Legal and Self-Organization, National Human Rights Commission, Central Information Commission
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40. वैधानिक एवं स्वायन संगठन
- राष्ट्रीय महिला आयोग- इस आयोग का गठन राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 के तहत 31 जनवरी 1992 को हुआ। महिला आयोग में एक अध्यक्ष, पांच सदस्य एवं एक सदस्य सचिव होता है। इस आयोग का प्रमुख कार्य महिलाओं को अन्याय के खिलाफ त्वरित न्याय दिलाना है।
- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग-दिसंबर 2006 में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की स्थापना की गई। आयोग का काम बच्चों के अधिकारों का सही रूप में उपयोग करना, कानूनों और कार्यक्रमों पर प्रभावी रूप से अमल करना है।
- राष्ट्रीय एकता परिषद-इसका गठन 1961 में किया गया। यह एक गैर संवैधानिक संस्था है।
- राष्ट्रीय महिला कोष-समिति पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत 30 मार्च, 1993 को गठित इस संस्था का लक्ष्य गरीब महिलाओं को उनके सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए ऋण उपलब्ध कराना है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग:-
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338 के तहत अनुसूचित जाति/जनजाति के कल्याण के लिए एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान था।
- संविधान के 65वें संशोधन दव्ारा उपरोक्त प्रावधान को समाप्त कर एक राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग की स्थापना का प्रावधान किया गया।
- प्रस्तावित आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष एवं पांच सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रीय दव्ारा होना निर्धारित किया गया है।
- 89वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 दव्ारा अनुसूचित जाति के लिए पृथक राष्ट्रीय आयोग के गठन का प्रावधान कर दिया गया। वर्तमान में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए पृथक-पृथक आयोग है।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग
- भारत सरकार दव्ारा जैन, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध एवं पारसी आदि समुदायों की अल्पसंख्यक के रूप में पहचान की गई हैं।
- अल्पसंख्यकों को कल्याण एवं उनके अधिकारों को प्रभावी ढंग से संरक्षित करने के लिए बनी योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए 1978 में भारत सरकार ने एक अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया।
- भारतीय संसद दव्ारा पारित राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत पुराने अल्पसंख्यक आयोग के स्थान पर 17 मई, 1993 को नये राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Minority Commission) की स्थापना की गई।
- यह आयोग 21 जनवरी, 2010 को पुन: संगठित हुआ।
- इस आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष तथा 5 सदस्य होते हैं जिनकी नियुक्ति केन्द्रीय सरकार दव्ारा होती है।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 340 सरकार को पिछड़े वर्गों की स्थिति के मूल्यांकन के लिए एक आयोग के गठन का अधिकार प्रदान करता है।
- सरकार ने मंडल आयोग के रूप में पिछड़ा वर्ग आयोग का 1979 में गठन किया। इस आयोग ने 31 दिसंबर, 1980 को अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।
- मंडल आयोग की संस्तुतियों को मानते हुए सरकार ने 13 अगस्त 1990 को अन्य पिछड़े वर्गों को 27 प्रतिशत आरक्षण सरकारी नौकरियों में प्रदान करने की घोषणा कर दी।
- केन्द्र सरकार ने 14 अगस्त, 1933 को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की (National Commission on Backward Classes) स्थापना की।
- राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान-नई दिल्ली स्थिति राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान एक स्वायत्त संगठन है, जिसकी स्थापना महिला बाल विकास विभाग, मानव संसाधन मंत्रालय के तत्वावधान में की गयी है।
- केन्द्रीय दत्तक समाज कल्याण बोर्ड- इस बोर्ड की स्थापना अगस्त, 1953 को हुई थी। बोर्ड की प्रगति से भारत में स्वैच्छिक एजेंसियों के विकास का प्रयास है। बोर्ड का कार्य स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से सामाजिक कल्याण की गतिविधियों को बढ़ावा देना, महिलाओं, बच्चों से जुड़े कल्याणकारी योजनाओं पर अमल करना है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
- राष्ट्रीय मानवाअधािकर आयोग (National Human Rights Commission- NHRC) एक स्वायत्तशासी सार्वजनिक निकाय है जिसकी स्थापना 12 अक्टूबर, 1993 को मानवधिकार संरक्षण अध्यादेश (Protection of Human Rights Ordinance) के जरिए हुआ था।
- मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के जरिए आयोग को ‘वैधानिक’ दर्जा प्रदान किया गया। यह एक राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थान है।
- संरचना-आयोग में अध्यक्ष के अलावा निम्नलिखित सदस्य होते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व या मौजूदा न्यायाधीश।
- दो ऐसे सदस्य जिन्हें मानवाधिकारों के मामलो का ज्ञान एवं अनुभव हो।
- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष तथा राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षता इसके पदेन सदस्य होते हैं।
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति समिति की सिफारिश के आधार पर करते है। नियुक्ति समिति के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं। जबकि गृह-मंत्री लोकसभा में विपक्ष के/की नेता, राज्यसभा में विपक्ष के/की नेता, लोकसभाध्यक्ष तथा राज्यसभा के उपसभापति नियुक्ति समिति के सदस्य होते हैं।
- न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रंगनाथ मिश्र राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के प्रथम अध्यक्ष थे।
- कार्य- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:-
- सक्रिय या प्रत्युत्तर रूप में मानवाधिकार उल्लंघन की जांच करना या ऐसे उल्लंघनों के रोक में लोक सेवकों दव्ारा की गई लापरवाही की जांच करना।
- न्यायालय की अनुमति से मानवाधिकार से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान न्यायालय की कार्रवाई में हस्तक्षेप करना।
- राज्य सरकार के नियंत्रणधीन ऐसे जेलों या संस्थानों का अध्ययन और रिपोर्ट तैयार करने के लिए दौरा करना जहाँ किसी व्यक्ति को कैद करके रखा गया है या इलाज, सुधार या सुरक्षा के लिए रखा गया है।
- मानवाधिकारों की संख्या के लिए लागू किसी कानून या संविधान दव्ारा प्रदत्त या संविधान के भीतर के रक्षा उपयों की समीक्षा करना तथा उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सिफारिशें देना।
- मानवाधिकारों को क्षति पहुँचाने वाले आतंकवाद सहित अन्य कारकों की समीक्षा करना तथा उचित सुधारात्मक उपायों की सिफारिशें करना।
- संधियों एवं अन्य अंतरराष्ट्रीय तंत्रों का अध्ययन एवं उनके प्रभावी क्रियान्वयन हेतु सिफारिशें करना।
- मानवाधिकार के क्षेत्र में शोधों का संवर्द्धन।
- समाज के विभिन्न हिस्सों के बीच मानवाधिकार शिक्षा में संलग्न होना।
- मानवाधिकार के क्षेत्र में कार्य कर रहे गैर-सरकारी संगठनों तथा संस्थानों के प्रयासों को प्रोत्साहित करना।
- ऐसा कोई और कार्य जो कि मानवाधिकारों की संरक्षा के आयोग आवश्यक समझता हो।
राष्ट्रीय ज्ञान आयोग
- राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (National Knowledge Commission- NKC) भारत के प्रधानमंत्री की एक उच्चस्तरीस सलाहकार संस्था है, जिसका उद्देश्य भारत को ज्ञानवान समाज बनाना है। राष्ट्रीय ज्ञान आयोग का ध्यान शिक्षा से लेकर ई-प्रशासन तक ज्ञान तंत्र के पाँच प्रमुख क्षेत्रों पर केंद्रित हैं। ये निम्नलिखित हैं:-
- सुलभता: ज्ञान की सहज सुलभता।
- सिद्धांत: शिक्षा के सभी स्तर और समूह।
- रचना: ज्ञान की प्रभावकारी रचना।
- उपयोग: ज्ञान प्रणालियों का उपयोग।
- सेवाएँ: जैसे ई-प्रशासन।
- राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की स्थापना 13 जून, 2015 को तीन वर्षों (2 अक्टूबर, 2005 से 2 अक्टूबर, 2008) के लिए की गई थी।
- सैम पित्रौदा इसके अध्यक्ष हैं।
- कार्य: (Terms of Reference) राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:-
- 21वीं शताब्दी की ज्ञान चुनौतियों का सामाना करने के लिए शैक्षिक प्रणाली में उत्कृष्टता का निर्माण तथा ज्ञान के क्षेत्र में भारत की प्रतिस्पर्धी फायदों को बढ़ाना।
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्रयोगशालाओं में ज्ञान के सृजन का संवर्द्धन।
- बौद्धिक संपदा अधिकारों में संलग्न संस्थानों के प्रबंधन में सुधार।
- कृषि एवं उद्योग में ज्ञान अभिक्रियाओं का संवर्द्धन।
- नागरिकों को प्रभावी, पारदर्शी एवं जवाबदेही सेवा उपलब्ध कराने के लिए सरकार को सक्षम बनाने हेतु ज्ञान के प्रयोग का संवर्द्धन।
- उद्देश्य: राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-
- जीवंत ज्ञान आधारित समाज के विकास को प्रोत्साहित करना। इसमें पहले से मौजूद ज्ञान प्रणालियों में क्रांतिकारी बदलाव के साथ ज्ञान के विभिन्न रूपों के सृजन हेतु मार्ग तैयार करना।
वित्त आयोग
- वित्त आयोग एक सांविधानिक संस्था है।
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत राष्ट्रपति दव्ारा संविधान के लागू होने के दो वर्षो के भीतर एवं उसके पश्चात् प्रत्येक पांच वर्ष पर ‘वित्त आयोग’ के गठन का प्रावधान किया गया है।
- स्रांचना: वित्त आयोग में अध्यक्ष के अलावा चार सदस्य होते हैं। अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति के लिए निम्नलिखित योग्यताएँ रखी गयी हैं:-
- किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश या ऐसा व्यक्ति जो इस प्रकार की नियुक्ति के लिए अर्हित हो।
- एक ऐसा व्यक्ति जिसे सरकार के वित्त एवं लेखाओं का विशेष ज्ञान हो।
- एक ऐसा व्यक्ति जिसे अर्थशास्त्र का विशेष ज्ञान हो।
- कार्य: वित्त आयोग के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:-
- करों की निवल प्राप्तियाँ का केंद्र और राज्यों के बीच वितरण जिन्हें संविधान के भाग 12, अध्याय 1 के अंतर्गत वितरित किया जाएगा, और ऐसी प्राप्तियों के संबंध हिस्सों का राज्यों के बीच आवंटन।
- भारत की संचित निधि से राज्यों के राजस्व के सहायता अनुदान को शासित करने वाले सिद्धांत और राज्यों को भुगतान किये जाने वाली राशि, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 275 के अंतर्गत उनके राजस्वों के सहायता अनुदान के जरिए संबंद्ध अनुच्छेद के खंड (1) के उपबंधों में उल्लेखित प्रयोजनों से भिन्न, सहायता की आवश्यकता है।
- राज्य के वित्त आयोग दव्ारा की गई सिफारिशों के आधार पर राज्य में पंचायतों तथा नगरपालिकाओं के संसाधन में बढ़ोत्तरी के लिए राज्य की संचित निधि को बढ़ाने हेतु वांछित उपाय।
- राज्य के वित्त आयोग दव्ारा की गई सिफारिशों के आधार पर राज्य में पंचायतों तथा अभी तक भारत में कुल 14 वित्त आयोगों का गठन किया जा चुका है। पहले वित्त आयोग का गठन 1951 में के. सी. नियोगी की अध्यक्षता में किया गया था।
- विजय एल. केलकर की अध्यक्षता वाले 13वें वित्त आयोग ने अपनी सिफारिशें दिसंबर 2009 में राष्ट्रपति को सौंपा।
- 13वें वित्त आयोग की सिफारिशें वर्ष 2010 - 15 के लिए है।
- 13वें वित्त आयोग ने विभाज्य केंद्रीय करों की शुद्ध निवल प्राप्तियों में राज्यों का हिस्सा 32 फीसदी व केन्द्र की सकल राजस्व प्राप्तियों में राज्यों को दिया जाने वाला हिस्सा अधिकतम 39.5 फीसदी रखने की सिफारिश की थी। इसकी सिफारिशों को हुबहु मान लिया गया।
- 14वें वित्त आयोग का गठन भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर वाई. वी. रेड्डी की अध्यक्षता में किया गया। 14वें वित्त आयोग में अध्यक्ष के अलावा चार और सदस्य तथा एक सचिव हैं।
- 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें वर्ष 2015 - 20 की अवधि के लिए होगी।
राज्य वित्त आयोग
- भारत के संविधान में राज्य वित्त आयोग के गठन का प्रावधान 73वें संविधान संशोधन अधिनियम (1992) के दव्ारा किया गया।
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 243 के तहत राज्य के राज्यपाल इस प्रावधान (73वें संविधान संशोधन) के लागू होने के एक वर्ष के भीतर तथा उसके पश्चात् प्रत्येक पांच वर्ष की समाप्ति पर राज्य वित्त आयोग का गठन करेगा।
- राज्य वित्त आयोग का कार्य पंचायतों की वित्तीय स्थिति का मूल्यांकन करना और इस संदर्भ में राज्यपाल को रिपोर्ट देना है।
प्रशासनिक सुधार आयोग
- भारत में प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से रही है:-
- सरकार की भूमिका में परिवर्तन
- माहौल में परिवर्तन
- लोगों की आकांक्षाओं में अभिवृद्धि
- कुशलता एवं प्रभावकारिता में सुधार
- प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग: प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन जनवरी 1966 में देश की लोक प्रशासन की परीक्षा करने तथा आवश्यकता पड़ने पर उसमें सुधार करने व उसका पुनर्गठन करने हेतु, सिफारशें करने के लिए किया गया था। इसका अध्यक्ष मोरारजी देसाई को नियुक्त किया गया। जब मोरारजी देसाई देश के उपप्रधानमंत्री बन गये, तब इसका अध्यक्ष के. हनुमथैया को बनाया गया। प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ने सरकार को 20 रिपोर्ट सौंपी जिनमें 537 मुख्य सिफारिशें शामिल थीं। इन सिफारिशों को नवंबर 1977 में संसद में पेश किया गया।
- दव्तीय प्रशासनिक सुधार आयोग: दव्तीय प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में 31 अगस्त, 2005 को हुआ था। वी. रामचंद्रन, ए. पी. मुखर्जी, ए. एच. कार्लों एवं डॉ. जयप्रकाश नारायण इसके अन्य सदस्य थे। इस आयोग को सरकार के सभी स्तरों पर देश के लिए सक्रिय उत्तरदायी, जवाबदेह, सतत् एवं कुशल प्रशासन का लक्ष्य प्राप्त करने के उपायों पर सुझाव देने का जिम्मा सौंपा गया था। आयोग ने विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े 15 रिपोर्ट सरकार को सौंपा जिस पर विचार करने के लिए वर्ष 2007 में तत्कालीन विदेश मंत्री की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई थी।
केन्द्रीय सूचना आयोग
- सूचना का अधिकार कानून के तहत वर्ष 2005 में स्थापित ‘केन्द्रीय सूचना आयोग’ एक प्राधिकृत निकाय है।
- संरचना: केन्द्रीय सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त के अलावा 10 से अधिक सूचना आयुक्त होते हैं जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति दव्ारा नियुक्ति समिति की सिफारिश पर की जाती है। केन्द्रीय सूचना आयुक्त व अन्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए गठित समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं जबकि लोकसभा में विपक्ष की नेता एवं प्रधानमंत्री दव्ारा नाम निर्दिष्ट संघीय मंत्रिमंडल का कोई सदस्य समिति के दो अन्य सदस्य होते हैं।
- सूचना आयुक्तों का कार्यकाल पांच वर्ष या 65 वर्ष की अधिकतम आयु, जो भी पहले हो, है।
- केन्द्रीय सूचना आयोग ‘सूचना का अधिकार’ कानून के तहत एक प्रकार का अपीलीय प्राधिकार है जहाँ केन्द्रीय लोक सूचना अधिकार या राज्य लोक सूचना आयुक्त दव्ारा किसी व्यक्ति को सूचना देने से इंकार करने की दशा में अपील की जा सकती है।
राष्ट्रीय विधि आयोग
- भारतीय इतिहास के विगत 300 वर्षों में विधि सुधार एक क्रमिक प्रक्रिया रही है। विधायन सुधारों के लिए 19वीं शताब्दी के तीसरे दशक में तत्कालीन सरकारों दव्ारा विधि आयोगों का गठन किया जाता रहा है। ऐसा पहला आयोग 1833 के चार्टर एक्ट के तहत 1834 में गठित किया गया था जिसका अध्यक्ष लॉर्ड मैकाले को बनाया गया था। इस आयोग ने विधि संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता एवं ऐसे अन्य संहिताओं के संहिताकरण की सिफारिश की थी। इसके पश्चात् 1853,1861 एवं 1879 में ऐसे आयोगों की स्थापना की गई। भारतीय सिविल प्रक्रिया संहिता, भारत करार नियम, भारतीय साक्ष्य कानून इन्हीं आयोगों की सिफारिशों का परिणाम हैं।
- स्वतंत्रता के पश्चात् भी ऐसे आयोगों की स्थापना की आवश्यकता महसूस की गई। इसी प्ररिप्रेक्ष्य में तत्कालीन महान्यायवादी श्री एमसी सितलवाड की अध्यक्षता में वर्ष 1955 में प्रथम विधि आयोग का गठन किया गया।
- अब तक 20 विधि आयोगों का गठन हो चुका है। 20वें विधि आयोग का गठन वर्ष 2012 - 15 अवधि के लिए किया गया है। न्यायमूर्ति अजीत प्रकाश शाह इसके अध्यक्ष हैं। 19वें विधि आयोग का गठन न्यायमूर्ति पी. वी. रेड्डी की अध्यक्षता में किया गया था।
विधि आयोग दव्ारा प्रमुख विचारणीय विषय निम्नलिखित होते हैं:-
- पुराने पड़ गए कानूनों की समीक्षा करना और उन्हें समाप्त करना।
- उन कानूनों की पहचान करना, जिनकी जरूरत या प्रासंगिकता नहीं रह गई है और जिन्हें तुरंत समाप्त किया जा सकता है।
- उन कानूनों की पहचान करना, जो अधिक उदारीकरण के मौजूदा-माहौल में उपयुक्त हैं और जिन्हें बदलने की कोई जरूरत नहीं है।
- उन कानूनों की पहचान करना, जिनमें बदलाव या संशोधन की आवश्यकता है, इनमें संशोधन लिए सुझाव देना।
- कानूनों के समन्वय और उनके सामंजस्य के लिए विभिन्न मंत्रालयों तथा विभागों के विशेषज्ञ समूहों दव्ारा सुझाए गए संशोधन/सुधार पर व्यापक परिप्रेक्ष्य में विचार करना।
- एक से ज्यादा विभागो/मंत्रालयों के कामकाज को प्रभावित करने वाले कानूनों के संबंध में मंत्रालयों/विभागों की सिफारिश पर विचार करना।
- कानूनों के क्षेत्र में नागरिकों की शिकायतों के त्वरित निपटारे के लिए उपयुक्त उपाय सुझाना।
समान अवसर आयोग
- केन्द्र सरकार ने बहुप्रतीक्षित समान अवसर आयोग यानी ईओसी (Equal Opportunities Commission) को 20 फरवरी, 2014 को मंजूरी दे दी।
- ज्ञातव्य है कि मुसलमानों के सामाजिक एवं आर्थिक पिछड़ेपन का अध्ययन करने वाली सच्चर समिति ने समान अवसर आयोग गठित करने की सिफारिश की थी।
- समान अवसर आयोग के गठन की सिफारिश संप्रग-1 शासनकाल के दौरान भी की गई थी और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने संप्रग-2 के सत्ता में आने के बाद एक ऐसा निकाय स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू की जिसमें सभी वर्ग के लोग आए। इसके बाद ए. के. एंटनी की अध्यक्षता में इस विषय पर विचार करने के लिए मंत्रियों का समूह गठित किया गया और ऐसी बात आई कि सभी वर्गों के लिए एक ऐसा आयोग गठित किये जाने से ऐसी ही अन्य संस्थाओं के दायरे का उल्लंघन होगा। मंत्रियों के समूह के बाद में केवल अल्पसंख्यकों के लिए समान अवसर आयोग गठित करने का सुझाव दिया।
- संरचना: समान अवसर आयोग में तीन सदस्य होंगे और उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश इसके अध्यक्ष होंगे। आयोग के पास किसी भी प्रकार का दंड का अधिकार नहीं होगा, हालांकि इसके पास दीवानी अदालत के अधिकार होंगे जिनके जरिए वह जांच का काम करेगा।
- कार्य: वह विधिक निकाय होगा जिसका कार्य नौकरियों एवं शिक्षा में अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव पर लगाम लगाना होगा। समान अवसर आयोग को आवासीय सोसाइटी में अल्पसंख्यकों को रहने या खरीद का अधिकार देने से इंकार करने से संबंधित शिकायतों पर ध्यान देने की बात कही गई है। समान अवसर आयोग अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों की सरकारी एजेंसियों दव्ारा भेदभाव संबंधी शिकायतों का निपटारा करेगा। इसकी भूमिका सलाहकार की होगी और निजी एजेंसियाँ इसके अधिकार क्षेत्र में नहीं होंगे।
- आयोग यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा कि किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव न हो। आयोग रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास ऋण इत्यादि क्षेत्रों के लिए समान अवसरों की आचार संहिता बना सकेगा।