सांस्कृतिक-प्रदूषण कारण एवं निवारण

Doorsteptutor material for CTET-Hindi/Paper-2 is prepared by world's top subject experts: get questions, notes, tests, video lectures and more- for all subjects of CTET-Hindi/Paper-2.

“संस्कृति मानव जीवन की वह अवस्था है जहाँ उसके प्राकृतिक राग-द्धेष का परिमार्जन होता है” अर्थात संस्कृति उस महासागर के समान है जो समस्त अच्छाइयों को समेटते हुए और विभिन्न प्रकार के अभिलेखों को आत्मसात्‌ करते हुए अपने मूल स्वरुप को स्पष्ट, उज्जवल एवं सुरक्षित बनाए हुए है। भारतीय संस्कृति एक अनुपम उदाहरण है जो विभिन्न संस्कृतियों की जन्मदायिनी है। डॉ. मुखर्जी ने अपनी पुस्तक ‘दी फण्डामेंटल यूनिटी आफॅ इंडिया’ में ‘वृहत्तर भारत’ शब्द का प्रयोग करके इसकी प्रमाणिकता को सिद्ध किया है। प्रो. एस. एफ. जे. बुड्‌स के अनुसार “सामाजिक सांस्कृतिक मूल्य वे सामन्य सिद्धांत हैं जो दिन प्रतिदिन के व्यवहार को नियंत्रित करते हैं। वे मानव व्यवहार को दिशा, आदर्श व उद्देश्य प्रदान करते हैं।” यह सभी बातें तभी तक सही प्रकट होती थीं जब तक हम शारीरिक रुप से परतंत्र थे परंतु मानसिक एवं सामाजिक रुप से सभ्य थे। अंग्रजों के प्रहार के बाद से ही मानव जीवन में एक आश्चर्यजनक परिवर्तन प्रकट हुआ। सांस्कृतिक मूल्यों एवं चेतना का ह्यास प्रारंभ हुआ। लोकतंत्र व प्रजातंत्र की स्थापना के बाद ही देश की जनसंख्या में बढ़ोतरी नजर आई और परिणाम स्वरुप बेरोजगारी और गरीबी की समस्याएँ जटिल होती गई। मनुष्य अपने जीवन यापन के लिए अनेक अनैतिक एवं असामाजिक कार्यों की ओर चल पड़ा। आदर्श की बातें मात्र कहने और सुनने की पौराणिक कथाएँ बन कर रह गई। देश पाश्चात्यता एवं आधुनिकरण के ऐसे कुचक्र में फंस गया कि उसका परिणाम सांस्कृतिक प्रदूषण के रूप्प में दृष्टिगत हुआ। उसकी जड़े इतनी पनप गई कि मनुष्य उस बुराई से दूर न जा सका। वह इस भीषण दुर्गति का अंश बनकर रह गया। यह सांस्कृतिक प्रदूषण की समस्या इतनी जटिल हो चुकी है कि मात्र कुछ कारणों से इसके प्रकोप को दर्शाना अत्यंत मुश्किल है।

इस समस्या के कुछ कारण हैं-

1. अंग्रेजो का शासनकाल- इन अंग्रेजी सत्ताधीशों के प्रभाव में देश का मानचित्र ही बदल गया। खान-पान से लेकर रहन-सहन सब पर इनका प्रभाव छाता गया। वे हमारी सभ्यता के नियमों का परिहास करने लगे और हमें रूढ़ीवादी कह कर संबोधित करने लगे। इस बात का भारतीयों के मस्तिष्क पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा।

2. अंग्रजों की कूटनीति- अंग्रजों ने ‘फूट डाला और राज करो’ की नीति अपना कर देश में जातिवाद और भाई-भतीजावाद की भावनाओं को विकसित कर दिया। फलत: धार्मिक रूप से भारतीयों की सांस्कृतिक चेतना पर आघात किया।

3. पारिवारिक विघटन की समस्या- संयुक्त परिवारों के विखण्डन के फलस्वरूप भावी में एकता एवं सौहार्द की भावना का लोप हुआ है और आपसी रिश्तों में टकराव पैदा कर दिया है।

4. विज्ञान का प्रभाव- विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्रों में विकास के कारण हमारे देश में सभ्यता की सेज पर आधुनीकरण की नींव पड़ी है। यह हमारे लिए एक चिंता के विषय के रूप में सामने आई है।

5. देश में ओद्यौगिकरण- ओद्यौगिकरण की नींव पर मानव भोग विलासिता एवं सुख-सुविधाओं की ओर आकर्षित होता जा रहा है जो मनुष्य को समाज से दूर स्वंय तक सीमित कर रही है।

6. अछूतों से समान व्यवहार न करना- अंग्रेजी शासन में अछूतों से समान व्यवहार न मिल पाने के कारण वे अनेक अधिकारों से वंछित रखे गए है और यह उच्च वर्ग एवं निम्न वर्ग में समाज का विघटन करता है।

7. गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोग- गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों के पास वांछित सुविधाओं का अभाव है। फलत: वे अपने जीवनयापन के लिए अनैतिक एवं असामाजिक तकनीकों का प्रयोग करके समाजिक एवं सांस्कृतिक चेतना को आघात पहुँचाते हैं।

8. फिल्मी संस्कृति- फिल्मी संस्कृति के कुप्रभावों का आज की पीढ़ी अंधाधुन अनुसरण करती है और इसे एक गर्व का विषय समझती है परन्तु वास्तव में यह उसे आपसी परिवेश से दूर ले जाती है।

9. नशीले पदार्थों का सेवन- पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से आज की युवा पीढ़ी नशीले पदार्थों का सेवन की ओ अग्रसर होती है और यह उसे भीतरी रूप से खोखला कर देता है और उसके मानसिक स्वर को बाधित कर देता है।

10. प्रदर्शन व रैलियाँ- प्रदर्शन व रैलियों की होड़ में आज की युवा पीढ़ी इन आंदालनों का एक आकर्षक अंग बन जाती है। और सांस्कृतिक ह्यास की ओर अग्रसर करती है।

इन सभी कारणों से आज की युवा पीढ़ी एवं प्राणी पक्व बुद्धिजीवी भटकाव के शिकार बन रहे हैं। इस प्रकार देश की आजादी के पचास वर्षों बाद यह स्थिति समझ आती है जो मनुष्य को सोचने पर विवश कर देती है कि क्या स्वाधीनता हमारे हित की कि गई लड़ई है? क्या इसके बाद के परिणामों से लड़ने में हम सक्षम होगें? सिसरो ने कहा है- “यदि पूर्व की घटनाएँ वर्तमान के अतीत के साथ संबंधित न करी जाए तो फिर मानव जीवन है ही क्या? परम्परा के बिना मानव जीवन विश्रृंखलित हो जाएगा।” समस्याओं को सुलझाने एवं परिस्थितियों का सामना करने के पुराने ढंगों के आधार पर नए ढंगों की खोज की जानी चाहिए। परम्पराएँ हमें धैर्य, साहस और आत्मविश्वास प्रदान कराती हैं। हमारे देश में इस कुरीति से बचने के लिए कई प्रयत्न किए जा चुके हैं परन्तु अनेकों अभी शेष हैं।

निवारण:- सरकार ने अछूतों को समान अधिकार दिलाने के तहत अनेक कानूनों का गठन किया है और वे इस बात की पुष्टि करते हैं कि उन्हें समान अधिकार की प्राप्ति हो। संविधान एक्ट-1989 के 62 वें अमेंडमेंट में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के विकास के लिए अलग दस सालों तक सीटों को बढ़ाए रखने की मांग कि है। हमारे संविधान के तहत भारत के प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार एवं समान छूट प्रदान कि गई है। परिवार नियोजन के कार्यों को बढ़ावा दिया गया है परिणामस्वरूप जनसंख्या को एक सीमित स्तर तक ही बढ़ने दिया जाएगा। यदि जनसंख्या नियंत्रित होती है तो देश में रोजगार की समस्याएँ भी सुलझाई जा सकेंगी। हमें जन सामान्य को शिक्षत करना होगा कि वे भावी पीढ़ी पर ध्यान दें ताकि इस समस्या को ओर कई दशकों तक न सहना पड़े। प्रसार माध्यमों को इस बात की पुष्टि कर लेनी चाहिए कि आत जनता तक पहुँचने वाला संदेश जनता को गलत मार्ग प्रदर्शित न करें। आपसी सौहार्द, सामंजस्य एवं मधुरता को बढ़ावा मिले। फलत: पारिवारिक एक- रूपता का उद्गार हो और समाज के राष्ट्र के साहस और आत्मविश्वास में वृद्धि हों। अंग्रेजों की कूटनीति का समाप्तिकरण हो और सौहार्द पूर्ण धार्मिक संबंधो का निर्वाह हो। युवा पीढ़ी इस समाज की भावी कर्णधार है अत: उन्हें इस बात का पूर्ण अहसास दिलाना आवश्यक है कि संस्कृति देश की धरोहर होती है। संस्कृति से व्यक्ति और व्यक्ति से समाज, समाज से राष्ट्र की पहचान होती है। हमें विश्व इतिहास में अपनी संस्कृति की अमूल्य अनुपम एवं अमिट छाप छोड़नी है। इसके लिए हमें सतत्‌ प्रयासों से अपने राष्ट्र की छवि को एक नया रूप देना होगा। हमें अंत तक नहीं पहुँचना है परन्तु उस अंत पर बने रहना है। कवि श्री जयशंकर प्रसाद ने सत्य ही कहा है-

″ इस पथ का उद्देश्य नहीं है

श्रान्त भवन में टिक जाना,

किन्तु पहुँचना उस सीमा तक,

जिसके आगे राह नहीं है। ″

Frequently Asked Questions (FAQs)