Science and Technology: Ice Mission Satellite for Climate Change

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अद्यतन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (Latest Development in Science & Technology)

नारको एनालिसिस (Narco Analysis)

  • इसे ‘टूथ सीमर टेस्ट’ भी कहा जाता है। इस प्रयोग के दौरान संबंधित व्यक्ति को डाक्टरों (चिकित्सकों) के निरीक्षण में प्रयोगशाला नियंत्रित स्थितियों में एक रसायन से उपचारित किया जाता है। यह रसायन संबंधित व्यक्ति को सम्मोहन की अवस्था में ले जाता है। माना जाता है कि इस प्रयोग के दौरान मना करने की शक्ति घट जाती है एवं प्रश्नों के उत्तर में हेर-फेर नहीं किया जा सकता। वन की मात्रा संबंधित व्यक्ति की उम्र, लिंग, स्वास्थ्य और शारीरिक स्थितियों (क्षमता) पर निर्भर करती हैं। रसायन की अधिकता व्यक्ति को कोमा में ले जा सकती है अथवा व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।
  • रसायन बारबिटुरेट्‌स समूह के हैं। यह समूह ऐसे यौगिकों का है जो बारबिटुरिक अम्ल से व्युत्पन्न किए गए हैं जैसे- फेनोबारबिटोन, सोडियम पेन्टोथाल आदि। ये सभी व्युत्पन्न यौगिक केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (स्नायु तंत्र) श्वसन की दर को धीमा कर देते हैं, हृदय गति को प्रभवित करते हैं तथा रक्त दबाव एवं शरीर के तापमान को कम कर देते हैं। आरामदायक प्रभाव हेतु इन ड्रग्स को अधिक सुरक्षित स्थान, जैसे वेन्जोडिआजिपाइंस (Benzodiazepines) से प्रतिस्थापित किया जा चुका हैं।

पोलिग्राफी टेस्ट (Polygrophy)

यह ‘लाई डिटेक्र’ के नाम से भी जाना जाता है। जब संबंधित व्यक्ति से प्रश्नों की एक श्रृंखला पूछी जाती है तब यह उपकरण भिन्न शारीरिक नियंत्रकों, जैसे रक्त दाब, नाड़ी, श्वसन दर तथा त्वचा की चालकता इत्यादि को रिकार्ड करता है। यह माना जाता है कि किसी प्रश्न का गलत उत्तर देने से शारीरिक प्रतिक्रिया होगी इस प्रकार की प्रतिक्रिया को किसी दिए हुए सही उत्तर की शारीरिक प्रतिक्रिया से विभेदित किया जा सकता है।

जलवायु परविर्तन के अध्ययन हेतु आइस मिशन सैटेलाइट (Ice Mission Satellite for Climate Change)

  • ध्रुवीय बर्फ एवं वायुमंडलीय परिवर्तनों से संबद्ध विभिन्न पदार्थों के अध्ययन हेतु प्रयुक्त उपग्रह को क्रायोसेट के नाम से जाना जाता है। हाल ही में यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने पृथ्वी के हित (बर्फ) को जलवायु परिवर्तन किस प्रकार प्रभावित कर रहा है, के अध्ययन एक उपग्रह प्रक्षेपित किया है।
  • अप्रैल, 2010 को कजाकिस्तान से क्रायोसेट-2 का प्रक्षेपण किया गया। ध्रुवीय कक्षा से इस उपग्रह दव्ारा भेजे गए आँकड़ों से हानिकारकों को यह जानने में सहायता मिलेगी कि कब और कहाँ हिम पिघल रही है अथवा बढ़ रही है।
  • वर्ष 2005 में क्रायोसेट का प्रक्षेपण किया था जो प्रक्षेपण के फेल हो जाने से नष्ट हो गया था। क्रायोसेट-2 इस मूल सेटेलाइट (उपग्रह) का स्थान लेगा। मिशन के उद्देश्य पूर्ववर्तीं हैं अर्थात अटांर्कटिक एवं ग्रीनलैंड में फैली हुई हिमचादरों की मोटाई आना, साथ ही साथ ध्रुवीय सागरों में तैर रहे हिमखंडों की मोटाई में परिवर्तनों को मापना। क्रायोसेट-2 के प्रक्षेपण के साथ ही अर्थ सप्लोरर के उपग्रहों की संख्या 3 हो गई है और ये सभी उपग्रह 12 महीनों की अल्पविध में प्रक्षेपित किए गए हैं। क्रायोसे-2,2009 में प्रक्षेपित ग्रेविटी-फील्ड एंड स्टेडी -स्टेट ओशिन ′ सर्कुलेशन एक्सप्लोरर्स (GOCE) मिशन एवं पिछले वर्ष नवंबर 2009 प्रक्षेपित सोइल मोस्चर एंड ओशिन सैलिनिटी (SMOS) मिशन की श्रृंखला का है।
  • अर्थ एक्सप्लोरर्स, वैज्ञानिक समुदाय दव्ारा पहचाने गए मुद्दों पर कार्यवाही करेगा और इसके दव्ारा पृथ्वी तंत्र किस प्रकार काम करता है इसकों समझने में सहायता मिलेगी साथ ही साथ प्राकृतिक प्रक्रियाओं पर मानवीय गतिविधियों के प्रभाव का भी अध्ययन किया जाएगा। यद्यपि कायोसेट-2 मुख्य रूप से जर्मनी एवं फ्रांस दव्ारा बनाया गया है परन्तु वैज्ञानिक रूप से इसका नेतृत्व यूनाइटेड किंगडम के प्रस्तावक एवं सैद्धांतिक निरीक्षक के रूप में डंकन विंघम यूनिवर्सिटी कालेज, लंदन दव्ारा किया गया है।

ब्रेन मैपिंग टेस्ट (Brain Mapping)

ब्रेन मैपिंग अपराध-संदिग्ध व्यक्ति के ऊपर की जाती है। जिसके दव्ारा यह जाना जाता है कि अपराध से जुड़ी चीजों के प्रति उसकी प्रतिक्रिया कैसी है। संदिग्ध व्यक्ति से पूछताछ की जाती है कि यह कोई जानकारी छुपा तो नहीं रहा है। कुछ संवेदक उसके सिर से संबद्ध किए जाते हैं। तत्पश्चात्‌ उसे कुछ निश्चित चित्र (दृश्य) दिखाए जाते हैं। फिर उसे कुछ निश्चित ध्वनियां सुनाई जाती हैं। संवेदकों दव्ारा मस्तिष्क की वैद्युत गतिविधियों पर निगरानी रखी जाती है तथा तरंगों का अध्ययन किया जाता है। यह तरंगे तभी उत्सर्जित होती हैं जब व्यक्ति का संबंध चित्र अथवा ध्वनि के रूप में दिए गए आवेगों के साथ होता है।

ब्रेन मैपिंग तकनीक (Brain Mapping Technique)

  • ब्रेन इलेक्ट्रिकल ओसिलेशन सिग्नेचर (BEOS) : यह तकनीक राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं स्नायु विज्ञान संस्थान के चम्पादी रमन मुकुंदन के दव्ारा खोजी गई थी। यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें अपराध परीक्षण के दौरान इसे वैज्ञानिक परीक्षण के एक उपकरण के रूप में प्रयोग करके मस्तिष्क की वैद्युत गतिविधियों में उतार-चढ़ाव की व्याख्या की जाती हैं। यह तकनीक इस सिद्धांत पर कार्य करती है कि जब व्यक्ति को उन वैद्युत संवेगों के संपर्क में रखा जाता है जो उसने संबंधित मामले की जानकारी प्राप्त करते समय अनुभव की थी, तो इस आधार ऐसे वैद्युत संवेगों के प्रति अनुक्रिया एक अपराधी दव्ारा ही की जा सकती है। इसके लिए बोले गए वाक्यों अथवा एक टेलीविजन चित्र के रूप में दृश्य संवेगों की एक श्रृंखला के प्रभाव में व्यक्ति को रखा जाता है। अपराध की जानकारी रखने वाले संवेगों और जाँच हेतु दिए गए संवेगों के पारस्परिक हस्तक्षेप से वैद्युत गतिविधियों का एक निश्चित पैटर्न प्राप्त होता है।
  • ब्रेन फिंगर प्रिटिंग: इस तकनीक का आविष्कार वर्ष 1991 में लारेंस फारवेल ने किया था। यह एक विवादास्पद अपराध विज्ञान तकनीक है जिसमें कंप्यूटर स्क्रीन पर शब्द, वाक्य अथवा दृश्य दिखाकर मस्तिष्क वैद्युत तरंगों के प्रति प्रतिक्रिया को मापकर यह जानने का प्रयास किया जाता है कि विशिष्ट सूचना, मस्तिष्क के किस हिस्से में संग्रहित है। मस्तिष्क में अपराध से संबंधित संग्रहित सूचनाओं को EEG (Electroencephalograph) में एक विशिष्ट पैटर्न दव्ारा प्रदर्शित किया जाता है। इस तकनीक में मूलत: सुविख्यात (P-300) मस्तिष्क तरंगों की प्रतिक्रिया का प्रयोग किया जाता है ताकि मस्तिष्क दव्ारा ज्ञात सूचनाओं की पहचान की जानकारी प्राप्त की जा सके। इसके उपरांत MERMER (Memory and Encoding Related Multifaceted Electroencephalograph) नामक संकल्पना की खोज की गई जिसमें (P-300) मस्तिष्क तरंगों की तुलना में अधिक सटीक एवं उच्चस्तरीय जानकारी देते हैं।

ब्रेन फिंगर प्रिटिंग मस्तिष्क की संज्ञानात्मक अनुक्रियाओं का उपयोग करता है। यह व्यक्ति की भावनाओं पर निर्भर नहीं करता और न ही भावनात्मक अनुक्रियाओं से प्रभावित होता है। ब्रेन फिंगर प्रिटिंग केवल सूचनाओं की जानकारी देता है न कि मंशा की। इसलिए यह निर्धारित नहीं किया जा सकता कि व्यक्ति अपराध के लिए दोषी है अथवा निर्दोष।

डी. एन. ए. पितृत्व परीक्षण (DNA Paternity Test)

  • डी. एन. ए. पितृत्व परीक्षण आनुवांशिक हस्ताक्षर अथवा आनुवांशिक फिंगर प्रिंटिंग का वह उपयोग है जो यह निश्चित करता है कि दो व्यक्तियों के मध्य जैविक रूप से पिता-पुत्र संबंध है अथवा नहीं। पितृत्व-परीक्षण किसी व्यक्ति के जैविक पिता होने तथा मातृत्व-परीक्षण किसी महिला के जैविक माता होने का आनुवांशिक प्रमाण देता है। हांलाकि आनुवांशिक परीक्षण सबसे विश्वसनीय मानक है फिर भी कई पुरानी तकनीकें भी प्रयोग में लाई जाती है जैसे ABO रक्त समूह टाइपिंग, विविध प्रकार के प्रोटीन एवं एंजाइमों का विश्लेषण अथवा ह्‌ृयूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन का उपयोग आदि।
  • वर्तमान में डी. एन. ए. परीक्षण पितृत्व निर्धारण की सबसे उन्नत एवं सटीक तकनीक है। इस परीक्षण में किसी व्यक्ति के किसी बच्चे का जैविक पिता होने की स्थिति में पितृत्व की संभाविता 99.9 प्रतिशत होता है लेकिन उसके जैविक पिता नहीं होने की स्थिति में यह संभावित शून्य प्रतिशत होती है।
  • इस परीक्षण में डी. एन. ए. प्रोफाइलिंग की प्रक्रिया शामिल है। यह एक स्थापित सत्य है कि व्यक्ति विशेष के प्रत्येक एवं सभी दैहिक कोशिकाओं (Somatic Cells) में डी. एन. ए. लगभग समान होता है। लैंगिक जनन के दौरान माता-पिता के डी. एन. ए. बिना किसी निश्चित क्रम से मिलकर एक नई कोशिका में विशिष्ट आनुवांशिक पदार्थ (जनैटिक मैटीरियल) का निर्माण करते हैं। इस प्रकार व्यक्ति विशेष का आनुवांशिक पदार्थ अपने माता-पिता के लगभग समान आनुवांशिक पदार्थ से मिलकर बना होता है। इस प्रकार यह आनुवांशिक पदार्थ व्यक्ति के केन्द्रीय जीनोम के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह केन्द्रक में पाया जाता है।
  • दो व्यक्तियों के डी. एन. ए. क्रम की तुलना करके यह जाना जा सकता है कि किसी की व्युत्पत्ति दूसरे से हुई है अथवा नहीं। विशिष्ट डी. एन. ए. क्रम को देखकर यह ज्ञात किया जा सकता है कि एक के जीनोम अक्षरश: दूसरे की नकल (समान) है। इस प्रकार यह सिद्ध किया जा सकता है कि एक व्यक्ति का आनुवांशिक पदार्थ दूसरे से व्युत्पन्न किया गया है अर्थात पहला दूसरे का अभिभावक है।
  • केन्द्रक के यूक्लियर डी. एन. ए. के अतिरिक्त माइटोकांड्रिया में भी अपना आनुवांशिक पदार्थ होता है जिसे माइट्रोकांड्रियल जीनोम कहा जाता है। माइट्रोकांड्रियल डी. एन. ए. केवल माता की तरफ से आता है वह भी बिना किसी परिवर्तन के।
  • माइट्रोकांड्रियल जीनोम की तुलना पर आधारित संबंध को सिद्ध करना अधिक आसान है, अपेक्षाकृत केन्द्रीय जीनोम पर आधारित तुलना के। परन्तु माइट्रोकांड्रिया की जीन संरचना केवल यह सिद्ध कर सकती है कि दो व्यक्ति मातृत्व वंशावली से संबंधित है। इस कारण इसका महत्व सीमित है अर्थात यह पितृत्व की पहचान हेतु उपयोग में नहीं लाई जा सकती है।