Science and Technology: Bio Technology: Polymerase Chain Reaction, PCR

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जैव प्रौद्योगिकी (Bio Technology)

पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (Polymerase Chain Reaction, PCR)

  • किसी जीव के जीनोम के संवर्द्धन के लिए प्रयुक्त यह तकनीक अत्यंत प्रभावकारी है। इस तकनीक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि डी. एन. ए. की पूरी लंबाई तक क्षारों के अनुक्रम पर इसकी निर्भरता होती है। इसके अंतर्गत तीन प्रक्रियाएं शामिल हैं। ये प्रक्रियाएं हैं- विगुणन (Denaturation) , तापानुशीतन (Annealing) तथा विस्तारण (Extension)
  • डी. एन. ए. के जिस अणु का प्रयोग इस विधि में किया जाता है उसे टार्गेट डी. एन. ए. (Target DNA or t-DNA) कहा जाता है। डी. एन. ए. के अणु को 95 - 98 डिग्री सेल्सियस तापक्रम तक 30 सेकेंड की अवधि तक गर्म किया जाता है जिससे उसकी दव्कुंडलनी संरचना में दोनों रज्जू एक-दूसरे से पृथक हो जातै हैं। इससे दो रज्जुओं का निर्माण होने के बावजूद उनकी पूरकता बनी रहती है।
  • पृथकीकरण के बाद पॉलिमरेज (Polymerase) नामक एन्जाइम की सहायता से प्रत्येक रज्जु की प्रतिलिपि बनाई जाती है। तकनीकी रूप से यहां यह उल्लेख आवश्यक है कि केवल पॉलिमरेज से यह कार्य संभव नहीं होता क्योंकि डी. एन. ए. की एक श्रृंखला का निर्माण बिना न्यूक्लियोटाइड के अनुक्रम की सहायता के नहीं हो सकता। इसी कारण प्राइमेज (Primase) नामक एक अन्य एन्जाइम आवश्यक होता है।
  • डी. एन. ए. के रज्जुओं के पृथकीकरण को विगुणन कहते हैं जबकि पॉलिमरेज की सहायता से पूरक रज्जुओं के निर्माण की विधि को तापानुशीतन कहते हैं। इस विधि में अणु को 55 डिग्री सेल्यिस तापक्रम तक ठंडा किया जाता है। प्रक्रिया के अंतिम चरण, जिसे विस्तारण कहते हैं, में एक के बाद प्रतिलिपि बनाई जाती है जो अन्तत: डी. एन. ए. की प्रतिलिपि का निर्माण करती है।

डी. एन. ए. फिंगरप्रिंटिंग (DNA Finger Printing)

मानव प्रजाति के सदस्यों की पहचान और उनमें व्याप्त भिन्नता की जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रयुक्त होने वाली तकनीक जिसे डी. एन. ए. फिंगरप्रिटिंग कहते हैं, आरंभिक विधियों में से एक है। इसका उपयोग वयस्कों, बच्चों तथा अजन्में बच्चों में आनुवांशिक रोगी की पहचान के लिए भी किया जाता है। हांलाकि इसका सबसे महत्वपूर्ण उपयोग अपराधियों की पहचान में है।

उल्लेखनीय है कि सभी जीव डी. एन. ए. के क्षार अनुक्रम के आधार पर एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। वास्तव में डी. एन. ए. फिंगरप्रिंटिंग किन्हीं दो व्यक्तियों के क्षार अनुक्रमों के तुलनात्मक अध्ययन की प्रक्रिया है। इसमें निम्नांकित चरण होते हैं:

  • पृथकीकरण (Isolation) : डी. एन. ए. का प्रतिदर्श (सैम्पल) शरीर की कोशिकाओं अथवा उत्तकों से प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए रक्त, बाल, त्वचा अथवा वीर्य की केवल थोड़ी सी मात्रा आवश्यक है।
  • प्रच्छालन (Washing) : पृथक किये गये डी. एन. ए. को प्रतिदर्श अथवा टी- डी. एन. ए. (Target DNA) कहते हैं। प्रोटिनेज (Proteinase) नामक एन्जाइम की सहायता से इसे प्रच्छालित किया जाता है। ऐसा करने से उसकी भौतिक अशुद्धियाँ दूर हो जाती हैं।
  • शुद्धिकरण (Purification) : प्रच्छालित प्रतिदर्श को क्लोरोफार्म और फेनॉल के मिश्रण में रखा जाता है ताकि इसकी रासायनिक अशुद्धियांँ दूर हो जाएं।
  • कर्तन, आकारन तथा वर्गीकरण (Cutting, Sizing & Sorting) : पृथक किये गये डी. एन. ए. के प्रतिदर्श में किसी विशिष्ट स्थान को काटने के लिए रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज (Res-triction End nuclease) नामक एन्जाइम का प्रयोग किया जाता है। टुकड़ों को उनके आकार के आधार पर छननी तकनीक (Sieving Technique) की सहायता से क्रमबद्ध कर लिया जाता है। इसे इलेक्ट्रोफोरेसिस (Electrophoresis) भी कहते हैं।
  • अभिरंजन (Staining) : अलग किये गये टुकड़ों को रंगने के लिए ईथीडियम, ब्रोमाइड (Ethidium Bromide) का प्रयोग होता हैं।
  • अवलोकन (Viewing) : पराबैंगनी प्रकाश का प्रयोग कर अभिरंजित टुकड़ों का अवलोकन किया जाता है।
  • हस्तांतरण (Transfer) : डी. एन. ए. के ऐसे टुकड़ों को नायलॉन की एक झिल्ली पर हस्तांतरित किया जाता है।
  • परीक्षण (Probing) : नायलॉन की झिल्ली पर रेडियोधर्मी अभिरंजित पदार्थ का प्रयोग करने पर एक विशिष्ट प्रतिमान प्राप्त होता है। उल्लेखनीय है कि कोई भी परीक्षण वाली वस्तु नायलॉन झिल्ली पर किसी एक अथवा दो स्थान पर ही चिपकती है।
  • फिंगरप्रिंटिंग (Fingerprinting) : इस प्रक्रिया दव्ारा प्राप्त झिल्ली को एक्स-किरणों की सहायता से एक प्लेट पर चित्रित किया जाता है। इसी चित्रण को डी. एन. ए. फिंगरप्रिंट कहते है।

डी. एन. ए. फिंगरप्रिंटिंग के अनुप्रयोग (Uses of DNA Finger Printing)

  • संदिग्ध व्यक्तियों को उनके जैव साक्ष्यों से संबद्ध करने के लिए यह तकनीक अत्यंत उपयोगी है।
  • पितृत्व की पहचान मेंं।
  • जन्म के पूर्व तथा उपरांत नवजात शिशुओं में आनुवांशिक रोगों की पहचान में। इन रोगों में सिस्टिक फाइब्रोसिस, हीमोफीलिया हन्टिंगटन रोग प्रमुख हैं।
  • इसका प्रयोग जीन परामर्शियों दव्ारा भावी माता-पिता को सूचना उपलब्ध कराने के लिए किया जाता है ताकि वे एक रोगयुक्त शिशु को जन्म देने के भयानक परिणामों से बच सके।
  • व्यक्तिगत पहचान के लिए।

जैव उपचार (Bioremediation)

तकनीकी रूप से जैव उपचार वह प्रक्रिया है जिसमें सूक्ष्म जीवों, जिन्हें समान्यत: जैव उत्प्ररेक भी कहा जाता है दव्ारा हानिकारक पदार्थों का अपक्षय कराया जाता है। अत: जैव उपचार के तहत उन नियंत्रित पर्यावरणीय दशाओं का निर्माण किया जाता है जिनमें सूक्ष्म जीवों को ऐसे अपघटन के लिए कार्यकुशल बनाया जा सके। हाल के वर्षों में जैव उपचार प्रदूषण निवारण की अत्यंत उपयोगी तकनीक के रूप में उभरा है। इस तकनीक में जीन अभियांत्रिकी दव्ारा रूपातंरित सूक्ष्म जीवों का प्रयोग किया जाता है।

अनुप्रयोग (Applications)

  • बायोगैस (Biogas) : मिथेन और कार्बनडायक्साइड से सम्मिश्रण को बायोगैस कहते हैं। इसका उपयोग शुष्क अवायवीय कम्पोस्टिंग नामक (Dry Anaerobic Composting, DRANCO) विधि में किया जाता है, जिसमें अपशिष्टों के अपघटन से बायोगैस का निर्माण होता है। इसका उपयोग ऊर्जा के रूप में किया जाता है। साथ ही, इस विधि में ह्‌यूमस जैसे पदार्थ का भी निर्माण होता है जो उर्वरा शक्ति बढ़ाने में कारगर है। इस विधि में आर्किबैक्टिरिया (Archaebacteria) नामक जीवाणु का प्रयोग किया जाता है।
  • पूतीभवन का प्रतिरोधन (Prevention of Eutrophication) : जैव उपचार की सहायता से प्रदूषित जल से नाइट्रेट को बाहर किया जाता है जिससे अंतत: पूतीभवन का प्रतिरोध होता है। इस कार्य में मिथाइलाफिलस मिथाइलोट्रोफस (Methyophilus methylotrophus) नामक जीवाणु का प्रयोग किया जाता है।
  • जैव फिल्म (Bio films) : किसी ठोस सतह पर सूक्ष्म जीवों के समुदायों के एकत्रीकरण को जैव फिल्म कहते हैं। जल अभिक्रिया संयंत्रों से निकलने वाली गैसें दूषित जल में प्रदूषकों का अपघटन करती हैं।
  • हानिकारक रसायनों का निष्कासन (Removal of Toxic Chemicals) : हानिकारक रसायन विशेषकर क्लोरिनयुक्त मिश्रण को दूषित जल से हटाने के लिए स्युडोमोनास सिपेसिया नामक (Pseudomonas cepacia) जीवाणु प्रयोग में लाया जाता है।