Science and Technology: Indigenization of Technological Development

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देशज रूप से प्रौद्योगिकी विकास (Indigenization of Technological Development)

देश में देशज प्रौद्योगिकी के कुछ अनुप्रयोग (Some Applications of Indigenous Tech. In the Country)

  • भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण दव्ारा कोलकाता एवं चेन्नई के वायु ट्रैफिक नियंत्रण केन्द्रों पर देशज प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके ऑटोमेटिक डिपेंडेंस सर्विलांस सिस्टम (ADSS) के सफल कार्यान्वयन ने भारत को दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र में इस उन्नत प्रौद्योगिकी का प्रयोग करने वाला पहला देश होने का गौरव प्रदान किया। इससे उपग्रह आधारित संचार प्रणाली का प्रयोग करके महासागरीय क्षेत्रों के ऊपर हवाई ट्रैफिक का प्रभावी नियंत्रण संभव हुआ है।
  • डां. अशोक झुनझुनवाला के प्रयत्न से सूचना प्रौद्योगिकी में नई दिशा की ओर प्रयास को महत्व मिला है। श्री झुनझुनवाला ने विचार किया कि दूरसंचार प्रणाली (दूरभाष) में सबसे अधिक व्यय तांबे की महंगी तारों का होता है। अत: उन्होंने इस समस्या का सस्ता समाधान निकालने का प्रयास किया। साथ ही निरंतर ‘केबल फॉल्ट’ के कारण खराब रहने वाले दूरभाष उपकरण की समस्या का भी स्थायी हल निकालने की युक्ति अपनायी। इसी सोच को ध्यान में रखते हुए उन्होंने प्रयास शुरू किए। परिणामस्वरूप डॉ. झुनझुनवाला और उनके सहयोगियों ने ‘कोर डेक्ट’ नामक एक बेतार प्रणाली विकसित की।
    • इस तकनीक के अंतर्गत दूरभाष सुविधा के लिए दूरभाष केन्द्र से उपभोक्ता के घर तक किसी तार की आवश्यकता नहीं होती। इसमें दूरभाष उपकरण वायु तरंगों दव्ारा कार्य करता है। इस प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता है- महंगी तांंबे के तारों की आवश्यकता समाप्त होना तथा इस कारण उत्पादन व्यय में आई भारी कमी के कारण डॉ. झुनझुनवाला दव्ारा विकसित इस तकनीक की लागत अन्य विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों दव्ारा विकसित ऐसी अन्य तकनीकों की तुलना में बहुत कम है।
  • प्रौद्योगिकी इन्क्यूबेशन एवं उद्यमशीलता विकास योजना (Technology Incubation and Entrepreneur Development Scheme) -सूचना प्रौद्योगिकी विभाग की उद्यमशीलता का प्रौद्योगिकी उन्नयन एवं विकास (टाइड) योजना वर्ष 2008 में प्रारंभ की गयी। इस योजना में इलेक्ट्रॉनिक्स, आईसीटी तथा प्रबंधन के क्षेत्र में बहुआयामी अवधारणा को अपनाया गया है।
    • इसके तहत देशज, उत्पाद तथा पैकेज के विकास को प्रोत्साहित करना, प्रौद्योगिकी उन्नयन केन्द्रों की स्थापना करना तथा इनका सुदृढ़ीकरण, उत्पादोन्मुख अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना जैसे उद्देश्य सम्मिलित किए गए हैं। यह योजना इलेक्ट्रॉनिक्स तथा सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में उत्पाद और पैकेज को देश में विकसित करने का लक्ष्य भी रखती है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी में अंतरराष्ट्रीय पेटेंट सुरक्षा योजना- अंतरराष्ट्रीय पेटेंट दायर करने के क्रम इलेक्ट्रॉनिक्स तथा सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय पेटेंट सुरक्षा योजना चलाई गयी है।
    • इस योजना के तहत एसएमई (लघु और मध्यम श्रेणी के उद्यम) तथा प्रौद्योगिकी आरंभ करने वाली इकाइयों को वास्तविक लागत की 50 प्रतिशत राशि की प्रतिपूर्ति की जाती है, जिसकी अधिकतम सीमा प्रति आवेदन 15 लाख रुपये है। इस योजना के दव्ारा सूचना प्रौद्योगिकी विभाग का उद्देश्य देशी नवोन्मेषी अनुसंधान को प्रोत्साहित करना तथा इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में विश्वव्यापी अवसरों को लाभ उठाने के लिए देश कंपनियों को प्रोत्साहित करना है।
  • ग्रामीण प्रौद्योगिकी की उन्नति योजना (Advancement of Rural Technology Scheme ARTS) -इस योजना का निर्देशन कार्य ग्रामीण प्रौद्योगिकी प्रगति परिषद् (कपार्ट) के अंतर्गत है। इस योजना के निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य हैं-
    • ग्रामीण क्षेत्रों के लिए प्रासंगिक अभिनव प्रौद्योगिकियों के विकास और प्रसार के सभी प्रयासों के समन्वय के लिए एक राष्ट्रीय नोडल स्थल के रूप में काम करना।
    • जरूरत आधारित परियोजनाओं की पहचान और निधीयन दव्ारा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी के विकास के लिए उत्प्ररेक के रूप में काम करना।
    • मशीनरी, औजारों, उपकरणों तथा कुल-पुर्जो के विनिर्माताओं और प्रयोक्ताओं को आवश्यक जानकारी देकर प्रमाणित प्रौद्योगिकियों के विपणन को सुलभ बनाना।
    • प्रादेशिक आधार पर स्वैच्छिक संगठनों का एक नेटवर्क तैयार करना जो ग्रामीण प्रौद्योगिकी के महत्व को समझ सके और फिर उसे ग्रामीण क्षेत्रों में ले जा सके।
    • ग्रामीण विकास एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काम कर रही सरकारी एजेंसियों, तकनीकी संस्थाओं तथा स्वैच्छिक एजेंसियों के बीच अंत: क्रिया बढ़ाने के लिए जागरूकता शिविर, प्रशिक्षित कार्यक्रम, बैठक, संगोष्ठियाँ, कार्यशालाएँ, सम्मेलन, परामर्श आयोजित करना या उन्हें समर्थन देना।
    • विकास कार्यक्रमों में उनकी प्रभावी भागीदारी के लिए ग्रामीण युवाओं, कारीगर महिलाओं तथा अन्य लक्षित समूहों की कुशलताओं के उन्नयन के लिए प्रदर्शन और प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित करने में स्वैच्छिक संगठनों की मदद करना।
  • जैविक खेती के स्तर पर भी देशज विधि के इस्तेमाल से लाभ दिखे हैं। भारत में पूर्व समय से ही गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद व जैविक खाद का प्रयोग विभिन्न फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए किया जाता रहा है। इस समय ऐसी कृषि विधियों की आवश्यकता है जिससे अधिकाधिक पैदावार मिले तथा मिट्‌टी की गुणवत्ता प्रभावित न हो। रासायनिक खादों के साथ-साथ जैविक खादों के उपयोग से मिट्‌टी की उत्पादन क्षमता को बनाए रखा जा सकता है।
    • अत: थोड़ी-सी मेहनत व प्रौद्योगिकी के प्रयोग से जैविक खाद तैयार की जा सकती है जिसमें पोषक तत्व अधिक होंगे और उसे खेत में डालने से किसी प्रकार की हानि नहीं होगी। साथ ही फसलों की पैदावार भी बढ़ेगी। जैविक खेती का महत्वपूर्ण लाभ यह देखा जा रहा है कि ‘देशी प्रजाति’ के अनाज की खेती को बढ़ावा मिला है। एक किसान जहाँ प्राय: संकर किस्म के बीजों का इस्तेमाल कर रहा था, लेकिन जैविक खेती के बेहतर परिणाम मिलने से उसने देशी किस्म के अनाजों का उत्पादन शुरू कर दिया।

प्रसंगवश, जैविक अनाज स्वास्थ्य दृष्टिकोण से भी लाभप्रद है। अच्छा स्वास्थ्य पाने के लिए लोग अब मोटे अनाज की ओर आकर्षित हुए हैं। इस प्रकार, जैविक खेती विषमुक्त कृषि की पहचान है। अर्थात इसके तहत स्वदेशी, स्वावलंबी एवं विषमुक्त खेती की पहल की जाती है।

भारत में रक्षा क्षेत्र में हालिया देशज विकास (Recent Indigenous Development in Defence in India)

  • भारत की रक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य रहा है कि यहाँ रक्षा प्राद्यौगिकी के देशज स्वरूपों का विकास हो एवं इनकी उपयोगिता को प्राथमिकता मिले। परन्तु यह भी स्पष्ट है कि देश आज भी रक्षा प्रौद्योगिकी स्तर पर विदेशी तकनीकों की प्राप्ति की अपेक्षा करता है।
  • देखा जाए तो रक्षा प्रौद्योगिकी क्षेत्र में स्वदेशीकरण की अपेक्षा भारतीय वायु सेना और भारतीय थल सेना कम ही करते हैं। दूसरी ओर, भारतीय नौसेना स्तर पर स्वदेशीकरण के विकास को अपनाया जा रहा है। भारतीय नौसेना युद्धक जहाजों का निर्माण अधिकांशत: भारतीय शिपयार्ड में ही करती है। इस दृष्टिकोण से यह तो स्वीकार्य है कि भारत के रक्षा शिपयार्ड ने युद्धक जहाजों की डिज़ाइनिंग और उनके निर्माण में समुचित कौशल अर्जित किया है परन्तु युद्धक जहाजों के महत्वपूर्ण उपकरणों और प्रणालियों का स्वदेशीकरण करने में भी जटिलताओं का सामना करना पड़ रहा है।
  • भारत के चार रक्षा शिपयार्डो- मझगांव डॉक लिमिटेड, गार्डनरीच शीपबिल्डर, गोआ शिपयार्ड लिमिटेड और हिन्दुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड को युद्धक जहाजों के इंजन, गैस टरबाईन, प्रणोदक प्रणाली, गियर बॉक्स, जेनेटर, हाइड्रॉलिक प्रणाली, एयर कंडिशनिंग एवं अन्य उपकरणों के लिए बाह्य देशों पर निर्भर रहना पड़ता हैं।
  • फिर भी, भारत के रक्षा क्षेत्र को स्वदेशी प्रौद्योगिकियों से युक्त करने के विभिन्न प्रयास किय जा रहे हैं। इससे देश इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर उन्मुख हुआ है। इस मद्देनजर निम्नलिखित गतिविधियों का उल्लेख किया जा सकता है-
    • रक्षा मंत्रालय ने वर्ष 2011 में अपनी प्रथम उत्पादन नीति घोषित की। इसका उद्देश्य रक्षा उत्पादन में स्वदेशीकरण को महत्व देना तथा इस क्षेत्र में लघु और मध्ययम उद्यमों को शामिल करना है। इस नीति में रक्षा उपकरणों के डिज़ाइन विकास और उत्पादन में स्वनिर्भरता हासिल करने पर बल दिया गया है। नीति के अनुसार भारत तभी विदेशों से हथियार प्राप्त करेगा। जब भारतीय रक्षा उद्योग नियम समय में वांछित आपूर्ति करने में सक्षम न हो। सरकार किसी भी ऐसे रक्षा उपकरण की खरीद विदेश में करेगी। जिनका स्वदेश में विकास और उत्पादन लंबित हो या फिर इसमें देरी हो रही हो। सरकार रक्षा उत्पादन को स्वदेशीकृत करने के लिए शोध एवं विकास स्तर पर धनापूर्ति करने के प्रति भी प्रतिबद्ध है। यह धनापूर्ति सार्वजनिक निजी क्षेत्रों, लघु और मध्यम उद्यमों, अकादामिक और वैज्ञानिक संस्थानों को की जा रही है।
    • हालाँकि इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारत कई वर्षों से रक्षा हथियारों की खरीद विदेशों से करता रहा है। यह पूरे विश्व में हथियारों के सबसे बड़े आयातक के रूप में उभरा है। चीन की भाँति एक सुदृढ़ रक्षा औद्योगिक बेस न रहने के कारण भारत अभी भी अपने सैन्य हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का 60 प्रतिशत से अधिक आयात करता है।
    • अत: हाल ही में स्वयं केन्द्रीय रक्षा मंत्री (श्री ए. के. एंटनी) ने स्पष्ट किया है कि किन्हीं विवादों की समाप्ति एवं भारतीय करदाताओं के धन का सदुप्रयोग करने के लिए यह आवश्यक है कि सैन्य हार्डवेयर सामग्रियों का अधिकांश स्वदेशीकरण किया जाए। इससे रक्षा व्यापार में लगे बिचौलियों को होने वाले निरर्थक लाभ को भी समाप्त किया जा सकेगा।
    • रक्षा मंत्री ने सैन्य बलों को यह परामर्श दिया है कि रक्षा आधुनिकीकरण को ध्यान में रखते हुए वे देश में ही अपनी आवश्यकताओं की आपूर्ति हेतु पहल करें।
    • इन्हीं आधारों पर भारत में स्वदेश निर्मित रक्षा उपकरणों के विकास में तेजी आयी है। उदाहरणस्वरूप भारत ने हाल ही में स्वदेश निर्मित विमानवाहक पोत ‘आईएनएस विक्रांत’ का निर्माण किया है। यह विकास स्पष्ट करता है कि भारत सरकार सैन्य उत्पादन के स्थानीयकरण की ओर अग्रसर हो रही है। इसी प्रकार भारत ने वर्ष 2009 में स्वदेश निर्मित परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत का निर्माण किया है।
    • पुन: भारतीय समुद्री सुरक्षा को नवीकृत करने के लिए पूर्णत: स्वदेश निर्मित उपग्रह जीसैट-7 का प्रक्षेपण हाल ही में किया गया है। जीसैट-7 भारत का प्रथम समर्पित उपग्रह है जिसका उपयोग रक्षा क्षेत्र में किया जा सकेगा। इसमें समुद्री संचार सहायता के लिए आवृत्ति बैंड लगे हैं। इस उपग्रह से भारतीय भूमि और आस-पास के समुद्री क्षेत्र पर वांछित नज़र रखी जा सकेगी।