आचार संहिता (Code of Ethics – Part 1)

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नैतिक संहिता एवं आचार संहिता

विभिन्न संगठनों दव्ारा अपने सदस्यों को ‘क्या सही है और क्या गलत है’ में अंतर समझाने तथा उसे निर्णयन के क्रम में व्यवहार में लाने में सहायता करने के लिए ‘नैतिक संहिता’ और आचार संहिता तैयार किया जाता है। नैतिक संहिता सामान्य तौर पर स्तरों पर लागू होता है; व्यावसायिक नैतिक संहिता, कर्मचारियों के लिए आधार संहिता और पेशेवर अभ्यास संहिता। यहां सरकार के स्तर पर नैतिक एवं आचार संहिता की चर्चा कर रहे हैं। सिविल सेवाओं के लिए आचार संहिता की विगत दो अंको में चर्चा की गई है। इस अंक में भी सिविल सेवकों के शेष बचे आचार संहिता पर चर्चा की गयी है।

मंत्रियों के लिए आचार संहिता

भारत सरकार ने एक ऐसी आचार संहिता को निर्धारित किया हुआ है जो संघ और राज्य सरकारों दोनों के ही मंत्रियों पर लागू होती है। इस आचार संहिता के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं-

1. मंत्री के रूप में किसी व्यक्ति दव्ारा पर संभालने से पहले, संविधान के प्रावधानों, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 और ऐसे किसी अन्य कानून, जो फिलहाल लागू हो, के अतिरिक्त वह व्यक्ति:

(क) यथास्थिति प्रधानमंत्री, या मुख्यमंत्री को अपने और अपने परिवार के सदस्यों की संपत्तियों और दायित्वों और व्यापार में रुचियों के ब्यौरों को प्रकट करेगा। प्रकट किए जाने वाले ब्यौरों में सभी अचल संपत्ति के विवरण और

• शेयर और डिवेंचरों

• नकदी और

• गहनों का अंदाज से कुल मूल्य शामिल होना चाहिए:

(ख) मंत्री के रूप में उसकी नियुक्ति से पहले किसी चीज के स्वामित्व, किसी भी व्यवसाय को चलाने और उसके प्रबंधन में भाग लेने, जिसमें इससे पहले वह रुचि रखता था, से अपने संबंध तोड़ लेगा और

(ग) किसी ऐसी व्यासायिक कंपनी के संबंध में जो संबंधित सरकार या उस सरकार के अधीन किसी उपक्रम को माल और सेवाएं प्रदान करती हो, (व्यापार अथवा व्यवसाय के सामान्य व्यवहार और मानक और बाजार दरों को छोड़ कर) अथवा जिसका व्यवसाय मुख्यत: संबंधित सरकार से प्राप्त अथवा प्राप्त होने वाले लाइसेंसों (अनुज्ञापत्र) , परमिटों (प्रवेश पत्र) , फ़ोटोें, पट्‌टों आदि पर निर्भर करता हो, ऐसे कथित व्यवसाय में और उसके प्रबंधन से वह अपनी सभी रुचियों से संबंध तोड़ लेगा। बशर्ते है कि वह ‘ख’ के मामले में प्रबंध में अपनी रुचि को और ‘ग’ के मामले में स्वामित्व और प्रबंध दोनों की अपनी रुचियों को अपनी पत्नी (या यथास्थिति पति) को छोड़कर अपने परिवार के किसी ऐसे वयस्क सदस्य अथवा वयस्क संबंधी को अंतरित कर सकता है जो उसके मंत्री की नियुक्ति से पहले कथित व्यवसाय के संचालन अथवा प्रबंधन अथवा स्वामित्व से संबंद्ध था। ऐसी सार्वजनिक सीमित कंपनियों में शेयर धारण किए रहने के मामलें में रुचियों से अपना संबंध समाप्त करने का प्रश्न नहीं उठेगा, सिवाय इसके कि जहां यथास्थिति प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री यह समझे कि ऐसे शेयरों के धारण करने की प्रकृति या सीमा ऐसी है कि जिससे उसे अपने सरकारी काम के निष्पादन में अड़चन आने की संभावना हो।

2. पद पर आसीन हो जाने और पर रहने तक, मंत्री;

(क) यथास्थिति प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को हर वर्ष 31 मार्च तक अपनी संपत्ति और दायित्वों के संबंध में घोषणा भेजेगा,

(ख) सरकार से किसी भी प्रकार की अचल संपत्ति को खरीदने या बेचने से अपने को अलग रखेगा, सिवाय इसके कि जहां ऐसी संपत्ति सरकार दव्ारा अनिवार्य रूप से अपने सामान्य ढंग में अधिगृहित की जानी हो।

(ग) किसी व्यवसाय को शुरू करने या उसमे भाग लेने से अपने को अलग रखेगा।

(घ) यह सुनिश्चित करेगा कि उसके परिवार के सदस्य किसी ऐसी व्यावसायिक कंपनी को शुरू नहीं करते या उसमें भाग नहीं लेते, जो उस सरकार को माल और सेवाओं की पूर्ति करने में लिप्त हो या उस सरकार पर लाइसेंस (अनुज्ञापत्र) , परमिट (प्रवेश पत्र) , फ़ोटोें, पट्‌टों आदि को मंजूर करवाने के लिए निर्भर हो। (व्यापार अथवा व्यवसाय के सामान्य व्यवहार और मानक और बाजार दरों को छोड़कर) और

(ङ) यथास्थिति प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को उस मामले में सूचित करे, जिसमें उसके परिवार का कोई सदस्य अन्य किसी व्यवसाय को स्थापित कर लेता है या उसके संचालन और प्रबंध में भाग लेना शुरू कर देता है।

3.1 कोई भी मंत्री

(क) व्यक्तिगत रूप से या अपने परिवार के किसी सदस्य के माध्यम से, किसी भी उद्देश्य के लिए, चाहे वह राजनीतिक हो, धर्मार्थ हो या अन्यथा हो, किसी भी चंदे को स्वीकार नहीं करेगा।

व्याख्या: इस संहिता में मंत्री के परिवार में उसकी पत्नी (या यथास्थिति पति) , जो उससे कानूनी तौर पर पृथक न हुई हो, अवयस्क बच्चे या अन्य व्यक्ति, जो रक्त संबंधी रिश्तेदार या विवाह से संबंध रखता हो और पूर्णतया मंत्री पर निर्भर है।

दव्तीय प्रशासनिक सुधार आयोग का मत: दव्तीय प्रशासनिक सुधार आयोग के मुताबिक आचार संहिता मंत्रियों दव्ारा अच्छे आचारण को सुनिश्चित करने के लिए एक आरंभिक बिन्दु है। फिर भी यह अपने आप में वृहत नहीं है और प्रतिनिषेधों की सूची की प्रकृति इसमें अधिक है। अत: यह आवश्यक हैंं कि आचार संहिता के अलावा, एक नैतिक संहिता होनी चाहिए जो इस बात पर मार्गदर्शन दे कि किस प्रकार मंत्री अपने कर्तव्यों का निष्पादन करते हुए संवैधानिक और नैतिक संहिता के उच्चतम प्रतिमानकों को बनाए रखें। यह संहिता कानून का पालन करने, न्याय के संचालन को बनाए रखने और जन जीवन की सत्यनिष्ठा की रक्षा करने के लिए मंत्रियों के प्रधान कार्यो पर आधारित होगी। यह मंत्री -सिविल (नागरिक) सेवकों के संबंधों के सिद्धांतों को भी निर्धारित करेगी। नैतिक संहिता जन जीवन के सात सिद्धांतों का भी चिन्तन करेगी। दव्तीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने दूसरे देशों की आचार संहिताओं की जांचोपरांत मंत्रियों की आचार संहिता और नैतिक संहिता में निम्नलिखित को शामिल किये जाने की सिफारिश की:

(क) मंत्रियों को उच्चतम नैतिक प्रतिमानकों को बनाए रखना चाहिए।

(ख) मंत्रियों को सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को बनाए रखना चाहिए।

(ग) संसद में जवाबदेही मंत्रियों का कर्त्तव्य है और उन्हें अपने विभागों और एजेंसियों (संस्थाओं) की नीतियों, निर्णयों और कार्यवाईयों के लिए जवाबदेह बनना होगा।