Science and Technology: Recent Indigenous Development in Space in India

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देशज रूप से प्रौद्योगिकी विकास (Indigenization of Technological Development)

भारती में अंतरिक्ष क्षेत्र मे हालिया देशज विकास (Recent Indigenous Development in Space in India)

  • भारत जैसे अंतरराष्ट्रीय रूप से उभरते देश के लिए यह आवश्यक है कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी क्षेत्र में देशज विकास को प्रोत्साहित किया जाए। यह विकास न केवल प्रौद्योगिकीय निर्भरता को समाप्त करेगा बल्कि आर्थिक आत्मनिर्भरता को भी सुदृढ़ करेगा। अत: देश के प्रमुख अंतरिक्ष संगठन इसरो (ISRO) ने स्वदेशी तकनीकी के प्रोन्नयन को प्रमुखता दी है।
  • हाल के वर्षों में इसरो ने सूचना उपग्रहों के घरेलू विकास पर बल दिया है। पहले ये उपग्रह विदेशों से प्राप्त किये जाते हैं। इसी प्रकार भारत विदेशी प्रक्षेपण सेवाओं पर से अपनी निर्भरता कम करता हुआ स्वयं प्रक्षेपण सेवा प्रदाता के रूप में परिणत होता जा रहा है।
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 में भारत दव्ारा संचालित प्रथम चंद्र अभियान चन्द्रयान-1 अंतरिक्ष में देश के स्वदेशी तकनीक विकास की बहुत बड़ी उपलब्धि था। गत फरवरी माह में इसरो ने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपणयान C20 सरल मिशन का सफलतम संचालन किया। इस अवसर पर स्वयं भारतीय राष्ट्रपति ने स्वदेशी तकनीकी विकास में इसरो की लगातार उपलब्धियों की सराहना की। उन्होने का कि भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम अब अनुप्रयोग उन्मुखता की ओर पहल करने लगा है।
  • विद्ति हो कि हाल के वर्षों में इसरो ने कार्टोसैट-2B, मेघाट्रोपिक्स, रीसैट-1 सहित अनेक महत्वपूर्ण प्रक्षेपण कार्य सम्पन्न किए हैं। राष्ट्रप्रति ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के देशज विकास को इंगित करते हुए कहा कि नवाचार और तकनीकी उन्नति को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। इस मद्देनजर इसरो की प्रासंगिक भूमिका महत्व रखती है। उन्होने कहा कि इस उद्देश्य पर ध्यान रखा जाना चाहिए कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी विकास और अनुप्रयोगों में कम लागत के लिए नवाचार प्रोत्साहन एक प्रमुख कारक है। इसरो ने गत जुलाई माह में भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS-IA) का सफल प्रक्षेपण कर नौवहन क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को और सुदृढ़ किया है। इस प्रणाली के वर्ष 2015 तक पूरी तरह संचालनमान होने की आशा की जा रही है। इससे भारत की जीपीएस तकनीकी पर निर्भरता कम हो सकेगी।
  • भारत सरकार ने अंतरिक्ष क्षेत्र में विकास के लिए एक दीर्घावधिक योजना बनायी है। इस योजना का नाम विजन 2025 है। इसके तहत अंतरिक्ष शोध कार्यक्रम के लक्ष्यों की पहचान तकनीकी आवश्यकताओ को आपूर्ति वर्ष 2025 तक करने पर बल दिया गया है।
  • इस अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत पुनरोपयोगी प्रक्षेपणयान तकनीक और मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम (Human Space Flight Programme) के लिए क्रिटिकल प्रोद्योगिकी सहित उन्नत प्रक्षेपण यान प्रणालियों का विकास करना सम्मिलित है।

भारत में जैव प्राद्योगिकी क्षेत्र में हालिया देशज विकास (Recent Indigenous Development in Bio-Tech.in India)

  • भारतीय जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र देश में महत्वपूर्ण ज्ञानाधारित क्षेत्रों में से एक हैं। राजकोषीय वर्ष 2012 - 13 में इस क्षेत्र में 18.5 की वृद्धि दर्ज की गई। अर्न्स्ट एवं यंग नामक संस्था दव्ारा हाल ही में जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 तक इस क्षेत्र को 11.6 बिलियन डॉलर के राजस्व की प्राप्ति हो सकती है।
  • भारत सरकार ने हाल के वर्षों में जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में स्वतंत्र नियामक की स्थापना का प्रयास किया है। जैव प्रोद्योगिकी क्षेत्र में देशज विकास की अलोक में भारत बायोटेक (Bharat Biotech) की उल्लेखनीय भूमिका रही है। यह संगठन नए टीकों का विकास शोध कार्य विकास के प्रति उत्तरदायी है।
  • इसने हाइमैक्स तकनीक (HIMAX Technology) का विकास किया है। यह पुनर्संयोजित डीएनए तकनीक (Recombinant DNA Technology) का एक रूप है। इस तकनीक से विश्व के एकमात्र सीजियम क्लोराइड मुक्त हेपेटाइटिस B टीके का निर्माण किया गया है। इस टीके का नाम Re vac B+ है। यह टीका हेपेटाइटिस B विषाणु के प्रति गैर संक्रमणकारी प्रमुख प्रतिजन (Antigen) की भूमिका निभा सकता है।
  • हाल ही में भारत बायोटेक ने टाइबर-टीसीवी (Typbar -TCV) नामक कॉन्जुगेट टायफाइड टीका बनाया है। यह टीका विश्व का प्रथम नैदानिक रूप से परीक्षित टीका है। यह टीका बच्चों के लिए दीर्घावधिक स्तर पर लाभकारी हो सकता है। 6 माह के बच्चों को ये टीके दिए जा सकते हैं।
  • जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में लाभकारी, स्वस्थ और कम लागत वाले उत्पाद निर्माण के क्षेत्र में भारत ने महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं। सर्वविदित है कि भारत में पादपों, जीव-जन्तुओं और पारंपरिक दवाओं का व्यापक विस्तार है। अत: भारत ने औषधि, कृषि और औद्योगिकी क्षेत्रों में जैव प्रौद्योगिकीय माध्यम से नवाचार किए हैं। हाल के वर्षों में ऊतक संवर्द्धन तकनीक की सहायता से यूकेलिप्टस बाँस नारियल, चंदन पादपों को व्यापक स्तर पर उपजाया जा रहा है।
  • भारतीय जैव प्रौद्योगिकी उद्यमों में जीवन रक्षक दवाओं का निर्माण किया जा रहा है। ये दवाएँ रक्त कोलेस्टरॉल के स्तर को कम कर हृदयाघात की संभावना को कम कर सकती हैं। इसी प्रकार शैनवॉक (Shanvac) नामक प्रथम पुनर्संयोजित टीेके का विकास किया है। यह टीका हेपेटाइटिस बी रोग से रक्षा में सहायक हो सकता है। कैंसररोधी दवाओं का भी विकास किया गया है।
  • भारत में प्रथम जैव प्रौद्योगिकी फसल के रूप में बीटी कपास (Bt Cotton) का विकास किया गया। यह एक कीटनाशक पौधा होता है। इसके विकास के लिए ‘क्राई प्रोटीन’ या बीटी टॉक्सिन नामक कीटनाशी प्रोटीन कूटित नैसिलस थ्यूरेनजिएनसिस नामक मृदा जीवाणु (Soil Bacterium) से जीन का स्थानांतरण किया जाता है।

भारतीय जैव प्रौद्योगिकी नियामक प्राधिकरण विधेयक 2013 (The Bio Technology Regulatory Authority of India: BRAI Bill 2013)

  • गत अप्रैल माह में यह विधेयक लोकसभा में रखा गया। विधेयक का मूल ध्येय विकास के लिए आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी का सुरक्षित उपयोग करना है। इस विधेयक के अंतर्गत आनुवांशिक रूप से संवर्द्धित फसलों के उपयोग को स्वीकृति का उल्लेख किया गया है, परन्तु इस स्वीकृति में आम लोगों की आवश्यकताओं और उनकी भलाई का विचार नहीं किया गया है।
  • इस विधेयक में प्रावधानित कारकों के अनुसार खाद्य और कृषि क्षेत्र में संकट उत्पन्न होने की संभावना जतायी गयी है। इस विधेयक में पारदर्शिता की कमी है। अर्थात जनहित से संबंधित सूचनाएँ केन्द्रीय सूचना आयोग या दिल्ली उच्च न्यायालय को प्रदान करने के स्थान पर संबंद्ध प्राधिकारी को दिए जाने की बात कही गयी है। ऐसे में BRAI के क्रियान्वित होने की स्थिति में जीएम फसलों की सुरक्षा संबंधी जानकारियाँ प्राप्त करने के नागरिकों के अधिकार समाप्त हो जाएंगे।
  • ब्राई विधेयक (BRAI Bill) में दीर्घावधिक जैव सुरक्षा से संबंद्ध कोई उल्लेख नहीं है। इस विधेयक में निर्णय निर्माण प्रक्रिया में जन भागीदारी को नगण्य माना गया है। विधेयक में किए गए प्रावधान के अनुसार गठित होने वाली समितियों में जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र के विशेषज्ञों की नियुक्ति के स्थान पर सरकारी पदाधिकारियों की नियुक्ति का प्रयोजन किया है।

इसके अतिरिक्त जीएम फसलों के आकलन के लिए सामाजिक आर्थिक स्तर पर अध्ययन को नजरअंदाज किया गया है। इस विधेयक के जरिए जीएम खाद्य फसलों के उत्पादन को स्वीकृत मिलने से बाजार से इन्हीं फसलों की अधिकता हो जाएगी। अत: ऐसे में उपभोक्ताओं को प्राप्त विकल्प समाप्त हो जाएगा और वह अपनी इच्छानुसार खाद्य फसल की प्राप्ति नहीं कर सकेगा। उपरोक्त अवरोधों के आलोक में इस विधेयक को जनहितकारी तथा पर्यावरण हितैषी बनाने के लिए सरकार की कुछ परामर्श दिए गए हैं जैसे-

  • जीएमओं के विनियमन के लिए पर्यावरण और वन मंत्रालय को नोडल एजेंसी बनाया जाए।
  • विधेयक के जरिए राज्यों को भी कुछ अधिकार दिए जाने चाहिए ताकि वे जन स्वास्थ्य और कृषि मामलों में यथोचित निर्णय ले सके।
  • राज्य के मुख्य सचिव या पर्यावरण विभाग के प्रधान सचिव की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय जैव सुरक्षा सुरक्षात्मक समिति (Bio safety Protection Committee) का गठन किया जाए। इस समिति की कुछ निर्णय निर्माणकारी शक्तियाँ भी हों।
  • किसी भी प्रकार के जोखिम को समाप्त करने की पहल की जाए।
  • विधेयक में निगरानी, पुनरीक्षा, रोकथाम व्यवस्था होनी चाहिए ताकि प्रतिकूल प्रस्तावों को समाप्त किया जा सके।