व्यक्तित्व एवं विचार (Personality and Thought) Part 6 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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गांधी और शिक्षा ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: व्यक्तित्व एवं विचार (Personality and Thought) Part 6

गांधी ने जिस सामाजिक पुनरुत्थान की बात की है उसका प्रस्फूटन शून्य में नहीं हो सकता। बड़ी बातें जान लेने मात्र से “सर्वोदय” की कल्पना साकार नहीं हो सकती। जिन सामाजिक, राजनीतिक अथवा आर्थिक सिद्धांतों की प्रतिष्ठा हम करना चाहते हैं, वे एक आदर्श राज्य में ही संभव हैं क्योंकि उनकी जड़ें नैतिकता के सिद्धांत पर टिकी हैं। जब हमारे सारे आदर्श हमारी जीवन-पद्धति का प्रतिरूप बनें और हम उन्हें सहज रूप से अपनी आंतरिक प्रेरणा के माध्यम से स्वीकार कर लें तो हमको अपनी शिक्षा-पद्धति की ओर ध्यान नहीं देना होगा। किसी देश के नागरिकों का व्यवहार उनकी मान्यताओं और आस्थाओं के अनुरूप होता है, इसलिए हमें शिक्षा की ओर ध्यान देना होगा।

शिक्षा क्या है? गांधी के अनुसार शिक्षा आत्म साक्षात्कार या अपने को पहचानने की कला है। अगर शिक्षा दोषपूर्ण होगी या सिर्फ आर्थिक स्वार्थों को समझने वाली होगी तो देश में आदर्श व्यवस्था की स्थापना नहीं हो सकती। गांधी जी के शिक्षा-दर्शन की यही मूल धारणा है।

गांधीजी ने शिक्षा -विषयक समस्याओं की समालोचना उस वक्त की जब भारत में एक विदेशी शिक्षा-व्यवस्था का बोलबाला था, जो जबरन भारत पर थोप दी गयी थी। अंग्रेजों को केवल ऐसे शिक्षितों की आवश्यकता थी जो उनको भारत पर शासन करने में सहायता प्रदान करें। वे नहीं चाहते थे कि भारत के लोग सही अर्थ में शिक्षित हो जाएं और उन्हीं के खिलाफ आवाज उठाने लगें। इसलिए उन्होंने अपनी शिक्षा-पद्धति को ज्ञानपरक नहीं विदेशी भाषापरक बना दिया। वे जानते थे कि भारत के विद्यार्थियों का अधिक समय विदेशी भाषा रटने में ही खर्च हो जाएगा और फिर भी वह इतना ही सीख पायेगा जितने से उनके दव्ारा संचालित दफ्तरों का रोजमर्रा का कार्य हो जाए और शिक्षा का वास्तविक महत्व ताक पर रखा रह जाए। इस प्रकार अंग्रेजों ने काले अंग्रेजों की उत्पत्ति की जो आज भी देश के लिए समस्या बने हुए हैं। अब धीरे-धीरे परिवर्तन आ रहा है किन्तु अभी जाने-अनजाने नौकरी पाने की योग्यता अंग्रेजी बोल पाने की योग्यता से मापी जाती हैं। गांधी इस व्यवस्था से अत्यंत बिक्षुब्ध थे। इसलिए उन्होंने एक सम्मेलन का आहवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू वान किया और एक नयी शिक्षा पद्धति की सिफारिश की। इस पद्धति को “वर्धा स्कीम (योजना) ऑफ (की) एजुकेशन (शिक्षा) ” का नाम दिया गया, इस स्कीम (योजना) का मुख्य आधार था “बुनियादी शिक्षा” ।

बुनियादी शिक्षा के दो मुख्य ध्येय थे-पहला तो यह कि शिक्षा को सही अर्थ में शिक्षित होने का माध्यम बनाया जाए और दूसरा यह कि शिक्षा को आत्मनिर्भरता के सिद्धांत से जोड़ा जाए। वे किसी ″ वाद ″ का प्रतिपादन नहीं करना चाहते थे फिर भी उनकी कुछ मान्यताएं अवश्य हैं जिनसे असहमति होना भी स्वाभाविक है। उन्होंने कहा- ″ मैं इस बात का दावा नहीं करता कि मैंने किसी नये सिद्धांत को जन्म दिया है, मैंने तो केवल शाश्वत को अपने ढंग से जीवन में तथा उससे संबंधित समस्याओं को हल करने में अपनाया है।

गांधी ने अपनी शिक्षा नीति के बारे में जो कहा है वह सत्य है, किन्तु अधिक गहराई पर जाने से प्रतीत होता है कि उनके विचारों का सैद्धांतिक पक्ष ढूँढा जा सकता है। जैसा कि अपनी पुस्तक “एजुकेशनल (शिक्षात्मक) फिलॉसफी (दर्शनशास्त्र) ऑफ महात्मा गांधी” में एम. एस. पटेल ने लिखा है: ‘गांधी जी के शिक्षा-दर्शन का आधार प्रकृतिवादी है, उद्देश्य आदर्शवादी तथा विधि प्रयोजनवादी है।’ यह इस अर्थ में प्रकृतिवादी है। कि रूसों की तरह गांधी ने शिक्षार्थी को प्रकृति के माध्यम से सीखने की राय दी है। यह आदर्शवादी इस अर्थ में हैं कि यह गांधी के सत्य, अहिंसा तथा सर्वोदय के सिद्धांतों का प्रतिपादन करती है और प्रयोजनवादी इस अर्थ में है कि गांधी शिक्षा को आत्मनिर्भरता का साधन भी मानते हैं।

गांधी की बुनियादी शिक्षा की कुछ मुख्य बातें इस प्रकार हैं-

  • 7 से 14 वर्ष तक की उम्र तक शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए और नि: शुल्क भी। अनिवार्य इसलिए क्योंकि बिना बुनियाद बनाये मकान खड़ा नहीं किया जा सकता और नि: शुल्क इसलिए क्योंकि भारत के 80 प्रतिशत परिवार शिक्षा का खर्च नहीं उठा सकते।
  • शिक्षा मातृभाषा दव्ारा हो, विदेशी भाषा के माध्यम से नहीं, ऐसा इसलिए आवश्यक है कि शिक्षा का मूल उद्देश्य रटना नहीं बल्कि समझना है और गहराई से समझना अपनी मातृभाषा में ही संभव है। इसमें भाषा संबंधी व्यवधान नहीं होना चाहिए।
  • शिक्षा में हस्तकला को महत्व दिया जाना चाहिए। इस विचार से गांधीजी की उस सूझबूझ का पता चलता है जिसका संबंध सीधे आर्थिक व्यवस्था से है। अगर विद्यार्थी प्रारंभ में ही किसी सहज कला की ओर अग्रसर हो जाए तो उसके पेट भरने की समस्या का समाधान मिल जाएगा और भारत की परंपरागत हस्तकलाओं को भी प्रश्रय मिलेगा।
  • शिक्षा जीवन के यथार्थ से जुड़ी हो और दूसरो पर निर्भर रहने की आदत से छुटकारा दे। यह सिद्धांत गांधी के स्वावलंबन के सिद्धांत के अनुरूप है।
  • शिक्षा का बुनियादी उद्देश्य है अच्छे नागरिक पैदा करना। अच्छे नागरिकों से ही अच्छा देश बनता है और अच्छे नागरिक बनाने में अच्छी शिक्षा की प्रमुख भूमिका है।
  • शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार सबको समान रूप से है, स्त्रियों को भी शिक्षा की उतनी ही आवश्यकता है जितनी पुरुषों को।

जब गांधी ने उच्च शिक्षा की बात की तब भी उनके बुनियादी सिद्धांत वही रहे। इतना उन्होंने और जोड़ दिया कि उच्च शिक्षा का उद्देश्य देश की आवश्यकताओं के अनुरूप होना चाहिए।

गांधी ने बराबर यही कहा कि शिक्षा मातृभाषा में ही दी जानी चाहिए। संस्कृत भाषा के संबंध में भी उनके विचार स्पष्ट हैं। वे कहते हैं कि भारत की अस्मिता भारतीयता के बाहर नहीं आंकी जा सकती और भारतीयता की समस्त मान्यताएं संस्कृत भाषा से ही जुड़ी है। सर्वविदित है कि गांधी ने स्वयं संस्कृत के ज्ञाता न होते हुए भी अपना सारा जीवन दर्शन गीता के कर्मवाद पर आधारित किया। “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचित” -कर्म करो, फल ईश्वर के हाथ है, वही देगा-इसी भाव -भूमि पर गांधी की समस्त अवधारणाएं केन्द्रित हैं। इस प्रकार गांधी जी ने शिक्षा सिद्धांत को एक व्यापक अर्थ दिया। वे कहते थे कि शिक्षा का उद्देश्य केवल मानसिक नहीं हैं, चारित्रिक, नैतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा शारीरिक उन्नति भी शिक्षा के उद्देश्य हैं। संभवत: गांधी जी की इस विशद व्याख्या से आजकल के शिक्षाशास्त्री पूर्णरूप से सहमत न हों किन्तु जो भी बातें गांधी ने सुझायी हैं उनका महत्व भारत के संदर्भ में आंका जाना चाहिए। वे कोरे सिद्धांतों की बात नहीं करते, करोड़ों भारतीयों की सामाजिक तथा मानसिक पहलुओं को ध्यान में रख कर उनकी बातों का महत्व समझा जाना चाहिए।