महान सुधारक (Great Reformers – Part 12)

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नेल्सन मंडेला:-

नेल्सन मंडेला का जन्म 18 जुलाई, 1918 को दक्षिण अफ्रीका में मबासा नदी के किनारे ट्रॉस्की के मवेजो गांव में हुआ था। नेल्सन के पिता गांव के प्रधान थे। नेल्सन अपने पिता की तीसरी पत्नी ‘नेक्यूको नोसकेनी’ की पहली संतान थे। कुल मिलाकर वह तेरह भाइयों में तीसरे थे। लोग उम्मीद कर रहे थे कि वह परिवार की परंपरा के अनुसार शाही सलाहकार बनेंगे। नेल्सन की मांँ एक मेथडिस्ट (एक क्रिस्तानी पंथ) थी। वह मेथडिस्ट मिशनरी (धर्म-प्रचारक) स्कूल (विद्यालय) के विद्यार्थी बने। इसी बीच बारह साल की उम्र में ही नेल्सन के सिर से पिता का साया उठ गया। नेल्सन ने क्लार्कबेरी मिशनरी स्कूल से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की।

विद्यार्थी जीवन में उन्हें रोज याद दिलाया जाता कि उनका रंग काला है और सिर्फ इसी वजह से वह यह काम नहीं कर सकते। उन्हें रोज इस बात का एहसास करवाया जाता है कि अगर वे सीना तान कर सड़क पर चलेंगे तो इस अपराध के लिए उन्हें जेल जाना पड़ सकता है। ऐसे अन्याय ने उनके अंदर असंतोष भर दिया। उन्होंने ‘हेल्डटाउन’ से अपनी स्नातक शिक्षा पूरी की। हेल्डटाउन अश्वेतों के लिए बनाया गया एक विशेष कॉलेज (महाविद्यालय) था। यहीं पर उनकी मुलाकात ‘ऑलिवर टाम्बो’ से हुई, जो जीवन भर के लिए उनके दोस्त और सहयोगी बने। 1940 तक नेल्सन मंडेला और ऑलिवर टाम्बो ने कॉलेज (महाविद्यालय) कैम्पस (परिसर) मेें अपने राजनीतिक विचारों और कार्यकलापों के लिए प्रसिद्धि पा ली। कॉलेज प्रशासन को जब इस बात का पता लगा तो दोनों को कॉलेज से निकाल दिया गया और परिसर में उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया। ‘फोर्ट हेयर’ उनके क्रियाकलापों के मूर्त गवाह के रूप में आज भी खड़ा है। कॉलेज से निकाल दिए जाने के बाद वह माता-पिता के पास ट्रॅास्की लौट आए।

उन्हें क्रांति की राह पर देखकर परिवार परेशान था और चाहता था कि वह हमेशा के लिए घर लौट आए। जल्दी ही एक लड़की पसंद की गई जिससे नेल्सन को पारिवारिक जिम्मेदारियों में बांध दिया जाए। घर में विवाह की तैयारियों जोर-शोर से चल रही थीं। दूसरी और नेल्सन का मन उदव्ेलित था और आखिर में उन्होंने अपने निजी जीवन को दरकिनार करने का फैसला किया और घर से भागकर जोहान्सबर्ग आ गए। वह जोहान्सबर्ग की विशाल सड़कों पर यायावर की तरह भटक रहे थे। नेल्सन ने एक सोने की खदान में चौकीदार की नौकरी करना शुरू कर दिया। जोहन्सबर्ग की एक बस्ती अलेक्जेंडरा उनका ठिकाना था।

नेल्सन ने अपनी मां के साथ जोहान्सबर्ग में ही रहने का इरादा किया। यहीं उनकी मुलाकात ‘वाल्टर सिसुलू’ और ‘वाल्टर एल्वरटाइन’ से हुई। नेल्सन के राजनीतिक जीवन को इन दो हस्तियों ने बहुत प्रभावित किया। नेल्सन ने जीवनयापन के लिए एक कानूनी फर्म (संगठन) में लिपिक की नौकरी कर ली। वह देख रहे थे कि उनके अपने लोगों के साथ इसलिए भेद किया जा रहा था क्योंकि प्रकृति ने उनको दूसरों से अलग रंग दिया था। इस देश में अश्वेत होना अपराध की तरह था। वे सम्मान चाहते थे और उन्हें लगातार अपमानित किया जाता था। रोज कई बार याद दिलाया जाता कि वे अश्वेत हैं और ऐसा होना किसी अपराध से कम नहीं है। 1944 में वह ‘अफ्रीकन नेशनल (राष्ट्रीय) कांग्रेस या एएनसी’ में शामिल हो गए। जल्दी ही उन्होंने टॉम्बो, सिसुल और अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर ‘अफ्रीकन नेशनल (राष्ट्रीय) कांग्रेस यूथ (नवयुवक) लीग (संघ) ’ का गठन किया। 1947 में मंडेला इस संस्था के सचिव चुन लिए गए। साथ ही उन्हें ‘ट्रांसवाल एएनसी’ का अधिकारी भी नियुक्त किया गया।

नेल्सन की विचार शैली और काम करने की क्षमता से लोग प्रभावित होने लगे। इसी बीच अपने आप को कानून का बेहतर जानकार बनाने के लिए नेल्सन ने कानून की पढ़ाई शुरू की, लेकिन अपनी व्यस्तता के कारण वे एल. एल. बी. की परीक्षा पास करने में असफल रहे। इस असफलता के बाद उन्होंने एक वकील के तौर पर काम करने के बजाय अटॉर्नी के तौर पर काम करने के लिए पात्रता परीक्षा पास करने का फैसला किया। इसी बीच एएनसी को चुनावों में करारी पराजय का सामना करना पड़ा। कांग्रेस के अध्यक्ष को पद से हटाकर किसी नए अध्यक्ष को लाने की माँग जोर पकड़ने लगी। यूथ कांग्रेस के विचारों को अपनाकर मुख्य पार्टी के आगे बढ़ाने का विचार रखा गया। वाल्टर सिसुल ने एक कार्य योजना का निर्माण किया, जो ‘अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस’ के दव्ारा स्वीकार कर लिया गया। 1951 में नेल्सन को ‘यूथ कांग्रेस’ का अध्यक्ष चुन लिया गया। नेल्सन ने 1952 में एक कानूनी फर्म की स्थापना की।

यह वह दौर था जब पूरी दुनिया महात्मा गांधी से प्रभावित हो रही थी, नेल्सन भी उनमें से एक थे। वैचारिक रूप से वह स्वयं को गांधी के नजदीक पाते थे, और यह प्रभाव उनके दव्ारा चलाए गए आंदोलनों पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था। कुछ ही समय में उनकी कंपनी (संघ) देश में अश्वेतों दव्ारा चलाई जा रही पहली कंपनी बन गई, लेकिन नेल्सन के लिए वकील का रोजगार और राजनीति को एक साथ लेकर चलना मुश्किल साबित हो रहा था।

सरकार को नेल्सन की बढ़ती हुई लोकप्रियता बिल्कुल पसंद नहीं आ रही थी और उन पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उनको वर्गभेद के आरोप में जोहान्सबर्ग के बाहर भेज दिया गया और उन पर किसी तरह की बैठक में भाग लेने पर रोक लगा दी गई। अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस का भविष्य ही दांव पर लग गया था। सरकार के दमनचक्र से बचने के लिए नेल्सन और ऑलिवर टॉम्ब ने एक ‘एम’ प्लान (योजना) बनाया। यहां पर ‘एम’ से मतलब मंडेला से था। फैसला लिया गया कि कांग्रेस को टुकड़ों में तोड़कर काम किया जाए और जरूरत पड़े तो भूमिगत रहकर भी काम किया जाएगा। प्रतिबंध के बावजूद नेल्सन भागकर केपटाउन पहुंच गए और कांग्रेस के जलसों में भाग लेने लगे। लोगों की पीड़ की आड़ में बचते हुए उन्होंने उन तमाम संगठनों के साथ काम किया, जो अश्वेतों की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे थे।

इसी दौरान उन्हें आम लोगों के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताने का मौका मिला और उनमें जनमानस को समझने की समझ विकसित हुई। धीरे-धीरे अश्वेतों के अधिकारों के लिये चलाए जा रहे आंदोलन में उनकी सक्रियता बढ़ती ही चली गई। नेल्सन के नेतृत्व में आंदोलन की तीव्रता बढ़ती ही जा रही थी। सरकार पूरी तरह से घबराई हुई थी। इसी बीच ए. एन. सी. ने स्वतंत्रता का चार्टर स्वीकार किया और इस कदम ने सरकार का संयम तोड़ दिया। पूरे देश में गिरफ्तारियों को दौर शुरू हो गया। ए. एन. सी. के अध्यक्ष और नेल्सन के साथ पूरे देश से रंगभेद आंदोलन का समर्थन करने वाले कई नेता गिरफ्तार कर लिए गए। आंदोलन नेतृत्व विहीन हो गया। नेल्सन और साथियों पर देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने और देशद्रोह करने का आरोप लगाया गया। इस अपराध की सजा मृत्युदंड थी। इन सभी नेताओं के खिलाफ मुकदमा चलाया गया और 1961 में नेल्सन और 29 साथियों को निर्दोष घोषित करते हुए रिहा कर दिया गया।

सरकार के दमनचक्र से एएनसी और नेल्सन का जनाधार बढ़ रहा था। लोग संगठन से जुड़ने लगे और आंदोलन दिन-प्रतिदिन मजबूत होता जा रहा था। रंगभेदी सरकार आंदोलन को तोड़ने के लिए हर संभव प्रयास कर रही थी। इसी बीच कुछ ऐसे कानून पारित किए गए, जो अश्वेतों को अस्वीकार थे। नेल्सन ने इन कानूनों का विरोध करने के लिए प्रदर्शन किया। इसी तरह के एक प्रदर्शन में दक्षिण अफ्रीकी पुलिस ने शार्पबिले शहर में प्रदर्शनकारियों पर गोलियों की बौछार कर दी। 180 लोग मारे गए और 69 लोग घायल हुए। इस तरह की घटनाओं और सरकार दव्ारा चलाए जा रहे क्रूर दमनचक्र ने नेल्सन का अहिंसा पर से विश्वास उठा दिया।

एएनसी और दूसरे प्रमुख दल ने इथियाबंद लड़ाई लड़ने का फैसला किया। नेल्सन अपनी मौलिक राह छोड़कर एक दूसरे रास्ते पर निकल पड़े, जो उनके उसूलों से मेल नहीं खाता था। एएनसी के लड़ाके दल का नाम रखा गया, “स्पीयर (भाला) ऑफ (का) दी (यह) नेशन” (राष्ट्र) और नेल्सन को इस नए गुट का अध्यक्ष बना दिया गया। रंगभेदी सरकार ने नेल्सन के दल पर प्रतिबंध लगा दिया। पूरी दुनिया में इस काम के लिए सरकार की ओलाचना हो रही थी। सरकार का इरादा नेल्सन को गिरफ्तार कर पूरे संगठन को खत्म करने का था। इस त्रासदी से बचने के लिए उन्हें चोरी से देश के बाहर भेज दिया गया, ताकि वे स्वतंत्र रहकर अपने लोगों का नेतृत्व कर सकें। देश के बाहर आते ही उन्होंने सबसे पहले अदीस, अबाबा में अफ्रीकी नेशनलिस्ट (राष्ट्रवादी) लीडर्स (नेता) कान्फ्रेंस (सम्मेलन) को संबोधित किया और बेहतर जीवन के अपने आधारभूत अधिकार की मांग की। वहां से निकलकर वे अल्जीरिया चले गए और लड़ने की गुरिल्ला तकनीक का गहन प्रशिक्षण लिया। इसके बाद उन्होंने लंदन की राह पकड़ी वहां ऑलिवर टाम्बो एक बार फिर उनके साथ आ मिले। लंदन में विपक्षी दलों के साथ उन्होंने मुलाकात की ओर अपनी बात को पूरी दुनिया के सामने समझाने की कोशिश की। इसके बाद वे एक बार फिर दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। जहां उन्हें पहुंचते ही गिरफ्तार कर लिया गया।

नेल्सन को पांच साल की सजा सुनाई गई। आरोप लगा कि वे अवैधानिक तरीके से देश से बाहर गए। सरकार उन्हें कोई नेता मानने को तैयार नहीं थी। नेल्सन सहित सभी लोगों पर देश के खिलाफ लड़ने का आरोप तय किया गया। उसके सहित पांच और लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। आम जनता से दूर रखने के लिए उन्हें रोबिन दव्ीप पर भेज दिया गया। यह दक्षिण अफ्रीका का कालापानी माना जाता है।

जेल जाने से पहले अदालत को अपने बयान से संबोधित करते हुए नेल्सन ने कहा- “अपने पूरे जीवन के दौरान मैंने अपना सबकुछ अफ्रीकी लोगों के संघर्ष में झोंक दिया। मैं श्वेत रंगभेद के खिलाफ लड़ा हूंँ। और मैं अश्वेत रंगभेद के खिलाफ भी लड़ा हूँं। मैंने हमेशा एक मुक्त और लोकतांत्रिक समाज का सपना देखा है जहां सभी लोग एक साथ पूरे सम्मान, प्रेम और समान अवसर के साथ अपना जीवनयापन कर पायेंगे। यही वह आदर्श है, जो मेरे लिए जीवन की आशा बनी और मैं इसी को पाने के लिए जिन्दा हूं और अगर कहीं जरूरत है कि मुझे इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मरना है तो मैं इसके लिए भी पूरी तरह से तैयार हूँ।”

उनसे आग्रह किया गया कि वे आजादी प्राप्त करने के अपने लक्ष्य में हिंसा का रास्ता त्याग दें। हालांकि नेल्सन ने एक बार फिर से साफ इनकार कर दिया, लेकिन सरकार ने उन पर रियायतों की झड़ी लगा दी। 1989 में दक्षिण अफ्रीका में सत्ता परविर्तन हुआ और उदार एफ. डब्ल्यू. क्लार्क देश के मुखिया बने। सत्ता सम्भालते ही उन्होंने सभी अश्वेत दलों पर लगा हुआ प्रतिबंध हटा लिया। साथ ही सभी राजनीतिक बंदियों को आजाद कर दिया गया। जिन पर किसी तरह का आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं था। नेल्सन भी उनमें से एक थे। जिन्दगी को शाम में आाजादी का सूर्य नेल्सन के जीवन को रोशन करने लगा। 11 फरवरी, 1980 को नेल्सन आखिर में पूरी तरह से आजाद कर दिए गए।

अश्वेतों को उनका अधिकार दिलवाने के लिए 1991 में ‘कन्वेंशन (सम्मेलनों) फॉर (के लिये) डेमोक्रेटिक (लोकतांत्रिक) साउथ (दक्षिण) अफ्रीका’ या ‘कोडसा’ गठन कर दिया गया, जो देश के संविधान में आवश्यक परिवर्तन करने वाली थी। एफ. डी. क्लार्क और मंडेला ने इस काम में अपनी समान भागीदारी निभाई। इस उत्कृष्ट कार्य के लिए ही 1993 में नेल्सन मंडेला और एफ. डी. क्लॉर्क दोनों की संयुक्त रूप से शांति के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया। 1990 में भारत सरकार की ओर से नेल्सन मंडेला को भारत रत्न से सम्मानित दिया गया।

ठीक अगले साल दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद रहित चुनाव हुए। एएनसी को 62 प्रतिशत मत मिले और उसे सरकार बनाने का अवसर मिला। 10 मई, 1994 को अश्वेतों के लिए दक्षिण अफ्रीका की भूमि पर नेल्सन मंडेला ने अपनी जनता को संबोधित करते हुए कहा “आखिरकार हमने अपने राजनीतिक लक्ष्य को प्राप्त कर ही लिया। हम अपने सभी लोगों को आजादी देंगे, गरीबों से, मुश्किलों से, तकलीफों से, लिंगभेद से और किसी भी तरह के शोषण से। और कभी भी इस खूबसूरत धरती पर एक-दूसरे के साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा। स्वतंत्रता का आनंद उठाइए। ईश्वर अफ्रीका पर अपनी कृपा बनाए रखे।” नेल्सन के इस संबोधन ने अफ्रीका के श्वेत लोगों के मन से डर निकाल दिया, जो देश की बहुसंख्यक जनता का प्रतिनिधित्व करती थी। जिसे युगों से उनके दव्ारा प्राताड़ित और शोषित किया गया था। 1997 में नेल्सन ने सक्रिय राजनीति जीवन से किनारा कर लिया। 1999 में उन्होंने दल के अध्यक्ष पद को भी छोड़ दिया।