यूरेशियाई ऊदबिलाव (Eurasian Udbilao – Environment)

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सुर्ख़ियों में क्यों?

• हाल ही में सतपुड़ा टाइगर रिजर्व (बाघ आरक्षित) मध्य प्रदेश और कान्हा-पेंच गलियारें से यूरेशियाई ऊदबिलाव खोजा गया।

• यह हिमालय और पश्चिमी घाट के कुछ हिस्सों में ही सीमित माना जाता था।

यह क्या है?

• यह दुर्लभ भारतीय स्तनपायी में से एक है।

• यह यूरोप, अफ्रीका और एशिया के विस्तृत क्षेत्र में पाया जाता है। परन्तु यह भारत में दुर्लभ है।

• इसे आईयूसीएन के तहत ‘संकटापन्न’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

पवन-सौर संकरण नीति का मसौदा

सुर्ख़ियों में क्यों?

• राष्ट्रीय पवन-सौर संकरण नीति का मसौदे का उद्देश्य पारेषण बुनियादी ढांचे का दृष्टतम और कुशल उपयोग करने के लिए बड़ी ग्रिड (जाली) से जुड़ी पवन -सौर फोटोबोल्टिक (पीवी) प्रणाली को बढ़ावा देने की एक रूपरेखा प्रदान करना है। इसके प्रतिबंधात्मक होने और शुल्कों के बारे में स्पष्टता की कमी जैसे कारणों के लिए इसकी आलोचना की जा रही है।

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• इसमें नई परियोजनाओं के अतिरिक्त मौजूदा सौर फोटोबोल्टिक और पवन ऊर्जा संयत्रों के संकरण का प्रस्ताव है।

• संकरण परियोजनाओं के लिए कम लागत का वित्तपोषण इरेडा और बहुपक्षीय बैंको जैसी अन्य वित्तीय संस्थाओं के माध्यम से उपलब्ध कराया जा सकता है।

• मसौदा नीति, नई हवा-सौर संकरण परियोजनाओं के लिए, विकासकर्ताओं दव्ारा संकर शक्ति का उपयोग करने के लिए कैप्टिव बंदी होनाउपयोग, तीसरे पक्ष को बिक्री या राज्य बिजली वितरण कंपनियों व्यापार हेतु बनाया व्यक्तियों का समूह⟋मंडली को ब्रिकी करने जैसे विकल्प उपलब्ध कराने का प्रस्ताव करती है।

मसौदा नीति का महत्व

• यह देखते हुए कि पवन या सौर परियोजना की समग्र परियोजना लागत का 10 - 12प्रतिशत भूमि और निकासी नेटवर्क (जाल तंत्र) जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे पर खर्च होता है, इस तरह की संकरण परियोजनाओं से आम बुनियादी ढांचे की लागत में लाभ होगा।

• उत्पादन में परिवर्तनशीलता को कुछ हद तक कम किया जा सकता है क्योंकि दोनों स्रोतों से उत्पादन अलग अंतराल पर और अलग मौसम में होता है।

• यह पवन या सौर उत्पादन के रूक-रूक कर उत्पादन करने की प्रकृति के कारण उत्पन्न होने वाली ग्रिड अस्थिरता पर वितरण कंपनियों की चिंताओं को आंशिक रूप से दूर करेगी।

नीति की आलोचना

• मसौदा नीति एक अच्छा कदम है, लेकिन ऐसी इकाइयों के आकार पर नियंत्रण की वजह से यह प्रतिबंधात्मक है।

• नीति में शुल्क और वित्तीय प्रोत्साहन के संबंध में विवरण का अभाव है।

• यह इस सुझाव में प्रतिबंधात्मक है, कि मौजूदा संयंत्रों की संकरण क्षमता में वृद्धि को स्वीकृत संचरण क्षमता में सीमित किया जाना चाहिए।

आगे के कदम

• हालांकि नीति एक अच्छा कदम है फिर भी नीति का कार्यान्वयन बहुत सावधानी से किये जाने की आवश्यकता है-निकासी नीति स्पष्ट करने की जरूरत है, ज्यादातर मामलों में पारेषण वृद्धि किये जाने की आवश्यकता हो सकती है, वितरण क्षमता के निर्धारण और अनुमान की सही गणना करने की जरूरत है, और संयंत्र की सही अभिन्यास संरचना बनाने की जरूरत है जिससे कि हवा मिलों की छाया सौर पैनलों पर न पड़े।

• केंद्रीय बिजली नियामक आयोग (सीईआरसी) को पवन सौर हाइब्रिड (दोग़ला) ढांचे के लिए एक एफआईटी (शुल्क संभरण) (एफआईटी घरों या कारोबारों को भुगतान है जो अपने लिए बिजली स्वयं पैदा करते हैं जिसमें उन तरीकों का प्रयोग होता है जिससे वे प्राकृतिक संसाधनों की कमी में योगदान नहीं है जिस अनुपात में वे इसका उपयोग करते है) बनाने की आवश्यकता है।