इंडियन (भारतीय) वेर्स्टन (पश्चिमी) फिलोसोपी (दर्शन) (Indian Western Philosophy) Part 1for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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विकासवाद ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: इंडियन (भारतीय) वेर्स्टन (पश्चिमी) फिलोसोपी (दर्शन) (Indian Western Philosophy) Part 1

19वीं सदी में विकसित हुआ- (चार्ल्स, डार्विन के समय से) -किताब लिखी-1859,1871, प्रकृति हमें खुद को प्राय: चेंज (परिवर्तन) करने का मौका देती है।

19वीं सदी में चार्ज्स डार्विन ने विकासवादी सिद्धांत का प्रभाव इथिक्स (आचार विचार) सहित कई विषयों पर पड़ा, इसी प्रभाव के परिणामस्वरूप एवं नई शाखा विकसित हुयी जिसे विकासात्मक इथिक्स कहा जाता है इसके प्रमुख समर्थक हर्वड स्पेंशर, लेस्ली स्टीफन और सेमुअल अलेक्जेंडर है इनके अलावा कुछ मात्रा में -लौयड मोर्गन, हेवरीवर्गशांंँ, ऑगस्ट कांस्ट प्रमुख है।

विकासवादी नीतिशास्त्र-

  • जिंदा वही रहेगा जो प्रकृति की चुनौती को झेल लेगा।
  • प्रकृति के साथ समायोजन करने वाले मूल्य = शुभ
  • जो समायोजन नही कर पाते वे = अशुभ
  • प्रकृति को झेलने में सक्षम बनाने वाले = कर्म

सापेक्ष-नियमों के साथ समायोजन की कोशिश।

निरपेक्ष- हर मनुष्य हर कर्म मन वचन से प्रकृति के साथ समायोजित करने की क्षमता रखता हो।

सुखवाद-परम सुख

न्याय-

  • न्याय की धारणा विकासवाद पर आधारित होनी चाहिए।
  • प्रत्येक व्यक्ति को यथासंभव स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।
  • जो व्यक्ति असहाय है उसकी सहायता करनी चाहिए (सिर्फ छोटे बच्चे)
  • योग्यता के अनुसार व्यक्ति को प्राप्तियां होनी चाहिए।
  • समाज के नियमों का पालन सबको करना चाहिए अन्यथा दंड देना चाहिए।
  • संकट काल में यदि जरूरी हो तो (समाज को बचाने के लिए) कुछ मानवों का बलिदान किया जा सकता है।
  • सिविक दर्शन की तरह विश्व नागरिकतावाद की स्वीकृति-व्यक्ति सिर्फ अपने नगर राज्य का ही नही बल्कि संपूर्ण राज्य का नागरिक है।
  • पहली बार मानव मात्र के समानता का समर्थन- पुरुष या स्त्री, स्वामी या दास सभी मनुष्य समान है।

मूल्यांकन-

  • पहली बार मानवमात्र की समानता का विचार।
  • विश्व नागरिकतावाद भी प्रगतिशील विचार है

स्वार्थ-

  • मनुष्य मूलत: स्वार्थी है। मार्क्स मूलत: परार्थ।
  • सिजविक स्वार्थी स्पेंशर परार्थी, सिजविक समर्थक थे लेकिन स्टोइन दर्शन बुद्धि को पूरा महत्व देकर भावनाओं तथा वासनाओं के पूर्ण समर्थन की बात करता है यह अतिवादी स्टोइमो का अपना है प्लेटो, अरस्तु का नही।
  • सदवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू गुण सुख के साधन नही है बल्कि अपने आप में साध्य है, सदवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू गुणों का विकास करना और उनके अनुरूप जीना है सुख है।
  • सुकरात इस मत का समर्थन करते है कि ज्ञान ही सदगुण है तथा सभी सदगुण ज्ञान के ही रूप है।
  • सर्वेश्वर वाद का समर्थन करते है अर्थात ईश्वर और जगत को अभिन्न मानते है इसमें निहित है कि जगत में जो कुछ भी होता है ईश्वरी की ईच्छा से ही होता है अत: मनुष्य को सुख-दुख से पूर्णत: उदासीन रहना चाहिए और हर घटना को ईश्वरी कृत्य के रूप में देखना चाहिए।
  • स्टोइमो का प्रसिद्ध कथन है, “प्रकृति के अनुसार जियो” इसका अर्थ यह माना जाता है कि जिस प्रकार प्रकृति ईश्वर के तिनको के अनुसार संचालित होती है वैसे ही मनुष्य को संचालित होना चाहिए।

मूल्यांकन-

  • सब कुछ ईश्वर की मर्जी पर छोड़ देना व्यक्ति को अमरण या निष्क्रिय बनाता है।
  • सुख-दुख से पूर्णत: उदासीन होने का आदर्श न देता है।
  • नैतिक सदगुणों का विकास करना वाछंनीय है लेकिन उसका स्वतः साध्य होना सुख के साधन है वे व्यक्ति और समाज के कल्याण के लिए आरंभ है, उदाहरण- अनिश्चित वासना-समाज⟋व्यक्ति-खतरनाक। अत: संयम सदगुण वाजना-समाज⟋व्यक्ति-लाभदायक।
  • नैतिक सुखो की ओर बढ़ने के लिए व्यक्ति को दर्शन का अध्ययन करना चाहिए। ऐपिक्यूटस ने डिमोकेटस के परमाणुवाद को आधार बनाते हुये सिद्ध किया कि दर्शन व्यक्ति को मृत्यु के भय तथा ईश्वरी दंड के भय से मुक्त कर सकता है इन भयों से मुक्त व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में नैतिक हो पाता है।

मूल्यांकन-

  • परिकृत सुखाद अपने आप में एक अच्छा विचार है जो व्यक्ति और समाज दोनों को संतोष प्रदान करता है।
  • यह मानना जरूरी नही है कि हर व्यक्ति सुख के लिये ही कर्म करता है।
  • डिमोकेटस के परमाणुवाद को आधार बनाया है लेकिन उसकी विचारधारा को सही मानने के लिये कोई बाध्यता नहीं है।