Important of Modern Indian History (Adunik Bharat) for Hindi Notes Exam Part 1

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CHAPTER: Social Reform Movements

सामाजिक धार्मिक सुधार और राष्ट्रीय जागरण

  • राममोहन राय ने 1828 में बंगाल में बह्य समाज की स्थापना कर सुधार की प्रक्रिया को शुरू किया इसने विभिन्न भागो में अपनी शाखाएँ स्ाापित की।
  • अन्य प्रमुख आंदोलन- महाराष्ट्र की प्रार्थना समाज और परमहंस मंडली पंजाब व उत्तर भारत में आर्य समाज कायस्थ सभा (उ. प्र.) सरीन सभा (पंजाब)
  • धार्मिक सुधार का काम किया-
    • सत्यशोधक समाज (महाराष्ट्र) श्री नारायण धर्म परिपालन सभा (केरल)
    • अहमदिया और अलीगढ़ आंदोलन (मुसलमान)
    • सिंह सभा (सिख)
    • रहनुमाई मजदेयासान (पारसियों)
  • अक्षय कुमार और विद्यासागर संशयवादी थे।
  • विद्यासागर- “ईश्वर के बारे में सोचते के लिए मेरे पास वक्त नहीं है क्योंकि अभी तो इस धरती पर ही बहुत काम किया जाना है।”
  • विवेकानंद- “तुम्हारी शक्ति और मुक्ति की परवाह किसे है, कौन इसकी परवाह करता है कि तुम्हारे धर्मग्रंथ क्या कहते हैं? मैं बड़ी खुशी से एक हजार बार नरक जाने को तैयार हूँ, अगर इसमें मैं अपने देशवासियों को ऊँचा उठा सकूँ।”
  • सुधारवादी आंदोलन के बौद्धिक मापदंड-तर्कबुद्धिवाद और धार्मिक सर्वभौमवाद
  • मीमांसा के आधार पर परंपरा या व्यवस्था की सामाजिक सार्थकता का मूल्यांकन किया गया।
  • राममोहन राय और अक्षय कुमार दल ने पुरानी मान्यताओं को तर्कों के आधार पर काटा।
  • ब्रह्य समाज ने वेदों के निर्दोष होने की मान्यता का खंडन किया।
  • अलीगढ़ आंदोलन ने इस्लाम की शिक्षाओं और व्यवस्थाओं में परिवर्तन की बात की।
  • अक्षय कुमार दत्त ने बाल-विवाह का विरोध चिकित्सा विज्ञान के आधार पर किया। विवाह और परिवार के बारे में आधुनिक विचार का प्रचार किया।
  • महाराष्ट्र के सुधारवादी नेता गोपाल हरि देशमुख थे।
  • राममोहन राय- सच वह है जो दिखाई दे।
  • शुरूआती दौर की सुधार की कोशिश भारतीय संस्कृति की रूढियों को दूर करने के लिए की गई थी।
  • धार्मिक क्षेत्र में मूर्तिजा, बहुदेववाद, पुजारियों के एकाधिकार को खत्म करने और धार्मिक कर्मकांड के सरलीकरण के लिए संघर्ष किया गया।
  • दयानंद चतुवर्ग को गुण के आधार पर बनाए रखने के समर्थक थे।
  • जति-व्यवस्था के जबरदस्त आलोचक ज्योतिश फुले और नारायण गुरू निचली जाति के थे।
  • महिलाओं की सामाजिक स्थिति और हैसियत सुधारने की कोशिश की गई। सुधारवादियों का मानना था “जिस देश में महिलाएं उपेक्षित हों, वह देश सभ्यता के क्षेत्र में कभी भी उल्लेखनीय प्रगति नहीं कर सकता।”
  • उस समय लाए गए सुधार आज बहुत मामूली प्रतीत होते है, पर तब इन सुधारों को लेकर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएंँ हुई।
  • रूकमाबाई ने अपने अशिक्षित और अकर्मण्य पति को स्वीकार करने से मना कर दिया, तो तुफान खड़ा हो गया।
  • भारतीय समाज पर औपनिवेशिक संस्कृति और विचारधारा का प्रभाव तेज हो रहा था, इससे बचने के लिए लोग भारतीय संस्कृति को ढाल बनाने लगे।
  • इससे बचने के लिए वैकल्पिक सांस्कृतिक-वैचारिक पद्धति का विकास और पारंपरिक संस्थाओं को पुनर्जीवित करने की कोशिश की गई।
  • भारतीय भाषाओं के विकास की कोशिशें की गई, शिक्षा की वैकल्पिक प्रणाली ढूँढी गई।
  • भारतीय कलाओं और साहित्य के पुनरूत्थान के प्रयास, धर्म की रक्षा का आह्‌वान किया गया।
  • पुरानी चिकित्सा- पद्धति आयुर्वेद को फिर से स्थापित करने की कोशिश
  • लेक्स लोकी ऐक्ट (स्थानीय रीति अधिनियम) के खिलाफ असंतोष के पीछे संस्कृति की रक्षा की चिंता थी।
  • राजनीति और सांस्कृतिक संघर्षों के बीच एकीकरण और तालमेल न होने के कारण राजनीतिक चेतना का विकास तो हुआ लेकिन सांस्कृतिक पिछड़ापन बना रहा।
  • सामाजिक-धार्मिक आंदोलन के जरिए जो सांस्कृतिक-वैचारिक संघर्ष चला, उसने राष्ट्रीय चेतना को जन्म दिया।
  • दो मोर्चो पर एक साथ चले संघर्ष ने आज की आधुनिक सांस्कृतिक स्थिति को जन्म दिया-नए आदमी, नए परिवार और नया समाज।
  • 19वीं सदी में भारतीय नरमपंथी नेताओं ने सबसे पहले उपनिवेशवद के आर्थिक पहलुओं को विश्लेषित किया।
  • राष्ट्रीय आंदोलन की नींव रखने में इसका बड़े पैमाने पर प्रचार किया।
  • 19वीं सदी के पूर्वार्ध में बुद्धिजीवियों को उम्मीद थी कि ब्रिटेन भारत के आधुनिकीकरण में मदद करेगा।
  • 1860 के आसपास ये भ्रम टूटा और वे ब्रिटेन शासन का असली चेहरे की जाँच पड़ताल करने लगे।
  • 1870 - 1905 के बीच बहुत से बुद्धिजीवियों में आर्थिक पहलू को विश्लेषित किया।
  • तीन लोगों का योगदान सबसे महत्वपूर्ण रहा-
    • दादाभाई नौरोजी (सबसे पहले बताया)
    • न्यायमूर्ति महादेव गोविंद रानाडे (आधुनिक औद्योगिक विकास समझाया)
    • रोमेश चंद्र दत्त (भारत का आर्थिक इतिहास लिखा)
  • भारत का आर्थिक इतिहास-1757 के बाद आर्थिक कार्यकलाप की छानबीन जी. बी. जोशी, पी. सुब्रह्यण्यम अय्यर, गोपालकृष्ण गोखले, पृथ्वीसचंद्र राय आदि ने औपनिवेशिक आर्थिक नीतियों के दुष्प्रभावों की छानबीन की।
  • निष्कर्ष-भारत के आर्थिक विकास में सबसे बड़ी बाधा उपनिवेशवाद ही भारत की हैसियत ब्रिटेन को खाद्य सामग्री और कच्चे माल की आपूर्तिकर्ता की बना दी गई और भारत ब्रिटिश पूँजी निवेश का बाजार बन गया।