गाँधी युग (Gandhi Era) Part 17 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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मैकडोनाल्ड अवार्ड (पुरस्कार) एवं पूना समझौता ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: गाँधी युग (Gandhi Era) Part 17

दव्तीय गोलमेज सम्मेलन में विभिन्न संप्रदायों एवं दलित वर्गों के लिए पृथक निर्वाचक-मंडल के विषय पर कोई सहमति नहीं हो सकती थी। अत: सम्मेलन ने इस समस्या के निदान के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड को प्राधिकृत किया था। तदनुसार, 16 अगस्त, 1932 को रैम्जे मैकडोनाल्ड ने अपने सांप्रदायिक निर्णय की घोषणा की। इस अधिनिर्णय के अनुसार मुसलमान, यूरोपीय तथा सिक्ख मतदाता पृथक-पृथक सांप्रदायिक निर्वाचन-मंडलों में मतदान कर अपने उम्मीदवारों का चुनाव करेंगे। दलित वर्गो के लिए भी पृथक निर्वाचन मंडल का प्रावधान था। सरकारी तौर पर दलितों को अनुसूचित जाति के नाम से पृथक संप्रदाय के रूप में स्वीकार किया गया। तथापि मैकडोनाल्ड ने हिन्दु और दलित वर्गों में आपसी सहमति से तैयार की गई किसी वैकल्पिक योजना को स्वीकार करने का वचन दिया था।

गोलमेज सम्मेलन में महात्मा गांधी जी ने दलित वर्गों के लिए पृथक निर्वाचन-मंडल के विचार का कड़े शब्दों में विरोध किया था और यह घोषणा की थी कि वह अपना जीवन देकर भी इसका प्रतिरोध करेंगे। गांधी जी के उपवास ने पूरे देश में बड़ी उत्तेजना एवं चिंता उत्पन्न कर दी। पंडित मदन मोहन मालवीय ने दलित वर्ग के नेता डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सहित विभिन्न जातियों एवं राजनीतिक दलों का एक सम्मेलन बुलाया। सम्मेलन में अंतत: गांधी जी के उपवास के छठे दिन 25 सितंबर, 1932 को पूना में एक समझौता हुआ, जिसमें दो शर्तों के आधार पर सामान्य निर्वाचन-मंडल बनाए जाने के संबंध में सहमति हुई। ये दो शर्ते थी: प्रथमत: विभिन्न प्रांतीय विधानमंडलों में दलित वर्गो के लिए 148 सीटें आरक्षित करना जबकि सांप्रदायिक अधिनिर्णय में केवल 71 सीटों की ही व्यवस्था की गई थी। दूसरे, केन्द्रीय विधानमंडल में 18 प्रतिशत सीटें दलित वर्गो के लिए आरक्षित करना।

कांग्रेस मंत्रिमंडल ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: गाँधी युग (Gandhi Era) Part 17

1937 के प्रांतीय चुनाव के पश्चातवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू कांग्रेस जिन आठ राज्यों में सत्ता में आयी थी, वहाँ उसने दो वर्ष से कुछ अधिक समय तक शासन किया, फिर भी उसने इस सुअवसर का लाभ उठाते हुए यह प्रमाणित कर दिया कि वह केवल जन-संघर्षो के लिए ही जनता का नेतृत्व नहीं कर सकती बल्कि इनके हित में राज्य सत्ता का उपयोग भी कर सकती है। संयुक्त प्रांत और बिहार में काश्तकारी बिल पारित किए गए। सभी कांग्रेस शासित प्रांतों में कृषकों की साहूकारों के समूह से बचाने तथा सिंचाई सुविधाओं को बेहतर बनाने के प्रयास किए गए। यह वह काल था जब कांग्रेस तथा अन्य कार्यकर्ताओं के प्रयासों से समग्र रूप से किसानों में व्यापक जागरूकता तथा बढ़ती हुई राजनीतिक चेतना देखने को मिलती है।

कांग्रेस सरकारों ने श्रमिक समर्थक दृष्टिकोण को अपनाया किन्तु वर्ग संघर्ष का साथ नहीं दिया। बंबई की कांग्रेस सरकार ने 1937 में एक कपड़ा जाँच समिति की नियुक्ति की। इसमें कर्मचारियों की वेतन वृद्धि, स्वास्थ्य तथा बीमा सुरक्षा की सिफारिश की। बंबई सरकार ने हड़ताले और तालाबंदी रोकने के लिए मध्यस्थता के सिद्धांतों के आधार पर नवंबर, 1938 में औद्योगिक विवाद अधिनियम भी पेश किया। अन्य कांग्रेस शासित प्रांतों में भी श्रमिकों के कल्याण के लिए बहुत से कानून पास किए गए।

कांग्रेस सरकारों ने नागरिक स्वतंत्रता, राजनीतिक कैदियों की रिहाई तथा रचनात्मक कार्यक्रमों के क्षेत्र में भी काफी प्रशंसनीय कार्य किए। पहले से प्रतिबंधित अनेक संगठन तथा समाचार-पत्र फिर से पूरी तरह कार्य करने लगे। ग्रामीण उद्योगों के उत्थान, मद्य-निषेध, शिक्षा विशेषकर “बुनियादी शिक्षा” के दव्ारा प्राथमिक शिक्षा के संवर्द्धन, जनजातियों के कल्याण, जेल सुधार तथा अस्पृश्यता निवारण के लिए विशेष कार्यक्रम शुरू किए गए।

इस अवस्था में भी कांग्रेस मंत्रालयों को ईमानदारी और जनसेवा के मानक स्थापित करने का अवसर प्राप्त हुआ। नेताओं ने स्वयं को जनता से ऊपर नहीं रखा, जिसने उन्हें चुना। मंत्रियों ने अपनी इच्छा से अपना वेतन कम करके पांच सौ रुपए प्रतिमाह कर दिया तथा रेलों से वे दव्तीय या तृतीय श्रेणी में यात्रा करते थे। 1939 में जब ब्रिटेन ने एकपक्षीय घोषणा करके भारत को दव्तीय विश्वयुद्ध में झोंक दिया, तब इसके विरोध में कांग्रेस मंत्रिमंडल ने त्याग पत्र दे दिया। मुस्लिम लीग एवं भीम राव अंबेडकर ने इस दिवस को मुक्ति दिवस के रूप में मनाया।