Science and Technology: Major Stages of Indian Space Research

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अंतरिक्ष (Space)

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के प्रमुख पड़ाव (Major Stages of Indian Space Research)

मेघा-ट्रॉपिक्स परियोजना (Megha-Tropics Project)

  • मेघा-ट्रॉपिक्स परियोजना इसरो तथा फ्रांस की अंतरिक्ष एजेंसी सी. एन. ई. एस. (CNES) की संयुक्त परियोजना है। ‘मेघा’ तथा ‘ट्रॉपिक्स’ शब्द का अर्थ क्रमश: बादल तथा उष्णकटिबंध है। 500 कि. ग्रा. भार वाले इस उपग्रह के लिए भात व फ्रांस के बीच 2001.05 में हस्ताक्षरहुए थे।
  • उपग्रह दव्ारा बादलों के भौतिक गुणों तथा संवहनीय प्रक्रियाओं के अध्ययन के साथ-साथ महासागरों एवं पृथ्वी के ऊपर जलवाष्प और वर्षा प्रतिरूप का भी अध्ययन किया जाएगा। इसके अलावा मानसुन व विकिरण बजट के अध्ययन में भी इसे सहायता मिलेगी। उपग्रह में एक MADRAS (Microwave Analysis and Detection of Rain and Atmospheric-Structures) , एक छह चैनल का Humidity Sounder तथा विकिरण बजट मापन के लिए चार चैनल के स्कैनर (Scanner for Radiation Budget Measurement SCARAB) का प्रयोग किया गया है।

जुगनू (Jugnu)

यह एक आठ सेमी. लंबाईवाला नैनो उपग्रह है, जिसका निर्माण भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर (आई. आई. टी. कानपुर) दव्ारा किया गया था। इस उपग्रह को पीएसएलवी-सी 18 के जरिए श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से कक्षा में स्थापित किया गया। इसका उपयोग बाढ़, आपदा, सूखा व दूरसंचार के अध्ययन के लिए किया जा रहा है।

सौर मिशन ‘आदित्य’ (Solar Mission Aditya)

भारत के सफल चन्द्रयान-1 मिशन के बाद अन्य इसरो सूर्य अभियान ‘आदित्य’ की तैयारी कर रहा है। इसरो वैज्ञानिक सूर्य के बाहरी क्षेत्र ‘कोरोना’ के अध्ययन के लिए आदित्य नामक अंतरिक्ष यान को डिजाइन कर रहे हैं। हालाँकि सोलर कोरोना का अध्ययन करना ही आदित्य का मुख्य उद्देश्य है लेकिन इसकी मदद से यह भी पता लगाया जाएगा कि सोलर मैक्सिम के दौरान सूर्य से कौन सी गैसों का उत्सर्जन होता है तथा वायुमंडल पर इनका क्या प्रभाव पड़ता हैं?

इसरो का मंगल अभियान (ISRO՚s Mars Mission)

इसरो 2015 तक मंगल के अन्वेषण की एक महत्वांकाक्षी योजना तैयार कर रहा है। इसरो दव्ारा तैयार मंगल ऑर्बिटर मंगल पर सौर हवाओं के प्रभाव व इसके सतही चुम्बकीय क्षेत्र का पता लगाएगा तथा पुरातन जल की खोज करेगा। मंगल ऑर्बिटर के अलावा इसरो 2009 - 17 के बीच एक क्षुद्रग्रह या उड़न धूमकेतु (Flying Comet) तथा 2012 तक एक अंतरिक्ष जनित सौर किरीट भी मंगल पर भेजने की योजना बना रहा है।

भूवन (Bhuvan)

‘भुवन’ इसरो की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसमें भारतीय चित्रों के 3डी ग्लोब पर अधिचित्रित रूपों को देखा जा सकेगा। यह एक ऐसा प्रयास है जिसमें भारतीय बिंबन सामर्थ्य की अद्भुतता नजर आएगी एवं भारतीय चित्रों से प्राप्त सूचना आम आदमी के लिए विशिष्ट होगी। इसमें विभिन्न तरह से भारतीय सतह के चित्र प्रदर्शित किये गये हैं, जहाँ व्यक्ति अपनी रुचि से संबंधित स्थलों को लंबवत या तिर्यक रूप में देख सकते हैं। इसमें आम आदमी को किसी इच्छित क्षेत्र को अचानक वृद्धि कर उच्च विभेदन में देखने की सुविधा प्रदान करायी गयी है। यह हमारे प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित ऐसा आईआरएस चित्र प्रस्तुत कर सकेगा जिससे प्राकृतिक संसाधनों में हो रहे परिवर्तनों पर प्रकाश डाला जा सकेगा। भविष्य में इसके दव्ारा और भी कई सेवाएँ उपलब्ध कराये जाने की संभावना है, जो अपने आप में विशिष्ट होंगी। इनसे प्राप्त सूचनाओं से जनता में जागरूकता का स्तर बढ़ेगा और हमारे अमूल्य प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण सुनिश्चित हो पाएगा।

अवतार (Aerobic Vehicle for Advanced Trans-Atmospheric Research-AVATAR)

  • भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक एक बहुउद्देशीय स्वप्रणोदित अंतरिक्ष यान ‘अवतार’ का विकास कर रहे हैं, जो अंतरिक्ष में कार्य-प्रक्रिया पूर्ण कर लेने के बाद अपनी ऊर्जा से ही अंतरिक्ष की कक्षा से बाहर निकलने, वायुमंडल में प्रवेश करने और पृथ्वी पर उतरने में सक्षम होगा।
  • यह अत्याधुनिक अंतरिक्ष यान उपग्रहों की भाँति निगरानी, गुप्तचरी तथा टोहगिरी जैसी सेवाएँ पूर्ण विश्वसनीयता के साथ उपलब्ध कराएगा। साथ ही अंतरिक्ष में निचली कक्षाओं में छोटे संचार एवं नेवीगेशनल उपग्रहों को भी स्थापित करने में सक्षम होगा।
  • अवतार में तीन प्रकार के इंजन का प्रयोग किया जाएगा-टर्बोफैन रैमजेट, स्क्रैमजेट तथा रॉकेट इंजन। प्रथम चरण में टर्बाफैन रैमजेट इंजन की मदद से यान पृथ्वी से उड़ान भरेगा। एक निश्चित ऊँचाई पर पहुँचने के बाद दव्तीय चरण में स्क्रैमजेट इंजन की सहायता से यान को ध्वनि के वेग से 7 गुना अधिक गति प्राप्त होगी। तीसरे और अंतिम चरण में रॉकेट इंजन के माध्यम से यान पुन: वायुमंडल में लौटकर पृथ्वी पर उतर सकेगा। रॉकेट इंजन में तरल ऑक्सीजन का प्रयोग ईंधन के रूप में किया जाएगा जो यान की उड़ान के दौरान स्वत: निर्मित होगी।

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station-ISS)

  • ISS की स्थापना अमरीका व रूस दव्ारा 1998 में की गई थी। वर्तमान में इसमें सम्मिलित देशों की संख्या 16 है। यह पृथ्वी से लगभग 400 कि. मी. ऊँचाई पर स्थापित है और 90 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करता है। ISS की शुरूआत के संकेत दिसंबर 1988 में मिले। जब अंतरिक्ष यान एंडेवर दव्ारा एक रूसी व एक अमरीकी मॉड्‌यूल को उतारा गया। होटल सुविधाओं व अनुसंधान प्रयोगशालाओं से युक्त इस अंतरिक्ष स्टेशन से अंतरिक्ष यात्रियों के आने-जाने की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। सूक्ष्म गुरुत्वीय वातावरण में होने वाले अनुसंधान कार्यो हेतु तैयार इस स्टेशन के अंदर का गुरुत्व बल, गुरूत्व बल का दस लाखवाँ हिस्सा है। इस अंतरिक्ष स्टेशन का महत्व इस बात में निहित है कि यहाँ पृथ्वी के गुरूत्व बल की अनुपस्थिति में बुनियादी वैज्ञानिक अनुसंधान में लुप्त कई प्रक्रियाएँ व अवधारणाएँ स्पष्ट प्रकट होगी। वर्तमान में अंतरिक्ष स्टेशन का प्रयोग मुख्यत: मानव शरीर पर दीर्घकालिक अंतरिक्ष उड़ान के प्रभावों को समझने हेतु किया जा रहा है।
  • इस अंतरिक्ष स्टेशन के दूरगामी उद्देश्यों में स्टेशन पर वैज्ञानिक प्रयोग, पृथ्वी विज्ञान से संबंधित अध्ययन, जैव चिकित्सकीय शोध, जैव प्रौद्योगिकी तरल गतिकी, पदार्थ विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान व दहन विज्ञान से संबंधित अध्ययन शामिल हैं।
  • आपातकाल में इस अंतरिक्ष स्टेशन पर मौजूद व्यक्तियों को कुशलतापूर्वक पृथ्वी पर वापस लाने के लिए यहाँ ‘सोयूज’ नामक एक कैप्सूल रॉकेट रखा गया है।
Illustration: अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station-ISS)

एन्ट्रिक्स (Antrix)

यह इसरो की एक व्यावसायिक इकाई है, जो कि भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं के विपणन के लिए केन्द्रीय एजेंसी का काम करती है। यह अमरीका की ‘स्पेस इमेजिंग’ के साथ सुदूर संवेदी उपग्रह आँकड़ों को विश्व भर में सुलभ कराने में अहम भूमिका अदा करती है। एन्ट्रिक्स के जरिए टेलीमेट्री, टेकिंग और कमांड समर्थन भी उपलब्ध कराए जाते हैं। उल्लेखनीय है कि यह भारत के दव्ारा PSLV प्रमोचन सेवाएँ उपलब्ध कराता है। परिणामस्वरूप PSLV ने जर्मनी, कोरिया, बेल्जियम, अर्जेन्टीना आदि देशों के उपग्रहों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में स्थापित किया है। इसके अतिरिक्त एन्ट्रिक्स ने अति-स्पर्द्धी अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रक्षेपण सेवाओं के लिए यूरोप एवं एशिया से अनुबंध हासिल किए। इस प्रकार देश में ही अंतरिक्ष यान और प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकियाँ विकसित करने के साथ-साथ भारत ने राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लाभार्थ विकसित उपग्रह प्रौद्योगिकी के प्रयोग में भी सफलता प्राप्त है। भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ अंतरिक्ष आधारित जानकारी बाँट रहा है तथा विश्व को वाणिज्यिक अंतरिक्ष सेवाएँ प्रदान कर रहा है। एन्ट्रिक्स दव्ारा उपलब्ध कराए जाने वाले अंतरिक्ष यानों के पुर्जे के खरीददारों में दुनिया के प्रसिद्ध अंतरिक्ष यान निर्माता शामिल हैं।