State Directive Principles (Articles 37 to 51) , Fundamental Duties, President

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13 राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (भाग 4 अनुच्छेद 36 से 51) (State Directive Principles (Part 4 Articles 37 to 51) )

  • निदेशक तत्वों का मुख्य उद्देश्य सामूहिक रूप से भारत में आर्थिक एवं सामाजिक लोकतंत्र की रचना करना तथा कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।
  • अनुच्छेद 37-न्यायालय दव्ारा प्रवर्तनीय नहीं है, किन्तु यह शासन में मूलभूत है और विधि बनाने में इन्हें लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा।
  • अनुच्छेद 38 (क) -राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय अनुप्रमाणित होता हो, की अभिवृद्धि का प्रयास करेगा।
  • अनुच्छेद 38 (ख) -राज्य आय की असमानाताओं को कम करने का प्रयास करेगा और न केवल व्यष्टियों के बीच बल्कि विभिन्न क्षेत्रों के विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए समूहों के बीच प्रतिष्ठा सुविधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा (44वें संशोधन दव्ारा अन्त: स्थापित) ।
  • अनुच्छेद 39-राज्य दव्ारा अपनी नीति के संचालन में निम्नलिखित बातों को सुनिश्चित किया जाएगा।
    • पुरुष और स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकारी हो।
    • समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार बंटा हो, जिसमें सामूहिक हित का सर्वोच्च रूप से संसाधन हो।
    • आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार चले जिससे धन और उत्पादन साधनों का सर्वसाधारण के लिये अहितकारी संकेन्द्रण न हो।
    • पुरुषों और स्त्रियों दोनों का समान कार्य के लिए समान वेतन हो।
    • पुरुष और स्त्री कर्मकारों के स्वास्थ्य और शक्ति का तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुप्रयोग न हो और आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिको को ऐसे रोजगारों में न जाना पड़े, जो उनकी आयु का शक्ति के अनुकूल नहीं है।
    • बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएं दी जाएं तथा उनका शोषण तथा नैतिक एवं आर्थिक परित्याग से रक्षा की जाये।
  • अनुच्छेद 39 (क) (1) , राज्य आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों को समान न्याय और नि: शुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराएगा।
  • अनुच्छेद 40-ग्राम पंचायतों का संगठन।
  • अनुच्छेद 41-कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार।
  • अनुच्छेद 42- काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध।
  • अनुच्छेद 43-कर्मकारों के लिए निर्वाचन, मजदूरी एवं कुटीर उद्योगों को बढ़ाने का प्रयास।
  • अनुच्छेद 44-समान नागरिक संहिता।
  • अनुच्छेद 45-छ: वर्ष से कम आयु के बालकों के प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा का उपबंध।
  • अनुच्छेद 46-अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि।
  • अनुच्छेद 47-पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्तव्य।
  • अनुच्छेद 48-कृषि और पशुपालन का संगठन। राज्य दुधारू पशु वध को रोकेगी।
  • अनुच्छेद 48 (क) -अन्य देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन का और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
  • अनुच्छेद 49-राज्य राष्ट्रीय महत्व के संस्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण करेगा।
  • अनुच्छेद 50- कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण।
  • अनुच्छेद 51 -राज्य अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा का प्रयास करेगा।

14 मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties)

  • भारतीय संविधान के 42वें संविधान संशोधन 1976 दव्ारा संविधान के भाग 4 में एक नया भाग 4-क जोड़कर अनुच्छेद 51-क के तहत मौलिक कर्तव्य की व्यवस्था की गयी है।
  • भारत के संविधान में इनका समावेश सरदार स्वर्ण सिंह समिति की अनुशंसा पर पूर्व सोवियत संघ के संविधान से प्रभावित होकर किया गया है।
  • इसके तहत दस कर्तव्य जोड़े गये हैं जो कि प्रत्येक नागरिक का मूल कर्तव्य है, परन्तु छियासीवां संविधान संशोधन 2001 दव्ारा अनुच्छेद 51-क में नया खंड ‘11’ जोड़ा गया है। अत: वर्तमान में मौलिक कर्तव्यों की संख्या 11 हो गई है।
  • मूल कर्तव्य के तहत भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि-
    • संविधान का पालन करें और उसके आदर्शो, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें।
    • स्वतंत्रता के पालन हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखे और उनका पालन करें।
    • भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखें।
    • देश की रक्षा करें और आह्‌वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
    • भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें, जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो। ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हो।
    • हमारी सामासिक (Composite) संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिक्षण करें।
    • प्राकृतिक पर्यावरण, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और अन्य जीव हैं की रक्षा करें और उनका संवर्धन करें तथा प्राणिमात्र के प्रति दयाभाव रखें।
    • वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
    • सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करें तथा हिंसा से दूर रहे।
    • व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधयों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर पढ़ने का सतत्‌ प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरन्तर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को छू ले।
    • 6 वर्ष से 14 वर्ष तक की आयु के बालकों के माता-पिता या संरक्षकों का यह कर्तव्य होगा कि वे बालकों को नि: शुल्क शिक्षा का अवसर प्रदान करें।

15 राष्ट्रपति (President)

  • भारतीय संघ की कार्यपालिका की शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है।
  • भारत में ब्रिटेन के समान संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है। अत: राष्ट्रपति नाममात्र का कार्यपालिका प्रमुख है तथा वास्तविक शक्ति मंत्रिमंडल (प्रधानमंत्री) में निहित होती है।
  • राष्ट्रपति को संवैधानिक प्रमुख होने के कारण उसे भारत का प्रथम नागरिक कहा जाता है।
  • अनुच्छेद 58 राष्ट्रपति पद के लिए निम्न योग्यता निर्धारित करता है-
    • वह भारत का नागरिक हो तथा 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
    • वह लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो।
    • वह चुनाव के समय लाभ का पद धारण नहीं करता हो। किन्तु यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रपति या उप राष्ट्रपति के पद पर या संघ अथवा किसी राज्य के मंत्रिपरिषद का सदस्य हो तो वह लाभ का पद नहीं माना जाएगा।
  • राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए निर्वाचन मंडल-अनुच्छेद 54 के अनुसार राष्ट्रपति का निर्वाचन लोकसभा, राज्यसभा एवं सभी विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों दव्ारा होता है। 70वें संशोधन के बाद संघ राज्य पांडिचेरी तथा दिल्ली विधान सभा के निर्वाचित सदस्य को भी इस निर्वाचन मंडल में शामिल कर लिया गया।
  • एक संसद के मतों का मूल्य
Illustration: State Directive Principles (Articles 37 to 51) , Fundamental Duties, President

एक विधायक का मत मूल्य

Illustration: State Directive Principles (Articles 37 to 51) , Fundamental Duties, President
  • राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए निर्वाचक मंडल के 50 सदस्य प्रस्तावक तथा 50 सदस्य अनुमोदनकर्ता होता है। राष्ट्रपति के उम्मीदवार की जमानत राशि 15,000 रूपये है।
  • राष्ट्रपति का निर्वाचन अनुच्छेद 55 के तहत अप्रत्यक्ष निर्वाचन दव्ारा समानुपातिक प्रतिनिधत्व प्रणाली और एकल संक्रमणीय मत पद्धति के दव्ारा होता है।
  • राष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित विवाद का समाधान उच्चतम न्यायालय दव्ारा किया जाता है। निर्वाचन में गड़बड़ी पाये जाने पर चुनाव को अवैध घोषित कर दिया जाता है, किन्तु उस कार्यकाल में राष्ट्रपति दव्ारा किये गये कार्य को वैध माना जाता है।
  • 11वें संविधान संशोधन अधिनियम 1961 के अनुसार किसी राज्य की विधानसभा भंग होने की स्थिति में राष्ट्रपति चुनाव कराया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 57 के अनुसार व्यक्ति जितनी बार चाहे राष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित हो सकता हैं।
  • अनुच्छेद 60 के तहत राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित हुआ व्यक्ति, उच्चतम न्यायालय (भारत) के मुख्य न्यायाधीश या उसकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष अपने पद के कार्यपालन की शपथ लेता है कि-
    • वह अपने पद के प्रति वफदार रहेगा।
    • संविधान एवं कानून का पालन एवं रक्षा करेगा।
    • स्वयं को भारत के लोगों की सेवा व कल्याण करने में समर्पित रहेगा।
  • अनुच्छेद 56 के अनुसार राष्ट्रपति का कार्यकाल पांच वर्ष होता है, किन्तु व्यवहार में कार्यकाल की समाप्ति के बाद भी अपने उत्तराधिकारी चुने जाने तक पद पर बने रहते हैं।
  • अपने कार्यकाल के मध्य में भी राष्ट्रपति अपना त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को सौप सकता है। जिसकी सूचना उपराष्ट्रपति लोकसभा अध्यक्ष को अवलिम्ब देता है।
  • महाभियोंग-अनुच्छेद 61 के तहत राष्ट्रपति दव्ारा संविधान का अतिक्रमण करने पर किसी भी सदन दव्ारा राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाया जा सकता है परन्तु इसके लिए आवश्यक है कि राष्ट्रपति को 14 दिन पहले इस बात की लिखित सूचना दी जाए, जिस पर उस सदन के एक चौथाई (25) सदस्यों का हस्ताक्षर हो। इसके बाद बारी-बारी से दोनों सदनों दव्ारा दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित कर दिया जाए तो महाभियोग की प्रक्रिया पूरी समझी जाएगी और उस तिथि से राष्ट्रपति को पदत्याग करना होगा।
  • राष्ट्रपति का पद यदि किसी कारण वश रिक्त हो जाता है तो उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा और यदि उपराष्ट्रपति भी किसी कारणवश हट जाता है, तो भारत का मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा। न्यायमूर्ति मुहिदायतुल्लाह ऐसी ही स्थिति में कार्यवाह राष्ट्रपति के रूप में कार्य किये।
  • राष्ट्रपति का पद छ: महीने से अधिक रिक्त नहीं रह सकता है।
  • वेतन एवं भत्ता- राष्ट्रपति का मासिक वेतन डेढ़ लाख रूपया हैं उनका वेतन आयकर से मुक्त होता है।
  • राष्ट्रपति के कार्यकाल में उनके वेतन तथा भत्ते में कोई भी कमी नहीं की जा सकती है।
  • राष्ट्रपति को वेतन के अतिरिक्त नि: शुल्क निवास स्थान व संसद दव्ारा स्वीकृत अन्य भत्ते प्राप्त होते हैं।
  • राष्ट्रपति के लिए 6 लाख रूपये वार्षिक पेंशन निर्धारित की गई है।
  • डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। वे एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्हें दो बार भारत का राष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त हुआ है।
  • वी. वी. गिरि एक मात्र ऐसे राष्ट्रपति हैं, जिनके निर्वाचन में दव्तीय चक्र की मतगणना करनी पड़ी।
  • नीलम संजीव रेड्‌डी निर्विरोध निर्वाचित होने वाले भारत के एक मात्र राष्ट्रपति है।
  • भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल हैं।
  • मुहम्मद हिदायतुल्लाह भारत के मुख्य न्यायाधीश के कार्यकाल में कार्यवाहक राष्ट्रपति बने थे।
  • भारत के कार्यवाहक -वी. वी. गिरि. , न्यायमूर्ति मु. हिदायतुल्लाह एवं बी. डी. जत्ती।

राष्ट्रपति के अधिकार एवं कर्तव्य-

कार्यपालिका शक्तियाँ-अनुच्छेद 73 के अनुसार संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है और वह अपनी इस शक्ति का प्रयोग केन्द्रीय मंत्रिमंडल की सहायता से करता है। राष्ट्रपति की कार्यपालिका शक्ति को निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है।

  • मंत्रिपरिषद का गठन-अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति संघ की कार्यपालिका शक्ति के संचालन के लिए मंत्रपरिषद का गठन करता है, जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है।
  • नियुक्त संबंधी शक्तियाँ- राष्ट्रपति निम्न को नियुक्ति करता है-
    • भारत का प्रधानमंत्री
    • प्रधानमंत्री की सलाह पर मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्यों
    • सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों
    • भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
    • राज्यों के राज्यपाल
    • मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त
    • भारत के महान्यायवादी
    • राज्यों के मध्य समन्वय के लिए अंतर्राज्यीय परिषद के सदस्य
    • संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों
    • वित्त आयोग के सदस्यों
    • भाषा आयोग के सदस्यों
    • पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्यों
    • अल्पसंख्यक आयोग के सदस्यों
    • भारत के राजदूतों तथा अन्य राजनयिकों आदि। राष्ट्रपति ये सभी नियुक्तियाँ मंत्रिपरिषद की सलाह से करता है। वह अपने दव्ारा नियुक्त प्राधिकारियों तथा अधिकारियों को पदमुक्त भी कर सकता है।
  • आयोगों का गठन- राष्ट्रपति के राज्यक्षेत्र में सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग की दशाओं का अन्वेषण करने के लिए आयोग, राज्यभाषा पर प्रतिवेदन देने के लिए आयोग, अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन पर रिपोर्ट देने के लिए तथा राज्यों में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण संबंधी क्रियाकलापों पर रिपोर्ट देने के लिए आयोग गठन करना शामिल है।
  • सैन्य शक्ति- राष्ट्रपति तीनों सेना का सर्वोच्च होता हैं।
  • राजनयिक शक्ति -अंतरराष्ट्रीय मामलों में राष्ट्रपति भारत का प्रतिनिधित्व करता है। अन्य देशों में भेजे जाने वाले राजदूत तथा उच्चायुक्त राष्ट्रपति दव्ारा नियुक्त किये जाते हैं। साथ ही अन्य देशों से भारत में नियुक्ति पर आने वाले राजदूतों एवं उच्चायुक्तों का अनुमोदन भी राष्ट्रपति ही करते हैं। दूसरे देशों के साथ कोई भी समझौता या संधि राष्ट्रपति के नाम से ही की जाती है।
  • संसद से संबंधित शक्तियाँ- राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है, क्योंकि संसद का गठन राष्ट्रपति, लोकसभा एवं राज्यसभा से मिलकर होता है। इस रूप में राष्ट्रपति के कार्य-
    • राष्ट्रपति को संसद के सत्र आहुत करने, सत्रावसान करने तथा लोकसभा भंग करने का अधिकार प्राप्त है।
    • वह लोकसभा में दो एवं राज्यसभा में 12 आंग्ल-भारतीय सदस्यों की नियुक्ति करता है।

President and Governor

President and Governor
राष्ट्रपति एवं राज्यपाल: क्षमादान शक्ति की तुलना
राष्ट्रपतिराज्यपाल
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ सैन्य न्यायालय दव्ारा दिए गए दंड अथवा दंडादेश के संदर्भ में क्षमादान, प्रविलंबन, विराम, निलंबन, परिहार अथवा लघुकरण की शक्ति प्राप्त है।
  • जहाँ दंड या दंडादेश उन विधियों के विरुद्ध अपराध के लिए है, जो ऐसे विषयों से संबंधित है जिन पर संघीय कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है वहाँ राष्ट्रपति को उपरोक्त शक्तियाँ प्राप्त हैं।
  • मृत्युदंड के संबंध में उपरोक्त सभी शक्तियाँ प्राप्त हैं।
  • ऐसी कोई शक्ति प्राप्त नहीं है।
  • मृत्यु दंडावेश को छोड़कर उन विधियों के विरुद्ध अपराध के लिए है, जो ऐसे विषयों से संबंधित हैं जिन पर राज्य की कार्यपालिका को राष्ट्रपति के समान शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।
  • मृत्यु दंडावेश की स्थिति में क्षमादान की शक्ति प्राप्त नहीं है, परन्तु निलंबन, परिहार अथवा लघुकरण की शक्ति प्राप्त है।
  • वह दोनों सदनों में गतिरोध होने पर संयुक्त बैठक बुला सकता है, जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है।
  • वह सदन के एक सदन में या एक साथ सम्मिलित रूप से दोनों सदनों में अभिभाषण कर सकता है।
  • स्सांद दव्ारा पारित कोई भी विधेयक राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद ही कानून बनता है। राष्ट्रपति या तो उस पर अपनी अनुमति देता है या विधेयक पर पुन: विचार करने के लिए संसद को वापस भेज देता है। यदि संसद दव्ारा पुन: विधेयक पारित कर दिया जाता है, तो राष्ट्रपति उस पर अपनी अनुमति देने के लिए बाध्य हैं।
  • निम्न विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के बिना संसद में पेश नहीं किया जा सकता-
    • व्यापार की स्वतंत्रता पर रोक लगाने वाले राज्य का कोई विधेयक।
    • धन विधेयक।
    • भूमि अधिग्रहण से संबंधित विधेयक।
    • संचित विधि में व्यय करने वाले विधेयक।
    • जिस कराधान में राज्य का हित हो, उस कराधान पर प्रभाव डालने वाले विधेयक।
    • नये राज्य का निर्माण करने या विद्यमान राज्य के क्षेत्र, सीमा या नाम में परिवर्तिन करने वाले विधेयक।
  • अध्यादेश जारी करने की शक्ति-अनुच्छेद 123 के तहत राष्ट्रपति विश्रांतिकाल में अध्यादेश जारी कर सकता हैं राष्ट्रपति दव्ारा जारी अध्यादेश का प्रभाव केवल 6 मास तक रहता है। 6 माह के अंदर यदि दोनों सदनों दव्ारा अनुमोदित नहीं किया जाता तो यह अध्यादेश प्रभावहीन हो जाता है।
  • राष्ट्रपति की वीटो शक्ति- संविधान दव्ारा राष्ट्रपति को स्पष्टत: वीटो की शक्ति प्रदान नहीं की गयी है, किन्तु राष्ट्रपति अप्रत्यक्ष रूप से जेवी वीटों का प्रयोग करता हैं उसके तहत 1 राष्ट्रपति संसद दव्ारा पारित किसी विधेयक को न तो अनुमति देता है और नहीं पुनर्विचार के लिए वापस भेजता है। इस वीटो का प्रयोग राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने 1986 में संसद दव्ारा पारित भारतीय डाक (संशोधन) अधिनियम के संदर्भ में किया है।
  • अनुच्छेद 143 के अनुसार राष्ट्रपति किसी सार्वजनिक महत्व के प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श ले सकता है, किन्तु वह यह परामर्श मानने के लिए बाध्य नहीं है और न्यायधीश भी परामर्श देने के लिए बाध्य नहीं है।
  • क्षमादान की शक्ति-संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति को क्षमता तथा कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन परिहार या लघुकरण की शक्ति प्रदान की गयी है। क्षमता का तात्पर्य अपराध के दंड से मुक्ति प्रदान करना है। प्रतिलंबन का तात्पर्य विधि दव्ारा विहित दंड के स्थायी स्थगन से है। परिहार के अंतर्गत दंड की प्रकृति में परिवर्तन किए बिना दंड की मात्रा को कम किया जाना हैं लघुकरण का अर्थ दंड की प्रकृति में परिवर्तन करना है।
  • आपातकालीन शक्ति- राष्ट्रपति को निम्नलिखित आपातकालीन शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं-
    • राष्ट्रीय आपात घोषित करने की (अनुच्छेद-352)
    • राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता पर वहाँ आपातकाल घोषित करने की (अनुच्छेद-356) और
    • वित्तीय आपात घोषित करने की (अनुच्छेद-360) ।
  • राष्ट्रपति को विशेषाधिकार- राष्ट्रपति अपने पद के किसी कर्तव्य के निर्वहन तथा शक्त्याेिं के प्रयोग में किये जाने वाले किसी कार्य के लिए न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है। साथ ही जब कोई व्यक्ति राष्ट्रपति के पद पर आसीन है तब तक उसके विरुद्ध किसी दीवानी या फौजदारी न्यायालय में कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
  • 42वें संशोधन के दव्ारा यह व्यवस्था की गयी कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार काम करने के लिए बाध्य है, किन्तु 44वें संशोधन दव्ारा यह व्यवस्था की गई कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह को पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है।
  • राष्ट्रपति की सुरक्षा दस्ते का अमर वाक्य है-भारत माता की जय।