इंडियन (भारतीय) वेर्स्टन (पश्चिमी) फिलोसोपी (दर्शन) (Indian Western Philosophy) Part 19 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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परिचय:-

  • आत्मा
  • आत्मा की अमरता
  • बंधन, मोक्ष
  • पुनर्जन्म
  • कर्म सिद्धांत

जैन-

  • हिन्दु और बौद्ध के बीच का ईश्वर, अवतारवाद

जैन नीति मीमांसा-

  • बंधन और मोक्ष
  • यज्ञ, साधन, अहिंसा और अनुयायियों को मांसाहारी खाने से मना करता है।
  • बंधन और मोक्ष-इसका अर्थ है कर्म फल की प्रक्रिया में उलझे होना, हमारा जन्म इसलिए होता है क्योंकि कर्मो का मल पिछले जीवन की समाप्ति के बाद भी बचा रह गया था संसार में होना बंधन का परिणाम भी है और बंधन का कारण भी। परिणाम इसलिए कि कर्मफल पूरा करने के लिए ही हम संसार में है और कारण इसलिए कि संसार में रहते हुये भी हम अपनी वास्तविक स्थिति को समझने के बजाए नयी-नयी वासनाओं में उलझकर कर्म करते रहते है और बंधन बढ़ता चला जाता है।
  • बंधन और मोक्ष-प्रक्रिया 6 जैन आचार्यों ने बेघर से मोक्ष तक प्रक्रिया को 5 चरणों में बांधा है जिन्हें पदार्थ कहते है।

jain dharma ke 5 charan

Jain Dharma Ke 5 Charan
आश्रमबंधसंवरनिर्जराकैवल
कर्मो का जीव की ओर बहनाकर्म मल की जीवन को जकड़ लेना अर्थात जीवन बेघर में बंध गया हैं।यहां से मोक्ष की कोशिश शुरू होती है संवर का अर्थ है नये कर्मो को आत्मा से जुड़ने से रोक देनाजो कर्म पहले से मल है उसकी सफाई करनाकेवल अनुरूप

है कर्म का विधुनिक दोनों को बचाकर मोक्षवृत्ति में मिलाना है।

  • साधन- जैन दार्शनिकों ने मोक्ष के साधनों में कई पक्षों पर विचार किया है उदाहरण पंच महाव्रत, अणुव्रत, त्रिरत्न, तीन गुप्तियां, 10 प्रकार के धर्म तथा 8 प्रकार के अहिंसा से मुक्ति आदि।
  • सुख मिलने की प्रक्रिया में थोड़े बहुत कष्ट आते है उनसे घबरा कर सुखों में धोखा मूर्खता है। कष्ट के भय से मछली को छोड़ देना मूर्खता है।

स्वादवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू वाद- जैनो का ज्ञान भी मीमांसा का एक प्रमुख सिद्धांत जिसका अर्थ है कि सामान्य मनुष्यों का ज्ञान हमेशा एक विशेष के सापेक्ष होता है विभन्न व्यक्तियों या विचारों में झगड़ा तभी होता है जब वे अपने सापेक्ष ज्ञान को निरपेक्ष मान लेने की भूल कर बैठते है वे समझ जाए कि उनका ज्ञान सापेक्ष है और दूसरों का ज्ञान भी उनके अपने दृष्टिकोण से उचित है तो वे एक-दूसरे के दृष्टिकोण के प्रति न केवल सहिष्णु हो जायेंगे बल्कि सम्मान भी करेंगे, उनके बीच चर्चा की संस्कृति विकसित होगी जो वैचारिक लोकतंत्र का मूल आधार है।

हिन्दु व्यक्ति- हिन्दु धर्म को दुनिया का सबसे अच्छा धर्म माना है।

मुसलमान-इस्लाम ही सबसे अच्छा धर्म है।

स्वादवाद का प्रभाव- समाज को समता मूलक बनाने की दृष्टि से इस्लाम एक अच्छा धर्म है ईश्वर और मनुष्यों के संबंधों में लचीलापन की दृष्टि से हिदुत्व एक अच्छा धर्म है, बल्कि सभी धर्म किसी न किसी दृष्टि से अवश्य श्रेष्ठ होंगे चाहे वे कारण हमें ज्ञान हो या नहीं।

  • मोक्ष की पारलोकिक धारणा पर आज के युग में विश्वास करना कठिन होता है।

अहिंसा के बाद भोजन व प्याज, लहसुन और के अंदर की वस्तु अधिकांश (आलू, अदरक, प्याज) भी न खाना और पानी को छानकर पीना, नाशक का प्रयोग न करना।

मोक्ष का स्वरूप-मोक्ष आनंद की अवस्था है

संकेत ऐसे है कि जैन विदेह मुक्ति के साथ जीवन मुक्ति को भी स्वीकार करते है, तीर्थोंक्कर अपने जीवन में मुक्त हो गये थे।

5 नियम या आदर्श जिनका पालन प्रत्येक जैन अनुयायी या साधक के लिए करना जरूरी हैं।

panchvrat ka sidhhant

Panchvrat Ka Sidhhant
पंचव्रत का सिद्धांत
5 महाव्रत5 अणुव्रत
वही 5 नियम साधु सन्यासी के लिए महाव्रत कहलाते है, जो महाव्रतों की अपेक्षा अनुव्रतों की तुलना में कठोर होती है इनके सम्यक पालन से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है।वही 5 नियम गृहस्थों के कुछ लचीले और सरल में उपस्थित है जिन्हें अणुव्रत कहते है, इनका पालन करने से महाव्रतों के पालन की योग्यता पैदा होती है, मोक्ष महाव्रतों के पालन से ही मिलता है।

5 vrat

5 Vrat
5 व्रत
टहिंसासत्यअस्तेयटपरिग्रहब्रह्यमचर्य
इसका जीवन का अर्थ है-मन, वचन और कार्य कर्म से किसी को भी कष्ठ न पहुँचाना, कही-2 इनके + जीवन अर्थ, अर्थात छोटे से छोटे जीनों के प्रति करुणा रखने को भी मान्यता दी गयी है

जैनों में अहिंसा का विचार गांधी की तुलना में कठोर है, गांधी ने अहिंसा केअपवाद स्वीकार किए है लेकिन जैनदर्शन प्राय: इसे निरपेक्ष रूप में लेता है

गीता में भी अहिंसा की वकालत है लेकिन कर्तव्य पूरा करने के लिए आवश्यक हो तो हिंसा करना उचित माना गया है और जैंनो में अहिंसा किसी भी कर्तव्य में ऊचाी है

सत्य का अर्थ है मन, वचन, कर्म से असत्य का त्याग कर देना। कथन ऐसे होने चाहिए जो न सिर्फ सत्य हो बल्कि मधुर भी हो।मन, वचन, कर्म से किसी के धन संपत्ति या वस्तु को नहीं चुराना अर्थात किसी को उसके अधिकार से वंचित न करना।इसका अर्थ है साधनो का संग्रह न करना-मन, वचन, कर्म तीनों स्तरों पर संग्रह तथा संग्रहेच्छा का पूर्ण त्याग कर देना अपरिग्रह हैं।

साधुओं के लिए अपरिग्रह निरपेक्ष स्तर पर है दैनिक प्रयोग की वस्तुओं के प्रति भी संचय का भाव नही आना चाहिए। अणुव्रत में यह नियम कुछ लचीला है ऊपरी जरूरतों के लिए थोड़ा बहुत संचय अनुचित नहीं माना गया है लेकिन संचय के लिए अनुचित साथन का प्रयोग गलत है।

मन, वचन, कर्म से त्याग देना सिर्फ ऐच्छिक या वासनाओं नहीं बल्कि मानसिक हो बाध्य भावार्थ तथा अन्य कामनाओं को कर देना, में इसका अर्थ है संयम पूर्व का भोग करना व्याख्या के लिए र्प्याप्त है लेकिन 10 वर्ष से पूर्व कामेच्छु पूर्ण नियत्रंण करना। तथा जीवन वैश्य गमन है।

तित्ररत्न

सम्यक दर्शन-इसका अर्थ है जैन आचार्यों और आगमों के कथनों में पूर्ण निष्ठा।

सम्यक ज्ञान- जैन आगमों के कथनों को ठीक से समझना, उन पर चिंतन मनन करना।

सम्यक चरित्र-मोक्ष प्राप्ति के लिए बताये गऐ साधनो जैन आगमों के अनुसार का कठोरता पूर्वक आदर करना।

तुलना-भारत के अधिकांश दर्शन मोक्ष के लिए या तो किसी एक ही मार्ग की वकालत करते है या फिर किसी एक को प्रमुख और बांछिदों को सहयक मानते है, एक शंकराचार्य ने एक मात्र रास्ता ज्ञान को माना है किन्तु भक्ति और कर्म को उसमें सहायक बताया है, इसी तरह रामानुज ने भक्ति को वास्तविक मार्ग तथा ज्ञान और कर्म को सहायक मार्ग बताया है

जैन दर्शन तीनो मार्गो को साथ लेकर चला है और उन्हें पुण्य और गौण में विभाजित भी नहीं किया है

गीता में कहा गया है कि साधु ज्ञान/कर्म या भक्ति किसी भी मार्ग में चलकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है, गीता में तीनों मार्ग वैश्विक रूप में उपलब्ध है जबकि जैन दर्शन तीनों का समन्वय करता है।

जैन दर्शन में कहा भी गया है।-रोगी को रोग से मुक्त होने के लिए 3 कार्य करने पड़ते हैं-

  • वैध या चिकित्सक के प्रति गहरी आस्था रखना।
  • चिकित्सक के निर्देशों को सटीक रूप में समझना।
  • चिकित्सक की सलाहों के अनुसार पूरी तरह आचरण करना।
  • इसी प्रकार मोक्ष की प्रक्रिया की इन तीनों तत्वों के समन्वय पर टीकी है।