती है। ये तंत्रिकातंत्र पर आघात करने की क्षमता विकसित कर लेते हैं। साथ ही इनमें आंशिक प्रतिरक्षित (Under-Immunised) बच्चों में पोलियों प्रसार की प्रवृत्ति भी होती है। प्रसंगवश, वाइल्ड पोलियों विषाणु और ओरल वैक्सीन के क्षीण विषाणु के बीच मात्र 15 प्रतिशत आनुवांशिक अंतर होता है। अत: इनमें उत्परिवर्तन की संभावना बनी रहती है।
  • ये VDPV पोलियो प्रसार में घातक भूमिका निभा सकते हैं। इन विषाणुओं का प्रसार कई महीनों तक बिना किसी दृश्य लक्षण के हो सकता है। जब कभी OPV खुराक में अनियमितता हो तो यह स्थिति उभर सकती है।
  • अत: भारत में वैज्ञानिकों का विचार बन रहा है कि OPV का लगातार प्रयोग करते हुए IPV (Inject able Polio Vaccine) का उपयोग प्रारंभ किया जाए। और एक बार IPV की उपयुक्त क्षमता विकसित कर लेने के बाद OPV के उपयोग को रोक दिया जाए।

खसरा (Measles)

  • यह एक संक्रमित बीमारी है। इस बीमारी का मुख्य कारण रूबीयोला विषाणु होता है। इस बीमारी को अन्य नामों रूबीयोला, रेड मीजल्स या हार्ड मीजल्स से भी संबोधित किया जाता है।
  • बुखार, फुंसी, खांसी, छींक, आँखों में लालिमा, खाने-पीने में परेशानी इस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं। खसरा दो प्रकार के होते हैं
  • रूबीयोला विषाणु दव्ारा होने पर इसे ‘मीजल्स’ या ‘रेड मीजल्स’ या हार्ड ‘मीजल्स’ कहते हैं। यह अधिक गंभीर बीमारी है। दूसरी ओर रूबेल्ला विषाणु दव्ारा जर्मन ‘मीजल्स’ या ‘3डे मीजल्स’ होता है। यह सामान्य प्रकार का होता है परन्तु गर्भवती महिला यदि इससे ग्रसित हो तब उसके गर्भस्थ शिशु को भी नुकसान पहुँच सकता है।
  • भारत के परिप्रेक्ष्य में यदि सेंट्रल ब्यूरो ऑफ हेल्थ इंटेलीजेंस (CBHI) की रिपोर्ट मानें तो खसरा के दर्ज मामलों की संख्या 2009 में 56,188 थी जो 2011 में 29,462 रह गई।
  • भारत सरकार ने 2010 में खसरा के मामलों का पता लगाने के लिए एक अभियान शुरू किया। इस अभियान में 13.5 करोड़ बच्चों की जांच की गई।
  • भारत सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मिलकर एक खसरा रक्षक अभियान भी प्रारंभ किया है। इस अभियान में खसरा रक्षक टीका बच्चे को जीवन में एक बार लगता है लेकिन इसके लक्षण पाए जाने के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन और केन्द्र सरकार ने इसे बच्चों को दूसरी बार लगाने के लिए देश भर में अभियान आरंभ किया है। दूसरे चरण में यह अभियान देश के 17 राज्यों में बताया जा रहा है।
  • वैज्ञानिकों ने खसरा वायरस को कैंसर जैसी बीमारी में उपयोगी तत्व के रूप में इस्तेमाल करने का दावा किया है। टेक्सास विश्वविद्यालय की एक रिसर्च टीम ने इससे संबंधित तकनीक बनाने में सफलता पायी है। शोधकर्ताओं ने एक ऐसा आण्विक तंत्र बनाया है जिसमें खसरा विषाणु को शरीर की कोशिकाओं के साथ इस तरह प्रवेश कराया जाता है कि यह कैंसर के ट्‌यूमर पर जाकर आक्रमण कर सके। शोधकर्ताओं के अनुसार यह विषाणु उसी कैंसर कोशिका पर आक्रमण करता है जिसका प्रोटीन विषाणु की कोशिका से मिलता-जुलता है। इससे यह होता है कि खसरा के विषाणु को उसी प्रोटीन से बनाने की कोशिश की जाती है जिसमें कैंसर का ट्‌यूमर बढ़ रहा है।