मां का दूध अनमोल

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प्रस्तावना:- माता के दुध को मोल आज तक कोई नहीं लगा पाया है, लेकिन फिर भी अब हाल ही में अमरीका ने मां के दूध की कीमत लगा दी गई है। वहां दो कंपनियों ने 9000 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से मां के दुध को बेचने का काम शुरू किया है। इसके लिए करीब 49 हजार महिलाओं को राजी किया जा रहा है। भारत में आज तो हालांकि खाली समझा जाता है लेकिन आधुनिकता की अंधी दौड़ और पैसे के लालच से हम भी अछूते तो नहीं हैं। इसलिए प्रश्न यह उठता है कि क्या हमारे देश में भी मां के इस कर्ज की बोली लगाई जाएगी? नैतिकता के आधार पर यह कितना सही है? क्या इससे बीमारियों का भी खतरा भी है? किस हद तक यह सही है? यह जानना बहुत ही मुश्किल हैं।

मां:- भारतीय संस्कृति में मां के दूध के व्यापार को कभी नैतिक नहीं माना जा सकता। हमारा देश पन्नाधाय की परंपरा का देश है, जहां पर ‘धाय मां’ किसी अन्य व्यक्ति के शिशु को भी उसी ममता के साथ स्तनपान कराती जैसी ममता वह अपनी संतान पर लुटाती है। यही वजह है कि मां के दूध को व्यापार के बारे में सोचना भी पाप समान समझा जाता है।

यह तो प्रमाणित बात है कि नवजात के लिए मां का दूध ही सर्वोत्तम आहार है लेकिन कई बार ऐसी समस्याएं आती हैं जबकि किसी जन्मदात्री मां को अपने शिशु के लिए अन्य मां के दूध की आवश्यकता हो। ऐसे में हमारे देश में पूर्व में धाय मां इस आवश्यकता की पूर्ति करती रही हैं। इसके अलावा पूर्व में संयुक्त परिवारों में तो आज भी कभी चाची, ताई या कोई और महिला जिन्हें परिवार में मां समान दर्जा मिलता है, वे यदि इस परिस्थति में हों तो वे ही शिशु के इस आहार की आवश्यकता को पूर्ण करती रही हैं। जहां तक चिकित्सकीय आधार पर दूधदात्री की आवश्यकता का सवाल है तो इसके अन्य विकल्प ही तलाशे गए। मां के दूध की खरीद-फरोख्त के बारे में कभी सोचा ही नहीं गया। नैतिक रूप से तो यह उतना ही जघन्य अपराध है जितना कि मानव के किसी अंग या खून का कारोबार करना। इसका अर्थ यही है कि किसी ममत्व लुटा देना अपराध नहीं लेकिन ममता का सौदा पर शिशु के लिए मंजूर नहीं है।

कारण:- मां के दूध के मिल्क बैंक कई कारणों से खोले जाते है-जिसमें इसका मुख्य उद्देश्य शिशु मृत्यु दर को कम करना है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार जन्म के पांच साल तक काल ग्रस्त होने वाले बच्चों में 70 प्रतिशत बच्चे ऐसे होते हैं जो कि जन्म के एक माह के अंदर मर जाते हैं। इनमें से 16 से 22 प्रतिशत बच्चे ऐसे होते हैं जो कि बचाये जा सकते थे अगर उन्हें मां का दूध मिलता है तो। अर्थात 22 प्रतिशत बच्चे स्तन पान से बच सकते थे और 16 प्रतिशत बच्चे मदर मिल्क बैंक के दूध से बच सकते थे। मां का दूध पीने वाले बच्चों की जीवत रहने की क्षमता 6 से 8 गुना तक बढ़ जाती है। उनके स्वास्थ्य में सुधार 40 प्रतिशत तेजी से होता है। इसका आशय है कि बच्चे के अभिभावक चिंता मुक्त होकर सामान्य कामकाजी जीवन में जल्दी लौट सकते है। और अस्पताल में दूसरे जरूरतमंद बच्चे को जगह मिलती है। इस तरह से राष्ट्र के कुल कल्याण और कार्यकुशलता बढ़ाने में भी योगदान करता है।

दूध का स्त्रोत:- हमारी नज़र में मां के दूध के तीन स्त्रोत हो सकते हैं-

§ पहला, वे माताएं जिनके बच्चे उपचार अधीन होने कारण मां का दूध नहीं पी सकते। ऐसी माताओं को अपना दूध निजी स्थान में जाकर निकालना ही पड़ता है। ऐसा करना उनके स्वास्थ्य की बेहतरी के साथ, आगे दूध बनता रहे इसके लिए भी यह जरूरी होता है। हमारे लिए दूध का सबसे अच्छा स्त्रोत ऐसी ही माताएं होती हैं।

§ दूसरे, वे माताएं हमारे लिए दूध का स्त्रोत होती है जिनको अधिक दूध बन रहा है और वे अपनी इच्छा से दान करना चाहती है।

§ तीसरा स्त्रोत वे माताएं हो सकती हैं, जिनका बच्चा नहीं हो रहा। पर अभी हम इन माताओं से इस प्रकार का संवाद स्थापित नहीं कर सकते हैं-क्योंकि हम जानते है कि ऐसी माताएं भावनात्मक रूप से बहुत आहत होती हैं और उसका असर उनके दूध पर भी आता है। पर अगर कोई माता सेवा भाव से दूध दान करती है, तो हम उसे लेंगे।

कारोबार:-कुछ लोग इस काम को व्यावसायिक रूप से करना चाहते हैं लाभ के लिए करना चाहते हैं। ऐसा करने से भारत जैसे गरीब देश में ऐसी अभागी माताएं भी होगी जो पैसे के लिए अपना दूध बेचना आरंभ कर देंगी और उनका बच्चा दूध से वंचित रह जाए। इससे हमारे राष्ट की आगामी पीढ़ी कमजोर होगी। इसलिए मानव दूध को व्यावसायिक रूप से बेचे जाने का कतई समर्थन नहीं कर सकता है। अभी तक ऐसा कोई मामला पूरे राजस्थान में सामने नहीं आया है जब कोई मानव दूध बेचने या खरीदने के धंधे में पकड़ा गया हो।

शोषण:- जिस देश में लाखों लोग भूख से मर रहे हों, उस देश में मिल्क बैंक खोलना अथवा मां के दूध को बेचने से गरीब महिला का तो शोषण ही बढ़ेगा। ये सब चीजें आखिर खरीदेगें तो अमीर ही, गरीब तो खरीदेंगे नहीं। पहले ‘सरोगेसी’ (कोख किराए पर देना) में गरीब महिला को फंसाया और अब उसका दूध बेचने की तैयारी है। यह तो एक महिला के साथ अन्याय ही होगा। साथ ही उसके स्वास्थ्य में भी बुरा असर पड़ेगा। इसलिए ऐसी महिलाओं का शोषण नहीं होना चाहिए।

दिशानिर्देश:- भारत में अब मानव दूध मिल्क बैंक के बारे में कोई कानूनी दिशानिर्देश नहीं हैं। दिव्य मदर मिल्क बैंक ने इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियट्रिक्स (आईएपी) को एक साल पहले एक गाइडलाइंस बनाकर दी थी। इसको आईएपी ने मान लिया है। इस तरह अब हम इस तरह गाइडलांइस के अनुसार चलते हैं। इसके पहले हयूमन मिल्क बैंकिग एसोसिशन ऑफ नॉर्थ अमरीका के दिशा निर्देश को अपनाया हुआ था।

जांच:-इनका कोई भी दूध शिशु तक जाने के पहले कई प्रकार के टेस्ट से गुजरता है। सबसे अंत में दूध का कल्चर टेस्ट किया जाता है। इसी प्रकार दूध के संग्रहण में भी जटिल प्रक्रिया का अनुपालन किया जाता है। यह प्रक्रिया ब्लड देने की प्रक्रिया से कई गुना जटिल है। इसका अनुपालन वहीं माता कर सकती है, जिसमें सेवा भाव प्रबल हो। सबसे पहले तो हम यह देखते है कि जिस माता का दूध हम ले रहे है उसका खान-पान कैसा है। वह सिगरेट अथवा दूसरे नशे आदि तो नहीं करती है। फिर उसके खून की जांच की जाती है यह सुनिश्चित करने के लिए कि उसे कोई बीमारी तो नहीं है जैसे गुप्त रोग, एचआईवी अथवा हैपेटाइटिस आदि तो नहीं है। इसके बाद उसके दूध और ब्रेस्ट की जांच होती है। इसके बाद एक मशीन उसके ब्रेस्ट पर 15 से 30 मिनिट तक काम करती है, जिससे उसे इस तरह की अनुभूति होती है मानों कोई बच्चा ही उसका दूध पी रहा है। इतनी लंबी प्रक्रिया के बाद गुजरकर दुग्ध दान कर पाती है। जो भी माता इस प्रक्रिया से गुजरकर दुग्ध दान करती है, वह सचमुच में पूज्यनीय-वंदनीय है। क्योंकि ऐसा काम एक सेवाभावी महिला ही कर सकती हैं।

संग्रह:- संग्रह किया गया दूध दो जगह काम आता है। पहला तो क्लीनिकल उपयोग अर्थात अस्पतालों में और दूसरी सामुदायिक सेवा में। दिव्य मदर मिल्क बैंक के माध्यम से अब तक हम उदयपुर के अस्पतालों की दूध की जरूरत तो पूरा कर पा रहे हैं। ध्यान देने की बात यह है कि इस पूरी प्रक्रिया में किसी भी स्तर पर धन का लेन-देन शामिल नहीं हैं। ब्लड बैंक तो फिर भी एक प्रोसेसिंग शुल्क लेते हैं, पर दिव्य मिल्क बैंक पूरी तरह से नि: शुल्क है। न हम दुग्ध दान करने वाले को पैसे देते हैं और न हम उससे कोई पैसा लेते हैं जो कि हमारे पास दूध लेने आता है। वहां पर किसी भी स्तर पर क्रय-विक्रया जैसी चीज नहीं होती हैं।

दूध के लाभ:- मां के दूध को कोई विकल्प नहीं है। वह दूध बहुत गुणवत्तापरक होता है। इसमें एटीबॉडी होती है, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बहुत बढ़ता है। बच्चों का वजन जल्दी बढ़ाता है, उनमें जरूरी पोषक तत्वों की कमी को पूरा करता है। लेकिन इसका उपयोग वयस्कों को करने की जरूरत नहीं है। यह सही है कि इसमें प्रोटीन और फैट कंटेट काफी होता है पर शिशु अवस्था में ही मां के दूध का उपभोग कर लेने से इनकी ज्यादा जरूरत नहीं रहती है। इसलिए जिम या सेहत बनाने के लिए इस्तेमाल करना सही नहीं है। कम से कम भारत में तो इस व्यापार को प्रोत्साहित नहीं करने देना चाहिए।

दान:-हमारे पास वैसे ही मां के दूध की कमी है। पश्चिम में तो महिलाएं अपना दूध स्वैच्छिक दान कर देती है। भारत में ऐसा चलन नहीं है। हमें दान को प्रोत्साहित करना चाहिए न कि व्यापार को। हमें कोशिश करनी चाहिए कि हमारे बच्चे शिशु अवस्था से ही स्वस्थ बन जाएं ताकि वयस्क होने पर उनमें पोषक तत्वों की कमी नहीं रहे। भारत में तो माताओं को अपना दूध दान करने के लिए शिक्षित करने की जरूरत है ताकि हम बच्चों को कुपोषित होने से बचा सकें। अगर कोई व्यस्क मां का दूध पी रहा है तो इसका मतलब वह किसी न किसी बच्चे के हिस्से का दूध ‘छीन’ रहा है। इसलिए इस व्यापार को प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए।

अनमोल:- मां का दूध दवाओं में इस्तेमाल होता है पर इसका बेचने नहीं हो मां का दूध मुहैया कराने के पीछे मकसद सिर्फ सेवा भाव ही रहना चाहिए। मां का दूध हमारे मूल्यों से जुड़ा है। इसे बाजार से दूर रखना चाहिए। यह तो एक तरह से धर्म है और धर्म का कोई मोल नहीं लगाया जाता है। वैसे भी इतने बहुमूल्य दूध की कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती। बाजार तो सब कुछ बेचने को आतुर रहता है। पर हमारी जिम्मेदारी है कि इसे रोका जाए। पश्चिम में तो मां के दूध का दान और मोलभाव दोनों एकसाथ चल सकते हैं पर भारत में मोलभाव की कोई जगह नहीं है।

बीमारियां:-हमारे देश में गाय या बैंस के दूध को उबाल कर पीने की परंपरा है। इसके अलावा दूध को कीटाणु मारकर शीतल करके रखा जाता है। यह इसलिए है कि जिन दूधारू पशुओं के दूध को उपयोग में लाया जाता है, उनके बारे में पता नहीं होता कि उन्होंने क्या खाया है? उन जानवरों को कौनसी दवाएं दी गई हैं? उनके दूध से हो सकने वाली बीमारियों की आंशका बचने के लिए दूध को उबालकर उपयोग में लिया जाता है। हालांकि जिन देशों में मां के दूध के कारोबार के बोर सोचा जा रहा है उनसे उम्मीद तो यही है कि वहा पर उन सभी दृष्टिकोण से विचार किया गया होगा कि इसका किस प्रकार से संकलन होगा? किस तरह से उसे संरक्षित किया जाएगा? जिन महिलाओं से खरीदा जाएगा, उनके स्वास्थ्य की निगरानी किस तरह से की जाएगी? लेकिन हम इस बात को कैसे भुला सकते हैं कि ऐसे ही देशों में जब ट्‌यूबर कलॉसिस जैसी बीमारी को जड़ से समाप्त करने की बात आई तो मानव के काम में आने वाले दूधारू पशुओं में इसके रोगाणुओं को नष्ट किया गया। इसके बाद ही इस मामले में सफलता हासिल हुई। इसका अर्थ है कि जानवरों के दूध से भी हमें बीमारियों के रोगाणु मिलने की आंशका रहती है तो दूधदात्री के दूध से बहुत सी बीमारियों के मिलने की आंशका बनी रहेगी। उन पर निगरानी कौन रखेगा? मां के दूध की जब महंगी कीमत लगेगी तो लालच में दवाओं के इस्तेमाल को कैसे रोका जा सकेगा? इससे गंभीर बीमारियों के संक्रमण का खतरा है। जो व्यस्क केवल प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने या स्टेमिना में सुधार के लिए मां के दूध को खरीदना चाहते हैं, उनके संक्रामक बीमारियों से घिर जाने की आंशका से इनकार नहीं किया जा सकता। शोध तो यह भी बताते हैं कि जिस मां का शिशु स्तनपान करता है, उस शिशु में उसके जींस और चारित्रिक गुण-दोष भी पहुंचते हैं।

उपसंहार:- यदि हम बेहतर समाज चाहते है तो मां की ममता के कारोबार के बारे में विचार करना भी गलत होगा। मां का दूध एक नवजातशिशु के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है भले ही किसी भी माध्यम से उस बच्चे तक पहुंचता हो पर हर प्रकार से उसके लिए फायदे मंद होता है। इसलिए उन सब मांओं का हमें तहेदिल से कोटि-काटि धन्यवाद करना चाहिए, जो अपना दूध दान करके यह महान कार्य करती है, जिससे किसी बच्चे की ज़िंदगी बच जाती है। बस यह कार्य सेवाभाव के रूप में ही इसी तरह आगे होना चाहिए न की व्यापार के रूप। तो इससे देश का हर बच्चा स्वस्थ्य होगा।