इंडियन (भारतीय) वेर्स्टन (पश्चिमी) फिलोसोपी (दर्शन) (Indian Western Philosophy) Part 22 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.
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निष्काम कर्म योग-
सामान्य अर्थ- इसका अर्थ है कि व्यक्ति को निष्काम भाव से अर्थात फल की ईच्छा नहीं रखते हुये केवल अपने कर्तव्य करने पर बल देना चाहिए। यहां योग का अर्थ मार्ग से है, समग्रता में कहे तो निष्काम कर्मो का मार्ग ही व्यक्ति को बंधन से मुक्ति की ओर ले जाने में सक्षम है यह सिद्धांत भारतीय दर्शन में कर्तव्यवाद डी-ऑन्टेलॉजी (धर्मशास्त्र) का प्रतिनिधि सिद्धांत है जिसकी तुलना जर्मन दार्शनिक के कांट के ″ कर्तव्य के लिए कर्तव्य सिद्धांत से की जाती है।
निष्काम का अर्थ-गीता में कहा गया है कि यद्यपि प्रत्येक व्यक्ति को कर्म के अनुसार फल अवश्य मिलता है लेकिन नैतिकता का तकाजा है कि व्यक्ति फल के लोभ के लिए कर्म न करे, वह सफलता और असफलता से अविचलित रहे। गीता के दूसरे अध्याय के 47वें व 48 वे श्लोक में कृष्ण ने कहा कि “तुम्हारा अधिकार कर्म करने पर ही है उसके फल पर नही अत: फल की ईच्छा से प्रेरित होकर तुम्हे कोई कर्म नही करना चाहिए। सिद्धी असिद्धी में सम्मान रखते हुये तथा फल की आकांक्षा का त्याग करते हुये तुम कर्म करो। यही कर्म युद्ध है।”
निष्काम कर्म की स्थिति में आने के लिए मानसिक नियत्रंण और इंद्रीय संयम जरूरी है, कृष्ण ने कहा है कि यद्यपि मन अत्यन्त चंचल है और उसकी गति वायु से भी तेज है तब भी निरन्तर अभ्यास और वैराग्य दव्ारा उसे निपन्तित किया जा सकता है।
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(सत्य मेव जयतेे -वाक्य उपनिषद से है)