Science and Technology: Energy and Ultra Mega Power Projects

Glide to success with Doorsteptutor material for CTET-Hindi/Paper-1 : get questions, notes, tests, video lectures and more- for all subjects of CTET-Hindi/Paper-1.

ऊर्जा (Energy)

अल्ट्रा मेगा विद्युत परियोजनाएं (Ultra Mega Power Projects)

  • संयुक्त राज्य अमेरिका के सहयोग से भारत सरकार ने कोयला आधारित अल्ट्रा मेगा विद्युत परियोजना के विकास के लिए पहल शुरू की है, जिसमें से प्रत्येक परियोजना की क्षमता 4000 मेगावाट अथवा उससे अधिक है। मूलत: केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण दव्ारा प्रस्तावित यूएमपीपी के लिए नौ राज्यों को चुना गया है। इन नौ राज्यों के निम्नलिखित स्थानों पर अल्ट्रा मेगा पावर परियोजना स्थापित होनी है-सासन (मध्य प्रदेश) , मुंद्रा (गुजरात) , कृष्णपट्‌टनम (आंध्र प्रदेश) , तिलैया (झारखंड) , गिरयी (महाराष्ट्र) , तादरी (कर्नाटक) , साल्का खमेरिया, सरगुजा (छत्तीसगढ़) सुन्दरगढ़ (उड़ीसा) , येच्चुर और मरक्कनम (तमिलनाडु) ।
  • आंध्र प्रदेश के अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट के लिए न्यूनीपल्ली में स्थल का चुनाव किया गया है और आंध्र प्रदेश सरकार ने इसे अनुमोदित कर दिया है।

गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत (Non-Conventional Energy Sources)

बायोगैस (Biogas)

यह गैस जीवों के उत्सर्जित पदार्थों (मुख्यत: मवेशियों के गोबर) से प्राप्त की जाती है। इस गैस में 55 से 65 प्रतिशत तक मीथेन, 35 से 40 प्रतिशत कार्बन डाई ऑक्साइड तथा अन्य गैसों की कुछ मात्रा होती है। इसके निर्माण के लिए एकत्रित अवशिष्ट पदार्थों को कम ताप पर विशेष प्रकार से निर्मित डाइजेस्टर में चलाकर माइक्रोब प्राप्त किए जाते हैं, जिनसे ऊर्जा मिलती हैं। चूंकि भारत में मवेशियों की संख्या विश्व में सर्वाधिक है। अत: यहाँ बायोगैस के विकास की बहुत संभावना है। बायोगैस से ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के अतिरिक्त बहुत उत्तम गुणवत्ता की कार्बनिक खाद भी प्राप्त होती है तथा ग्रामीण इलाकों में पर्यावरण की सफाई में भी सहयोग मिलता है। इसका प्रमुख उपयोग ग्रामीण इलाकों में भोजन पकाने के ईंधन के रूप में तथा प्रकाश की व्यवस्था करने में किया जा रहा है।

राष्ट्रीय बायोगैस विकास कार्यक्रम (National Biogas Development Programme)

बायोगैस संयंत्रों को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से इस कार्यक्रम को 1981 - 82 में प्रारंभ किया गया। इस कार्यक्रम के प्रमुख उद्देश्य हैं:

  • ग्रामीण इलाकों में स्वच्छ तथा सस्ते ऊर्जा स्रोत उपलब्ध कराना।
  • रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग में पूरक के रूप में समृद्ध जैविक खाद तैयार करना।
  • सफाई व स्वच्छता की स्थिति सुधारना और स्त्रियों को उबाऊ काम से मुक्ति दिलाना।
    • इस कार्यक्रम के अंतर्गत तीन प्रकार के डिज़ाइनों वाले बायोगैस संयंत्र बनाए जा रहे हैं। ये है-खादी एवं ग्रामोउद्योग बोर्ड के तैरते हुए ड्रम वाला संयंत्र, रबडयुक्त नाइलोन के कपड़े से बना संयंत्र तथा थैलानुमा डाइजेस्टर संयंत्र। इन संयंत्रों को स्थापित करने से पूर्व इतनी सावधानी रखनी पड़ती है कि संयंत्र के 15 मीटर की परिधि में कोई पेयजल स्रोत नहीं होना चाहिए।
    • अनुसंधान एवं विकास तथा प्रौद्योगिकी में सुधार के दव्ारा ऐसे डिजाइन तैयार किये जा रहे है, जिनका उपयोग कम तापमान पर किया जा सके और या शीत जलवायु वाले इलाको को भी इसके उपयोग का लाभ पहुंचाया जा सके। संयंत्रों में जल की आवश्यकता को भी कम किया जा रहा है तथा रख रखाव को भी और अधिक आसान बनाने के प्रयास जारी हैं। अधिक से अधिक लोगों तक इसका लाभ पहुंचाने के लिए और छोटे बायोगैस संयंत्र का डिज़ाइन तैयार किया जा रहा है।

बायोमास ऊर्जा (Biomass Energy)

देश के ग्रामीण इलाकों में ईधन का प्रमुख स्रोत लकड़ी तथा उसके बाद कृषि अवशिष्ट पदार्थ है। ये सभी बायोमास के अंतर्गत आते हैं तथा इन्हें जलाने से ऊर्जा की प्राप्ति होती हैं अर्थात बायोमास जैव ऊर्जा का एक स्रोत हैं। बायोमास को सीधे ही अकुशल रूप से जलाने की सामान्य पद्धति से कम ऊर्जा की प्राप्ति होती हैं तथा प्रदूषण फैलाने से मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अत: बायोमास के अधिक कुशल व वैज्ञानिक तकनीक से जैवाण्विक संवर्द्धन दव्ारा मीथेन निर्माण कर अथवा यीस्ट फर्मेटेशन दव्ारा इथेनॉल का निर्माण कर ऊर्जा प्राप्त करने के प्रयास किये जा रहे हैं।

इसके अंतर्गत दो प्रमुख घटक हैं:

  • बायोमास ब्रिकेटिंग और
  • बायोमास गैसीकरण।

ब्रिकेटिंग कार्यक्रम के तहत कृषि, वन एवं औद्योगिक अवशिष्टों से बायोमास पिंड का निर्माण होता है। अनुमान है देश में प्रतिवर्ष लगभग 14.5 करोड़ टन फालतू कृषि अवशिष्ट उपलब्ध हैं, जिसे पिंडों में परिवर्तित करके लगभग 19,500 मेगावट ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है। बायोमास गैसीकरण कार्यक्रम के तहत औद्योगिक उपयोगों के लिए ताप ऊर्जा उत्पन्न करने, पानी की पंपिंग और विद्युत पैदा करने के लिए बायोमास गैसफायर के तीन किलोवाट से 500 किलोवाट तक की क्षमता वाले 12 डिजाइन तैयार किए गए हैं। इन गैसीफायरों में लकड़ी के टुकड़े, नारियल के खोपों आदि से बायोमास का प्रयोग किया जाता है। 500 किलोवाट क्षमता का एक गैसीफायर पश्चिम बंगाल के सुंदरवन दव्ीप में कार्यरत है। तमिलनाडु के कून्नूर स्थित फैक्टरी में चाय की पत्तियों को सुखाने के लिए तथा कर्नाटक के तुम्कुर जिले के एक गांव में विद्युतीकरण के लिए गैसीफायर का उपयोग किया जा रहा है।

सौर ऊर्जा (Solar Energy)

सूर्य, ऊर्जा का सबसे अधिक प्रत्यक्ष एवं विशाल स्रोत है। यह पृथ्वी पर वायु प्रवाह तथा जल चक्र की निरंतरता बनाए रखने के लिए आवश्यक शक्ति प्रदान करता है तथा समस्त जीवन को संपोषित करता है। पौधे सौर ऊर्जा का उपयोग करते हुए प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया दव्ारा अपना भोजन तैयार करते हैं और इसी भोजन के दव्ारा इस पृथ्वी पर मानव तथा अन्य जंतुओं का संपोषण होता है। सूर्य के क्रोड में हाइड्रोजन के नाभिक अत्यधिक तीव्र गति से गतिशील रहते हैं। जब ये नाभिक परस्पर संलयित होकर अधिक द्रव्यमान वाले तत्वों के नाभिक बनाते हैं, तब अत्यधिक परिमाण में ऊर्जा विमोचित होती है। यही वह सौर ऊर्जा है जो सूर्य से विकिरण दव्ारा फोटॉन के रूप में पृथ्वी पर हमें प्राप्त होती है। पृथ्वी के वायुमंडल की ऊपरी सतह का प्रत्येक वर्ग मीटर लगभग 1.36 जूल सौर ऊर्जा प्रति सेकंड प्राप्त करता है।

सौर तापीय ऊर्जा (Solar Thermal Energy)

सौर ऊर्जा को तापीय ऊर्जा में बदलने के लिए सौर संग्राहकों एवं रिसीवरों का प्रयोग किया जाता है। सौप ताप यंत्रों को तीन वर्गों में बांटा गया हैं ये हैं- निम्न ग्रेड यंत्र (< 1000C) , मध्यम ग्रेड यंत्र (1000C-3000C) , उच्च ग्रेड यंत्र (> 3000C) । सौर संग्राहकों और उन्नत डिजाइन वाले रिसिवरों के मदद से सौर ऊर्जा दव्ारा 1000 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर वाष्प उत्पन्न की जा सकती है। सौर ताप यंत्रों का प्रयोग पानी गरम करने, भोजन पकाने, पानी को लवणमुक्त करने, स्थान गरम करने औद्योगिक ताप प्रक्रिया एवं विद्युत उत्पादन उपयोगों हेतु वाष्प उत्पन्न करने तथा रेफ्रीजरेशन प्रणालियों के परिचालन आदि के लिए किया जाता है निम्न ग्रेड सौर ताप यंत्रो जैसे सौर वाटर हीटर, सोलर कुकर, सौर ड्रायर आदि का भारत दव्ारा स्वदेशी तकनीक से 50 लीटर प्रतिदिन से लेकर 20000 लीटर प्रतिदिन तक की सौर जल उष्मन क्षमता वाले सौर ताप यंत्राेें का देश में विकास किया जा चुका है तथा इनका घरेलू वाणिज्यिक और औद्योगिक उपयोग किया जा रहा है। राजस्थान के जोधपुर जिले में मथानिया गांव में 140 मेगावाट की एक समन्वित सौर संयुक्त चक्र बिजली सहित 35 मेगावाट की पहली सौर ताप ऊर्जा प्रणाली की स्थापना की गई। खाना बनाने के लिए विश्व की सबसे बड़ी सौर वाष्प प्रणाली आंध्र प्रदेश में तिरूमला में स्थापित की गई है, जिससे 15,000 लोगों का भोजन एक साथ बनाया जा सकता है। सौर तापीय ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहन देने के लिए किए जाने वाले कुछ कार्य निम्न हैं:

  • इमारतों में सौर अनुकूल वास्तुकला का प्रयोग करने का प्रयास करना।
  • शीत जलवायु क्षेत्रों में सब्जियों, फूलों आदि के उत्पादन के लिए ग्रीन हाउस प्रौद्योगिकी का विकास करना।
  • प्रमुख शहरों में आदित्य सौर दुकान का खोला जाना ताकि सौर ताप उपकरणों की बिक्री, उनके रख-रखाव व मरम्मत तथा सूचना के वितरण का कार्य किया जा सके।

सौर ऊर्जा केन्द्र (Solar Energy Centre)

यह दिल्ली के समीप हरियाणा में ग्वाल पहाड़ी पर स्थित है, जो भारत में सौर ऊर्जा अनुसंधान विकास एवं प्रोत्साहन के प्रति समर्पित शीर्ष संस्थान है। यह केन्द्र सौर ऊर्जा उत्पादों के परीक्षण और प्रमाणीकरण के लिए राष्ट्रीय संस्था के रूप में कार्य करता है तथा विकासशील देशों के समूह (जी-15) के बीच सौर ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग के लिए समन्वय करने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों में भाग लेता है।

सौर फोटोवोल्टाइक ऊर्जा (Solar Photovoltaic Energy)

सौर ऊर्जा को फोटोवोल्टाइक सोलर सेलों दव्ारा सीधे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है। ये फोटोवोल्टाइक सेल अति ऊर्जा विशुद्ध पॉली क्रिस्टलाइन सिलिकॉन से बनाए जाते हैं। सिलिका पृथ्वी की पर्पटी में बड़ी मात्रा में पाया जाने वाला तत्व हैं, परन्तु पॉली क्रिस्टलाइन सिलिकॉन की पूंजीगत लागत अधिक होने से यह अपेक्षाकृत महंगी तकनीक है। अत: पूंजीगत लागत खर्च को कम करने के उद्देश्य से थिन फिल्म एमाफस सिलिकॉन (TFAS: Thin Film Amorphous Silicon) के प्रयोग हेतु अनुसंधान किया जा रहा है। सौर फोटोवोल्टाइक प्रौद्योगिकी का आधारभूत सिद्धांत प्रकाश विद्युत प्रभाव है। इस प्रौद्योगिकी में विद्युत उत्पादन के लिए टरबाइन आदि चालक पुर्जों के प्रयोग की आवश्यकता नहीं होती। एकल सिलिकॉन क्रिस्टलन सौर सेलों पर आधारित कई यंत्रों के निर्माण किए गए हैं। इनका प्रमुख उपयोग सौर लालटेन, घर एवं सड़क पर प्रकाश व्यवस्था सौर पंप सामुदायिक प्रकाश व्यवस्था, रेल सिग्नल, अपतटीय प्लेटफार्मो के दूरसंचार उपकरणों के लिए विद्युत ऊर्जा, ग्रामीण दूरभाष प्रणािलियों रेडियों, टेलीविजन, प्रतिरक्षा के क्षेत्र में सौर फोटोवोल्टाइक ऊर्जा उपलब्ध कराने के लिए किया जाता है।