Science and Technology: Solar Pond, Wind Energy and Energy Tower Project

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ऊर्जा (Energy)

सौर्य तालाब (Solar Pond)

यह सौर ऊर्जा प्राप्त करने की एक नई तकनीक है। इसमें सौर्य तालाब एक विशाल ऊर्जा संग्राहक का कार्य करता है और इसके साथ समन्वित ताप संग्रहीत होता है। इस तकनीक के अंतर्गत सौर्य तालाब के जल को सघन बनाने के लिए उसमें नमक मिलाते है ताकि सौर्य ऊर्जा से जल अधिक गर्म हो सके। इस प्रक्रिया में सौर ऊर्जा सौर्य तालाब में जल के अनेक सतहों पर संग्रहीत हो जाती है तथा इसका तापमान 850C तक पहुँच जाता है। इस प्रकार तालाब को गर्म होने से दो से तीन महीने का समय लग जाता है। भारत में सौर्य तालाब परियोजना की शुरूआत जुलाई 1987 में हुई तथा पहला सौर्य तालाब गुजरात के कच्छ में भुज सोलर पौंड परियोजना के नाम से बनाया गया। सौर्य ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने हेतु भारत सरकार ने जवाहरलाल नेहरू नेशनल सोलर मिशन प्रारंभ किया है।

पवन ऊर्जा (Wind Energy)

  • यह एक प्रकार की गतिज ऊर्जा है, जिसके वेग से टरबाइनों को चलाकर विद्युत ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। भारत में पवन ऊर्जा की बहुत बड़ी क्षमता अनुमानित है, विशेषकर तटीय तथा पर्वतीय राज्यों में। गुजरात तथा तमिलनाडु राज्य पवन ऊर्जा के माध्यम से विद्युत उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य हैं। पवन ऊर्जा के लिए वायु की आदर्श गति 8 मीटर प्रति सेकंड से लेकर 23 मीटर प्रति सेकंड है, क्योंकि इस सीमा के अंदर ही पवन चक्कियां गतिमान हो सकती हैं। भारत में वायु गति का राष्ट्रीय औसत 9.4 मीटर प्रति सेकंड है।
  • भारत में निम्नतम 45,000 मेगावाट पवन ऊर्जा की क्षमता का अनुमान लगाया गया है। वर्तमान में भारत कुल 5,340 मेगावाट पवन ऊर्जा की स्थापित क्षमता के साथ विश्व में जर्मनी, अमरीका, डेनमार्क और स्पेन के बाद पांचवे स्थान पर है।

ऊर्जा टावर प्रोजेक्ट (Energy Tower Project)

ग्रह एक पूर्णत: नवीन ऊर्जा साधन है। यह प्रौद्योगिकी लगभग 1.2 किमी. की उंचाई पर शुष्क क्षेत्रों की शुष्क व गर्म वायुमंडलीय पवन का प्रयोग करती हैं जल के एक महीने स्प्रे दव्ारा कृत्रिम कूलिंग की जाती है तथा पवन के नीचे की ओर बहाव को एक अनुलंब सुरंग से गुजार कर टरबाइन चलाई जाती है। इस प्रक्रिया से पारिस्थितिकी अनुकूल विद्युत का उत्पादन होता है। यह परियोजना अभी परीक्षण स्तर पर है, जिसे सूचना प्रौद्योगिकी पूर्वानुमान एवं मूल्यांकन परिषद ने भविष्य के लिए प्रारंभ किया है।

सामुदिक ऊर्जा (Community Energy)

समुद ऊर्जा का एक महत्त्वपूर्ण स्त्रोत है। यह ऊर्जा स्त्रोत अभी परीक्षण के स्तर पर है। सामन्यत: समुद से उर्जा प्राप्त करने की तीन प्रणालियॉ हैं, जिनका वर्णन निम्नलिखित है-

  • तरंग ऊर्जा: यह ऊर्जा समुद की लहरों से उत्पन्न तरंगों के दबाव पर आधारित है। तरंगों के भीतर अल्पवधि के ऊर्जा संचय से ऊर्जा उत्पादन की संभावना बनती है। इस प्रणाली के तहत समुद के अंदर एक चैंबर लगाया जाता है, जिसमें तरंगों की गति से टरबाइन को चलाकर और पानी एवं हवा के परस्पर दबाव से विद्युत उत्पन्न की जाती है। यह एक बहुत महंगी प्रणाली है। तरंग ऊर्जा पर आधारित देश का पहला संयंत्र केरल में तिरूवनंतपुरम के समीप बझिन्जम में स्थापित किया गया है, जिसकी अधिकतम क्षमता 150 मेगावाट है। स्वीडन की एक संस्था की पॉवर एबी द्वारा विकसित नवीन प्रोद्योगिक, जिसमें एक स्थान पर स्थित प्लेटफॉर्म पर लहरों के प्रवाह का सामना करने से ऊर्जा का उत्पादन होता है, के सिद्धांत पर आधारित 1. मेगावाट क्षमता की एक ऊर्जा संयंत्र अंडमान और निकोबार दीप समूह में लगाया जा रहा है।
  • ज्वारीय ऊर्जा: समुद्र का जलस्तर एक निश्चित अंतराल पर प्रतिदिन दो बार ऊपर उठता और नीचे गिरता है। समुद्री जल स्तर के बारी-बारी से ऊपर उठने और नीचे उतरने की इस घटना को क्रमश: ज्वार और भाटा कहते हैं। ज्वार-भाटे पृथ्वी, चंद्रमा तथा सूर्य की पारस्परिक गुरूत्वाकर्षण क्रिया से उत्पन्न होते हैं। अत्यधिक ज्वारीय विस्तार वाले तटीय क्षेत्रों में ज्वारीय बल उपयोग जल विद्युत के उत्पादन के स्रोत के रूप में किया जा सकता है। भारत में पश्चिमी तट पर गुजरात में कच्छ एवं खंभात की खाड़ी तथा पूर्वी तट पर सुंदरवन क्षेत्र ज्वारीय ऊर्जा के लिए सर्वोत्तम क्षेत्र है। कच्छ की खाड़ी में गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत विभाग दव्ारा 900 मेगावाट क्षमता का एक ज्वारीय विद्युत संयंत्र लगाया जा रहा है। देश में ज्वार ऊर्जा से विद्युत उत्पादन की कुल संभावित क्षमता लगभग 9000 मेगावाट है, जिसमें सबसे अधिक 7000 मेगावाट की अनुमानित क्षमता अकेले खंभात की खाड़ी में मौजूद है। ज्वारीय ऊर्जा पर आधारित देश का 3.75 मेगावाट का पहला विद्युत गृह पश्चिम बंगाल के सुंदरवन क्षेत्र में दुर्गादवानी क्रीक में स्थापित करने की योजना है।
  • ओशन थर्मल एनर्जी कन्वर्जन (OTEC: Ocean Thermal Energy Conversion) : तापमान समुद्री जल का एक महत्वपूर्ण गुण है। समुद्री जल में गहराई के अनुसार तापमान में भिन्नता रहती है तथा गहराई बढ़ने के साथ-साथ तापमान में कमी आती है। इसके अंतर्गत समुद्री जल के इन्हीं विभिन्न स्तरों के बीच के तापान्तरों का उपयोग करके विद्युत का उत्पादन करने का प्रयास किया जाता है। भारत में ओटेक प्रणाली से विद्युत उत्पादन पर तमिलनाडु एवं अंडमान निकोबार दव्ीप समूह में गहन अनुसंधान एवं विकास कार्य किए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त तमिलनाडु में 100 मेगावाट की 6 परियोजनाएं शुरू की हैं। भारत तीन तरफ से समुद्र से घिरा हुआ है। अत: यहाँ समुद्र ताप ऊर्जा की बहुत बड़ी क्षमता उपलब्ध है, जो अनुमानत: लगभग 5000 मेगावाट तक हो सकती है।

भूतापीय ऊर्जा (Geo-Thermal Energy)

भूतापीय ऊर्जा से प्राप्त ऊर्जा का एक संभाव्य स्रोत है। भूगर्भ से गर्म जल का स्रोत निकलता है, जिससे ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। भूतापीय ऊर्जा प्रणाली के अंतर्गत भूगर्भीय ताप एवं जल की अभिक्रिया से गर्म वाष्प उत्पन्न करके ऊर्जा उत्पादन का प्रयास किया जा रहा है। भूगर्भ में निहित ताप से ऊर्जा के दोहन के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी के विकास पर अनुसंधान कार्य चल रहा है।

हाइड्रोजन ऊर्जा कार्यक्रम (Hydrogen Energy Programme)

  • इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है कि किसी स्थान या समय पर अधिशेष ऊर्जा का उपयोग कर हाइड्रोजन गैस पैदा करना तथा बाद में इस हाइड्रोजन का उपयोग ईंधन के तौर पर करना। अन्य ईंधनों की अपेक्षा हाइड्रोजन से प्राप्त प्रति इकाई क्षमता अधिक होती है तथा इसके प्रयोग से किसी प्रकार का प्रदूषण भी नहीं फैलता। हाइड्रोजन ऊर्जा का सर्वाधिक शक्तिशाली स्रोत है, जिससे सस्ता ईंधन उपलब्ध कराया जा सकता है। भारत में 1983 में हाइड्रोजन ऊर्जा तकनीकी सलाहकार समिति के गठन के दव्ारा हाइड्रोजन ऊर्जा के विकास में सकारात्मक शुरूआत की गई। देश में स्वच्छ ईंधन और अनेक उपयोगों के लिए ऊर्जा भंडारण माध्यम के रूप में हाइड्रोजन के प्रयोग पर कार्य हो रहा है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी, पूर्वानुमान एवं मूल्यांकन परिषद दव्ारा एक हाइड्रोजन टेक्नोलॉजी सेल की स्थापना की गई है, जो पारिस्थितिकी अनुकूल हाइड्रोजन ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहन देता है। इससे वायुमंडल में कार्बन उत्सर्जन समाप्त किया जा सकेगा तथा उन्नत तकनीकियों के उपयोग में हाइड्रोजन ईंधन की बचत की जा सकेगी।

संपीड़ित प्राकृतिक गैस (CNG: Compressed Natural Gas)

  • संपीड़ित प्राकृतिक गैस धरती के भीतर पाए जाने वाले हाइड्रोकार्बन का मिश्रण है और इसमें 80 से 90 प्रतिशत मात्रा मीथेन गैस की होती है। सीएनजी को वाहनों के ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने के लिए 200 से 250 किग्रा. प्रति वर्ग सेमी. तक दबाया या कंप्रेस किया जाता है। यह गैस रंगहीन, गंधहीन, हवा से हल्की तथा पर्यावरण की दृष्टि से सबसे कम प्रदूषण पैदा करती है। सीएनजी को जलाने के लिए 5400C से अधिक तापमान की आवश्यकता होती है, जबकि पेट्रोल मात्र 232 से 2820C पर जलता है। अर्थात दिन का तापमान असाधारण रूप से बढ़ जाने के बाद भी सीएनजी के अनियंत्रित होकर जलने का केई खतरा नहीं है। उल्लेखनीय है कि सीएनजी एक गैस है, जबकि एलपीजी एक तरल पदार्थ है। इस कारण इसका परिवहन करना आसान है।
  • सीएनजी में कार्बन का सिर्फ एक यौगिक मीथेन उपस्थित है और यह गैस पेट्रोल एवं डीजल की तुलना में कार्बन मोनो आक्साइड को 70 प्रतिशत, नाइट्रोजन आक्साइड को 87 प्रतिशत और जैविक गैसों को लगभग 89 प्रतिशत कम उत्सर्जित करती है।

अल्ट्र लो सल्फर डीजल (Ultra Law Sulphur Diesel)

वायु प्रदूषण कम करने के लिए सी. एन. जी. की तुलना में अल्ट्र लो सल्फर डीजल को बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। वर्तमान में बाजार में उपलब्ध डीजल में सल्फर की मात्रा 0.5 प्रतिशत है जबकि अल्ट्र लो सल्फर डीजल में सल्फर की मात्रा 0.005 प्रतिशत है। उल्लेखनीय है कि यदि डीजल में सल्फर की मात्रा 0.02 प्रतिशत से कम हो तो उसे क्लीन या शुद्ध डीजल कहा जाता है।

गैसोहोल (Gasohol)

गन्ने के रस से तैयार किया गया यह ईधन का एक सस्ता विकल्प है। गैसाेेन के अंतर्गत गन्ने के रस दव्ारा प्राप्त सामान्य अल्कोहोल को पेट्रोल में मिलाकर भारत में पेट्रोल के अत्याधिक व्यय तथा पेट्रोलियम प्रदूषण की वृद्धि को रोका जा सकता है। गैसोहोल ईधन को वाहनों के इंजन में बिना किसी अतिरिक्त परिवर्तन के उपयोग मे लाया जा सकता है। चैन्नई की मैसूर शुगर कंपनी ने अल्कोहोल एवं पेट्रोल को 25: 75 के अनुपात में सम्मिश्रण में पेट्रोल दव्ारा होने वाले कार्बन व मोनोओक्साइड के उत्सर्जन को रोका जा सकता है तथा सीमित पैट्रोलियम संसाधनों की कुछ मात्रा में बचत भी की जा सकती है।

शहरी तथा औद्योगिक कचरे से ऊर्जा (Energy from Urban and Industrial Waste)

भारत सरकार दव्ारा प्रायोजित की गई अनुसंधान परियोजनाओं से नगरपालिका जल -मल अवशिष्ट, सब्जी मंडी के कचरे, चमड़ा उद्योग, आसवनशालाओं, चीनी मिलों, लुग्दी व कागज उद्योग आदि के कचरे के विधायन और उपचार की संभावनाओं और महत्व को देखते हुए देश में कचरा प्रबंध प्रणलियों में सुधार के रूप में उचित प्रौद्योगिकियों के उपयोग को प्रोत्साहन देने के लिए जून, 1995 में शहरी, नगरपालिका और औद्योगिक कचरे से ऊर्जा प्राप्ति का राष्ट्रीय कार्यक्रम आरंभ किया गया। इस कार्यक्रम के प्रमुख उद्देश्य है:

  • ऊर्जा प्राप्ति के लिए कचरे के उपयोग को विकसित करना तथा इसका प्रदर्शन करना।
  • कचरे से ऊर्जा प्राप्ति के लिए प्रौद्योगिकियों को अपनाकर कचरा प्रबंध प्रणालियों में सुधार करना।
  • शहरी, नगरपालिका और औद्योगिक क्षेत्रों के कचरे के उपयोग वाली परियोजनाओं की स्थापना को प्रोत्साहन देना।
  • कचरे से ऊर्जा प्राप्ति के लिए वित्तीय प्रोत्साहनों सहित अनुकूल स्थितियों का निर्माण करना।