गुरुत्वीय तरंगे (Gravitational Waves – Science and Technology)

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सुर्खियों में क्यों?

• संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित एलआईजीओ (laser interometer gravitational wave observatory) वेधशाला ने गुरुत्वीय तंरगों की खोज की है।

• भारत एलआईजीओ परियोजना में एक महत्वपूर्ण भागीदार है और गुरुत्वीय तरंगों से संबंधित शोध में पुणे के खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी के लिए अंतर-विश्वविद्यालयी केंद्र (आईयूसीएए) भागीदारी करेंगे।

गुरुत्वीय तंरगे क्या हैं? ~Gravitational Waves, Transport Energy as Gravitational Radiation – Science and Technology - Science in Hindi

• गुरुत्वीय तंरगे दिक्‌ एवं काल की सरंचना में पैदा हुई तरंग या हलचल हैं। यह ब्रह्यांड की कुछ सबसे उग्र और ऊर्जावान प्रक्रियाओं के कारण जनित होती हैं।

• अल्बर्ट आईस्टीन ने सन 1916 में ही अपने सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत में गुरुत्वीय तंरगों के अस्तित्व की भविष्यवाणी की थी।

वेधशाला में इनके अस्तित्व का प्रमाण कैसे मिला? ~Gravitational Waves, Transport Energy as Gravitational Radiation – Science and Technology - Science in Hindi

• इनके होने का पता लगाने के लिए बुनियादी सिद्धांत इन्टरफेस है-जब दो तरंगे मिलती हैं, तब वे उन तरंगों के बिन्दुओं-शीर्ष और गर्त की स्थिति के सापेक्ष आधार पर एक पैटर्न बनाती हैं।

• एलआईजीओ में, एक उच्च उजौयुक्त लेजर बीम विभाजित होती है और एल आकार की दो वैक्यूम सुरंगों, जो 4 किमी लंबी होती हैं, दव्ारा उन्हें नीचे भेज दिया जाता है। वे उच्च परिशुद्धता के दो दर्पणों से पराविर्तत होती हैं और उसके बाद आधार -स्थल पर वापस पहुँचती हैं। वापस वे इस प्रकार आती हैं कि एक दूसरे के प्रभाव को काट दें। इस तरह फोटो-डिटेक्टर (धातु, विस्फोटक आदि का पता लगाने वाला उपकरण) पर किसी प्रकाश का पता नहीं चलता।

• किन्तु जब एक गुरुत्वीय तंरग गुजरती है, तब यह अपने आस-पास की दिक्‌ को विकृत कर देती है और वह दूरी बदल जाती है जो लेज़र बीम को तय करनी होती है। अब, दोनों परावर्तित तरंगों के चरम बिंदु-शीर्ष और गर्त विशुद्ध रूप से एकरेखीय नहीं रह जाते। वे अब तक दूसरे के प्रभाव को रद्द नहीं कर पाते, जिसमें फोटो-डिटेक्टर पर अलग पैटर्न का पता चलता है।

भारत में गुरुत्वीय तंरग संसूचक: इंडिगो

• भारत-एलआईजीओ परियोजना में दो एलआईजीओ की एक प्रतिकृति बनाई जाएगी और अमेरिका में स्थित डिटेक्टरों की लंबवत दिशा में उन्हें तैनात किया जाएगा।

• भारत-एलआईजीओ परियोजना परमाणु ऊर्जा विभाग (डी. ए. ई) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डी. एस. टी.) विभाग दव्ारा संचालित की जाएगी।

• एलआईजीओ-भारत परियोजना को तीन भारतीय शोध संस्थाओं दव्ारा संयुक्त रूप से समन्वित और निष्पादित किया जाएगा: खगोल भौतिकी के लिए इंटर (बीच में) -यूनिवर्सिटी सेंटर (विश्वविद्यालय केंद्र) , पुर्ण (आईयूसीएए) , प्लाज्मा अनुसंधान संस्थान (आईपीआर गांधीनगर, जो परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्ग कार्यरत है) , और राजा रामन्ना सेंटर (केंद्र) फॉर (व्यक्ति या वस्तु के लिए) एडवांस (आगे रखना) टक्रोलॉजी (आरआरसीएटी) इंदौर।

• इससे सटीक मैट्रोलोजी, फोटोनिक्स और नियंत्रण प्रणाली आदि तकनीकी क्षेत्र समृद्ध होंगे।