भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का विकास (Development of Indian National Movement) Part 14 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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चंपारण सत्याग्रह ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का विकास (Development of Indian National Movement) Part 14

20वीं शताब्दी के आरंभिक चरणों में चंपारण के किसानों का भी आंदोलन हुआ जिसकी गूंज पूरे भारत में सुनाई दी। इस आंदोलन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यहीं से महात्मा गांधी जी का भारतीय राजनीति में सक्रिय रूप में प्रवेश होता है। भारत में सत्याग्रह का आरंभ चंपारण में हुआ।

उत्तर बिहार में नेपाल से सटे हुए चंपारण में नील की खेती बहुत दिनों से होती थी। इस क्षेत्र में अंग्रेज बागान मालिकों को रामनगर और बेतिया राज में जमीन की ठेकेदारी दी गई थी। इन लोगों ने इस क्षेत्र में ‘तीनकठिंया’ - प्रणाली लागू कर रखी थी। इसके अनुसार प्रत्येक किसान को अपनी खेती योग्य जमीन के 15 प्रतिशत भाग में नील की खेती करनी पड़ती थी। इतना ही नहीं, किसान अपना नील बाहर नहीं बेच सकते थे। उन्हें बाजार में निश्चित मूल्य पर बागान मालिको को ही नील बेचनी पड़ती थी। इससे किसानों का आर्थिक शोषण होता था। 1900 ई. के बाद जब नील की खपत कम होने लगी और इसका मूल्य घटने लगा तब निलहों ने इस क्षति की पूर्ति भी किसानों से ही करनी चाही। उन पर अनेक प्रकार के नए कर लगा दिए गए। अगर कोई किसान नील की खेती से मुक्त होना चाहता था तो उसके लिए आवश्यक था कि वह बागान मालिक को एक बड़ी राशि ‘तवान’ के रूप में दे। किसानों से बेगार भी लिया जाता था। उन्हें शारीरिक कष्ट भी भोगना पड़ता था। वस्तुत: चंपारण में नील की खेती करने वाले किसानो की स्थिति बंगाल के किसानों से भी अधिक दयनीय थी।

निलहों के अत्याचारों के विरुद्ध चंपारण के किसानों ने समय-समय पर विरोध प्रकट किया। 1905 - 08 ई. के मध्य मोतिहारी और बेतिया के निकटवर्ती इलाकों में किसानों ने पहली बार व्यापक तौर पर आंदोलन का सहारा लिया। इस आंदोलन के दौरान हिंसा भी हुई लेकिन सरकार और निलहों पर इसका कोई व्यापक प्रभाव नहीं पड़ा। किसानों पर आंदोलन करने के लिए मुकदमे चलाए गए। अनेकों को सजा भी हुई, लेकिन किसानों ने भी हार नहीं मानी। उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा।

इस आंदोलन में किसानों की सहायता कुछ संपन्न किसानों एवं कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भी की। 1916 ई. में राजकुमार शुक्ल ने गांधी जी को चंपारण आने और यहाँ के किसानों की दशा देखने के लिए आमंत्रित किया। गांधी 1917 में चंपारण गए। राजेन्द्र प्रसाद, मजहरूलहक, ब्रज किशोर प्रसाद और अन्य कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के साथ उन्होंने किसानों की दयनीय स्थिति की जाँच की। बड़ी संख्या में किसान गांधी जी के पास निलहों के अत्याचारों की शिकायतें लेकर आए। गांधी जी ने किसानो को अहिंसात्मक, असहयोग आंदोलन चलाने की प्रेरणा दी। इससे किसानों में नया जोश पैदा हुआ और एकता की भावना बढ़ी।

सरकार गांधी जी की लोकप्रियता से चिंतित हुई। उन्हें गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया लेकिन शीघ्र ही उन्हें छोड़ दिया गया। किसानों की शिकायतों की जाँच करने के लिए सरकार ने जून, 1917 में एक जाँच समिति नियुक्त की। गांधी जी को भी इसका एक सदस्य बनाया गया। समिति की सिफारिशों के आधार पर चंपारण कृषि अधिनियम बना। इसके अनुसार तिनकटिया-प्रणाली समाप्त कर दी गई। किसानों को इससे बड़ी राहत मिली। किसानो में नई चेतना जगी और वे भी राष्ट्रीय आंदोलन को अपना समर्थन देने लगे।