Science and Technology: Gene Therapy and Benefits of Gene Therapy

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जैव प्रौद्योगिकी की तकनीकें (Technologies of Biotechnology)

जीन चिकित्सा (Gene Therapy)

हमारे शरीर में हजारों बीमारियाँ ऐसी हैं, जो या तो किसी जीन की संरचना में आए विकार के परिणामस्वरूप होती हैं या फिर किसी आवश्यक जीन की अनुपस्थिति के कारण। जैव प्रौद्योगिकी की सहायता से ऐसी बीमारियों का उपचार अब संभव हो गया है। जीन चिकित्सा के माध्यम से अनुपस्थित अथवा विकृत जीन की पहचान करके उसे काटकर उसकी जगह दोषमुक्त जीन के जीनोम को प्रतिस्थापित कर दिया जाता है।

जीन चिकित्सा के अंतर्गत मुख्य रूप से तीन विधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं-

  • जीन प्रतिस्थापन (Gene Replacement)
  • जीन सुधार (Gene Correction)
  • जीन ऑगमेंटेशन (Gene Augmentation)

विकृत अथवा दोषमुक्त जीन के स्थान पर विकृतहीन स्वरूप जीन को प्रतिस्थापित करने की प्रक्रिया जीन प्रतिस्थापन (Gene Replacement) कहलाती है, जबकि जीन सुधार (Gene Correction) के अंतर्गत जीन में आए आण्विक विकारों को थोड़ा परिवर्तित करके उसे ठीक किया जाता है। कोशिका के अंतर्गत विकृत जीन के साथ एक पूरी तरह से कार्य करने वाले जीन को डाल दिया जाता है, जो स्वतंत्र रूप से कार्य करते हुए विकारों को दूर कर देता है। इस विधि को जीन ऑगमेंटेशन (Gene Augmentation) कहा जाता है।

जीन चिकित्सा के लाभ (Benefits of Gene Therapy)

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान दव्ारा मेटास्टैटिक मेलानोमा का उपचार।
  • माइलॉयड कोशिकाओं को प्रभावित करने वाले रोगों का उपचार।
  • पाकिसेन रोग का उपचार।
  • हन्टिगंटन कोइया का उपचार।
  • थैलेसेमिया, सिस्टिक फाइब्रोसिस और कैंसर के कुछ प्रकारों का उपचार।
  • चुहिया में सीकल सेल रोग का सफलतापूर्वक उपचार किया गया है।
  • एससीआईडी (सीवियर कम्बाइंड डिफिसिएसी या ‘बबल ब्वाय’ रोग) उपचार क विकास 2002 में किया गया।

जीन चिकित्सा की सीमाएँ (Limitations of Gene Therapy)

विभिन्न तकनीकी अवरोधों के कारण वैज्ञानिकों को जीन चिकित्सा का सतत्‌ और सफलतापूर्वक उपयोग करने में बाधाएँ आयी है, फिर भी अनेक अध्ययनों से स्पष्ट होता है कि विभिन्न रोगों में उपचार के तौर पर जीन चिकित्सा का उपयोग सक्षमता के साथ किया जा सकता है। तकनीकी पहलूओं के साथ-साथ अनेक नैतिक एवं धार्मिक प्रश्न भी इस चिकित्सा तकनीक के उपयोग से जुड़े हुए हैं। भले ही इस चिकित्सा तकनीक के जरिये भविष्य में उन्नत मानसिक और भौतिक क्षमताओं से युक्त ‘सुपर ह्ममन्स’ तैयार किये जा सकते हैं परन्तु वर्तमान में उपयोग में की जा रही जीन चिकित्सा तकनीकों की महत्वपूर्ण सीमाएँ भी हैं-

इसके सीमित प्रभावों के कुछ उदाहरण हैं:-

  • जीन चिकित्सा की लघु आवधिक प्रकृति -शरीर के अंदर संकलित डी. एन. ए. के जरिये किसी प्रकार का सतत्‌ दीर्घावधिक लाभ मुश्किल हैं क्योंकि अनेक कोशिकाओं की प्रकृति तीव्र विभाजन की होती है। किसी भी प्रकार के उपचार के लिए अक्सर जीन चिकित्सा के अनेक चक्रों की आवश्यकता पड़ती है।
  • प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया-श्ारीर अक्सर वैसे वाहकों की पहचान करता है जो बाह्य पदार्थ के रूप में परिवर्तन योग्य जीन का वहन करते हैं और इस पर आघात करने के लिए प्रतिजैविक उत्पन्न करते हैं।
  • विषाणु वाहकों से संबंधित समस्या- अक्रियाशील विषाणु वाहकों के उपयोग को लेकर विभिन्न प्रकार की समस्याएँ हैं- जैसे प्रतिरक्षी और उत्तेजनशील प्रतिक्रियाओं की संभावना, जीन नियंत्रण और विशिष्ट ऊतकों को लक्षित करने में कठिनाई तथा रोगजन्यता को बनाए रखने, उसे प्राप्त करने या उपचारित करने की विषाणुओं की क्षमता।
  • जीन बहुल विकृति-जीन बहुल विकृति की प्रकृति और उपचार संबंधी जानकारी के अभाव में जीन चिकित्सा के जरिये एकल जीन विकृति का उपचार ही उपयुक्त समझा जाता है। परन्तु अनेक सामान्य बीमारियाँ जैसे हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, जोड़े का दर्द और मधुमेह आदि बहुल जीन संपर्क के कारण हो सकते हैं। वस्तुत: जब तक इन बीमारियों के आनुवांशिक अवयवों से संबंद्ध हमारी तकनीक और समझ विकसित नहीं हो जाती तब तक जीन चिकित्सा के जरिये इनका उपचार नहीं किया जा सकता है।

जीन चिकित्सा में उन्नति (Advances in Gene Therapy)

जीन चिकित्सा की सीमाओं के बावजूद विभिन्न बीमारियों के उपचार से संबंद्ध जीन चिकित्सा में प्रगति हुई है। भविष्यगत चिकित्सा के लिए विभिन्न रोगों पर परीक्षण और शोध किए गए है। उदाहरणस्वरूप पार्किसन रोग, सीवियर कंबाइंड इम्यूनों डेफिसिएंसी (SCID) , बबल ब्वाय सिन्ड्रोम (X-SCID) तथा सिटिक फाइब्रोसिस आदि रोगों पर जीन चिकित्सा के प्रयोग किए जा रहे है।

जीन चिकित्सा के पक्ष में तर्क (The Argument in Favor of Gene Therapy)
  • व्यक्ति में किन्हीं रोगों के लक्षण के पूर्व उसकी रोकथाम की जा सकती है।
  • जर्मलाइन जीन चिकित्सा के जरिये व्यक्ति और उसकी भावी पीढ़ी से संबंद्ध बीमारी को समाप्त किया जा सकता है। अर्थात कुछ बीमारियाँ न केवल एक पीढ़ी बल्कि भावी पीढ़ी के मद्देनजर भी पूर्णत: उपचारित की जा सकती हैं।
  • वैज्ञानिक समुदाय को रोग उपचारों की नयी विधियों का पता लगाने के लिए कार्य करना चाहिए।
  • जीन चिकित्सा के जरिये वैकल्पिक उपचार उपलब्ध कराया जा सकता है।
जीन चिकित्सा के विरुद्ध तर्क (Argument Against Gene Therapy)
  • दुरुपयोग होने की संभावना है। अत: इन तकनीकों के विकास और प्रसार से पूर्व सावधानीपूर्वक विचार करना होगा।
  • रोगियों और उनकी भावी पीढ़ी पर जीन चिकित्सा के प्रभावों की दशकों तक निगरानी करनी पड़ेगी।
  • यदि अविकसित भ्रूण या किशोर बच्चों पर शोध किया जाना हो तो पूर्वसूचनायुक्त सहमति का प्रश्न सामने दिखता है।
  • साथ ही वैज्ञानिक अनिश्चितता, चिकित्सकीय जोखिम और दीर्घावधि में अज्ञात प्रभाव जैसे अवरोध भी दृष्टिगत होते हैं।

जीन चिकित्सा से संबंधित नैतिक मुद्दे (Ethical Issues Related to Gene Therapy)

  • जीन चिकित्सा के परीक्षण को लेकर कुछ नैतिक मुद्दे उभरे हैं। ये मुद्दे अपने साथ कई आशंकाओं को समाहित किये हुए हैं जैसे-जब कोई जीन चिकित्सा के मद्देनजर मानवीय अनुप्रयोग हेतु हस्ताक्षर करता है तो उससे पूर्व सूचनायुक्त सहमति लेना कितना महत्वपूर्ण हैं? किसे ‘सामान्य’ माना जाता है और किसे अयोग्यता या विकृति माना जाता है? ‘सामान्य’ का निर्धारण कौन करता है?
  • क्या सोमैटिक जीन चिकित्सा जर्मलाइन जीन चिकित्सा से अधिक नैतिकतापूर्ण है? क्या बीमा कंपनियाँ जीन चिकित्सा के लिए भुगतान करेंगी?
  • यदि जर्मलाइन जीन चिकित्सा के परिणाम नुकसानदेह हों तो भावी पीढ़ी पर इसका दीर्घावधिक प्रभाव क्या होगा?
  • क्या हम बिना भावी पीढ़ी की सहमति के उनके आनुवांशिक अवयवों में परिवर्तन कर सकते हैं?

जैव संवेदक (Bio-Sensors)

  • जैव संवेदक विश्लेषण से संबंधित तकनीक है जिसके दव्ारा किसी जैव पदार्थ की मदद से किसी विलयन में दिए गए पदार्थ की मात्रा का विश्लेषण किया जाता है। जैव संवेदक के दो अवयव होते हैं- जैविक अवयव, भौतिक अवयव।
  • भौतिक अवयव अथवा संवेदक कार्बन इलेक्ट्रॉड, ऑक्सीजन इलेक्ट्रॉड व आयान-संवेदनशील इलेक्ट्रॉड हो सकते हैं, जबकि जैविक अवयव एन्जाइम अथवा हार्मोन, न्यूक्लिक एसिड अथवा पूरी कोशिका ही हो सकते हैं।

जैव संवेदक के उपयोग (Uses of Bio-Sensors)

  • पर्यावरण प्रदूषण विशेषकर जल-प्रदूषण पर नियंत्रण हेतु।
  • ग्लूकोज संश्लेषक के रूप में।
  • किडनी रोगियों में रक्त यूरिया और गर्भधारण का पता लगाने के लिए कोरियानिक गोनैडोट्रॉपिन, गुर्दा फेल होने के बाद क्रिटिनिन कंसनट्रेशन, रक्त में हेपेटाइटिस एन्टीजन आदि के मापन में।
  • कुछ विकसित देशों दव्ारा सेना के लिए हानिकारक गैसों, रासायनिक युद्ध एजेंन्टों तथा माइक्रो ऑर्गेनिज्म का पता लगाने के लिए जैव संवेदकों के उपयोग पर विचार किया जा रहा है।
  • खाद्य पदार्थों के रंग तथा स्वाद को मापने के लिए।