व्यक्तित्व एवं विचार (Personality and Thought) Part 33 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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भगत सिंह ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: व्यक्तित्व एवं विचार (Personality and Thought) Part 33

भगत सिंह देश की आजादी के लिए अपने प्राण की आहूति देने वाले इकलौते क्रांतिकारी नहीं थे, यह सच है। लेकिन ये भगत सिंह ही हैं, जिन्हें शहीदे आजम के रूप में जाना जाता है। इसकी कई ठोस वजहें हैं। वे एक ऐसे भारत का सपना संजोए थे, जिसमें ′ मनुष्य मनुष्य ′ का शोषण ′ नहीं करेगा और गोरे अंग्रेजों के साथ-साथ काले अंग्रेजों अर्थात देसी लुटेरों की लूट-खसोट का भी अंत होगा। भगत सिंह के लिए आजादी महज रोमानियत भरी इच्छा की पूर्ति नहीं थीं, बल्कि वे इसके जरिए देश के नौजवानों, बुद्धिजीवियों मजदूरों व किसानों को आजादी की लड़ाई में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहते थे। उनका स्पष्ट मत था कि आजादी और क्रांति एक गंभीर सृजनात्मकता का काम है और देश-दुनिया को जाने बिना औपनिवेशिक शासकों को हराना मुश्किल है। उनका यह भी मानना था कि केवल विदेशी शासकों से मुक्ति पा लेने से ही दरिद्रता और लुट खसोट का अंत नहीं होगा।

भगत सिंह कुर्बानी का प्रतीक ही नहीं, बल्कि वैचारिक क्रांति के तौर पर भी आजादी की लड़ाई के प्रतीक बने। इस महान क्रांतिकारी ने शहीद होने के दिन (23 मार्च, 1931) तक जो साहित्य जेल में मंगाकर पढ़ा, उसकी सूची पर एक निगाह डालने से ही पता चल जाएगा कि उनके विचारों की नींव कितनी मजबूत थी। उन्होंने मार्क्स, लेनिन, बर्नाड शॉ, गोर्की, आदम स्मिथ, बर्टन रसेल की महत्वपूर्ण पुस्तकों के साथ-साथ भारतीय भाषाओं में उपलब्ध समकालीन साहित्यिक और वैचारिक ग्रंथों का गहराई से अध्ययन किया।

भगत सिंह, जिन्हें 23 वर्ष से भी कम उम्र में फांसी पर लटका दिया गया, ने अपने छोटे से जीवनकाल में भारत के क्रांतिकारी आंदोलन को नई दिशा दी। उनके और चन्द्रशेखर आजाद के साझा नेतृत्व में 8 और 9 सितंबर, 1928 को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला के खंडहरों में हिन्दुस्तानी समाजवादी प्रजातंत्र संघ की स्थापना की गई, जिसका भगत सिंह ने स्वयं घोषणापत्र लिखा। भगत सिंह के वैचारिक नेतृत्व में ही नौजवान-भारत सभा की स्थापना की गई। जिसका घोषणापत्र और कार्यक्रम भी भगत सिंह के दव्ारा ही लिखे गए। ये दस्तावेज आज भी प्रासंगिक हैं।

कवि, गायक और चिंतक के रूप में ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: व्यक्तित्व एवं विचार (Personality and Thought) Part 33

भगत सिंह मौत से बेखौफ एक भावुक इंकलाबी ही नहीं थे, बल्कि एक चिंतक, लेखक, कवि, गायक और अभिनेता भी थे। भगत सिंह ने अछूत समस्या, भारत में भाषा और लिपि से जुड़ी समस्याएं, धर्म व स्वतंत्रता संग्राम और सांप्रदायिक दंगे जैसे विषयों पर उर्दू, हिन्दी, पंजाबी में मौलिक रचनाएं लिखी। उन्होंने हिंसा के प्रयोग पर गांधी जी के साथ एक लंबी बहस में हिस्सा लिया। भगत सिंह ने अपनी छोटी सी उम्र में ′ मैं नास्तिक क्यों ′ शीर्षक से एक दार्शनिक निबंध लिखा। जिसका विश्व की लगभग हर भाषा में अनुवाद हो चुका है। उन्होंने जेल में चार पुस्तकें ′ आत्मकथा, समाजवाद का आदर्श, भारत में क्रांतिकारी आंदोलन और मृत्यु के दव्ार पर भी लिखी थी, जिनके मसौदे विदेशी हुकूमत के कब्जे में थे। इन मसौदों को कब और कैसे गायब किया गया, यह कोई नहीं जानता।

′ मैं तूफानों से खेलूंगा, मैं गर्दाबों को झेलूंगा

लबे-दरिया मुझे डर-डर के मर जाना नहीं आता ′ ।

भगत सिंह ने सुरीला गला पाया था। जेल के संगी साथी उनके गाने सुनकर अपनी उदासी भुला देते थे। उन्होंने कई नाटक भी लिखे और उन्होंने जेल में खेला भी। भगत सिंह ने नाटकों में स्वयं भूमिकाएं भी कीं। यह सब विरासत नष्ट कर दी गई।

भगत सिंह मानते थे कि कांग्रेस की लड़ाई मध्य वर्ग के हित में हैं। उससे मजदूर-किसान जनता का हित नहीं होगा- ‘भारत की वर्तमान लड़़ाई ज्यादातर मध्य श्रेणी के बल-बूते पर लड़ी जा रही है, जिनका लक्ष्य बहुत सीमित है। कांग्रेस दुकानदारों और पूंजीपतियों के दव्ारा इंग्लैंड पर आर्थिक दबाव डालकर कुछ अधिकार ले लेना चाहती है, परन्तु जहाँं तक देश की करोड़ों मजदूर किसान जनता का ताल्लुक है, उनका उद्धार इतने से नहीं हो सकता।’

अंग्रेजी हुकूमत भगत सिंह के व्यक्तित्व से ज्यादा उनके विचारों से खौफ खाती थी। इसलिए विदेशी हुक्मरानों ने उन्हें सूली पर लटकाने में तत्परता दिखाई।