महान सुधारक का भाग-2 (Part 14 of the Great Reformer – Part 14)

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बी. पी. मेनन:-

प्रसिद्ध प्रशासक राय बहादुर वप्पाला मेनन या बी. पी. मेनन (30 सितंबर, 1893 - 31 दिसंबर, 1965) का नाम देश के सर्वश्रेष्ठ प्रशासकों की सूची में शामिल किया जाता है। उन्होंने 1945 - 1950 के समय में नव स्वतंत्र हुये भारत के एकीकरण में अतिप्रंशसनीय भूमिका का निर्वहन किया था।

केरल के एक विद्यालय शिक्षक के पुत्र मेनन भारतीय सिविल (नागरिक) सेवा में आने से पहले रेलवे में कोयला झोंकनें वाले, कोल खदान में और बेंगलूर टोबैको कंपनी (संघ) में काम कर चुके थे। अपनी असाधारण प्रतिभा के बल पर वह ब्रिटिश इंडिया (भारत) में सर्वोच्च प्रशासनिक पद पहुँचे। उन्हें 1946 में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड लुइस माउंटबेटन का राजनीतिक सलाहकार बनाया गया। उनकी योग्यता से सरदार पटेल बहुत प्रभावित थे और उनका मेनन की राजनीतिक सूझबूझ और नैतिकता पर बहुत विश्वास था। स्वयं मेनन सरदार पटेल का बहुत आदर करते थे। मेनन और पटेल की परस्पर विश्वास परक कार्यशैली एक राजनेता और एक प्रशासक के मध्य तालमेल का बहुत महत्वपूर्ण उदाहरण है। यह ऐसे दौर में हुआ जब सिविल सेवकों के प्रति भारतीय राजनीतिज्ञों की बहुत अच्छी राय नहीं थी।

मेनन ने पटेल के साथ काम करते हुये करीब 565 रियासतों का भारत में विलय करवाने में अद्भुत सफलता हासिल की। केन्द्र सरकार और सैकंड़ों रियासतों के राजकुमारों के बीच कई दौर की बात करने वाले श्री मेनन का नाम भारत के एकीकरण के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो चुका है। मेनन ने विलय को अस्वीकार करने वाले जूनागढ़ एवं हैदराबाद के निजाम के खिलाफ सैनिक कार्रवाई करने का सरकार के कठोर फैसले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कश्मीर पर पाकिस्तान के हमले के समय नेहरू और पटेल ने उनसे सलाह की। पटेल के निधन के बाद मेनन ने सिविल सेवा से सेवानिवृत्ति ले ली और बाद में ‘स्वतंत्र पार्टी’ में शामिल हो गये। उन्होंने दो किताबे लिखी है- The (यह) Story (कहानी) of (के) The (यह) Integration of (के) Indian (भारतीय) States (राज्य) और Transfer (हस्तांतरण) of (का) Power (शक्तिशाली) .

के. एम. पणिक्कर:-

तीन जून, 1895 को जन्म कावलम माधव पणिक्कर या के. एम. पणिक्का बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्हें पत्रकारिता, इतिहास, प्रशासक और कूटनीति के क्षेत्र में महारथ हासिल थी। उनका जन्म ब्रिटिश भारत के रजवाड़े त्रावणकोर में हुआ था। केरल के कोट्‌टायम, मद्रास और क्राइस्ट चर्च विश्वविद्यालय के ऑक्सफोर्ड में अध्ययन करने वाले पणिक्कर ने लंदन के मिडिल (मध्य) टेंपल (मंदिर) में भी पढ़ाई की। वह केरल साहित्य अकादमी के पहले अध्यक्ष भी रहे। पणिक्कर ने पुर्तगाल और हालैंड की यात्राएं भी की। इसका मकसद इन देशों का मालाबार के साथ संबंधों के इतिहास का अध्ययन करना था। ये अध्ययन उन्होंने ‘मालाबार एंड द पोर्टगीज’ और ‘मालाबार एंड द एच’ के नाम से प्रकाशित हुये।

उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और कलकता विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। फिर उनका रूझान पत्रकारिता की ओर हुआ और वह 1925 में हिन्दुस्तान टाइम्स के संपादक नियुक्त किये गये। वह पटियाला रियासत और बिकानेर रियासत के विदेश मंत्री भी रहे। वे चीन, फ्रांस और मिस्र में भी रहे। भारत वापसी पर उन्हें जम्मू कश्मीर विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया। वह बाद में मैसूर विश्वविद्यालय में इसी पद पर रहे। उनकी साहित्यिक रूचियां भी बहुत प्रशंसनीय रहीं। उन्होंने कई लेख व कविताएं लिखी और ग्रीक नाटकों का मलयालम में अनुवाद किया। उनका मलयालम और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान उच्च कोटि का था। उन्होंने इन दोनों भाषाओं में करीब 50 से अधिक किताबे लिखीं। 10 दिसंबर, 1963 को उनका निधन हो गया।

सी. डी. देशमुख:-

14 जनवरी, 1896 को जन्में चिंतामन दव्ारका देशमुख प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे हैं। उनका जन्म महाराष्ट्र के रायगढ़ में धार्मिक झुकाव वाले परिवार में हुआ था। उनके परिवार को पृष्ठभूमि भी प्रशासनिक कार्यों की रही थी। देशमुख बहुत योग्य छात्र. थे। उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय में 1912 में मैट्रिक परीक्षा में सर्वोच्च स्थान हासिल किया था। वे फिर बाद में स्नातक की पढ़ाई करने जीसस महाविद्यालय, कैम्ब्रिज (इंग्लैंड) गये। उस समय लंदन में होने वाली भारतीय सेवा परीक्षा (1918) में उन्होंने प्रथम स्थान हासिल किया था।

वह ऐसे पहले भारतीय हैं जिन्हें ब्रिटिश राज में 1943 में रिजर्व (आरक्षित) बैंक (अधिकोष) का गवर्नर (राज्यपाल) बनाया गया था। वह कैबिनेट (मंत्रिमंडल) में 1950 - 56 में वित्त मंत्री भी रहे। उनके कार्यकाल में ही नेशनल (राष्ट्रीय) काउंसिल (परिषद) ऑफ (के) अप्लाइड (आवेदन किया है) रिसर्च (खोज) की कार्यकारी परिषद आदि संस्थाएँ बनीं। वे यूजीसी के. चेयरमैन (अध्यक्ष) , दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति, भारतीय सांख्यिकी संस्थान के प्रमुख, नेशनल (राष्ट्रीय) बुक (किताब) ट्रस्ट (संस्था) के प्रमुख भी रहे। उन्होंने इंडिया (भारत) इंटरनेशनल (अंतरराष्ट्रीय) सेेंटर (केन्द्र) की नींव रखी और आजीवन इसके प्रमुख रहे। वह इंडियन (भारतीय) इंस्टीट्‌यूट (संस्थान) ऑफ (के) पब्लिक (लोग) एडमिनिस्ट्रेशन (प्रशासन) के अध्यक्ष भी रहे।

देशमुख ने ब्रेटनवुड्‌स सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। प्रसंगवश इसी सम्मेलन ने आईएमएफ और आईबीआरडी अध्यक्षता भी की। भारत-पाक विभाजन के दौरान उन्होंने विभाजन के बाद परिसंपत्तियों और जिम्मेदारियों के बंटवारे के काम में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। देशमुख की देखरेख में ही यह बैंक शेयरहोल्डरों की संस्थाओं से राष्ट्रीय संस्थान में तब्दील हुआ। वह देश की एक ऐसी अनोखी प्रतिभा थे जिनमें विचार और तटस्थता, संस्कृति और विज्ञान, समग्रता और दूरदृष्टि और ऊर्जावान व्यक्तित्व का अद्भुत तालमेल था। उनके अपनी ब्रिटिश पत्नी से संबंध ज्यादा दिन नहीं चले और तब उन्होंने दूसरा विवाह वैधव्य का जीवन बिता रही स्वतंत्रता सेनानी दुर्गाबाई देशमुख से किया।

वर्ष 1974 में उनकी आत्मकथा ‘द (यह) कोर्स (पाठयक्रम) ऑफ (के) माई (मेरा) लाइफ (जीवन) ’ प्रकाशित हुई। उन्हें सरकारी सेवाओं में योगदान के लिए रमन मैग्सेसे अवार्ड दिया गया। सन्‌ 1975 में उन्हें पदम विभूषण सम्मान दिया गया।