इंडियन (भारतीय) वेर्स्टन (पश्चिमी) फिलोसोपी (दर्शन) (Indian Western Philosophy) Part 25 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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अगर ये सभी स्थितियां होगी तो इहलौकिक जीवन भी मौक्ष जैसा है

moksh

Moksh
मोक्ष कब मिलेगा
जीतेजी मिल सकता हैपहले मरना ही होगा
जीवन मुक्तविदेह मुक्तिविदेह मुक्ति
बौद्ध अद्धैत वैदांत सांख्य, योग्यन्याय, वैशेषिक, मीमांसा, वैष्णव, वेदांत

karma

Karma
कर्म
संचितस्चाींयमानप्रारब्ध
जो कर्म पहले से एकत्रित होजो कर्म अभी कर रहे हैये भी पहले संचित है लेकिन इनका फल मिलने की प्रक्रिया एकत्रित हो गयी है।
फल मिलना शुरू नहीं हुआ है

(जीवन-मुक्ति में क्या होता है)

ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ स्ंचित कर्म जलकर राख हो जाते है।

  • जीवन मुक्त व्यक्ति जो भी कर्म करता है उनमें व्यक्तिगत लाभ की लालसा नहीं होती, गीता की भाषा में इन्हें निष्काम कर्म कहते है और बुद्ध की भाषा में अनाशक्त कर्म, बुद्ध के अनुसार ये कर्म सुने हुये नीज की तरह होते है। अत: फल उत्पादन की क्षमता नहीं रखते है।
  • जीवन मुक्त व्यक्ति के संचीयमान कर्म नहीं होते।
  • प्रारब्ध कर्मो का फल मिला क्योंकि शुरू हो चुका है सो यह प्रक्रिया बीच में नहीं रूकेगी। जीवन मुक्त व्यक्ति जब तक देह से मुक्त रहेगा, तब तक उनका कर्म देहपात के बाद विदेह मुक्त नहीं होगा।

वर्तमान समय में मोक्ष की प्रासंगिकता-

  • वर्तमान में ऐसे अलोकिक उद्देश्यों पर समाज का विश्वास
  • कुछ दार्शनिकों ने मोक्ष की पारंपरिक धारणा पर प्रश्न खड़े किए है।
  • नारीवादियों ने सवाल उठाया है कि मोक्ष मार्ग केवल पुरुषों तक सीमित रहा है इसे परम/चरम पुरुषार्थ कहने पर उन्हें आपत्ति है (मोक्ष के विभिन्न मार्ग परिवार और समाज से कटने की मांग करते है जो महिलाओं के लिए संभव नही)
  • दिगम्बर जैन ग्रंथो में स्पष्टत: कहा गया है कि महिलायें मोक्ष की अधिकारी नहीं है।
  • मोक्ष की धारणा-उच्च वर्णो तक सीमित-अंबेडकर, तब बौद्ध विचारो का आक्षेप है।
  • समतामूलक समाज के अनुरूप नहीं।
  • यह व्यक्ति को परलोकवादी बनाती है, इहलोकिक विकास की संभावना कम हो जाती है।

मोक्ष की मेरी धारणा

  • इहलौकिक
  • विज्ञान तकनीक का विकास इस तरह हो कि मनुष्यों की अंधिकांश विचारों का निदान संभव हो जाए तथा विभिन्न कष्ट समाप्त हो सके जैसे जल संकट, पर्यावरण संकट, भूख का संकट आदि।
  • विश्व के सभी समाज एक ऐसी नीति मीमांसा को स्वीकार करे जिसमें निम्न लक्षण हो-
  • मानव मात्र की समानता-लिंग भेद, न प्रजाति भेद, न वर्ण भेद आदि।
  • प्रत्येक व्यक्ति को इतनी आजादी हो कि वह अपनी रूचियों के अनुसार अपने जीवन को परिभाषित कर सके।
  • मनुष्यों के अलावा प्राणीजगत/पेड़ पौधों के प्रति भी संवेदनशीलता का विकास हो।
  • अंतरराष्ट्रवादी नैतिकता का विकास हो ताकि राष्ट्रवाद के नाम पर विभिन्न युद्धों से बचा जा सके।