Science and Technology: Malaria, Urban Malaria Scheme and AIDS

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स्वास्थ्य (Health)

विभिन्न बीमारियाँ (Various Diseases)

मलेरिया (Malaria)

  • मलेरिया प्लाज्मोडियम नामक प्रोटोजोआ के कारण होने वाला एक संक्रामक रोग है। इसके लिए प्लाज्मोडियम प्रोटोजोआ की चार प्रजातियाँ उत्तरदायी हैं, ये हैं-पी-फैल्सीपरम (P-Falciparam) , पी-वीवैक्स (P-Vivax) , पी-ओवेल (P-Ovel) तथा पी-मलेरियाई (P-Maleriai) इनमें से पी-फैल्सीपरम सर्वाधिक घातक तथा तीव्र आक्रमण करने वाला है। साथ ही इस पर दवाओं का बहुत ही सीमित प्रभाव होने के कारण ही यह सर्वाधिक संक्रमण भी करता है। उल्लेखनीय है कि मलेरिया के उत्तरदायी प्लाज्मोडियम नामक प्रोटोजोआ मादा एनोफिलिज मच्छर दव्ारा फैलता है।
  • हालाँकि मलेरिया के विषाणुओं पर दवाओं का प्रभाव तो पड़ता ही है लेकिन इन औषधियों के निरंतर उपयोग से ये विषाणु इन दवाओं के विरुद्ध प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर लेते हैं। इसी वजह से विगत सौ वर्षों से यह बीमारी पूरी दुनिया में व्याप्त है तथा अनेकों प्रयासों के बावजूद इसे न तो समाप्त किया जा सकता है और न ही नियंत्रित।
  • भारत में राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण योजना (National Malaria Control Programme: NMCP) - इस योजना का आरंभ 1953 में हुआ। पुन: 1958 में इस योजना को (WHO) की सहायता से राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन योजना (NMEP) में बदल दिया गया। इन कदमों का सकारात्मक प्रभाव देखा गया और मलेरिया रोगियों की वृहद संख्या में आनुपातिक कमी आयी।
    • लेकिन 1970 के दशक में फिर से देखा गया है कि कीटनाशकों के विरुद्ध मच्छरों की प्रतिरोधक क्षमता का विकास होने लगा। प्रभावकारी दवा कुनैन के विरुद्ध प्लाज्मोडियम परजीवी की प्रतिरोधक क्षमता में विकास हुआ।
    • सरकार ने स्थिति पर नियंत्रण पाने के प्रयोजन से 1977 में (WHO) की सहायता से रूपांतरित मलेरिया योजना (Modified Plan of Operation for the Eradication of Malaria-MPOEM) प्रारंभ किया।
    • इस योजना के उद्देश्य थे- केवल दवा छिड़काव ही नहीं बल्कि जैव तकनीक दव्ारा भी मच्छर पर नियंत्रण किया जाए। नई दवाओं की खोज की जाए और मलेरिया जागरूकता अभियान चलाया जाए।

बाद में 1997 में विश्व बैंक की सहायता से 8 राज्यों के 100 जिलों के 1045 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में संवर्धित मलेरिया नियंत्रण योजना (Enhanced Malaria Control Project-EMCP) प्रारंभ की गयी। इसके लिए प्राथमिक केन्द्रों का चयन निम्न आधार पर किया गया-

  • जहाँ पिछले तीन वर्षों में दो बार से अधिक मलेरिया का प्रकोप रहा हो।
  • जहाँ कुल मलेरिया मामलों का 30 प्रतिशत फैल्सीपेरम परजीवी का मामला रहा हो।
  • उस प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की 25 प्रतिशत या अधिक जनसंख्या आदिवासी हो।
  • जहाँ प्राथमिक केन्द्रों ने मलेरिया मृत्यु अधिक दर्ज की थी।
शहरी मलेरिया स्कीम (Urban Malaria Scheme)
  • इस स्कीम का क्रियान्वयन 19 राज्यों और केन्द्र शासित क्षेत्रों में राष्ट्रीय रोगाणु जनति रोग नियंत्रण कार्यक्रम (National Vector Borne Disease Control Programme) के तहत किया जा रहा है। इस स्कीम का प्रमुख लक्ष्य है कि मलेरिया के प्रभाव को इस स्तर तक कम किया जाए ताकि शहरी क्षेत्रों में लोग इसके प्रभाव से बच सके।
  • उल्लेखनीय है कि मलेरिया का सर्वाधिक दुष्प्रभाव निर्धन देशों के ग्रामीण क्षेत्रों में देखा गया है। मलेरिया रोगाणु वाहक मच्छर के काटने के बाद भी व्यक्ति को बहुत दिनों तक पता नहीं चल पाता है कि वे मलेरिया से संक्रमित हो गए हैं। इनमें से अनेक को सुलभ चिकित्सा नहीं मिल पाती है और जब चिकित्सा शुरू होती है तब तक मलेरिया परजीवी में दवा प्रतिरोधी क्षमता विकसित हो जाती है।
  • एक आकलन के अनुसार प्रति वर्ष मलेरिया के 200 लाख मामले सामने आते हैं और लगभग 660,000 लोगों की प्रति वर्ष मृत्यु हो जाती है। हाल के वर्षों में मलेरिया की जाँच के लिए रैपिड डायाग्नॉस्टिक टेस्ट (RDTs) का विकास हुआ है। यह जाँच प्रक्रिया परंपरागत जाँच से भिन्न है। बावजूद इसके (RDT) में भी कुछ सीमाएँ निहित हैं। अत: आवश्यकता यह है कि इस तकनीक से जाँच के लिए विश्वसनीय प्रशिक्षित कार्मिक उपलब्ध कराए जाएँ। साथ ही बिना किसी प्रशिक्षण के भी मलेरिया जाँच की विधि विकसित की गयी है।
  • युगान्डा के माकेरेरे विश्वविद्यालय (Makeree University) के छात्रों ने मलेरिया जाँच के लिए ऐसे ही एक उपकरण का विकास किया है। इसमें संक्रमण की जाँच के लिए प्रकाश संवेदी तंत्र का उपयोग किया जाता है। इसके जरिए शीघ्र ही रोगियों के बड़े समूह की जाँच की जा सकती है।
  • पुन: शोधकर्ताओं ने नैनोमल प्रोजेक्ट (Nanomal Project) पर कार्य आरंभ किया है। इसका उद्देश्य मलेरिया जाँच को अधिक सस्ता और प्रभावी बनाना है। विदित है कि प्रत्येक मलेरिया परजीवी में विशिष्ट डीएनए मार्कर होता है जो इन्हें एक-दूसरे से अलग करता है। प्रोजेक्ट के तहत उपयोग किए जाने वाले उपकरण में नैनोतार लगा होता है। इसके माध्यम से रक्त नमूने में उपस्थित परजीवी के डीएनए की जाँच की जाती है। हालाँकि इस जाँच को लेकर एक संदिग्धता यह उत्पन्न हो रही है कि अधिक दवा प्रतिरोधी परजीवी की उपस्थिति में क्या नवीन डीएनए मार्करों के अनुरूप इन उपकरणों को भी विकसित किया जा सकेगा। साथ ही इन उपकरणों की कीमत में भी कमी लाने की आवश्यकता है।
वैश्विक मलेरिया कार्यक्रम (Global Malaria Programme)
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन दव्ारा संचालित वैश्विक मलेरिया कार्यक्रम वैश्विक स्तर पर मलेरिया पर नियंत्रण और उसके उन्मूलन के लिए उत्तरदायी है। विश्व में मलेरिया प्रभावित देशों में कार्यक्रम के तहत मानक, नीतियाँ, निर्देश स्थापित किए जा रहे हैं। कार्यक्रम प्रतिवर्ष विश्व मलेरिया रिपोर्ट भी प्रकाशित करता है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन को समुचित परामर्श देने के लिए एक मलेरिया नीति परामर्शदात्री समिति (Malaria Policy Advisory Committee) की स्थापना भी की गयी है।

एड्‌स (AIDS)

  • एड्‌स शब्द (Acquired Immune Deficiency Syndrome) का संक्षिप्त रूप है। एड्‌स एचआईवी (Human Immune Deficiency Virus-HIV) आनुवांशिक रोग है। एड्‌स के विषाणु मानव शरीर की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को सुदृढ़ता प्रदान करने वाली टी-सहायक कोशिकाओं (T-Helping Cells) को न केवल विनष्ट ही करते हैं, बल्कि भविष्य में उनके पुनउत्पादन को भी बाधित करते हैं। टी-कोशिकाओं के इस तरह से नष्ट होने के कारण मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली काफी सीमा तक नष्ट हो जाने से शरीर विभिन्न प्रकार के संक्रामक रोगों को फैलाने वाले विषाणुओं का शिकार होने लगता है।
  • एड्‌स के प्रारंभिक लक्षण- एड्‌स के प्रारंभिक लक्षण कभी-कभी एक महीने बाद दिखते हैं। इस स्थिति में रोगी का वजन 10 प्रतिशत से अधिक घट जाता है या अधिक दिनों तक अतिसार की स्थिति बनी रहती है। प्राय: प्रारंभिक स्तर पर 2 - 4 सप्ताहों तक इन्फ्लूएंजा जैसे लक्षण दिखते हैं।
    • एड्‌स का कारण ए. आई. वी. है। एच. आई. वी. का पूर्ण ह्यूमन वायरस है। दूषित रक्त, वीर्य, मातृ दुग्ध आदि के स्थानान्तरण दव्ारा ए. आई. वी. का संक्रमण हो सकता है। ए. आई. वी. मानव प्रतिरक्षा प्रणाली की महत्वपूर्ण कोशिकाओं को संक्रमित कर देता है। ए. आई. वी. विषाणु का प्रसार आंसू या लार का रक्त के साथ या रक्त का रक्त के साथ होने वाले सम्मिश्रण से भी संभव है।
  • भारत में एड्‌स नियंत्रणकारी कदम- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा राष्ट्रीय एड्‌स यिंत्रण संगठन के संयुक्त तत्वाधान में 1992 में राष्ट्रीय एड्‌स नियंत्रण कार्यक्रम का आरंभ किया गया। इसे राष्ट्रीय एड्‌स नियंत्रण कार्यक्रम दव्तीय, 1999 तथा राष्ट्रीय एड्‌स नियंत्रण कार्यक्रम तृतीय, 2007 दव्ारा बढ़ा गया। पुन: इस कार्यक्रम का चतुर्थ चरण 2012 से प्रारंभ किया गया।
    • दिसंबर, 2012 तक भारत में एच. आई. वी. संक्रमित 21 लाख लोग रह रहे थे। 15 - 49 वर्ष की उम्र वाले लोगों में संक्रमण का अधिक जोखिम दिखता है। एड्‌स संक्रमण का आर्थिक प्रभाव तब स्पष्ट दिखता है जबकि संक्रमित व्यक्ति ही परिवार का पालन-पोषण करने वाला हो। सर्वाधिक प्रभावित लोगों में महिला यौनकर्ता, समलैंगिक और ड्रग सेवन करने वाले लोग हैं।
    • हाल के वर्षों में यह देखा गया है कि एच. आई. वी. संक्रमण के साथ-साथ टीबी का संक्रमण भी जुड़ गया है। ऐसी संबद्धता चिंतनीय है। इसी संबद्धता के कारण इन्हें ‘जुड़वा रोग’ भी कहा जाता है। वर्तमान में इस गंभीर बीमारी से सुरक्षा के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदमों पर ध्यान देने की आवश्यकता हैं-
      • कार्यक्रम प्रबंधन
      • निगरानी कार्य एवं शोध
      • सूचना, शिक्षा और संचार पर बल
      • गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका
      • लैंगिक जनित रोगों पर नियंत्रण
  • एड्‌स नियंत्रण हेतु हाल में हुए पहल- विश्व बैंक ने भारत के एड्‌स नियंत्रण कार्यक्रम को सहायता देने के लिए भारत के राष्ट्रीय एड्‌स नियंत्रण सपोर्ट प्रोजेक्ट में 255 लाख डॉलर का योगदान देने की घोषणा की है। उल्लेखनीय है कि इस प्रोजेक्ट में उद्देश्य रखा गया है कि वर्ष 2017 तक (प्रोजेक्ट का चतुर्थ चरण 2012 - 17) एच. आई. वी. के मामलों में अपेक्षित कमी लायी जाए।
    • आज भी एड्‌स पीड़ितों वाले देशों मेंं दक्षिण अफ्रीका और नाइजीरिया के बाद भारत का स्थान तीसरा है।
12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए एड्‌स नियंत्रण पर गठित कार्य समूह (Working Group on AIDS Control for 12th Five Year Plan)

केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में एड्‌स नियंत्रण विभाग के सचिव श्री सयण चटर्जी की अध्यक्षता में इस समूह का गठन किया गया। इस कार्य समूह के निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य हैं-

  • राष्ट्रीय एड्‌स नियंत्रण कार्यक्रम की वर्तमान स्थिति का पुनरावलोकन करना। 11वीं योजना के दौरान प्राप्त उपलब्धियों, कार्यक्रम क्रियान्वयन में आयी समस्याओं, निधीयों की उपयोगिता का अवलोकन करना।
  • स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं, पोषण, स्वच्छ जल, सैनिटेशन एवं शिक्षा की समुचित उपलब्धि हेतु उपाय दर्शाना।
  • एच. आई. वी. /एड्‌स से ग्रसित व्यक्तियों हेतु कौशल विकास और रोजगार की संभावनाएँ तलाशना।
  • मुख्यत: वंचित समूहों (सेक्स वर्कर्स, समलैंगक, ड्रग सेवनकर्ता इत्यादि) की सुरक्षा हेतु पहल पर विचार करना और एच. आई. वी. /एड्‌स से अधिक प्रभावित क्षेत्रों (उत्तर -पूर्व क्षेत्र, गोवा, पंजाब, तमिलनाडु इत्यादि) हेतु नवीन रणनीति अपनाना।
  • 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान आवश्यक वित्त निर्धारित करना।
  • यू. एन. एड्‌स विश्व एड्‌स दिवस रिपोर्ट: 2012: रिपोर्ट के अनुसार भारत में गत दशक में नवीन एच. आई. वी संक्रमण की दर 57 प्रतिशत तक गिरी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलू स्तर पर इस मद्देनजर अधिक वित्तयन किया गया है।
    • भारत ऐसे चार एशियाई देशों में से एक है जहाँ एच. आई. वी. पीड़ितों की संख्या अधिक है। हालाँकि यहाँ नए एच. आई. वी. संक्रमण में 50 प्रतिशत की कमी आयी है। अन्य तीन देश हैं-म्यामार, पापुआ, न्यूगिनी और थाईलैंड।
  • 17वां (ICASA) (इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन एड्‌स एंड एसटीआई इन अफ्रीका) सम्मेलन 2013: इस सम्मेलन का आयोजन केपटाऊन में 7 से 11 दिसंबर के दौरान होगा। सम्मेलन में विभिन्न देशों के लगभग 10000 प्रतिनिध सम्मिलित होंगे। सम्मेलन में एड्‌स की रोकथाम पर व्यापक चर्चा के साथ युवा शोधार्थियों को पुरस्कृत भी किया जाएगा।
  • 20वाँ अंतरराष्ट्रीय एड्‌स सम्मेलन, मेलबॉर्न: इस सम्मेलन का आयोजन मेलबॉर्न (ऑस्ट्रेलिया) मेें 20 - 25 जुलाई, 2014 के दौरान होना है। इस सम्मेलन में एशिया -प्रशांत क्षेत्र में एच. आई. वी. संक्रमण की विविध प्रकृति पर विशेष चर्चा की जाएगी। सम्मेलन में इस रोग की रोकथाम के लिए ठोस पहल पर विचार किया जाएगा। इस सम्मेलन में वैज्ञानिकों, सरकार और समुदाय के साथ साझेदारी करते हुए जमीनी स्तर से समुचित क्रियान्वयन को प्राथमिकता दी जाएगी।
  • एंटीरिट्रोवायरल थेरेपी (ART) : विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस थेरेपी दव्ारा त्वरित चिकित्सा पर बल दिया है। इसमें एच. आई. वी. पीड़ित अधिक दिनों तक अपेक्षाकृत स्वस्थ जीवन जी सकते है। इस चिकित्सा के परिणामस्वरूप 2025 तक 3.5 लाख नए एच. आई. वी. संक्रमण की रोकथाम की जा सकेगी और एच. आई. वी. संक्रमण के कारण लगभग 3 लाख लोगों की मृत्यु की संभावना रूक सकेगी।