आचार संहिता (Code of Ethics – Part 4)

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राज्य सभा के सदस्यों के लिए आचार संहिता का वर्तमान ढांचा निम्न प्रकार से है:-

राज्य सभा के सदस्यों को उनमें व्यक्त किए गए विश्वास को बनाए रखने के लिए, अपना उत्तरदायित्व समझते हुए उन्हें लोगों की आम भलाई के लिए अपने शासनादेश का निष्पादन कर्मठता के साथ करना चाहिए। उन्हें संविधान संसदीय संस्थानों और सबसे ऊपर आम जनता को उच्च सम्मान देना चाहिए। उन्हें संविधान की उद्देशिका में निर्धारित आदर्शो को वास्तविकता में बदलने के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। उन्हें अपना काम करते हुए निम्नलिखित सिद्धांतों का पालन करना चाहिए-

• सदस्यों को ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे संसद की अवमानना हो और उनके विश्वास पर प्रभाव पड़े।

• सदस्यों को लोगों की आम भलाई का विकास करने के लिए संसद सदस्य के रूप में अपनी हैसियत का सदुपयोग करना चाहिए।

• अपना काम करते हुए यदि सदस्यों को यह पता चलता है कि उनके व्यक्तिगत हित और उनके दव्ारा प्राप्त किए हुए लोक विश्वास के बीच कोई संघर्ष है तो इस संघर्ष का इस प्रकार से समाधान कर लेना चाहिए कि उनके निजी हित, उनके सार्वजनिक पद के प्रति कर्तव्यों के बाद ही यौण समझे जाएं।

• सदस्यों को हमेशा यह देखना चाहिए कि उनकी वित्तीय रूचियां और उनके नजदीकी परिवार के हित जन हित में आड़े न आएं और यदि ये हित आड़े आ रहे हों तो उन्हें ऐसे संघर्ष का इस प्रकार से समाधान करना चाहिए कि जिससे जन हित को कोई खतरा न हो।

• सदस्यों को सदन के पटल पर उनके दव्ारा किए गए किसी मतदान के लिए या मतदान न किए जाने पर, बिल पेश किए जाने पर, किसी संकल्प को प्रस्तुत किए जाने पर, किसी प्रश्न के पूछे जाने पर अथवा प्रश्न पूछने से अपने को रोके जाने पर, सदन अथवा संसदीय समिति की बैठक में चल रहे विचार विमर्श में भाग लेने के लिए किसी प्रकार के शुल्क, पारिश्रमिक अथवा लाभ की अपेक्षा अथवा उसे स्वीकार नहीं करना चाहिए।

• सदस्यों को ऐसा कोई उपहार नहीं लेना चाहिए जिससे उनके सरकारी कर्तव्यों का सत्यनिष्ठा और निष्पक्ष रूप से निष्पादन करने में कोई हस्तक्षेप होता हो। फिर भी वे आकस्मिक उपहार या मूल्यहीन यादगार उपहार और रिवाजी आतिथ्य स्वीकार कर सकते हैं।

• सार्वजनिक पद पर रहते हुए सदस्यों को लोक संसाधनों का प्रयोग इस प्रकार करना चाहिए कि जिससे जनता की भलाई हो सके।

• संसद सदस्य होने के नाते या संसदीय समिति के सदस्य होने के नाते यदि इन सदस्यों के पास कोई गोपनीय सूचना हो तो ऐसी सूचना को उन्हें अपने निजी स्वार्थों के लिए प्रकट नहीं करना चाहिए।

• सदस्यों को किसी व्यक्ति या संस्थानों को ऐसा कोई प्रमाण-पत्र देने से बचना चाहिए, जिसकी उन्हें कोई व्यक्तिगत जानकारी न हो और जो तथ्यपरक न हो।

• सदस्यों को ऐसे किसी मामलें में तुरन्त समर्थन नहीं देना चाहिए जिसके बारे में उन्हें कोई जानकारी न हो या नाम मात्र जानकारी हो।

• सदस्यों को उन्हें उपलब्ध कराई जा रही सुविधाओं और सुख सुविधाओं का दुरुप्रयोग नहीं करना चाहिए।

• सदस्यों को किसी धर्म के प्रति असम्मान व्यक्त नहीं करना चाहिए और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए काम करना चाहिए। सदस्यों को संविधान के भाग 4 क में सूचीबद्ध किए गए मूल कर्तव्यों को अपने मन में सर्वोपरि रखना चाहिए।

• सदस्यों से लोक जीवन में नैतिकता, गरिमा और शालीनता के उच्च मानदंडो को बनाए रखना अपेक्षित है।